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Adhyaya 10
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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शुद्ध भोजन करें
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भोजन बनाने में प्रयुक्त सामग्री शुद्ध है कि नहीं
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यह परख लें ।
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भोजन बनाने में प्रयुक्त पात्र और इंधन शुद्ध हैं
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कि नहीं यह देख लें ।
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भोजन बनाने वाले व्यक्ति की भावना शुद्ध है
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कि नहीं यह जान लें ।
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भोजन बनाने हेतु सारी सामग्री नीतिपूर्वक
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अर्जित किये हुए धन से खरीदी गई है कि नहीं
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उसका विचार करें ।
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इन बातों के होने पर ही भोजन शुद्ध कहा
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जायेगा ।
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स्मरण रहे
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आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः ।
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शुद्ध आहार से ही हमारा व्यक्तित्व शुद्ध
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बनेगा ।
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भोज्येषु माता
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भोजन बनाने वाला माता समान है
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क्योंकि
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माता जीवन देती है ।
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माता जीवन की रक्षा करती है ।
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माता जीवन का पोषण करती है ।
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माता जीवन का संस्करण करती है ।
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माता जीवन को सार्थक बनाना सिखाती है ।
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इसलिये भोजन बनाने वाले ने मातृत्वभाव
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धारण करना चाहिये ।
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Rok
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भोजन ठीक समय पर करें
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जठरान्नि प्रदीप्त होने पर भोजन करने से ही
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अन्न का पाचन ठीक होता है ।
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सूर्य के ऊपर आने के साथ जठराग्नि प्रदीप
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होता है ।
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इसलिये भोजन का समय सूर्य की गति के
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अनुकूल रखें ।
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दिन का भोज मध्याह्न से पूर्व करें ।
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सायंकाल का भोजन सूर्यास्त से पूर्व करें ।
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प्रातःकाल का अल्पाहार सूर्याद्य के बाद दो
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घडी बीतने पर करें । हल्का आहार लें ।
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रात्रि भोजन टालें ।
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देर रात्रि में भोजन कभी भी न करें ।
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यह कालभोजन होता है ।
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स्मरण रहे
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प्रकृति के नियमों का पालन न करने से हमारा
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ही नुकसान होता है, प्रकृति का नहीं ।
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साथ साथ भोजन करें
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साथ बैठकर भोजन करने से स्नेह बढता है ।
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साथ बैठखर भोजन करने से सम्बन्ध सुदृढ़
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बनते हैं ।
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साथ बैठकर भोजन करने से समझ बढती है ।
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साथ बैठकर भोजन करने से समस्‍यायें पैदा
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नहीं होतीं । हुई हों तो दूर हो जाती हैं ।
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साथ बैठकर भोजन करने से एकात्मता बढती
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है।
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इसलिये सौ काम छोड़कर परिवार के सदस्यों
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को साथ बैठकर भोजन करने की अनुकूलता बनानी
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चाहिये ।
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9. विद्यालय में पानी की व्यवस्था क्यों होनी
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चाहिये ?
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२.. पानी की व्यवस्था में सुविधा की दृष्टि से कया
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क्या उपाय करने चाहिये ?
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३... पानी का शुद्धीकरण कैसे हो ?
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४. पानी ठण्डा करने की अच्छी व्यवस्था क्‍या हो
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सकती है ?
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५... पानी के पात्र कैसे होने चाहिये ?
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६... आजकल छात्र एवं आचार्य घर से पानी लेकर
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आते हैं । यह व्यवस्था कितनी उचित है ?
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9. विद्यालय में पानी कहां रखना चाहिये ?
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८... पानी का दुर्व्यय एवं अपव्यय रोकने के लिये हम
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क्या क्‍या कर सकते हैं ?
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९... पानी की निकासी की व्यवस्था कैसी हो ?
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१०. पानी का प्रदूषण रोकने के लिये क्या क्या कर
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सकते हैं ?
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११, पानी का आर्थिक पक्ष क्‍या है ?
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प्रश्नावली से ura उत्तर
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इस प्रश्नचावली में कुल १० प्रश्न थे । ८ शिक्षक, २
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प्रधानाचार्य और २४ अभिभावकों ने इन प्रश्नों से सम्बन्धित
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अपने मत व्यक्त किये हैं ।
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g. पाँच घण्टे की विद्यालय अवधि में पीने के पानी की
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व्यवस्था होनी ही चाहिए । छात्रों को भोजनोपरान्त पीने
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का पानी चाहिए । इसलिए विद्यालय में पीने के पानी
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की व्यवस्था होना अनिवार्य है । यह मत सबका था ।
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अच्छी व्यवस्था के सन्दर्भ में, मटके को टोटी लगाना,
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मटके छाया में रखना, सुविधाजनक स्थान पर रखना,
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पीने के पानी की व्यवस्था एक ही स्थान पर न कर
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अलग-अलग स्थानों पर करना, पीते समय गिरा हुआ
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पानी बहकर पौधों में जायें ऐसी व्यवस्था बनाना आदि
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बातों में तो सर्वानुमति थी, किन्तु पानी पीकर गिलास
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धो कर रखना किसी ने नहीं सुझाया इसका आश्चर्य है ।
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विद्यालय में पानी की व्यवस्था
