Jivan Ka Vikas(जीवन का विकास)
जीवन का विकास
हमारे चारों ओर अनेक परिवर्तन होते रहे हैं। बहुत सारे ऐसे परितर्वन होते हैं
जिन्हें हम आंखों से देख सकते हैं या उन्हें महसूस कर पाते हैं। लेकिन कई
परिवर्तन ऐसे हैं जिन्हें हम आसानी से देख नहीं पाते। इन परिवर्तनों द्वारा जीवों
का विकास हुआ। भांति-भांति के जीव पृथ्वी पर पैदा हुए। चूंकि इन परिवर्तनों
की अवधि मनुष्य के जीवन से कई गुणा अधिक हे, इस कारण मनुष्य जीवन
के विकासक्रम में होने वाले परिवर्तनों को आसानी से देख नहीं पाते। परन्तु
वैज्ञानिकों ने प्रकृति में हुए इन परिवर्तनों को सिद्ध करने के लिए अनेक तथ्य
या प्रमाण इकट्ठे किए हैं। विभिन्न प्रकार के जीव और उनकी प्रजातियाँ,
जिनमें से कुछ आज भी जीवित हैं और कुछ जीवाश्म बन चुकी हैं, जैविक
विकास के कारण ही उत्पन्न हुई।
अपनी आँखें मूंद लें और कुछ सजीव वस्तुओं के बारे में सोचें तो कई प्रकार
के जीव आपकी आँखों के सामने आएंगे, जिसमें अधिकतर पौधे और पशु-
पक्षी ही होगे। परन्तु क्या आप जानते हैं कि जीवाणु (बैक्टीरिया), जो दूध को
दही में परिवर्तित करते हैं या जो टी.बी. जैसी बीमारी का कारण होते हैं, खाने
वाली खुम्भी अथवा मशरूम, वो भी सजीव हैं? वैज्ञानिकों का अनुमान है कि
पृथ्वी पर करीब एक करोड प्रजाति या जीवों का विकास हुआ। जिनमें से
मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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करीब 20 लाख जीवों की जानकारी वैज्ञानिकों ने प्राप्त की। ये जीव आपस
में संतुलन बना कर रहते हैं। विभिन्न प्रकार के जीवों के समागम को “जेव
विविधता'' (Biodiversity) कहा जाता है। जैव विकास के कारण ही पृथ्वी
पर जैविक विविधता पाई जाती है।
इस पाठ में हम पृथ्वी पर जीवन के विकास की प्रक्रिया के बारे में
पढेगे।
इस पाठ का अध्ययन करने के पश्चात् आपः
० पुरुष सूक्त के अनुसार सृज्टि की रचना की व्याख्या कर सकेंगे;
० पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कब व कैसे हुई बता सकेंगे;
० पृथ्वी की उत्पत्ति के समय तथा वर्तमान में वायुमंडल की स्थिति को
समझा सकेगे;
० डायनासोर जेसे जीव की विकास प्रक्रिया में कैसे विलुप्त हुए, बता
सकेंगे; और
० मनुष्य के विकसित होने का क्रम बता सकेगे।
3.1 पुरुष सूक्त में सृष्टि की व्याख्या
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में 6 सृष्टि के अस्तित्व कर्त्ता तथा सृष्टि रचना की बहुत
ही सुंदर ढंग से व्याख्या की गई है। उस विराट पुरुष के हजारों सिर, हजारों
हाथ-पैर के रूप में कल्पना की गई है। इस सृष्टि का रचनाकार उस परमपुरुष
को ही माना गया है।
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
3.2 जीवन विकास का वर्तमान विद्धान्त
विकास का सामान्य अर्थ हे “बदलाव या “परिवर्तन'। जीवन का विकास या
जेव विकास परिवर्तन हें जिसके प्रजाति जीव
जेव विकास ऐसे परिवर्तन हें, जिसके कारण नई प्रजाति के जीव उत्पन्न होते
हैं। विकास की प्रक्रिया में परिवर्तन द्वारा नई प्रजाति के बनने में बहुत लम्बा
समय लगता है। चूंकि पृथ्वी की दशाएं परिवर्तनशील हैं, जीवों में उनसे निपटने
के लिए विकास के लिए परिवर्तन आवश्यक हो जाता है ताकि पृथ्वी की
बदलती दशाओं के साथ तालमेल रखकर जीवित रह पाए। जिस प्रजाति के
जीव बदलते वातावरण से तालमेल नहीं रख पाते, वे मर जाते हैं और वह
प्रजाति सदा के लिए विलुप्त हो जाती है जैसे, डायनासोर। सभी नई प्रजातियों
के जीव अपने पूर्वजों से उत्पन्न होते हैं। चार्ल्स डार्विन (1809-1882), एक
महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने अनेक तर्क इकट्ठे किये थे और विकास से संबंधि
त दो महत्त्वपूर्ण बातें कही थीं -
1. सभी प्रजातियों के जीवों की उत्पत्ति विकास के दौरान हुई।
जेविक ~ प्राकतिक
2. जेविक विकास की प्रक्रिया को उन्होंने प्राकृतिक चयन नाम दिया।
<
प्राकृतिक चयन का अर्थ है कि प्रकृति जीवों का चयन करती हे और
<
जनन द्वारा बड़ी संख्या में उन जीवों की उत्पत्ति होती है जो अपने
पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
इस प्रकार जब पर्यावरणीय परिस्थितियां बदलती हैं, तब पैतृक पीढ़ी से नई
प्रजाति बन जाती हेै। इस प्रकार पृथ्वी पर समय के साथ अलग-अलग
प्रजातियां बनी। इनमें अलग-अलग प्रकार के जीव जेसे जीवाणु, प्रोटोजोआ,
फफूदी, पौधे और जंतु (जिसमें मनुष्य भी शामिल हैं) शामिल हैं। इन जीवों
में कई समानताएं भी है जैसे ये जीव किसी न किसी रूप में सांस लेने, पोषण
प्राप्त करने जैसे क्रियाएं करते हैं।
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1. उस वैज्ञानिक का नाम बताइए जिसे 'जैव विकास के विज्ञान का
जन्मदाता ' माना जाता हे।
2. दो ऐसी सामान्य प्रक्रियाएं बताएं, जिनके बिना जीवाणु से लेकर मनुष्य
तक कोई भी जीव जीवित नहीं रह सकता।
3.3 एक कोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय जीवों
तक का विकास
आपने देखा कि पृथ्वी की भौतिक दशाएं बदलती रही है और इसलिए जीवों
में विकासीय बदलाव और परिवर्तन होते रहे हैं। अब हम पढ़ेंगे कि पृथ्वी पर
कैसे परिस्थितियां बदलीं और सबसे पहले कौन से जीव बने। विकास की
प्रक्रिया में कई परिवर्तन हुये, जिनके परिणामस्वरूप बहुत सारे जीवों की
प्रजातियों की उत्पत्ति हुई। जैविक विकास के लिए परिवर्तन की प्रक्रिया को
आज भी प्राकृतिक चयन ही माना जाता हे।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि करीब 5 अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी थी ही नहीं।
इसके बाद धीरे-धीरे कुछ प्राकृतिक बदलाव हुए और करीब 4-5 अरब वर्ष
पूर्व पृथ्वी की उत्पत्ति हुई आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारतीय
वैदिक ग्रंथों में लिखित पृथ्वी की उत्पत्ति भी लगभग इतने ही पहले हुई थी।
विकास के अनेक चरण रहे हैं जिनमें से कुछ विशेष चरण नीचे दिए जा रहे
हैं:
प्रथम चरण : पृथ्वी पर जल नहीं था केवल भभकते बादल थे-धीरे धीरे
तापमान में गिरावट आई, वर्षा हुई और धरती पर पानी छाने लगा। उस समय
तक कोई जीव नहीं था।
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
दूसरा चरण : जल में प्रथम अति सृक्ष्मजीव स्वतः बनकर प्रकट हुए। आज
कल के समस्त जीवों के पूर्वज यही थे और इनकी एक शाखा आज भी
जीवाणुओं (बैक्टीरीया) के रूप में विद्यमान है। उस समय वायुमण्डल में खुली
आक्सीजन नहीं थी।
तीसरा चरण : जीवाणु आदि एक-कोशिकीय जीवों में कुछ विकासीय
परिवर्तन हुए और उनमें प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया संभव हो पाई। इससे
वायु में आक्सीजन आयी और इस तरह विभिन्न प्रकार के जीवों के विकास
का द्वार खुल गया। जीवाणुओं की उत्पत्ति के बाद शैवाल (एल्गी) जो कि
तालाबों में पायी जाती हैं और प्रोटोजोआ, जो कि एक कोशिकीय कहलाते हैं,
उत्पन्न हुये। एक कोशिकीय पूर्वजों में होने वाले विकासीय परिवर्तनों के कारण
ही एक कोशकीय जीव जैसे कवक (फंजाई), पौधे और प्राणी का विकास
हुआ।
चित्र 3.1 एक कोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय जीवों तक
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1. सबसे पहले बनने वाले जीव किस प्रकार के थे?
