Jivon ki aapas me nirbharta(जीवों की आपस में निर्भरता)
संसार की कोई भी वस्तु, जीव-जन्तु या पेड्-पौधे एक-दूसरे से पूरी तरह से अलग-अलग नहीं है। यह आपस में जुड़े होते हैं। प्रकृति में एक-दूसरे पर निर्भरता की एक कडी हे, जिसमें मनुष्य, जानवर, पौधे तथा जीव किसी न किसी प्रकार एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। इससे प्रकृति में संतुलन आता है। यदि इनमें से कोई भी एक टूट जाए या अलग हो जाए तो पूरी कड़ी खराब हो जाती है। उदाहरण के लिए आपने कंचुआ तो देखा ही होगा। बरसात में या नमी वाली जगहों में ये खूब मिलते हैं। क्या आप जानते हैं कि केंचुए मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए बहुत उपयोगी हैं। साथ ही वह मिट्टी को पोली बनाकर उसे खेती के योग्य बनाते हैं, जिससे फसल की ज्यादा उपज होती है। इस प्रकार केंचुआ, मिट्टी और फसलें एक दूसरे से जुड़े हैं.
० जन्तुओं और पौधों की एक-दूसरे पर निर्भरता को जान सकेंगे;
० प्राकृतिक संतुलन की व्याख्या कर सकेगे;
® प्राकृतिक असंतुलन के कारण बता सकेंगे; और
० प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग के तरीके समझा सकेगे।
1.1 जन्तु और पौधे केसे एक-दूसरे पर निर्भर हैं?
हरे पौधे सूर्य के प्रकाश में अपना भोजन प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया के
फलस्वरूप बनाते हैं। इसी प्रकार हरे पौधे जन्तुओं पर निर्भर हैं। दूसरी ओर
जन्तु अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते, उन्हें भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष
रूप में पौधों पर निर्भर रहना पड़ता है।
उदाहरण के लिए मधुमक्खी पौधों के फूलों से शहद के लिए पराग प्राप्त
करती है। उसी दौरान मधुमक्खी के शरीर से फूलों के पराग-कण चिपक जाते
हैं जो उसके साथ दूसरे फूलों पर पहुँच जाते हैं और परागण हो जाता हे। इस
प्रकार, पौधे को मधुमक्खी से लाभ होता है और मधुमक्खी को शहद के लिए
पौधे से, यही परस्पर निर्भरता हे। इसी प्रकार तितली और पौधे भी परस्पर निर्भर
हैं।
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चित्र 1.1 जीव जन्तुओं की परस्पर निर्भरता
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
1.2 जीवों की एक-दूसरे पर निर्भरता
ऐसे बहुत से जीव हैं, जो एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। उदाहरण के लिए,
दीमक की आहार नली में कुछ जीवाणु तथा प्रोटोजोआ होते हैं। ये जीव दीमक |-झ्सनी
के आहार नहीं होते, मगर दीमक द्वारा खाई गई लकडी को पचाते हैं। इस
प्रकार दीमक को पचा हुआ आहार मिलता है और जीवाणुओं आदि को आहार
तथा आश्रय दोनों मिलते हैं।
आपने कभी किसी पक्षी को गाय या भैंस की पीठ पर बैठे हुए देखा
है? उसकी खाल पर से उसे कुछ खाते हुए भी देखा हे? वास्तव में यह
पक्षी पशुओं की पीठ पर बैठकर कोडों को खाते है। इससे जहां एक ओर
पशुओं को इनसे मुक्ति मिलती है वहीं दूसरी ओर पंछियों को भी भोजन मिलता
1. एक ऐसी वस्तु का नाम लिखिए जो पौधों को जन्तुओं से प्राप्त होती
है।
2. मधुमक्खी को पौधे से क्या प्राप्त होता है? पौधे को मधुमक्खी से क्या
प्राप्त होता हे?
1.3 प्रकृति में संतुलन
जीवित रहने के लिए सभी जीव-जन्तुओं को भोजन की आवश्यकता होती है।
आप जानते हैं, ताकतवर जानवर अपने से कम शक्तिशाली जानवर का शिकार
करता है और उसे खा जाता है। इसी ताकतवर जानवर को उससे अधिक
ताकतवर जानवर खा जाता है। इस प्रकार श्रृंखला बन जाती है जिसे खाद्य
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जीवों की आपस में निर्भरता
= चित्र 1.2 खाद्य श्रृंखला
श्रृंखला कहते हैं। कल्पना कीजिए, एक ऐसे छोटे से जंगल की, जिसमें केवल
पौधे, हिरन और शेर ही रहते हैं। विचार कीजिए, क्या होगा यदि इस जंगल
में सभी शेर मार दिए जाएं? सभी शेरों के समाप्त होने पर हिरनों की संख्या
बढ़ती चली जाएगी। एक समय ऐसा आएगा, जब सभी पौधे, हिरनों की
अत्यधिक आबादी द्वारा खा लिए जाएंगे। पौधों के समाप्त होने पर हिरन भी
भूख से मरते चले जाएंगे। ध्यान दीजिए कि प्रकृति में किसी भी जीव की कमी
या अधिकता से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता हे। इसका सभी प्रकार के जीवों
पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
पाठगत प्रश्न 1.2
1. यदि बगीचे के सभी साँप मार दिए जाएं तो क्या-क्या होगा?