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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क्योंकि यह एक आवश्यक संस्कार है ।
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जल शुद्धिकरण हेतु पानी में फिटकरी डालना, पानी
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छानकर उसमें खस डालना, पानी में क्लोरिन की
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गोलियाँ डालना आदि सुझाव प्राप्त हुए । कुछ लोगों ने
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पीने का पानी उबालकर रखना, आर.ओ. प्लान्ट
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लगाकर पानी को शुद्ध करना जैसे सुझाव भी दिये ।
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वर्षा का पानी उचित प्रकार से उचित स्थान पर जमा
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करना । पीने के लिए वर्षभर इसी पानी का उपयोग
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करने जैसी अच्छी बातें भी कही ।
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पानी ठंडा रखने के लिए मिट्टी के पात्र ही सर्वात्तिम हैं,
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इस बात का भी सबने आग्रह किया । पानी के पात्र
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की रोज सफाई करना, उसे हर समय ढककर रखना
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जैसी सभी बातों की अनिवार्यता भी बताई । पानी की
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टंकी की सफाई भी प्रति मास होनी चाहिए ।
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आजकल आचार्य और छात्र पीने का पानी घर से साथ
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लेकर आते हैं, जो सर्वथा गलत है ।
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पानी के आर्थिक पक्ष पर सभी मौन रहे ।
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पानी का अपव्यय रोकने के लिए, जितना चाहिए
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उतना ही पानी लेना । यह संस्कार दृढ़ करना चाहिए ।
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जो पानी बह गया वह पौधों व वृक्षों में ही जाना
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चाहिए । आदि सुझाव बताये ।
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अभिमत :
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अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस
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विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं भारतीय दृष्टि की पहचान
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बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में
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समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा
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से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तदूनुसार सही ही होता
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है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में
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अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही । उनमें से कुछ
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अभिभावक कम पढ़े लिखे भी थे, फिर भी अनेक उत्तर
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एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित
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व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने
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सत्यसिद्ध किया ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमामें ... यह व्यवहार अत्यन्त सहज हो गया है ।
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जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ. प्यासे को पानी पिलाने के भाव ही अब उत्पन्न नहीं होता ।
 +
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सब लोगों ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ एक विद्यालय की ट्रिप रेल से जा रही थी । उसमें ५०
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बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता... विद्यार्थी थे । प्रत्येक विद्यार्थी को ५-५- बोतल दी गईं थी ।
 +
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है । ऐसा उनका मत था । हिसाब लगाये तो ५ » ५० » २० - ५००० रु, केवल पानी
 +
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जैसे घर में पानी की व्यवस्था करना घर के लोगों का... का खर्च था । फिर आवश्यकता, स्वतन्त्रता का अधिकार,
 +
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दायित्व होता है, वैसे ही विद्यालय में पानी की व्यवस्था करना... अपव्यय, आर्थिकपक्ष आदि बिन्दुओं का विचार ही नहीं
 +
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विद्यालय का दायित्व होता है इस सीधी सादी बात को हम. किया जाता । हमें इसका विचार करना चाहिए ।
 +
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भूल रहे हैं । विद्यालय में पानी भरना, उसकी स्वच्छता रखना ईश्वर हमें पर्याप्त जल निःशुल्क देता है, परन्तु हम लोग
 +
 +
यह हमारा काम है, आज के चतुर्थश्रेणी कर्मचारियों को इसका... उसका व्यवसाय करते हैं, आर्थिक लाभ करमा रहे हैं । हमें
 +
 +
भान ही नहीं है । उधर अभिभावक भी वॉटर बोतल देकर, ... कुछ तो विचार करना चाहिए ।
 +
 +
अपने बालक की सुरक्षा का ध्यान हमें ही रखना है ऐसा मानता x
 +
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है और उसमें धन्यता अनुभव करता है । प्लास्टिक बोतल का विद्यालय में पानी की व्यवस्था
 +
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उपयोग हानिकर है इसे वे भूल जाते हैं । जल से जुड़े संस्कार पानी का विषय भी कोई विषय है ऐसा ही कोई भी
 +
 +
जो उसे विद्यालय से मिलने चाहिए उनसे वह वंचित रह जाता... कहेगा । परन्तु विचार करने लगते हैं तब कई बिन्दु सामने
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है । जैसे कि समूह में कैसा व्यवहार करना, अपने से अधिक... आते हैं ...
 +
 +
प्यासे मित्र को पहले पानी पीने देना, व्यर्थ बहने वाले पानी... १. . विद्यालय में पानी की व्यवस्था होती ही है परन्तु उसके
 +
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का कैसे उपयोग करना आदि । प्रकार अलग अलग होते हैं ।
 +
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२... कई स्थानों पर टंकी होती है और उसे नल लगे होते
 +
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पानी का आर्थिक पक्ष हैं । पानी की टंकी या तो सिमेन्ट की होती है अथवा
 +
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पानी के आर्थिक पक्ष को देखें तो ईश्वर ने हमारे लिए प्लास्टिक की । टंकी में से पानी लाने वाली नलिकायें
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विपुल मात्रा में जल की व्यवस्था की है । जल पर सबका भी या तो प्लास्टिक की होती हैं या सिमेन्ट की । नल
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समान अधिकार है । किसी ने भी पानी माँगा तो उसे सेवाभाव स्टील के, लोहे के अथवा प्लास्टिक के । पानी पीने
 +
 +
से पानी पिलाना यह भारतीय दृष्टि है । परन्तु पाश्चात्य विचारों के प्याले अधिकांश प्लास्टिक के और कभी कभी
 +
 +
के प्रभाव में आकर हमने पानी को भी बिकाऊ बना दिया । स्टील के होते हैं ।
 +
 +
बड़ी-बड़ी व्यावसायिक कम्पनियों के मनमोहक विज्ञापनों के... ३... अनेक विद्यालयों में पानी शुद्धीकरण के यन्त्र लगाए
 +
 +
सहारे धडछ्ठे से पानी बिक रहा है । परिणाम स्वरूप सेवाभाव जाते हैं । कई स्थानों पर मिट्टी के मटके होते हैं । कई
 +
 +
से चलने वाले जलमंदिर बन्द हो रहे हैं । स्थानों पर बाजार में जो मिनरल पानी मिलता है वह
 +
 +
तरह तरह के वाटर बेग्ज, उनके आकर्षक रंग व लाया जाता है । छात्रों को शुद्ध पानी मिले ऐसा आग्रह
 +
 +
आकार पर मोहित हो अभिभावक अपने पुत्र के नाम पर विद्यालय का और अभिभावकों का होता है ।
 +
 +
कितना पैसा व्यर्थ में लुटा देते हैं । आर ओ प्लान्ट के बिना... ४... अनेक विद्यालयों में छात्र घर से पानी लेकर आते हैं ।
 +
 +
जल शुद्ध हो ही नहीं सकता इस विचार के कारण कितना वे ऐसा करें इसका आग्रह विद्यालय और अभिभावक
 +
 +
अनावश्यक धन खर्च होता है इसका अभिभावकों को भान दोनों का होता है । विद्यालय कभी कभी विचार करता
 +
 +
ही नहीं है । मेरा खरीदा हुआ पानी, इसलिए उस पर केवल है कि छात्र यदि घर से पानी लाते हैं तो विद्यालय का
 +
 +
मेरा अधिकार, मैं जैसा चाहूँगा, वैसा उसका उपयोग करूँगा बोज कम होगा । अभिभावकों को कभी कभी
 +
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१७७
 +
 +
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 +
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4,
 +
 +
६.