2. नीचे कुछ जीव समूह दिये गये हैं। पृथ्वी पर उनकी उत्पत्ति के आधार
पर उन्हें क्रम से लिखिये :
पौधे, कवक (फफ़ूंद), जन्तु, जीवाणु, शैवाल (एल्गी) और प्रोटोजोआ।
3. उस जीवनदायी गैस का नाम बताइए जो शुरू में पृथ्वी के वायुमण्डल में
नहीं थी।
4. पौधे और जन्तुओं में किसका विकास पहले आरंभ हुआ?
CW WEI EE CSC IRC CSR IE
विकास के दौरान होने वाले परिवर्तन साधारणतः दिखायी ही नहीं देते। परन्तु
अनेक तथ्यों से पता चलता हे कि जीव, विकास से ही उत्पन्न हुए हैं। जीवाश्म
भी ऐसे तथ्य हैं। जीवाश्म उन जीवों के अवशेष हैं जो पहले पृथ्वी पर मौजूद
थे। ये अवशेष या तो चट्टानों में दबकर एक ठप्पे के रूप में छपे हुए पाये
जाते हैं या फिर जीवों के शरीर के अंग अधिक समय बीतने पर पत्थर का रूप
ले लेते है।
करीब 15 करोड वर्ष पूर्व हमारी पृथ्वी पर विशालकाय डायनोसोर निवास
करते थे। उस समय पृथ्वी पर न ही कोई पक्षी था और न ही कोई स्तनधारी
जीव।
चट्टानों को खुदाई करके बहुत सारे डायनोसोर के जीवाश्म खोजे गये हैं। वे
सरीसृप समूह के जानवर थे। आजकल इस समूह में छिपकली, सांप, कछुए
और मगरमच्छ आते हैं।
विज्ञान, स्तर-'"ख”'
श 3.2 डायनोसोर
यहां एक चित्र दिया गया है। आप इस चित्र से उनके विशाल शरीर का
अनुमान लगा सकते हैं। डायनोसोर की अनेक प्रजातियां थीं। कुछ पानी में रहते
थे, या कुछ हवा में उड़ सकते थे, जबकि बहुत से जमीन पर चल सकते थे।
230 लाख साल पूर्व से 65 लाख साल पूर्व तक पृथ्वी पर डायनोसोर का
साम्राज्य था यानी जिधर देखो उधर वे ही वे थे। कुछ डायनोसौर पौधे खाते थे
और कुछ मांसाहारी थे।
प्रशांत महासागर में स्थित कोमोडो ह्वीप पर आज भी एक विशाल छिपकली
पाई जाती है, जो मानो अपने डायनोसोर जैसे पूर्वजों की प्रतिनिधि है। उसे
कोमोडोडेगन
गन नाम से जाना जाता है।
पृथ्वी को उस समय की परिस्थितियों में डायनोसोर सफलता से जीवन
बिता रहे थे। बाद में ये विलुप्त हो गये क्योंकि पृथ्वी पर पर्यावरण बदल गया।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना हे कि पृथ्वी पर एक विशेष प्रकार के विकिरणों
के फैलने के कारण ये डायनोसोर मर गये और हमेशा के लिए विलुप्त
(समाप्त) हो गये। विकास के बारे में जानने के लिए डायनोसोर एक अच्छा
उदाहरण है।
मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा
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डायनोसोर के चित्र एकत्र करके एक एलबम बनाइए। इसके लिए आपको
डायनोसोर के चित्र, थर्माकोल, रंग, गोंद आदि की जरूरत होगी।
टिप्पणी
सबसे पहले डायनोसोर के चित्रों को इकट्ठा करिए और एक एलबम
बनाइए। चित्रों को देखकर थर्माकोल या गत्ते से डायनोसोर बनाइए और
उसके और असके आकार के कागज में रंग भर कर चिपकाइए। यह
प्रक्रिया अपनाकर आप अलग अलग डायनासोर बना सकते हैं।
1. आज भी पाये जाने वाले किन्हीं दो ऐसे जानवरों के नाम बताइए, जो
डायनोसोर वर्ग के ही हैं।
2. जीवाश्म किसे कहते हैं?
