Aakash( आकाश ) अंतरिक्ष

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आकाश बहुत ही बड़ा है। यह हमारे धरती को चारों तरफ से लपेटे हुए है। जब हम अपनी आंखों से इसे देखते हैं तो हमें नीले रंग का दिखाई देता है। वैदिक संस्कृति में इसे 'खुला अंतरिक्ष' या ऐसा स्थान कहा गया जो शून्य है। यह पंच महाभूतों में से एक है। अगर हम आकाश का विस्तार देखें तो पृथ्वी के चारों ओर फैले वायुमंडल से लेकर यह अनंत है। इसी वायुमंडल में मौसम की सभी घटनाएं जैसे वर्षा, तूफान आदि घटित होती हैं। वही वायुमंडल से आगे फैले अंतरिक्ष में सभी ग्रह, उपग्रह, सौर मंडल और कई आकाश गंगाएं पाई जाती है।

चित्र 11.1 खुला अंतरिक्ष

अंतरिक्ष में फैली इन बहुत सारी आकाश गंगाओं में से एक हमारी आकाश गंगा है। इसमें ही हमारा सौर-मंडल स्थित है। आकाश गंगा को हम “क्षीर सागर' के नाम से भी जानते हैं और अग्रेजी में इसे “मिल्की वे' यानी “दूध की नदी' कहा जाता है।

चित्र 11.2 आकाश गंगा

हमारा सौर मंडल और उनका आपसी संबंध आदमी के जीवन में सूर्य, चंद्रमा और तारों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनके अभाव में मनुष्य का जीवन संभव ही नहीं है। पुराने जमाने से लोग इनके बारे में अलग-अलग तरीकों से सोचते थे। माना जाता था कि हमारी धरती स्थिर रहती है और सूरज चलता है। वह सुबह उगता है और शाम को डूब जाता है। बाद में पता लगा कि धरती सूर्य के चारों ओर अपनी धुरी पर घूमती रहती है, जबकि सूरज एक ही स्थान पर स्थिर रहता है। धरती के सूरज के चारों ओर घूमने से ही दिन और रात बनते हैं। धरती की तरह ही चाँद भी

चित्र 11.3 हमारा सारमण्डल

घूमता रहता है। चाँद पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगता है। इस प्रकार सूरज, चंद्रमा धरती और तारों के आपसी संबंध से ही प्रकृति और मानव-जीवन का निर्माण हुआ है। सभ्यता और संस्कृति का उद्भव और विकास इन्हीं से हुआ है। आइये अब हम शिक्षक और छात्रों की बातचीत के माध्यम से सौर-मंडल को समझने का प्रयास करते हैं।

एक कक्षा में गुरु जी ने प्रवेश किया, तो उनके हाथ में एक ग्लोब था। उसे बहुत ध्यान से देखने लगे।

गुरु जी ने पूछा-“बच्चो, जानते हो यह मेरे हाथ में क्या है?” “हाँ गुरु जी, यह एक ग्लोब हे। हमने इसे प्रधानाचार्य जी के मेज पर रखे हुए कई बाद देखा हे,” बच्चों ने एक स्वर में उत्तर दिया। “जानते हो, आज में इसे कक्षा में क्यों लाया हूँ?” गुरु जी ने प्रश्‍न किया। “ आज आपको भूगोल का पाठ जो पढ़ाना है, इसीलिए लाए होंगे,” राधा ने तत्काल उत्तर दिया।

चित्र 11.4 ग्लोब

“बिल्कुल ठीक, आज में आप सबको सौर-मंडल यानी धरती, सूरज, चाँद और तारों के बारे में जानकारी दूँगा,” गुरु जी ने कहा। “यह सौर-मंडल क्या होता है गुरु जी?” गोपाल ने पूछा। “ अरे अभी बताया तो! अच्छा, सबने सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी और तारों को तो देखा होगा!” गुरु जी ने पूछा। “में तो रोज छत पर सोने से पहले अनेक तारों को देखता हूँ। उनको गिनने की कोशिश भी करता हूँ”, विवेक ने कहा। “तो सबने सूर्य, चंद्रमा और तारों को देखा है?”