 +
 +
विद्यालय की व्यवस्था पर सन्देह होता
 +
 +
है। वहाँ शुद्ध पानी मिलेगा कि नहीं इसकी आशंका
 +
 +
रहती है । इसलिए वे घर से ही पानी भेजते हैं ।
 +
 +
विद्यालय में भीड़ होने के कारण भी अपना पानी
 +
 +
अलग रखने की आवश्यकता उन्हें लगती है । घर से
 +
 +
विद्यालय की दूरी भी होती है और रास्ते में पानी की
 +
 +
आवश्यकता होती है इसलिए भी अभिभावक पानी घर
 +
 +
से देते हैं ।
 +
 +
अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौनसी
 +
 +
हैं सपहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की
 +
 +
व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर
 +
 +
अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार
 +
 +
पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं ।
 +
 +
आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है
 +
 +
प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और
 +
 +
नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता
 +
 +
है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक
 +
 +
पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है ।
 +
 +
इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का
 +
 +
प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की
 +
 +
सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे ।
 +
 +
विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग
 +
 +
होना चाहिये | faa के संकट मनुष्य की अनुचित
 +
 +
मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित
 +
 +
व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं । मन और
 +
 +
व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव
 +
 +
केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का
 +
 +
प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा ।
 +
 +
इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें
 +
 +
अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति ।
 +
 +
तीर्थक्षेत्रे कृत पाप॑ वज़लेपो भविष्यति ।॥।
 +
 +
अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में
 +
 +
धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप
 +
 +
वज़लेप बन जाता है ।
 +
 +
विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः
 +
 +
१७८
 +
 +
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 +
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विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।
 +
 +
एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर
 +
 +
शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है । हम
 +
 +
कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है ।
 +
 +
परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते
 +
 +
हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने
 +
 +
रची हुई मायाजाल है । विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं
 +
 +
से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को
 +
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भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगों को स्वाद से
 +
 +
भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े
 +
 +
कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल
 +
 +
पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं
 +
 +
वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और
 +
 +
अआतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक
 +
 +
है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और
 +
 +
भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम
 +
 +
इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये ।
 +
 +
भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि
 +
 +
मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत
 +
 +
लाभकारी हैं । तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी
 +
 +
हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के
 +
 +
और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त
 +
 +
होते हैं । शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च
 +
 +
करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग
 +
 +
करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक
 +
 +
समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के
 +
 +
लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर
 +
 +
सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे
 +
 +
पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं । छात्रों
 +
 +
को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना
 +
 +
चाहिये ।
 +
 +
पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की
 +
 +
आवश्यकता है । पानी निकासी की व्यवस्था भी
 +
 +
गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी
 +
 +
स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है ।
 +
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 +
 +
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
 +
 +
विद्यालय में केवल पानी की व्यवस्था करना ही
 +
 +
पर्याप्त नहीं है, पानी के प्रयोग की शिक्षा देना भी अत्यन्त
 +
 +
आवश्यक है । छोटी आयु से ही पानी के विषय में शिक्षा
 +
 +
नहीं देने का परिणाम इतना भीषण हो रहा है कि लोग अब
 +
 +
कह रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा ।
 +
 +
इसका अर्थ यह है कि वैश्विक स्तर पर पानी का संकट बढ
 +
 +
गया है । इस वैश्विक संकट को विद्यालयीन शिक्षा के साथ
 +
 +
जोडकर समस्या के हल का विचार करना चाहिये ।
 +
 +
शिक्षा योजना के बिन्दु
 +
 +
पानी के सम्बन्ध में शिक्षा की योजना करते समय इन
 +
 +
बिन्दुओं को ध्यान में लेना आवश्यक है ।
 +
 +
g. पानी विषयक शिक्षा छोटी से लेकर बड़ी कक्षाओं
 +
 +
तक देने की आवश्यकता है ।
 +
 +
पानी जीवनधारणा के लिये अनिवार्य रूप से
 +
 +
आवश्यक है । पानी के बिना जीवन सम्भव नहीं ।
 +
 +
पानी का एक नाम ही जीवन है ।
 +
 +
पानी पंचमहाभूतों में एक है । वह सर्वव्यापी है ।
 +
 +
सृष्टि के हर पदार्थ में पानी होता है । पानी के कारण
 +
 +
ही पदार्थ का संधारण होता है ।
 +
 +
भौतिक विज्ञान कहता है कि पानी स्वयं ead
 +
 +
है, उसका अपना कोई स्वाद नहीं है, परन्तु यह भी
 +
 +
सत्य है कि पानी के कारण ही किसी भी पदार्थ को
 +
 +
स्वाद प्राप्त होता है ।
 +
 +
पानी पंचमहाभूतों में एक महाभूत है । पंचमहाभूतों के
 +
 +
सूक्ष्म स्वरूप को तन्मात्रा कहते हैं। पानी की
 +
 +
wit रस है। रस का अनुभव करने वाली
 +
 +
ज्ञानेन्द्र जीभ है । वह रस का अनुभव करती है
 +
 +
इसलिये उसे रसना कहते हैं। रसना स्वाद का
 +
 +
अनुभव करती है । हम सब जानते हैं कि जीभ के
 +
 +
बिना हम सृष्टि में जो रस अर्थात्‌ स्वाद है उसका
 +
 +
अनुभव नहीं कर सकते ।
 +
 +
पानी पतित्र है । पानी देवता है । वेदों में जलदेवता
 +
 +
पानी के विषय में शिक्षा
 +
 +
R98
 +
 +
को ही वरुण देवता कहा है । पदार्थों का संधारण
 +
 +
करने का, प्राणियों और वनस्पति का जीवन सम्भव
 +
 +
बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य पानी करता है इसीलिये
 +
 +
वह पवित्र है । हम देवता की पूजा करते हैं, उन्हें
 +
 +
आदर देते हैं और सन्तुष्ट भी करते हैं । पानी का
 +
 +
आदर करना और उसकी पवित्रता की रक्षा करना
 +
 +
हमारा धर्म है । इसीकी शिक्षा छोटे बडे सबको
 +
 +
मिलनी चाहिये ।
 +
 +
सभी विषयों की शिक्षा की तरह पानी विषयक शिक्षा
 +
 +
भी ज्ञान, भावना और क्रिया के रूप में देनी चाहिये ।
 +
 +
स्वाभाविक रूप से ही प्रथम क्रियात्मक, दूसरे क्रम में
 +
 +
भावात्मक और बाद में ज्ञानात्मक शिक्षा देनी चाहिये ।
 +
 +
पानी के सम्बन्ध में क्रियात्मक शिक्षा
 +
 +
g. पानी को हमेशा शुद्ध रखे, अशुद्ध न करें, शुद्ध पानी
 +
 +
ही पियें ।
 +
 +
खडे खडे, लेटे लेटे पानी न पियें । हमेशा बैठकर ही
 +
 +
पियें ।
 +
 +
पानी जल्दबाजी में न पियें, धीरे धीरे एक एक घूंट
 +
 +
लेकर ही पियें ।
 +
 +
प्लास्टिक की बोतलों में भरा हुआ, यंत्रों और
 +
 +
रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध
 +
 +
नहीं होता । उसे शुद्ध मानना और कहना हमारी
 +
 +
वैज्ञानिक अंधश्रद्धा ही है। tar agg ot
 +
 +
अप्राकृतिक बीमारियों को जन्म देता है ।
 +
 +
भोजन के प्रारम्भ में और भोजन के तुरन्त बाद पानी
 +
 +
न पियें । मुँह साफ करने के लिये एकाध ye ही
 +
 +
पियें ।
 +
 +
दिनभर में पर्याप्त पानी पीना चाहिये, न बहुत अधिक,
 +
 +
न बहुत कम ।
 +
 +
पीने के साथ साथ पानी भोजन बनाने के, स्थान और
 +
 +
वस्तुओं को साफ करने के, पेड पौधों का पोषण
 +
 +
करने के काम में भी आता है । उन बातों का भी
 +
 +
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 +
 +
é.
 +
 +
Ro.
 +
 +
8.
 +
 +
x.
 +
 +
2.
 +
 +
RY.
