महात्मा कबीरः - महापुरुषकीर्तन श्रंखला
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महात्मा कबीरः (1398-1518 ई.)[1]
न यः साक्षरः किन्तु देवेशभक्त्या प्रसादं समासाद्य काव्यं चकार।
यदीयोक्तयो मोददाः सारयुक्ताः कबीरं सुभक्तं मुदा तं नमामः।।
जिस ने अशिक्षित होते हुए भी परमेश्वर की भक्ति का प्रसाद पाकर उत्तम कविता की, जिस की उक्तियां हर्ष देने वाली और सारयुक्त हैं ऐसे उत्तम भक्त कबीर को हम प्रसन्नता से नमस्कार करते हैं।
न यो मूर्तिपूजा न चैवावतारं न वा तीर्थयात्रां प्रसेहे न “बांगम्"
सदाऽखण्यत् सर्वपाखण्डजालं कबीरं सुभक्तं मुदा त॑ नमामः॥
जो मूर्तिपूजा, अवतारवाद, तीर्थयात्रा और बांग इत्यादि को सहन न करता था और सारे पाखण्ड जाल का खण्डन करता था ऐसे उत्तम भक्त कबीर को हम प्रसन्नता से नमस्कार करते हैं।
ऋजुस्तन्तुवायो न दम्भे सहिष्णुः विभीः खण्डयन्नुग्रशन्देषु दम्भम्[2]।
सदैवाप्रमत्तोऽपि देवेशमत्तः कबीरं सुभक्तं मुदा तं नमामः।।
जो सरल-स्वभाव जुलाहे का कार्य करने वाला, दम्भ में असहनशील होकर निर्भयता से उग्रशब्दों में मक्कारी का खण्डन किया करता था। सदा प्रमाद-रहित होकर भी जो ईश्वरभक्ति में मस्त था, ऐसे उत्तम भक्त कबीर को हम प्रसन्नता-पूर्वक नमस्कार करते हैं।