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# सरकारी विद्यालयों में जो भी पढता है उसे आठ वर्ष की पढाई के बाद भी लिखना पढ़ना नहीं आता।
 
# सरकारी विद्यालयों में जो भी पढता है उसे आठ वर्ष की पढाई के बाद भी लिखना पढ़ना नहीं आता।
 
# अन्य विद्यालयों में भी पन्द्रह वर्ष की पढाई के बाद ज्ञानात्मक दृष्टि से शिक्षित कहे जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या कदाचित दो प्रतिशत होगी।
 
# अन्य विद्यालयों में भी पन्द्रह वर्ष की पढाई के बाद ज्ञानात्मक दृष्टि से शिक्षित कहे जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या कदाचित दो प्रतिशत होगी।
# शिक्षित लोगों में देशभक्ति, सामाजिक दायित्वबोध और व्यक्तिगत आचरण में संस्कार नहीं होते। हम सज्जन कह सकें ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण नहीं करते।
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# शिक्षित लोगोंं में देशभक्ति, सामाजिक दायित्वबोध और व्यक्तिगत आचरण में संस्कार नहीं होते। हम सज्जन कह सकें ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण नहीं करते।
 
# विश्व के प्रथम दोसौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
 
# विश्व के प्रथम दोसौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
 
मैंने सारी चिन्ताओं का सार केवल पाँच बिन्दुओं में बताया है। मैं आपके तन्त्र पर या सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ। आप और हम मिलकर स्थिति में कुछ परिवर्तन कर सकें इस दृष्टि से कह रहा हूँ।
 
मैंने सारी चिन्ताओं का सार केवल पाँच बिन्दुओं में बताया है। मैं आपके तन्त्र पर या सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ। आप और हम मिलकर स्थिति में कुछ परिवर्तन कर सकें इस दृष्टि से कह रहा हूँ।
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यह आदेश से या बहुमत से होने वाला काम नहीं है, दीर्घ और व्यापक चिन्तन की भी आवश्यकता है। शिक्षा तो राष्ट्रनिर्माण करने वाली जिन्दा व्यवस्था है। मनुष्यों के मन और बुद्धि का विकास करने के माध्यम से वह देश चलाती है । इस सिस्टम के ही शासन और प्रशासन ऐसे दो हिस्से हैं । मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु इस सिस्टम के एक अंगके रूप में आप हैं इसलिये आप से बात कर रहा हूँ । समस्त शिक्षक समाज की ओर से, देश के जनसामान्य की ओर से एक शिक्षक और इस देश के नागरिक के नाते बात कर रहा हूँ। आप जरा अनुकूल बनने का प्रयास कीजिये । आप चाहेंगे तो बातें सम्भव हो सकती है।
 