 +
 +
सम्यक विचार करना आवश्यक है ।
 +
 +
भोजन बनाने के लिये हमेशा शुद्ध और पवित्र पानी
 +
 +
का ही प्रयोग करना चाहिये । ताँबे या पीतल के पात्र
 +
 +
में भरे पानी का प्रयोग करें । स्टील, प्लास्टिक,
 +
 +
एल्युमिनियम या अन्य पदार्थों से बने पात्रों में भरे
 +
 +
पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिये । चाँदी और
 +
 +
सुवर्ण तो अति उत्तम हैं ही परन्तु हम व्यवहार में
 +
 +
सामान्य रूप से इन पात्रों का प्रयोग नहीं करते ।
 +
 +
सिमेन्ट से बनी टॉँकियों में भरा पानी भी उतना अधिक
 +
 +
शुद्ध नहीं होता है, सिमेन्ट के ऊपर यदि चूने से पुताई की
 +
 +
जायतो वह अच्छा है, लाभदायी है । प्लास्टिक की टँंकियाँ
 +
 +
किसी भी तरह लाभदायी नहीं हैं ।
 +
 +
पानी का उपयोग पेड पौधों और प्राणियों के लिये
 +
 +
होता है । विद्यार्थियों को इसके क्रियात्मक संस्कार
 +
 +
मिलने चाहिये । इस दृष्टि से विद्यालय में पक्षी पानी
 +
 +
पी सके ऐसे पात्र टाँगने चाहिये । विद्यार्थी इन पात्रों
 +
 +
को साफ करें और उन्हें पानी से भरें ऐसी योजना
 +
 +
करना चाहिये । यह व्यवस्था हर विद्यार्थी के घर तक
 +
 +
पहुँचे यह देखना चाहिये । साथ ही पशुओं को पानी
 +
 +
पीने की व्यवस्था भी करनी चाहिये । रास्ते पर आते
 +
 +
जाते पशु इससे पानी पी सकें ऐसी जगह पर यह
 +
 +
व्यवस्था होनी चाहिये । इसकी स्वच्छता भी विद्यार्थी
 +
 +
ही करें यह देखना चाहिये ।
 +
 +
मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना
 +
 +
आवश्यक है । इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की
 +
 +
जा सकती है । इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन
 +
 +
विद्यार्थियों को करना चाहिये ।
 +
 +
हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी
 +
 +
का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता
 +
 +
है । अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है ।
 +
 +
इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपडे धोने के
 +
 +
लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त
 +
 +
करनी चाहिये ।
 +
 +
डीटे्जन्ट से कपडे और बर्तन साफ करने से अधिक
 +
 +
पानी का प्रयोग करना पडता है । इससे बचने के
 +
 +
१८०
 +
 +
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 +
 +
जल साक्षरता
 +
 +
बूँदबूँद पानी को आज हम बचाएँगे ।
 +
 +
हरीभरी वसुंधरा फिर से हम बसाएँगे ।।धृ।।
 +
 +
कोसों दूर बहनें जातीं, घर से पानी के लिये
 +
 +
उन बहनों की सेवा करने गाँव में पानी लाएँगे
 +
 +
उन बहनों की सेवा करने बावड़ियाँ बँधवाएँगे ।।१।।
 +
 +
मिट्ते जाते तालाबोंसे जलस्तर नीचे जाता है
 +
 +
नये-नये तालाब बनाकर, जलस्तर ऊपर लाएँगे 1२11
 +
 +
अब ना कोई प्यासा होगा पानी के अभावमें
 +
 +
चर अचर की तृषा शांतिका संबल हम जगाएँगे || ३।।
 +
 +
समझ नहीं है जिसको नलसे बहते रहते पानी की
 +
 +
उन लोगों को समझाकर जलसाक्षसता लाएंगे ।1४।।
 +
 +
लिये डिटर्जन्ट का प्रयोग बन्द कर उसके स्थान पर
 +
 +
प्राकृतिक पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये । बर्तन की
 +
 +
सफाई के लिये मिट्टी या राख तथा कपड़ों की सफाई
 +
 +
के लिये साबुन का प्रयोग करने से पानी की बचत भी
 +
 +
होती है और प्रदूषण भी नहीं होता ।
 +
 +
पीने के लिये प्यालें में उतना ही पानी लेना चाहिये
 +
 +
जितना कि पीना है । प्याला भरकर लेना, थोडा पीना
 +
 +
और बचा हुआ फेंक देना कम बुद्धि का लक्षण है ।
 +
 +
पानी का बहुत अधिक अपव्यय होता है शौचालयों
 +
 +
में । फ्लश की व्यवस्था वाले शौचालय पानी के
 +
 +
प्रयोग की दृष्टि से अनुकूल नहीं है । उनके पर्याय
 +
 +
खोजने चाहिये ।
 +
 +
आवश्यकता से अधिक पानी का संग्रह करना और
 +
 +
बाद में फैंक देना भी उचित नहीं है । इससे पानी का
 +
 +
बहुत अपव्यय होता है ।
 +
 +
विद्यालय में पानी के संग्रह की योजना बहुत
 +
 +
सोचविचार कर बनानी चाहिये ।
 +
 +
वर्षा के पानी का संग्रह करने की व्यवस्था हर
 +
 +
विद्यालय के लिये अनिवार्य है । विद्यालय से यह
 +
 +
योजना विद्यार्थियों के घर तक पहुँचनी चाहिये ।
 +
 +
a4.
 +
 +
&&.
 +
 +
Ru.
 +
 +
RC.
 +
 +
88.
 +
 +
............. page-197 .............
