Keshant(केशांत)
बाल संस्कार आमतौर पर सोलह वर्ष की आयु में किए जाते हैं। किस दौरान बच्चे की दाढ़ी मुछ निकलती है। उसके शरीर में यौवन की शुरुआत होती है । मन में भाव की तरंगे उठते हैं। यह जन्म के बाद शरीर में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन है जो बचपन का अंत और किशोरावस्था में प्रवेश करने का काल होता है। इसका जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। पूर्वकाल मे बचपन के इस दौर में निवास गुरुकुल में था। इसलिए शिक्षा में इन नवाचारों का उदय यह संस्कार इसलिए किया गया ताकि भावनाओं के कारण ब्रह्मचर्य की भावनाओं में उतार-चढ़ाव न हो। इस संस्कार की प्रकृति अलग-अलग कालों में बदल गई। गुह्यसूक्त मे यह संस्कार मुंडन (चूड़ाकर्म ) संस्कार से जुड़ा है। बाल विवाह जिस समय प्रचलन में था उस समय यह संस्कार जोड़कर ब्रह्मचर्य आश्रम समाप्त कर गृहस्त आश्रम का आरंभ यह संस्कार माना जाता है।
प्राचीन प्रारूप :
गुरुकुल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के बाल कटवाए जाते थे । आचार्यों को गौ का दान दिया जाता था। बाल काटने वाले नाई को भी दान दिया जाता था । आचार्य फिर छात्र को ब्रह्मचर्य के नियम दुबारा बताते और समझाते है और ब्रह्मचर्य के नियमों का कठोरता से पालन करने का आदेश देते थे।
ब्रह्मचर्य पालन मे नित्य गुरु-सेवा , संध्या वेदध्यायन , आरती को अनिवार्य माना गया | मसालेदार पेय और भोजन से परहेज , शृंगररूप गीतों का विरोध, भूमि पर सोना , भिक्षा मांगने जैसे नियमों का पालन किया जाता था।
वर्तमान प्रारूप:
वर्तमान शिक्षा प्रणाली और समाज में काफी बदलाव आया है। आजकल छात्र घर पर या छात्रावास में रहते हैं और पढ़ते हैं। सोलहवां वर्षों से, उन्होंने दूसरों को देखते हुए दाढ़ी बनाना शुरू कर दिया है। एक तरह से युवा योवन को स्वयं ही सिख लेते है । उन्होंने इसे नई शिक्षा के माध्यम से भी पहचान कराई जाती है। इसलिए यह संस्कार स्वतंत्र रूप से नहीं किया जाता है , यह भी आवश्यक भी नहीं समझने का प्रयास करते है| कुछ लोग आज भी इसे उपनयन संस्कार से जोड़ते हुए अनुष्ठान करते है।