यह आदेश से या बहुमत से होने वाला काम नहीं है, दीर्घ और व्यापक चिन्तन की भी आवश्यकता है। शिक्षा तो राष्ट्रनिर्माण करने वाली जिन्दा व्यवस्था है। मनुष्यों के मन और बुद्धि का विकास करने के माध्यम से वह देश चलाती है । इस सिस्टम के ही शासन और प्रशासन ऐसे दो हिस्से हैं । मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु इस सिस्टम के एक अंगके रूप में आप हैं इसलिये आप से बात कर रहा हूँ । समस्त शिक्षक समाज की ओर से, देश के जनसामान्य की ओर से एक शिक्षक और इस देश के नागरिक के नाते बात कर रहा हूँ। आप जरा अनुकूल बनने का प्रयास कीजिये । आप चाहेंगे तो बातें सम्भव हो सकती है।
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'''प्रशासक''' : आज पहली बार ऐसी बातें सुन रहा हूँ। हमारी पढाई में और प्रशिक्षण में इस दृष्टि से विचार करने की कभी सम्भावना ही निर्माण नहीं हुई है। आपकी बातें सूनकर मेरी कल्पना के समक्ष चित्र धीरे धीरे उभर रहा है। मैं देख रहा हूँ कि ब्रिटीश तो भारत छोडकर जाने की तैयारी कर रहे हैं और हम भी स्वाधीन होने का हर्ष मना रहे हैं परन्तु उस हर्ष के आवेशमें ब्रिटीश अपनी सारी व्यवस्था यहाँ छोडकर जा रहे हैं यह बात हम देखते नहीं है । हमने व्यक्तियों को देखा परन्तु उन व्यक्तियों द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं को नहीं देखा । वास्तव में लोगों से भी लोगों द्वारा बनाई गई व्यवस्थायें ज्यादा भयंकर हैं। और विडम्बना यह है कि हमें इसका ज्ञान तो छोडो भान ही नहीं है। परन्तु आपने ही अभी कहा कि सिस्टम जड है। वह अपने आपको तो बदलेगी नहीं, उपर से जो भी बदलने का प्रयास करेगा उसका ही विरोध करेगी, उसे बदलने नहीं देगी, बदलाव में बाधायें निर्माण करेगी।
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'''प्रशासक''' : आज पहली बार ऐसी बातें सुन रहा हूँ। हमारी पढाई में और प्रशिक्षण में इस दृष्टि से विचार करने की कभी सम्भावना ही निर्माण नहीं हुई है। आपकी बातें सूनकर मेरी कल्पना के समक्ष चित्र धीरे धीरे उभर रहा है। मैं देख रहा हूँ कि ब्रिटीश तो भारत छोडकर जाने की तैयारी कर रहे हैं और हम भी स्वाधीन होने का हर्ष मना रहे हैं परन्तु उस हर्ष के आवेशमें ब्रिटीश अपनी सारी व्यवस्था यहाँ छोडकर जा रहे हैं यह बात हम देखते नहीं है । हमने व्यक्तियों को देखा परन्तु उन व्यक्तियों द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं को नहीं देखा । वास्तव में लोगोंं से भी लोगोंं द्वारा बनाई गई व्यवस्थायें ज्यादा भयंकर हैं। और विडम्बना यह है कि हमें इसका ज्ञान तो छोडो भान ही नहीं है। परन्तु आपने ही अभी कहा कि सिस्टम जड है। वह अपने आपको तो बदलेगी नहीं, उपर से जो भी बदलने का प्रयास करेगा उसका ही विरोध करेगी, उसे बदलने नहीं देगी, बदलाव में बाधायें निर्माण करेगी।
    
'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति की गम्भीरता को समझ रहे हैं। हमारा निवेदन है कि हम साथ मिलकर विचार करें कि हमारे सामने जो चुनौती है उसका सामना हम किस प्रकार करें । हम मानते हैं कि शिक्षा को बदलने से ही व्यवस्थायें बदलेंगी और व्यवस्थाओं को बदलने से देश बदलेगा । देश स्वतन्त्र तब कहा जायेगा जब वह अपने तन्त्र से चलेगा । ऐसी स्वतन्त्रता के लिये हम क्या कर सकते हैं । इसका विचार करें।
 
'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति की गम्भीरता को समझ रहे हैं। हमारा निवेदन है कि हम साथ मिलकर विचार करें कि हमारे सामने जो चुनौती है उसका सामना हम किस प्रकार करें । हम मानते हैं कि शिक्षा को बदलने से ही व्यवस्थायें बदलेंगी और व्यवस्थाओं को बदलने से देश बदलेगा । देश स्वतन्त्र तब कहा जायेगा जब वह अपने तन्त्र से चलेगा । ऐसी स्वतन्त्रता के लिये हम क्या कर सकते हैं । इसका विचार करें।
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'''प्रशासक''' : हमने कभी ऐसा विचार किया नहीं है इसलिये एकदम तो मेरे ध्यान में कुछ विचार आ नहीं रहा है। फिर भी मुझे दो बातें महत्त्वपूर्ण लगती हैं । एक तो यह कि सिस्टम को बदलने हेतु शिक्षा को सिस्टम से बाहर रहकर प्रयास करने होंगे। सिस्टम के अन्दर ही अन्दर तो खास कुछ होगा नहीं । दूसरा मुझे लगता है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संगठन साथ मिलकर प्रयास करें।
 
