विक्रम और बेताल -हत्या का दोषी कौन?

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बेताल को कंधे पर बैठा कर विक्रम जैसे ही आगे बढ़ता है वैसे ही बेताल विक्रम से कहता है कि मै अब तुम्हे एक कहानी सुनाऊँगा,अगर तुमने मध्य में कुछ भी बोला तो मैं उड़ जाउगा। बेताल ने विक्रम को कहानी सुनाना आरम्भ कर दिया।

एक राजा था, वह बहुत पराक्रमी, न्यायप्रिय राजा था। इस कारण उसकी प्रजा उससे बहुत प्रेम करती थी। एक दिन राजा से मिलने कुछ काशी के विद्वान् आए। राजा ने उन विद्वानों का स्वागत किया। उन विद्वानों में एक बहुत ही ज्ञानी साधू थे। राजा ने उस साधू को एक मोतियों की माला भेंट की।

शाम को साधू वन से जा रहे थे। उस वन में एक डाकू था जो सबको लूटता था। उस डाकू ने उस साधू के गले में वो मोतियों की माला देख ली। उस डाकू ने माला चुराने की बहुत कोशिश की परन्तु चुरा न सका । इस लिए उस डाकू ने साधू की हत्या कर दी ।

अब यह खबर राजा को मिली । उस राजा ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी - "जाओ और उस डाकू को पकड़ कर लाओ जिस ने साधू की हत्या की" । उस डाकू को मृत्यु दंड दो। सैनिकों ने डाकू को पकड़ कर मृत्यु दंड दिया। राजा उस दिन के बाद दुखी रहने लगा । वह समझने लगा की साधू की मृत्यु का दोषी वही है। अगर उसके मंत्री उस से पूछे तो वह कहता था की “अगर मै साधू को वह सोने की माला न देता तो साधू की मृत्यु नहीं होती।”

एक दिन राजा से मिलने एक साधू आए और राजा से कहा की "हे राजन मुझे ज्ञात हुआ है की आप साधू की हत्या से दुखी है, अगर आप चाहे तो मै उस साधू को वापस से जीवित कर सकता हूँ।” राजा ने उत्तर दिया - "क्या आप साधू के साथ उस डाकू को भी जीवित कर सकते है क्या?” साधू ने उत्तर दिया -“मुझे केवल एक व्यक्ति को जीवित करने का वरदान प्राप्त है।” राजा ने कहा -"आप किसी को भी जीवित मत कीजिये ।”

बेताल ने विक्रम से सवाल पूछा कि राजा ने साधू को मृत साधू को जीवित करने से क्यों मना किया? विक्रम ने उत्तर दिया कि अगर राजा साधू को जीवित करने की आज्ञा देता तो वो दो पाप करता प्रथम डाकू को बिना कारण मृत्यु दंड दिया और दूसरा साधू का वरदान भी बेकार जाता।