Padap sharir ki karyapranali (पादप शरीर की कार्य-प्रणाली)
आपने पौधों के विभिन्न भागों की संरचना और उनके कार्यो के बारे में पहले
पढ़ा है। इस पाठ में हम पौधों की विशेष क्रियाओं के विषय में कुछ विस्तार
से अध्ययन करेंगे। संसार के समस्त जीव एक प्रकार से प्रकाश-संश्लेषण पर
ही निर्भर हैं। पौधे तो इसके द्वारा सीधे ही अपना भोजन बना लेते हैं तथा प्राणी
इन्हीं पौधों से सीधे ही अथवा परोक्ष रूप में शाकाहारी प्राणियों को खाकर
हें यही नहीं संश्लेषण दौरान निकली ~ आक्सीजन ~
प्राप्त करते हें। यही , प्रकाश- के दौरान निकली आक्सीजन
समस्त जीवों के लिए सांस लेने के काम आती हे।
पौधों में भी श्वसन होता हेै। ये भी अपशिष्ट पदार्थो का अपने शरीर से
निष्कासन करते हैं। सभी जीवों की तरह हर पौधे का अंतिम लक्ष्य भी अपनी
जाति का प्रसार करना होता है, जिसके लिए वह जनन करता हे। पौधे
कैसे-कैसे जनन करते हैं, इस सभी प्रक्रियाओं के बारे में आप इस पाठ में
जानकारी प्राप्त करेंगे।
इस पाठ का अध्ययन करने के पश्चात् आप :
० पौधों में भोजन निर्माण की प्रक्रिया समझा सकेंगे;
० पौधों की श्वसन प्रक्रिया की व्याख्या कर सकोगे;
मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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टिप्पणी
पादप शरीर कौ कार्य-प्रणाली
० पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन के महत्त्व की व्याख्या कर सकोगे;
० पौधों द्वारा जल व खनिज के अवशोषण की प्रक्रिया बता सकेंगे; और
० पौधों की प्रजनन प्रक्रिया समझा सकेगे।
पोषण कुल मिलाकर वह प्रक्रिया है जिसमें जीव (चाहे वह पौधा हो या
प्राणी) भोजन ग्रहण करता है और शरीर में उसको उपयोग में लाने योग्य
बनाता है तथा उसका उपयोग करता है।
सजीवों को भोजन क्यों चाहिए?
1) नया देह पदार्थ बनाकर वृद्धि और विकास के लिए।
¡¡) क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की टूट-फूट की 'मरम्मत' करने के लिए।
¡¡) रोगों से बचाव की शक्ति पैदा करने के लिए।
¡j४) शरीर के लिए ऊर्जा प्राप्त करने के लिए।
v४) शरीर के लिए अनेकों प्रकार के एंजाइमों तथा हार्मानों के बनाने के लिए।
6.2 पौधों में भोजन-निर्माण (प्रकाश संश्लेषण)
प्रकाश-संश्लेषण अर्थात 'प्रकाश' की मौजूदगी में होने वाली भोजन निर्माण
की क्रिया केवल हरे पौधों में ही होती है। ये पौधे अपने हरे पदार्थ
(क्लोरोफिल) की मदद से सूर्य के प्रकाश में वायु से ली हुई कार्बन
डॉइआक्साइड तथा मिटटी से सोखे हुए जल को जोड़कर ग्लूकोज नामक
शर्करा का निर्माण करते हैं। केवल सूर्य का प्रकाश (धूप) से ही नहीं, बल्कि
किसी अन्य स्त्रोत से भी यह क्रिया हो सकती है। मगर चूंकि खुली प्रकृति में,
खेतों, जंगलों में जहां सूर्य का ही प्रकाश उपलब्ध है, वहां प्रकाश-संश्लेषण
में प्रकाश का अर्थ सूर्य के प्रकाश से ही है।
ES विज्ञान, स्तर-'ख'”
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अब आप सोच रहे होंगे कि क्या चंद्रमा के प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण होगा?
नहीं वह अत्यंत धीमा होता है, और उसमें आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध नहीं होती।
दो मुख्य उत्पाद-ग्लूकोज (भोजन) तथा आक्सीजन (जीवनदायनी गैस) के |-झसनी |
कारण यदि प्रकाश-संश्लेषण को सही अर्थो में ' आम के आम और गुठलियों
के दाम' कहें तो अनुचित नहीं होगा। एक ओर स्वयं पौधे के लिए और पौध
` के द्वारा अन्य जीव जंतुओं के लिए भोजन प्राप्त होता है और दूसरे वह
के लिए अनिवार्य है, प्राप्त होती है।
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आक्सीजन ~ जो जीवों .