 +
 +
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
 +
 +
२०. जिस प्रकार पानी को शुद्ध करने के बाद ही पीना
 +
 +
चाहिये उस प्रकार शुद्ध पानी को अशुद्ध नहीं करने
 +
 +
की सावधानी भी रखनी चाहिये ।
 +
 +
पानी का प्रयोग करना सीखना चाहिये यह जितना
 +
 +
महत्त्वपूर्ण है उतना ही महत्त्वपूर्ण पानी का निष्कासन उचित
 +
 +
पद्धति से करना भी सीखना है । उसकी भी क्रियात्मक
 +
 +
शिक्षा आवश्यक है। कुछ इन बातों पर ध्यान देना
 +
 +
आवश्यक है ।
 +
 +
श्,
 +
 +
पीने का पानी पेड पौधों को मिल सके इस प्रकार ही
 +
 +
फेंकना चाहिये । पीते समय बचाना नहीं यह तो
 +
 +
पहली बात है परन्तु, बच गया तो वह या तो पक्षियों
 +
 +
और पशुओं को पीने के लिये या तो बर्तन आदि
 +
 +
धोने के लिये अथवा पेड पौधों के लिये काम में
 +
 +
आना चाहिये ।
 +
 +
जिनमें पानी भरा जाता है वे बर्तन खाली करते समय
 +
 +
भी यह बातें ध्यान में रखना आवश्यक है ।
 +
 +
भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन
 +
 +
धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये ।
 +
 +
वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को
 +
 +
पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद
 +
 +
उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये ।
 +
 +
इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और
 +
 +
अन्न का सदुपयोग होता है ।
 +
 +
बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना
 +
 +
चाहिये । कपडे साफ करने के बाद का साबुन वाला
 +
 +
पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो
 +
 +
पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को
 +
 +
are लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और
 +
 +
हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और
 +
 +
वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान
 +
 +
अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता ।
 +
 +
पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के
 +
 +
शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात
 +
 +
आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है ।
 +
 +
हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें
 +
 +
श्८्१
 +
 +
ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती
 +
 +
है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं
 +
 +
ad | Ta ah अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय
 +
 +
स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है ।
 +
 +
पानी की निकासी के विषय में इतनी सावधानी रखनी
 +
 +
चाहिये कि एक बूंद भी बर्बाद न हो ।
 +
 +
पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय
 +
 +
श्,
 +
 +
मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये ।
 +
 +
यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो
 +
 +
यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।
 +
 +
पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें
 +
 +
फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ
 +
 +
जाती है । उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।
 +
 +
मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी
 +
 +
कचरा रहित हो जाता है । ऐसी व्यवस्था बनानी
 +
 +
चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये ।
 +
 +
मिट्टी का और ताँबे का पात्र पानी को निर्जन्तुक
 +
 +
बनाता है ।
 +
 +
पानी यदि क्षारों के कारण भारी हुआ हो तो उसे
 +
 +
उबालकर SS HT चाहिये और बाद में छान लेना
 +
 +
चाहिये ।
 +
 +
पानी भरा रहता है ऐसी टँकियों में सहजन या निर्मली
 +
 +
के बीज तथा चूने का पथ्थर पानी की मात्रा के
 +
 +
अनुपात में डालना चाहिये ये पानी को कचरारहित
 +
 +
और जन्तुरहित बनाते हैं ।
 +
 +
हवा और सूर्यप्रकाश पानी के लिये प्राकृतिक
 +
 +
शुद्धीकारक हैं । इनका सम्पर्क नित्य रहना चाहिये ।
 +
 +
पानी कहीं पर भी रुका न रहे इस ओर ध्यान देना
 +
 +
चाहिये । इसी प्रकार एक ही पात्र में पानी तीन चार
 +
 +
दिन भरा रहे ऐसा भी नहीं होना चाहिये ।
 +
 +
कारखानों के रसायनों से जब नदियों का पानी अशुद्द
 +
 +
होता है तब उसे शुद्ध करने का कोई प्राकृतिक उपाय
 +
 +
नहीं है । उसे रसायनों से ही शुद्ध करना पडता हैं ।
 +
 +
रसायनों से शुद्ध किया हुआ पानी वास्तव में शुद्ध
 +
 +
............. page-198 .............
 +
 +
Ro.
 +
 +
8.
 +
 +
नहीं होता, शुद्ध दिखाई देता है।
 +
 +
यांत्रिक मानको से उसे शुद्ध सिद्ध किया जा सकता
 +
 +
है। जहाँ यांत्रिक मानक ही स्वीकार्य है वहाँ ऐसे
 +
 +
पानी को अशुद्ध बताना अपराध होता है, परन्तु यह
 +
 +
अप्राकृतिक शुद्धि शरीर में और पर्यावरण में
 +
 +
अप्राकृतिक बिमारियाँ लाती है । प्राकृतिक और
 +
 +
अप्राकृतिक तत्त्व को समझने की आवश्यकता है ।
 +
 +
इसी प्रकार यंत्रों से जो शुद्धि होती है वह भी
 +
 +
अप्राकृतिक है ।
 +
 +
सार्वजनिक स्थानों पर जो पानी होता है उसे भी
 +
 +
अशुद्ध होने से बचाना चाहिये ।
 +
 +
पानी को लेकर अनुचित आदतें इस प्रकार हैं ।
 +
 +
उन्हें दूर करने की आवश्यकता है ।
 +
 +
श्,
 +
 +
खडे खडे पानी पीना । यह आदत सार्वत्रिक दिखाई
 +
 +
देती है । यह स्वास्थ्य के लिये जरा भी उचित नहीं
 +
 +
है। पानी पीने वाले ने इस आदत का त्याग करना
 +
 +
चाहिये और पानी पिलाने वाले पीने वाले बैठकर पी
 +
 +
सकें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये ।
 +
 +
कूलर और फ्रीज का पानी पीना । यह प्राकृतिक
 +
 +
सीमा से अधिक ठण्डा पानी स्वास्थ्य के लिये
 +
 +
हानिकारक है । यह अज्ञान इतना बढ गया है कि
 +
 +
अब रेलवे स्थानक जैसी जगहों पर भीं कूलर का
 +
 +
ठण्डा पानी मिलता है । कूलर और फ्रीज पर्यावरण के
 +
 +
लिये तो घातक हैं ही ।
 +
 +
यंत्रों से शुद्ध किया हुआ पानी पीना । यह भी
 +
 +
स्वास्थ्य के लिये घातक है ही ।
 +
 +
प्लास्टीक की बोतल का पानी पीना । बोतल सीधी
 +
 +
मुँह को लगाकर पानी पीने की आदत असंस्कारिता
 +
 +
की निशानी है । प्लास्टिक भी हानिकारक, उसका
 +
 +
“शुद्ध' पानी भी हानिकारक और मुँह लगाकर पीने
 +
 +
की पद्धति भी हानिकारक ।
 +
 +
मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग
 +
 +
मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी
 +
 +
की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से
 +
 +
822
 +
 +
Ro.