'''प्रशासक''' : हमने कभी ऐसा विचार किया नहीं है इसलिये एकदम तो मेरे ध्यान में कुछ विचार आ नहीं रहा है। फिर भी मुझे दो बातें महत्त्वपूर्ण लगती हैं । एक तो यह कि सिस्टम को बदलने हेतु शिक्षा को सिस्टम से बाहर रहकर प्रयास करने होंगे। सिस्टम के अन्दर ही अन्दर तो खास कुछ होगा नहीं । दूसरा मुझे लगता है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संगठन साथ मिलकर प्रयास करें।
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साथ ही यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक संगटन ही इसकी पहल करें । शिक्षा को यदि सिस्टम से मुक्त करना है तो पहल भी उन लोगों को करनी चाहिये जो मुक्ति चाहते हों, वास्तव में मुक्त हों और अपने आपको मुक्त मानते हों।
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साथ ही यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक संगटन ही इसकी पहल करें । शिक्षा को यदि सिस्टम से मुक्त करना है तो पहल भी उन लोगोंं को करनी चाहिये जो मुक्ति चाहते हों, वास्तव में मुक्त हों और अपने आपको मुक्त मानते हों।
    
'''शिक्षक''' : आपने मेरे मन की बात कही । सौभाग्य से आज भी देश के जनमानस में स्वतन्त्रता की चाह समाप्त नहीं हुई है। लोग मुक्ति चाहते ही हैं। साथ ही देश में अनेक संगठन कार्यरत हैं । लगभग सभी धार्मिक सांस्कृतिक संगठन विद्यालय और महाविद्यालय चलाते हैं। आपको पता नहीं होगा परन्तु ऐसे असंख्य लोग हैं जो इस शिक्षा को पसन्द नहीं करते इसलिये अपने बच्चों को घर में ही पढाते हैं । अनेक स्थानों पर ऐसे गुरुकुलों की स्थापना लोग कर रहे हैं जो इस सिस्टम से मुक्त रह कर चलाये जायें । परन्तु वे सिस्टम से डर रहे हैं । सिस्टम की मान्यता नहीं है ऐसे किसी भी प्रयोग को सिस्टम चलने नहीं देती ऐसी आज की स्थिति है । यह स्थिति अपने आपमें भी अन्यायी और अनुचित है। इतने बड़े देश की शिक्षा का तन्त्र सरकार चलाये यही अत्यन्त अव्यावहारिक है । उस पर जड सिस्टम में शिक्षा को जकडना अत्यन्त अनुचित है। मेरा निवेदन
 
'''शिक्षक''' : आपने मेरे मन की बात कही । सौभाग्य से आज भी देश के जनमानस में स्वतन्त्रता की चाह समाप्त नहीं हुई है। लोग मुक्ति चाहते ही हैं। साथ ही देश में अनेक संगठन कार्यरत हैं । लगभग सभी धार्मिक सांस्कृतिक संगठन विद्यालय और महाविद्यालय चलाते हैं। आपको पता नहीं होगा परन्तु ऐसे असंख्य लोग हैं जो इस शिक्षा को पसन्द नहीं करते इसलिये अपने बच्चों को घर में ही पढाते हैं । अनेक स्थानों पर ऐसे गुरुकुलों की स्थापना लोग कर रहे हैं जो इस सिस्टम से मुक्त रह कर चलाये जायें । परन्तु वे सिस्टम से डर रहे हैं । सिस्टम की मान्यता नहीं है ऐसे किसी भी प्रयोग को सिस्टम चलने नहीं देती ऐसी आज की स्थिति है । यह स्थिति अपने आपमें भी अन्यायी और अनुचित है। इतने बड़े देश की शिक्षा का तन्त्र सरकार चलाये यही अत्यन्त अव्यावहारिक है । उस पर जड सिस्टम में शिक्षा को जकडना अत्यन्त अनुचित है। मेरा निवेदन

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