आक्सीजन जो समस्त जीवो
चित्र संश्लेषण दौरान आक्सीजन निकलती ~
चित्र 6.2 प्रकाश सश्लषण के दारान आक्साजन 1नक लता हे
भोजन पत्तियों में बनता है, परंतु पौधे के अन्य भागों में कैसे पहुंचता है?
आपने देखा था कि पत्तियों में शिराएं होती हैं और उनको बारीक-बारीक शाखाएं पत्ती
को लगभग प्रत्येक कोशिका तक पहुंची होती है। ये शिराएं, धरती से सोखे गए और
तने द्वारा ऊपर लाए गए जल को कोशिकाओं में लाती है तथा पत्ती की कोशिकाओं
में बना ग्लूकोज इन्हीं शिराओं के दूसरे भागों द्वारा तने में पहुंचाया जाता है, जहां से वह
समस्त पौधे में ऊपर-नीचे फैल जाता है।
मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा BS 8:1.
टिप्पणी
पादप शरीर कौ कार्य-प्रणाली
उचित शब्दों की सहायता से निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
1. हरे पोथे .......... नामक प्रक्रिया द्वारा स्वयं अपना भोजन बनाते हैं।
2. प्रकाश-संश्लेषण में .......... नामक गैस वायुमंडल में लगातार छोडी
जाती है।
3. हरे पौध .......... गैस भोजन बनाने में प्रयोग करते हैं।
पौधों में भी प्राणियों की तरह श्वसन यानी सांस लेने की प्रक्रिया होती हे।
इससे उन्हें अपने शरीर में अनेकों प्रकार की क्रियाएं करने के लिए ऊर्जा प्राप्त
होती है जैसे ग्लूकोज से स्टार्च बनाने के लिए ऊर्जा चाहिए। पत्तियों में बने
सूक्ष्म छिद्रों (स्टोमैटा) द्वारा वायु से आक्सीजन भीतर ले जाई जाती और कार्बन
डॉइआक्साइड बाहर निकाल दी जाती है। दिन के समय कुछ हद तक वह
आक्सीजन भी श्वसन में इस्तेमाल हो जाती हे, जो प्रकाश-संश्लेषण में
निकलती हे। श्वसन एक रासायनिक क्रिया है जो प्रत्येक कोशिका में होती
है-पत्ती, स्तंभ, जड़ आदि प्रत्येक भाग में। छिद्रों द्वारा भीतर पहुंची आक्सीजन
एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होते हुए सब तरफ पहुंच जाती है।
निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्द भरकर कीजिए :
1. शरीर में ऊर्जा पैदा करने के लिए पौधे प्राणियों की तरह ........... करते
हैं।
2. पौधों की पत्तियों में .......... के द्वारा आक्सीजन भीतर पहुंचती है।
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
पादप शरीर कौ कार्य-प्रणाली
पादप शरीर की कार्य-प्रणाली |
6.4 पौधे के जल का वाष्प के रूप में बाहर निकाला
जाना (वाष्पोत्सर्जन)
पौधे अपनी जड़ों द्वारा लगातार बहुत सा जल अपने भीतर लेते रहते हैं। यह
जल पौधे की ऊँची से ऊँची पत्तियों तक जाता है ताकि उन्हें प्रकाश-संश्लेषण
के लिए जल और खनिज तत्व भी मिल सकें। यह जल-धारा लगातार बनी रहे,
इसलिए बहुत सा जल पौधे की पत्तियों द्वारा वाष्प बनकर बाहर को उडता
जाता है, जिसे वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। जड़ों द्वारा सोखे गए जल का लगभग 2%
भाग ही प्रकाश-संश्लेषण के काम आता है।
वाष्पोत्सर्जन का महत्व
1) ठंडक पैदा करना - जल के वाष्प में परिवर्तित होने से ठंडक पैदा
होती है, अधिक गर्मी में पौधे से अधिक वाष्पोत्सर्जन होता हे। इसीलिए
गर्मियों में पौधे को ज्यादा पानी देना पड़ता है नहीं तो पौधा सूखने लगता
है।
11) जल का वितरण - चूकि पत्तियां पौधे के अंतिम सिरों पर होती है,
इसलिए उन तक पहुंचता हुआ जल समस्त पौधे में से होता हुआ ऊपर
को जाता है और मार्ग में जहां-जहां आवश्यक हो, काम में आ जाता है।
ii¡) खनिज तत्त्वों का वितरण - जडों से ऊपर की ओर को जाते हुए जल