“जी हाँ, गुरु जी, रोज ही देखते हैं,” बच्चों ने कहा। “तो ग्रह, उपग्रह और नक्षत्रों के बारे में भी कुछ सुना होगा,” गुरु जी ने पूछा। “जी गुरु जी, परंतु यह नहीं जानते कि यह सब क्या है?” दो-तीन बच्चे एक साथ बोले। “ये सभी मिलकर सौर-मंडल कहलाते हैं। आज में इसके बारे में पढाऊँगा।” गुरु जी ने ग्लोब को ऊँचा करके सबको दिखाते हुए कहा-“हमारी धरती इसी तरह से गोल है और वह अपनी धुरी पर झुकी हुई इस प्रकार घूमती हे।” इतना कहते हुए उन्होंने ग्लोब को हाथ से घुमा दिया। “गुरु जी, पृथ्वी और सूर्य का आपस में क्या संबंध है?” अरिस्टिना ने जानना चाहा।

चित्र 11.5 नक्षत्र, ग्रह एवं उपग्रह

“तुम जानते हो कि हम सब पृथ्वी पर रहते हैं। अभी तक किसी दूसरे ग्रह पर जीवन होने का कोई प्रमाण नहीं मिला है। माना जाता है कि धरती सूरज से टूट कर बनी है। सूरज आग और गैसों का एक बड़ा गोला है। यह अपनी रोशनी से लगातार चमकता रहता है, इसीलिए इसे तारा माना जाता है,” गुरु जी ने कहा। “तारा क्यों गुरु जी? सूरज तो सूरज है, तारा नहीं,” अरिस्टिना ने टोका। “जो स्वयं अपनी रोशनी से चमकता है, उसे तारा कहा जाता है। जो अपनी रोशनी तारे से प्राप्त करता है, इसे ग्रह कहते हैं। इसलिए हमारी पृथ्वी ग्रह हे, क्योंकि वह अपनी रोशनी सूरज से प्राप्त करती है। जैसाकि मेंने पहले बताया कि वह गोला है। वह अपनी झुकी हुई धुरी पर पूरब से पश्चिम की ओर घूमती रहती है। अपनी धुरी के साथ-साथ वह सूर्य के चारों ओर चक्कर भी लगाती है। परिक्रमा भी करती है। पृथ्वी की यह परिक्रमा 365 दिन में पूरी होती है।”

“क्या केवल पृथ्वी ही सूर्य के चारों ओर घूमती है गुरु जी?” गोपाल ने पूछा। “नहीं, पृथ्वी के अलावा सात और ग्रह हैं-मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, शनि, अरुण और वरुण, जो सूरज के चारों ओर घूमते हैं। पहले यम को भी ग्रह माना जाता था। अब कुछ विद्वान उसे ग्रह नहीं मानते। ये सभी अपनी चमक सूर्य से ही पाते हैं। इन ग्रहों की परिक्रमा करने वाले पिंड उपग्रह कहलाते हैं। इन्हें हम सूर्य का अपना परिवार कह सकते हैं। ये सभी मिलकर सौर-मंडल कहलाते हैं,” गुरु जी ने विस्तार से समझाया। “ अच्छा, जो सूर्य की परिक्रमा करें, उससे रोशनी प्राप्त करें, वे ग्रह, और जो ग्रहों के चारों ओर चक्कर लगाएँ, वे उपग्रह,” गोपाल ने कहा।

“बिल्कुल ठीक समझे।” “क्या पृथ्वी के चारों ओर भी उपग्रह घूमते हैं?” अरस्तू ने पूछा। “केवल एक उपग्रह धरती की परिक्रमा करता है। उसे चंद्रमा कहते हैं। वेसे दूसरे ग्रहों के चारों ओर भी बहुत से उपग्रह चक्कर लगाते हैं। जैसे मंगल के दो, वरुण के आठ, अरुण के 23, शनि के 18 और वृहस्पति के 17 उपग्रह हैं,” गुरु जी ने समझाया। “क्योंकि चंद्रमा धरती के चक्कर लगाता है, इसीलिए वह भी हमें कभी छिपता और कभी निकलता हुआ दिखाई देता है। पर गुरु जी, उसके आकार में अंतर क्यों दिखाई देता हे? कभी वह थाली जैसे पूरा दिखाई देता है, तो कभी हँसिए के आकार-सा अधूरा। यह लगातार घटता-बढ़ता भी रहता है,” राधा ने पूछा।