 +
 +
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 +
 +
पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों
 +
 +
को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी
 +
 +
खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने
 +
 +
की पूरी सम्भावना है । विद्यालय में सिखाने लायक
 +
 +
यह महत्त्वपूर्ण विषय है ।
 +
 +
विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की
 +
 +
“मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह
 +
 +
व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव
 +
 +
ही दर्शाती है ।
 +
 +
साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब
 +
 +
बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया
 +
 +
है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये
 +
 +
आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही
 +
 +
चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम,
 +
 +
वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी
 +
 +
पीना असभ्यता का ही लक्षण है । साधारण रूप से कोई
 +
 +
कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो
 +
 +
घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी
 +
 +
के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना
 +
 +
शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और
 +
 +
मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है । बच्चों और बडों
 +
 +
में बढती हुई इस आदत को जल्‍दी ही ठीक करने की
 +
 +
आवश्यकता है ।
 +
 +
यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी
 +
 +
फेंक देने की है । केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे
 +
 +
बर्बाद करना ही है । इस आदृत को भी ठीक करना
 +
 +
चाहिये ।
 +
 +
पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में
 +
 +
फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ रहा है । पानी की
 +
 +
बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है ।
 +
 +
बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी
 +
 +
निशानी है ।
 +
 +
बडे बडे समारोहों में पीने का पानी और हाथ धोने
 +
 +
का पानी एक साथ रखा भी जाता है और गिराया भी
 +
 +
जाता है । ऐसे स्थानों पर गन्दगी हो जाती है और
 +
 +
............. page-199 .............
 +
 +
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
 +
 +
पानी की बहुत बर्बादी होती है । इसे ठीक करने की
 +
 +
क्रियात्मक शिक्षा विद्यालय में ही देने की
 +
 +
आवश्यकता है ।
 +
 +
पानी के सम्बन्ध में भावात्मक शिक्षा
 +
 +
क्रियात्मक शिक्षा के साथ ही भावात्मक शिक्षा भी
 +
 +
देनी चाहिये । भावात्मक शिक्षा से क्रिया के साथ श्रद्धा
 +
 +
जुडती है और निष्ठा बनती है । कुछ इन बातों पर विचार
 +
 +
किया जा सकता है
 +
 +
श्,
 +
 +
पानी को पवित्र मानना सिखाना चाहिये । पवित्रता
 +
 +
केवल शुद्धता नहीं है। शुद्धता के साथ जब
 +
 +
सात्त्विकता जुडती है तब पवित्रता बनती है ।
 +
 +
पवित्र पदार्थ या स्थान के साथ आदरयुक्त व्यवहार
 +
 +
होता है। पवित्रता की रक्षा करने के लिये हम
 +
 +
अपवित्र शरीर और मन से उसके पास नहीं जाते हैं ।
 +
 +
उदाहरण के लिये घर में जहाँ पीने का पानी रखा
 +
 +
जाता है वहाँ कोई जूते पहनकर या बिना स्नान किये
 +
 +
नहीं जाता है । यह दीर्घकाल की परम्परा है। हम
 +
 +
विद्यालय में भी ऐसी व्यवस्था कर सकते हैं ।
 +
 +
जहाँ पीने का पानी रखा होता है वहाँ सायंकाल
 +
 +
संध्या के समय दीपक जलाया जाता है । इससे
 +
 +
पर्यावरण की शुद्धि होती है । पवित्रता की भावना भी
 +
 +
निर्माण होती है ।
 +
 +
पानी को जलदेवता मानने का प्रचलन शुरू करना
 +
 +
चाहिये । जलदेवता की स्तुति करनेवाले मंत्र ्रग्वेद में
 +
 +
तो हैं परन्तु हिन्दी में और हर भारतीय भाषा में रचे जा
 +
 +
सकते हैं । जलदेवता की स्तुति के गीत भी रचे जा
 +
 +
सकते हैं । पानी का प्रयोग करते समय इन मन्त्रों का
 +
 +
उच्चारण करने की प्रथा भी शुरु की जा सकती है ।
 +
 +
पानी का संग्रह जहाँ किया जाता है वहाँ भी जूते
 +
 +
पहनकर नहीं जाना, आसपास में गन्दगी नहीं करना,
 +
 +
उस स्थान की सफाई के लिये अलग से झाड़ू आदि
 +
 +
की व्यवस्था करना आदि माध्यमों से पवित्रता का
 +
 +
भाव जगाया जा सकता है ।
 +
 +
जलदेवता को सन्तुष्ट और प्रसन्न करने के लिये यज्ञों
 +
 +
श्८्३
 +
 +
की रचना करनी चाहिये । यज्ञ में
 +
 +
जलदेवता के लिये आहुति देनी चाहिये । जलदेवता
 +
 +
प्रसन्न हों इस दृष्टि से जिस प्रकार नये मन्त्रों की रचना
 +
 +
होगी उसी प्रकार यज्ञ में होम करने की सामग्री का भी
 +
 +
भौतिक विज्ञान की दृष्टि से विचार होगा । यज्ञ तो
 +
 +
वैज्ञानिक अनुष्ठान है ही, उसे आज की
 +
 +
आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके ऐसा स्वरूप दिया
 +
 +
जाना चाहिये ।
 +
 +
पानी का मुख्य स्रोत वर्षा है। संग्रहित पानी का
 +
 +
प्राकृतिक स्रोत नदियाँ हैं। संग्रहित पानी का
 +
 +
मानवसर्जिक स्रोत तालाब, कुएँ, बावडी आदि हैं ।
 +
 +
संग्रहित पानी के इससे भी कृत्रिम स्रोत पानी की
 +
 +
टँकियों से लेकर घर के छोटे मटकों तक के पात्र हैं ।
 +
 +
वर्षा की और नदियों की स्तुति के अनुष्टान किये
 +
 +
जाने चाहिये तथा मानव सर्जित पानी के संग्रहस्थानों
 +
 +
के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण विचार होना चाहिये । यहीं
 +
 +
से पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा शुरू होती है ।
 +
 +
पानी के विषय में ज्ञानात्मक शिक्षा
 +
 +
क्रिया और भावना के साथ ज्ञान नहीं जुड़ा तो क्रिया
 +
 +
कर्मकाण्ड बन जाती है और भावना निस्द्धेश्य । दोनों ही
 +
 +
अपनी सार्थकता खो बैठते हैं । इसलिये ज्ञानात्मक पक्ष का
 +
 +
भी विचार अनिवार्य रूप से करना चाहिये, ज्ञानात्मक शिक्षा
 +
 +
के पहलु इस प्रकार सोचे जा सकते हैं
 +
 +
श्,
 +
 +
रे.