में खनिज तत्व आदि भी घुले होते हैं। जैसे-जैसे ऊपर की पत्तियां
वाष्पोत्सर्जन करती है उनके भीतर का पदार्थ गाढा हो जाता है और वह
नीचे से और अधिक रस को अपनी ओर खींचता हे। नीचे से ऊपर को
जल में घुलकर एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होते हुए पोषक
पदार्थ चढते जाते हैं।
¡४) अतिरिक्त जल का त्याग - वाष्पोत्सर्जन से पौधे के भीतर आवश्यकता
से अधिक जल वाष्पित होकर निकल जाता है।
मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
MG
टिप्पणी
पादप शरीर कौ कार्य-प्रणाली
6.5 पौधों द्वारा जल और खनिज लवणों का अवशोषण
मिट्टी में उगने वाले पौधे मिट्टी से ही जल और खनिज लवणों को ग्रहण
करते हैं। पौधों को कई कारणों से जल की आवश्यकता पड़ती हे, जेसे-
1) जल, पौधे के शरीर के हर भाग का कुछ अंश होता है।
¡1) पर्याप्त जल से ही पत्तियां सीधी खड़ी-तनी रहती हैं, पानी की कमी होते
ही वे ढीली होकर मुरा कर लटक जाती है।
iii) जल भोजन बनाने की प्रक्रिया (प्रकाश संश्लेषण) में एक कच्ची सामग्री
है।
¡j४) गर्मी में जल के वाष्पन (वाष्पोत्सर्जन) से पौधे को ठंडक मिलती
है।
पौधों को खनिजों की आवश्यकता
जिस प्रकार पौधों के लिए जल आवश्यक है ठीक उसी प्रकार पौधों को अनेक
खनिजों तथा लवणों की आवश्यकता होती हे जैसे, कैल्श्यिम, पोटेशियम तथा
नाइट्रेट, फास्फेट आदि। ये पौधों की कोशिकाओं की रचना में काम आते हैं।
विभिन्न खनिज मिट्टी से अवशेषित किए जाते हैं।
पानी को सोखना
पौथे मिट्टी से पानी को अपनी जड़ों द्वारा सोखते हैं। खनिज लवणों को भी
जडे सोखती हैं और फिर से लवण पानी के साथ जड़ के ऊपरी भागों में चला
जाता है। फिर यह पानी वहां से स्तंभ के केन्द्रीय भाग (जाइलम) में पहुंच
जाता है, जहां से वह ऊपरी टहनियों तथा पत्तियों में पहुंचता हे। खनिज लवण
घुले हुए पानी के ऊपर चढ़ने को रसारोहण कहते हे।
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
पादप शरीर कौ कार्य-प्रणाली
प्रत्येक के लिए दिए गए दो विकल्पों में सही विकल्प चुनिए और रिक्त स्थान
भरिए :
1. पौधों में वाष्पोत्सर्जन .......... द्वारा होता है। (जडों/पत्तियों)
2. वाष्पोत्सर्जन से .......... का त्याग हो जाता है। (जल/लवणों)
3. वाष्पोत्सर्जन से पोधे में .......... के वितरण में सहायता मिलती हे।
(जल/भोजन)
प्रत्येक जीव चाहे वह पौधा हो या प्राणी, अपनी प्रजाति को सुरक्षित रखने के
लिए जनन करता है और नई संतान को जन्म देता है। अपने जैसे ही नई संतान
को जन्म देना ही जनन कहलाता है। पौधे दो प्रकार से जनन करते हैं, बीज
से तथा तनों या पत्तियों से।
क. बीजों से जनन और बीजों का फैलना
अधिकांश पौधे नए पौधों को अपने बीजों द्वारा उत्पन्न करते हैं लेकिन यह
प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। यदि पौधे के बीज उसी के नीचे मिट्टी में पडे
रहें और अंकुरित हो जाएं तो नए उगे पौधों को पूरी धूप और पोषक तत्व नहीं
मिला पाएंगे। प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि बीज अपने जनक पौध
` से ज्यादा से ज्यादा दूर फैल जाएं। बीजों का इस प्रकार का बिखराव या
फैलाव ही बीज प्रकीर्णन कहलाता हे। पौधों ने बीज प्रकीर्णन की कई विधि
यां विकसित की हैं, जैसे वायु, जल या प्राणियों द्वारा अथवा स्वयं अपनी ही
युक्तियों से छिटका कर।
मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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टिप्पणी
पादप शरीर कौ कार्य-प्रणाली