2. यदि बगीचे के सभी पौधे समाप्त कर दिए जाएं तो क्या-क्या होगा?
sl विज्ञान, स्तर-“ख”'
जीवों की आपस में निर्भरता
1.4 प्राकृतिक असंतुलन
प्रायः आप अपने बडे-बुजुर्गो से सुनते होंगे कि अब हमारी प्रकृति इतनी स्वच्छ
नहीं रही जितनी कभी हुआ करती थी। हम खबरों में भी सुनते हैं कि शहर
की हवा कितनी प्रदूषित है या खेत में रासायनिक खाद के कारण कितना
प्रदूषण है। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। प्रकृति को बिगाड़ने में
(असंतुलन के लिए) सबसे अधिक जिम्मेदार कौन है? सोचिए दरअसल,
मनुष्य ही अधिकतर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करता हे, जिनसे प्रकृति में
असंतुलन पैदा हो जाता है। उदाहरण के लिए आपको यह जानकर आश्चर्य
होगा कि मनुष्य प्रतिदिन इतने पेड काटता हे, जितने प्रकृति में उत्पन्न नहीं
होते, इससे पेड़ लगातार कम होते जाते हैं। वनों का यह महत्व हमारे प्राचीन
साहित्यों में भी वर्णित है :
दशक्कूपसमा वापी दशवापीसमो हृदः।
दशह्ृदसमः पुत्रः दशपुत्रसमो द्रुमः।।1॥।
व्याख्या : दश कुओं के बराबर एक बावडी होती है, दस बावड़यों के बराबर
एक तालाब, होता है, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर
एक वृक्ष होता है। इस श्लोक में पर्यावरण सरंक्षण के प्रति जागरूकता दिखाई
गई है। यह सूक्ति पुराणों में आती है। इसका मुख्य तात्पर्य यह हे कि एक वृक्ष
दस पुत्रों के समान महत्वपूर्ण होता है। इसलिए हमें वृक्ष लगाने चाहिएं, वृक्ष
से न केवल लगाने वाले को अपितु किसी भी पथिक को स्वच्छ हवा, छाया
और फल मिलते हैं।
मनुष्य प्रतिदिन जल-स्रोतों में कारखानों से निकलने वाले हानिकारक रसायनों
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टिप्पणी
टिप्पणी
जीवो की आपस में निर्भरता
के बचे हुए पदार्थो को सीधे ही जल स्रोतों में छोड़ देते हैं, जिनसे जल प्रदूषित
हो जाता है। प्रतिदिन कारखानों और वाहनों से उत्पन्न हानिकारक गेसों को
वातावरण में छोड़ा जा रहा है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। ध्यान
दीजिए प्रदूषण बढ़ाने वाला भी स्वयं मानव ही है।
जरा सोचिए कि प्रकृति में असंतुलन के मूल कारण क्या है? प्रकृति में
असंतुलन का मूल कारण, निश्चित रूप से मानव-जनसंख्या में वृद्धि होना है।
आइए, इसे समझे-
अधिक जनसंख्या को अधिक अनाज, अधिक कपडा और अधिक मकान
चाहिए। अधिक अनाज के उत्पादन करने के लिए, अधिक कारखाने स्थापित
करने के लिए तथा मकान बनाने के लिए मनुष्य को और अधिक जंगलों की
कटाई करनी पडेगी। इससे प्रकृति में असंतुलन होगा। अतः प्रकृति में असंतुलन
पर नियंत्रण पाने के लिए सबसे पहले हमें जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि
को भी नियंत्रित करना होगा।
1.5 प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग
प्रकृति का उपयोग करना तो उचित है, परन्तु उसका दुरुपयोग करना सर्वथा
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गलत है। इसका मतलब यह हे कि हमें प्रकृति से केवल उतनी ही वस्तुएं लेनी
चाहिए, जितनी हमारे लिए आवश्यक हैं। सामान्यतः प्रकृति में पेड-पोधों की
संख्या इतनी होनी चाहिए कि जीव जिस दर से उनकी संख्या में कमी करें,
उसी दर से नये पेड़-पौधे उत्पन्न भी हो सकें। यही बात शाकाहारी जन्तुओं
तथा मांसाहारी जन्तुओं के लिए भी है।
पीने के लिए, आवश्यकताओं जैसे पौधों की सिंचाई के लिए, जल हमें नदी,
झील, तालाब, वर्षा या भूमिगत स्रोतों से प्राप्त होता है। भूमिगत जल यानि ध
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
जीवों की आपस में निर्भरता
रती के नीचे मिलने वाला पानी। क्या आपने कभी सोचा है कि भूमिगत जल
कहाँ से आता है? वर्षा के जल का एक भाग धरती में सोखकर समा जाता
है और वहीं एकत्रित हो जाता है जिसे भूमिगत जल कहते हैं। यदि भूमिगत
जल के खर्च करने की दर, इसके धरती में एकत्रित होने की दर से अधिक
होगी, तब भूमिगत जल कम होता जाएगा और उसका तल नीचे खिसकता
चला जाएगा। अन्त में एक ऐसी स्थिति आ सकती है कि हमें भूमिगत जल
मिले ही नहीं। सोचिए जब जल ही नहीं मिलेगा तो क्या पृथ्वी पर जीवन संभव
होगा?
दूसरे की प्रतीक्षा किए बिना आप स्वयं आगे बढें और अपने घर इस
महत्त्वपूर्ण कार्य को आरम्भ करें। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए
छोटी-छोटी बातों को ध्यान देना चाहिए, जेसे :
1.
2.
पानी को बिना काम के बर्बाद नहीं करना चाहिए।
बिजली का बल्ब अथवा पंखा अनावश्यक रूप से नहीं चलाना
चाहिए।
प्लास्टिक की थेलियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
जहाँ तक संभव हो, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करना
चाहिए, जैसे कि बायोगैस (गोबर गैस) का। ऐसा करने से अनवीकरणीय
संसाधनों की बचत होती हेै।