 +
 +
क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा के बाद ही
 +
 +
अथवा कम से कम साथ ही ज्ञानात्मक शिक्षा होनी
 +
 +
चाहिये । आज के सन्दर्भ में तो इस बात की ओर
 +
 +
विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज
 +
 +
की शिक्षा क्रियाशून्य और भावनाशूत्य हो गई है,
 +
 +
केवल जानकारी प्राप्त कर, उसे याद कर, परीक्षा में
 +
 +
लिखकर अंक प्राप्त करने तक सीमित हो गई है ।
 +
 +
इससे अधिक Peete a अनर्थक क्या हो सकता
 +
 +
है ? अतः क्रियात्मक और भावनात्मक शिक्षा का
 +
 +
क्रम प्रथम होना अनिवार्य है ।
 +
 +
पानी कहाँ से आता है, पानी के क्या क्या उपयोग
 +
 +
............. page-200 .............
 +
 +
हैं, पानी शुद्ध और अशुद्द कैसे होता है,
 +
 +
पानी को शुद्ध किस प्रकार किया जाना चाहिये आदि
 +
 +
बातों का ज्ञान प्रारम्भिक स्तर पर देना चाहिये ।
 +
 +
पानी कम पड जाने से, पानी अशुद्द हो जाने से कौन
 +
 +
कौन से संकट निर्माण होते हैं इसका ज्ञान दिया जाना
 +
 +
चाहिये । इन संकटों का उपाय क्या हो सकता है
 +
 +
इसका भी ज्ञान दिया जाना चाहिये ।
 +
 +
पानी के वर्तमान संकट का स्वरूप क्या है इसकी
 +
 +
विस्तारपूर्वक चर्चा की जानी चाहिये ।
 +
 +
कुएँ, तालाब, बावडी वर्षाजल संग्रह की घर घर में की
 +
 +
जानेवाली व्यवस्था नष्ट हो जाने के कितने गम्भीर
 +
 +
परिणाम हुए हैं इसका भी विचार होना चाहिये ।
 +
 +
खेतों को पानी क्यों नहीं मिलता, पीने के लिये पानी
 +
 +
क्यों नहीं मिलता, अनावृष्टि क्यों होती हैं, नदियाँ
 +
 +
क्यों सूख जाती हैं इत्यादि बातों की गम्भीर चर्चा
 +
 +
होना आवश्यक है ।
 +
 +
पानी की निकासी के लिये जो व्यवस्था बनाई जाती
 +
 +
है वह कितनी उचित या अनुचित है इसका विमर्श
 +
 +
होना चाहिये ।
 +
 +
गंगा जैसी पवित्र नदी सहित देश की अन्य नदियों का
 +
 +
पानी बडे बडे कारखानों के विषैले रासायनिक कचरे के
 +
 +
कारण प्रदूषित होता है । इस कचरे से नदियों को
 +
 +
Ro.
 +
 +
8.
 +
 +
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 +
 +
कानून बनाये जाने के बाद भी नदियों को नहीं बचाया
 +
 +
जा सकता है इसका कारण क्या है ? इस स्थिति को
 +
 +
ठीक करने के लिये विद्यालय या विद्याक्षेत्र क्या कर
 +
 +
सकता है इसका विचार होना चाहिये |
 +
 +
बडे बडे बाँध बाँधने से क्या वास्तव में देश का
 +
 +
जलसंकट दूर हो सकता है इसका विचार भी करना
 +
 +
चाहिये । यदि संकट दूर नहीं हो सकता है तो फिर
 +
 +
हम क्यों बाँधते हैं ?
 +
 +
कुएँ, तालाब, बावडियाँ आदि पुनः निर्माण करने के
 +
 +
क्या तरीके हो सकते हैं इसकी भी चर्चा होनी जरूरी
 +
 +
a |
 +
 +
पानी का अमर्याद उपयोग करना, पानी का प्रदूषण
 +
 +
करना, पानी बचाने की कोई व्यवस्था न करना,
 +
 +
पानी के स्रोतों को अवरुद्ध करना आदि विनाशक
 +
 +
गतिविधियों के पीछे कौनसी विचारधारा, कौनसी
 +
 +
मनोवृत्ति और कौनसी प्रवृत्ति होती है इसका मूलगामी
 +
 +
चिन्तन करना सिखाना चाहिये । पानी को लेकर
 +
 +
हमारे छोटे से कार्य के परिणाम दूरगामी होते हैं यह
 +
 +
समझने की आवश्यकता है ।
 +
 +
ये सारी बातें शिक्षा का सार्थक अंग बनेंगी तभी विश्व
 +
 +
के संकट कम होने की सम्भावना बनेगी । ऐसा सारा विचार
 +
 +
करने के बाद विद्यालय की व्यवस्थाओं और गतिविधियों
 +
 +
बचाने के क्या उपाय हैं ? सरकार की ओर से अनेक. का नियोजन होना चाहिये ।
1,815

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