¡) वायु द्वारा बीजों का फैलाव
कुछ बीजों में “पंख' और कुछ में बाल या रेशे निकले होते हैं। ये बीज हवा
में दूर-दूर तक उडते चले जाते हैं। सहिजन के बीज में पंख जैसी आकृति होती
है, वहीं सेमल के बीज में बाल जेसे रेशे होते हैं जिससे यह एक स्थान से
दूसरे स्थान तक उड सकते है।
गुलमेंहदी का फल पूरी तरह पक जाने पर जरा से झटके से विस्फोटित होकर
बीजों को दूर-दूर तक छिटका देता है। इसी तरह मटर की फली, भिंडी के
फल भी पककर फूटते हैं और बीज बिखेर देते हैं।
¡) प्राणियों द्वारा बीज को फैलाकर
एक कहानी हे कि जंगल गिलहरियों ने लगाया। गिलहरी खाते वक्त बीजों को
मिट्टी में छिपा देती है और फिर भूल जाती है। इसी तरह उसने पूरे पहाड में
बीज छिपा दिए जिससे जंगल बन गए। यह केवल कहानी नहीं हेै। पछी,
जानवर बहुत से फलों को खाकर बीजों को फैला देते हैं। हम स्वयं बहुत से
फलों को खाते हैं और उनकी गुठलियों अथवा बीजों को जहां-तहां गिरा देते
हैं (जैसे आम, जामुन, सेब आदि)। इसी प्रकार पक्षी, गिलहरी, गीदड़, हाथी
आदि भी फल खाकर बीजों को यहां वहां गिरा देते हैं।
i) जल द्वारा बीज को फैलाना
जल द्वारा बीज को फैलाने का सबसे अच्छा उदाहरण नारियल है। रेशेदार
छिलके और कडे खोल में बंद नारियल पेड़ से गिर कर पानी पर बहता हुआ
दूर-दूर तक पहुंच जाता है।
6.6 बीज का अंकुरण
पौधों का जनन तब पूरा होता है, जब उसके बीज अंकुरित होकर एक नया
पौधा बनाते हैं। बीज के अंदर एक बहुत ही छोटा पौधा और उसके साथ कुछ
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
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भंडारित भोजन भी होता है। यह भोजन दो दलों (बीजपत्री) के रूप में हो
सकता हे जेसे चना, मटर अथवा एक अकेले अंश के रूप में हो सकता है
जैसे गेहूँ या मक्का का दाना।
टिप्पणी
आइए बीजों के अंकुरित होने की प्रक्रिया को जानें।
¡1 बीजों को जल, वायु (आक्सीजन) तथा उपयुक्त तापमान मिलने पर उनमें
अंकुरण होता हे।
1. अंकुरण का पहला लक्षण जल सोखने के कारण बीज का फूल जाना है।
ii. बीज का छिलका नरम हो जाता हे।
¡j७. बीज में से एक सफेद हिस्सा जिसे मूलांकुर कहते हैं, निकल जाता है,
जो लम्बा होकर मुड्ते हुए मिट्टी में चला जाता है। यही प्राथमिक जड़
बनता हेै।
४. शीघ्र ही तना बनाने वाला भाग भी निकल आता है और ऊपर को खड़ा
हो जाता है। यह बढ़ता जाता है और इस प्रकार नन्हा पौधा बन जाता हे।
1. “जनन' शब्द से क्या अभिप्राय हे?
2. फल और बीज में क्या अंतर हे?
दीजिए ~
3. निम्न का एक-एक उदाहरण दीजिए :
1) मनुष्य द्वारा बीज का फैलाना
1) वायु द्वारा बीज का फैलाना
4. गुलमेंहदी (“बालसम') के बीजों का किस प्रकार फैलाव होता हे?
मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा Ea
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क. तनो या पत्तियों से जनन
> फूलों को छोड़ कर पौधे के किसी भी अन्य भाग से नए पौधे का बनना
झला अलैंगिक जनन कहलाता है। यह अलग-अलग पौधों में जड़ों, तना, पत्ती आदि
से हो सकता है।
आइए, हम इसके कुछ उदाहरण देखते हैं -
¡ पत्ती से-जैसे ब्रायोफिलम की पत्ती के किनारों पर स्थित कोशिकाओं से
1. तना जैसे आलू (कंद, 'ट्यूबर') तथा प्याज के शल्क कंद (“बल्ब”) से
iii. कुछ पौधों के तने के कटे भागों (कलमों) से जैसे गुलाब अथवा गन्ने
के कटे टुकडे को मिट्टी में गाड़ने से नया पौधा बन जाता है।
1४. अदरक के टुकडों से भी नए पौधे निकलते हैं।