3. डायनोसोर के विलुप्त होने का एक कारण बताइए।
करीब 20 लाख वर्ष पूर्व ही पृथ्वी पर मनुष्य का विकास हुआ। मनुष्य में बहुत से आदिम लक्षण हैं, लेकिन उसे विकास की अत्याधिक जटिल और सबसे ऊँची देन माना जाता है, क्योंकि उसका मस्तिष्क अत्यंत विकसित है। अब भी मानव के शरीर में अंतर आते जा रहे हैं जो अत्यंत सूक्ष्म हैं। मानव का विकास जारी है और आगे भी होता रहेगा। मनुष्यों को एप अथवा कपि (जैसे चिम्पैंजी) के साथ बहुत अधिक समानता हे।
संसार का प्रत्येक जीव विकास के दौर से गुजर रहा है। उदाहरण के लिए 1950 के दशक में मलेरिया का प्रकोप भारत में था। उन दिनों मलेरिया फैलाने मच्छर की प्रजाति को डी.डी.टी. द्वारा नष्ट कर दिया जाता था। लेकिन जल्दी ही पता चला कि कुछ मच्छर डी.डी.टी. की उपस्थिति में भी नहीं मरें। इनमें डी.डी.टी. को सहन करने की ताकत थी। इनका प्राकृतिक चयन हुआ और पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही डी.डी.टी. रोधी मच्छरों की संख्या बढ़ती गई। विकास का अर्थ नयी प्रजाति का ही बनना नहीं, वरन किस भी प्रजाति के अंदर नए लक्षण बनना भी विकास का ही भाग हेै।
क्या प्रकृति में विकास के लिए परिवर्तन अभी भी हो रहे है?
2. हमारे देश में एक समय मलेरिया पूर्ण रूप से समाप्त जैसा हो चुका था,
परंतु अब दोबारा क्यों होने लगा?
विकास का क्या अर्थ है?
जैव विविधता विकास के परिणामस्वरूप है, अर्थात् विकास के लिए परिवर्तनों द्वारा ही पृथ्वी पर नई-नई प्रजातियां उत्पन्न हुई। विकास के लिए परिवर्तन होते दिखाई तो नहीं पड़ते, पर अनेक तथ्यों द्वारा उनका होना प्रमाणित हो जाता है। एक प्रमाण है जीवाश्मों का पाया जाना। विकास का अर्थ है सामान्य से जटिल जीवों की उत्पत्ति। विकास के लिए परिवर्तन पृथ्वी पर बदलती परिस्थितियों के कारण होते हैं और पहले से मौजूद कुछ जीव उन परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाते और विलुप्त या समाप्त हो जाते हैं जबकि दूसरे जीव बदलती परिस्थिति के अनुकूल खुद को ढाल लेते हैं तथा जीवित रह पाते हैं।
० चार्ल्स डार्विन (1809-1882) ने बताया कि सभी जीवों की उत्पत्ति समान उद्भव से हुई है। उन्होंने प्राकृतिक चयन को विकास की प्रक्रिया के रूप में बताया।
० पृथ्वी की उत्पत्ति 4 से 5 अरब वर्ष पूर्व की है जब पृथ्वी की परिस्थितियां जीवन के अनुकूल नहीं थी।
० सर्वप्रथम जीव लगभग 3 अरब वर्ष पूर्व प्रकट हुए। वे जीवाणु (बैक्टीरिया) थे।
० जल्दी ही पृथ्वी के वायुमण्डल में कुछ जीवनदायनी आक्सीजन गैसइकट्ठी हो गयी।
० जीवाणुओं जैसे जीवों से एक कोशिकोय प्रोटो
० बहु कोशिकीय कवक, पौधे और प्राणी एक कोशिकीय जीवों में से एक के बाद एक विकसित होते गए।
० प्रारंभ में जीवों की संरचना साधारण थी, जो बाद में जटिल होती गयी।
० पृथ्वी पर एक समय डायनोसौर की अनेक प्रजातियों का विकास हुआ।
० सभी जीवों के इस विशाल परिवार में मनुष्य प्रजाति का विकास सबसे आखिर में हुआ है।
° प्रकृति में विकास अनवरत हो रहा है। मच्छरों का डी.डी.टी. प्रतिरोधक होना विकास का एक अच्छा उदाहरण है।