अदभुत क्षमता के दो नमूने

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search
ToBeEdited.png
This article needs editing.

Add and improvise the content from reliable sources.

पुणे नगर के एक रास्ते से एक वैद्य जा रहे थे । उन्होंने देखा कि सामने से एक व्यक्ति आ रहा है । वैद्य उसे देखते रहे । वह व्यक्ति उनके पास से गुजरा । कुछ ही दूरी पर उस व्यक्ति की पत्नी आ रही थी । वैद्य ने पत्नी को रोका और कहा, “यह तुम्हारा पति घर जाते ही पीने के लिए पानी माँगेगा । परन्तु तुम उसे पानी नहीं देना । मैं अभी तुम्हारे पीछे पीछे ही तुम्हारे घर आता हूँ ।' पतिपत्नी घर पहुँचे । वैद्यने कहा था उसी प्रकार पतिने पानी माँगा । पत्नीने पानी नहीं दिया । उतने में ही वैद्य भी पीछे पीछे उनके घर पहुँचे । उन्होंने पत्नी को कहा, “तुम्हारे पति को कटोरी भर तेल पिलाओ ।' पत्नी ने वैसा ही किया । वैद्य ने पत्नी को आधी बाल्टी भरकर पानी लाने को कहा । पत्नी ले आई । इधर तेल पीते ही पति को उल्टी हुई । उल्टी में एक सेन्टीमीटर लम्बाई का कीड़ा निकला । वैद्य ने झट से उस कीड़े को पकड़कर पानी में डाला । पानी में डालते ही कीड़ा बढ़ने लगा और बढ़ते बढ़ते दस सेन्टिमीटर जितना लम्बा हो गया । वैद्यने बताया कि यदि पत्नी पति को पानी पिलाती तो कीड़ा बढ़ते बढ़ते पेट में जहर फैलाता और व्यक्ति मर जाता । तेल के कारण वह बाहर निकल गया और व्यक्ति बच गया । व्यक्ति की चाल देखकर निदान करने का यह अद्भुत कौशल आयुर्वेद विद्या का अद्भुत उदाहरण है । आयुर्वेद पढ़ने में चाल से निदान करने का कौशल भी सहज अपेक्षित है । यह उदाहरण प्राचीन काल का नहीं है, केवल एक सौ वर्ष पुराना है ।

पुणे नगर के ही एक अन्य वैद्य का उदाहरण है । प्रातःकाल नौ बजे का समय था । वैद्य महाशय अपने आसन पर बैठे ही थे कि एक पत्नी अपने पति को लेकर इलाज हेतु आई । वैद्यने रोगी की ओर देखते ही जाना कि उसका रोग असाध्य है और उसका चार पाँच दिन से अधिक जीवित रहना सम्भव नहीं है । उन्होंने इधरउधर की बातें करने के बाद उन्हें बिदा कर दिया । जाते जाते पत्नी को अकेले बुलाकर सत्य बताया और उसकी अन्तिम इच्छाओं को पूर्ण करने का परामर्श दिया । सात दिन के बाद दोनों पतिपत्नी पुनः आये । वैद्य को भी देखकर आश्चर्य लगा कि पति पूर्ण स्वस्थ था । उन्होंने मन ही मन कुछ विचार किया । पतिपत्नी दोनों उग्रता से बात करने लगे । उनकी शिकायत यह थी कि पति स्वस्थ होनेवाला था तो भी उसकी मृत्यु होगी कहकर उन्हें इतना व्यथित क्यों किया । वैद्यने शान्त चित्त से उनका आक्रोश सुन लिया । फिर उन्होंने पूछा कि सातदिन पूर्व उनके पास से जाने के बाद उसने क्या क्या खाया था । पत्नी ने कहा कि जाते समय उसे होटेल में जाकर माँस खाने की इच्छा हुई थी । उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिये वे होटेल में गये थे और पति ने माँस खाया था । उसके बाद तो और भी दो बार उसी होटल में वही पदार्थ खाया क्योंकि वह पहली ही बार खाया था और बहुत स्वादिष्ट था । वैद्यने उस होटेल का नाम और पता पूछा और तुरन्त अपनी जगह से ही पुलिस को फोन लगाया और शिकायत दर्ज कराई कि उस होटेल में मनुष्य का माँस बिक रहा है । शिकायत के आधार पर पुलिसने होटेल पर छापा मारा और जाँच की तो वास्तव में वहाँ मनुष्य का माँस मिला । मालिक को पकड़ा गया क्योंकि मनुष्य का माँस बेचना अपराध है । सब आश्चर्यचकित थे कि उन वैद्य महाशय को इस बात का पता कैसे चला । वास्तव में हुआ यह था कि वैद्य महाशय रोगी को देखते ही जान गये थे कि उसके रोग का इलाज मनुष्य का माँस है । परन्तु मनुष्य का जीव बचाने के लिये मनुष्य के ही माँस को दवाई के रूप में प्रयुक्त करना नैतिक अपराध है । इसलिये उन्होंने इलाज नहीं किया । परन्तु उसे जीवित और स्वस्थ देखते ही वे जान गये कि योगानुयोग उस व्यक्ति को मनुष्य का माँस खाने को मिला है । यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो वह निश्चित ही मर गया होता । अपने निदान पर उन्हें इतना विश्वास था कि उन्होंने स्वयं जाँच करना आवश्यक नहीं माना । उनका निदान और उनका विश्वास दोनों सही निकले । विद्या की ऐसी उपासना भारत में होती थी इसका यह उदाहरण है । यह किस्सा भी सौ से अधिक वर्ष पुराना नहीं है ।

(श्रुत परम्परा से)