“हाँ, वह घटता-बढ़ता रहता है। घटता हुआ पूरी तरह से छिप जाता है, तब अमावस्या होती है और जब वह पूरी तरह से आकाश में चमकता है, तो वह रात पूर्णिमा की रात होती है। अमावस्या से पूर्णिमा तक की यात्रा में पंद्रह रातों का समय लगता है। चंद्रमा के इस घटने-बढ़ने को चंद्रमा की कलाएँ कहा जाता है। 15-15 रातों की दो कलाएँ-शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कही जाती हैं। भारतीय पंचांग की तिथियाँ इन्हीं पर आधारित हैं।

चित्र 11.6 चन्द्रमा की कलाएं

“ आप लोगों ने यह भी देखा होगा कि आसमान में अनेक तारे टिमटिमाते रहते हैं। उनमें अनेक ऐसे तारे हैं, जो अपने आकार में सूर्य से कहीं अधिक बड़े हैं,” गुरु जी ने कहा। “तो वे इतने छोटे-छोटे से क्यों दिखाई देते हैं गुरु जी?” विवेक ने पूढछा। “क्योंकि वे हमारी पृथ्वी से सूर्य की अपेक्षा बहुत अधिक दूरी पर होते हैं। तुम जानते ही हो कि दूर की वस्तु छोटी दिखाई देती है। इन तारों के समूह को तारा-मंडल कहते हैं।” “फिर तो उनके बहुत से समूह होते होंगे गुरु जी,” विवेक ने पूछा। “क्या ध्रुव तारे के साथ सात तारों का एक समूह होता है। राधा ने सवाल किया। “हाँ, यह ठीक है कि उत्तर दिशा में ध्रुव तारा स्थिर स्थिति में रहता है और उसके पास जो सात तारों का तारा-समूह है, उसका नाम सप्त ऋषि है,” गुरु जी ने बताया।

“गुरु जी, कभी-कभी आसमान में तारों का एक सफेद दूधिया मार्ग-सा बना दिखाई देता है, वह क्या होता है?” अरस्तू ने पूछा। “उसे आकाश गंगा कहते हैं। कभी-कभी आकाश में पुच्छल तारे भी दिखाई देते हैं,” गुरु जी ने समझाया, फिर बोले-“हमारे सभी ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र और तारे इत्यादि अंतरिक्ष अर्थात्‌ आकाश में घूमते रहते हैं। अंतरिक्ष अर्थात्‌ आसमान का अर्थ ही है कि जिसका कोई छोर न हो, इस प्रकार तुमने जाना कि पृथ्वी सहित सभी ग्रह आकाश में घूमते रहते हैं, इसलिए वे किसी भी वस्तु पर टिके हुए नहीं हो सकते।

  • सूरज, धरती, चन्द्रमा आदि मिलकर सौर-मंडल बनाते हैं।
  • सौर-मंडल में सूरज एक तारा है। यह खुद अपनी रोशनी से चमकता है।
  • सौर-मंडल में पृथ्वी सूरज की रोशनी प्राप्त करती है। इसलिए पृथ्वी ग्रह कहलाती है। |
  • चन्द्रमा हमारी पृथ्वी का उपग्रह है। यह धरती के चारों ओर घूमता हे।
  • चन्द्रमा की तरह दूसरे ग्रहों के भी उपग्रह हैं, जो उनकी परिक्रमा करते हैं।

दिन-रात का बनना

“गुरु जी अभी आपने बताया कि सूर्य एक तारा है, तो फिर वह रात को दिखाई क्यों नहीं देता? तारे तो रात में ही टिमटिमाते हैं न?” राजू ने पूछा। “तुम जानते हो न कि हम पृथ्वी पर रहते हैं। सूर्य पूर्व दिशा से निकलता है और पश्चिम दिशा में छिप जाता हे।” गुरु जी बोले। “वाह! यह कौन नहीं जानता! मैं भी जानता हूँ,” गोपाल ने उत्तर दिया। “तो फिर अब यह सच भी जान जो कि सूर्य असल में कहीं नहीं जाता, न ही कहीं से आता है। न ही उगता है और न ही डूबता है। यह एक ही जगह पर स्थिर रहकर चमकता रहता है। उसकी इसी चमक से रोशनी फैलती हे,” गुरु जी ने जानकारी देते हुए कहा।

“पर हमें तो सूर्य उगता और डूबता हुआ दिखाई देता है,” गोपाल ने असहमत होते हुए कहा।

चित्र 11.7 दिन रात का बनना

“ अच्छा, तुम्हे यह भी बताया था न कि धरती ग्लोब की तरह से गोल है। वह अपनी झुकी हुई धुरी पर घूमती हुई सूर्य को परिक्रमा भी करती रहती है,” गुरु जी ने याद दिलाया।

“इससे क्या होता है, गुरु जी?”

“इसी के कारण सूरज उगता और डूबता हुआ दिखाई देता है। इसी से तो रात और दिन बनते हैं। मैंने बताया है न कि सूरज एक स्थान पर स्थिर रहकर चमकता रहता है। पृथ्वी का जो भाग सूरज के सामने आ जाता है, वह सूर्य की रोशनी से भर जाता है। वह रोशनी पृथ्वी के जिस भाग पर पड़ती है, वहाँ दिन निकल आता है,” गुरु जी ने ग्लोब के एक भाग को जलते हुए बल्ब के सामने रखकर कहा- “देखो, ग्लोब का जो भाग इस बल्ब के सामने हे, वह रोशनी से चमक रहा है, जबकि ग्लोब के पिछले भाग पर बल्ब की छाया-सी पड़ी दिखाई देती हे। इस प्रकार इस पीछे के भाग तक रोशनी नहीं पहुँचती।” “मतलब, जो भाग पीछे छिपा हुआ रहा जाता हे, वहाँ रोशनी नहीं होती। वहाँ पर रात मानी जाती है,” गोपाल ने कहा।

“बिल्कुल ठीक। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे में एक चक्कर लगाती हे। इसी से रात और दिन बनते हैं। अर्थात्‌ पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने आता-जाता है, वहाँ दिन होने लगता है। इसी तरह पिछले भाग में रात घिरने लगती हे। इस प्रकार 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात होती है। सात दिन का एक सप्ताह होता है। सप्ताह के दिनों के नाम भी इन्हीं नक्षत्रों के अनुसार रखे गए हे। " “गुरु जी, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र और शनि तो ग्रहों के नाम हैं, परंतु रविवार और सोमवार नाम किस आधार पर रखे गए हैं?”

“क्यों, क्या तुम नहीं जानते कि सूर्य ही रवि कहलाता है, इसी के नाम पर रविवार रखा गया। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, इसलिए एक दिन का नाम सोमवार रखा गया हे।”

ऋतुओं का बनना

“पृथ्वी के सूर्य के चक्कर लगाने से दिन-रात बनते हैं, तो परिक्रमा से ऋतुएँ बनती हैं।”

“वह केसे गुरु जी?”

“पृथ्वी की यह परिक्रमा 365 दिन में पूरी होती है। सात दिन का सप्ताह, तीस दिन का एक महीना और 365 दिन में पूरा साल होता है।” “पर, आप तो बात ऋतु बनने की कर रहे थे?” विवेक ने बीच में उठते हुए कहा। “हाँ, इस परिक्रमा के दौरान सूर्य और पृथ्वी की आपस में दूरी अलग-अलग होती है। पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सबसे समीप होता है, वहाँ पर उसकी गर्मी का प्रभाव होने के कारण गर्मी ऋतु होती है। जो भाग दूर होता है, वहाँ सर्दी पड्ने लगती है। पृथ्वी के घूमने के कारण ऋतु-चक्र बन जाता है।”

चित्र 11.8 ऋतुओं का बनना

“इस प्रकार तो केवल दो ही ऋतुएँ होनी चाहिए।” गोपाल ने शंका व्यक्त कीो। “सूरज और धरती की घटती-बढ़ती दूरी के कारण पृथ्वी के तापमान में अंतर आ जाता है। इन दोनों के मिश्रण से अन्य चार ऋतुएँ बन जाती हैं। इन्हें वर्षा, शिशिर, वसंत और पतझड़ कहा जाता है,” गुरु जी ने बताया।

  • पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।
  • उसके कारण दिन-रात बनते हैं।
  • पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने को परिक्रमा कहा जाता है।
  • सूरज और पृथ्वी की परस्पर दूरी के कारण ऋतुएँ बनती हैं।