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एक, आप सच्चे धार्मिक हैं । आप प्रशासकीय सेवा में हैं इसलिये भारत का इतिहास जानते हैं। इस देश की शिक्षाव्यवस्था विश्व में सबसे प्राचीन है यह तो आप जानते ही हैं। अत्यन्त प्राचीन काल से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक भारत में शिक्षा सरकार के नियन्त्रण में नहीं थी। ब्रिटीशों ने भारत की प्रजा के मानस को अपने अधीन करने हेतु शिक्षा को अपने नियन्त्रण में ले लिया। उसके बाद भारत की शिक्षा और शिक्षा की व्यवस्था का सर्वनाश किया। यह कड़वा सच है कि आप स्वाधीन भारत में भी ब्रिटीशों की ही पद्धति चला रहे हैं। क्या आपका उद्देश्य भी प्रजा के मानस को अपने अधीन रखने का ही है ? क्या प्रजा को स्वतन्त्र नहीं होने देना चाहते हैं ?
 
एक, आप सच्चे धार्मिक हैं । आप प्रशासकीय सेवा में हैं इसलिये भारत का इतिहास जानते हैं। इस देश की शिक्षाव्यवस्था विश्व में सबसे प्राचीन है यह तो आप जानते ही हैं। अत्यन्त प्राचीन काल से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक भारत में शिक्षा सरकार के नियन्त्रण में नहीं थी। ब्रिटीशों ने भारत की प्रजा के मानस को अपने अधीन करने हेतु शिक्षा को अपने नियन्त्रण में ले लिया। उसके बाद भारत की शिक्षा और शिक्षा की व्यवस्था का सर्वनाश किया। यह कड़वा सच है कि आप स्वाधीन भारत में भी ब्रिटीशों की ही पद्धति चला रहे हैं। क्या आपका उद्देश्य भी प्रजा के मानस को अपने अधीन रखने का ही है ? क्या प्रजा को स्वतन्त्र नहीं होने देना चाहते हैं ?
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'''प्रशासक''' : यह तो गम्भीर आरोप है। भारत में शिक्षा थी ही नहीं, ब्रिटीशों ने शुरू की और आज भी हमारे लिये वह व्यवस्था का उत्तम नमूना है। स्वतन्त्रता से पूर्व वह व्यवस्था शुरू हुई इसलिये उसका श्रेय तो उनका ही माना जाना चाहिये । हमें ब्रिटीशों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये । आप उल्टी बात कर रहे हैं।
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'''प्रशासक''' : यह तो गम्भीर आरोप है। भारत में शिक्षा थी ही नहीं, ब्रिटीशों ने आरम्भ की और आज भी हमारे लिये वह व्यवस्था का उत्तम नमूना है। स्वतन्त्रता से पूर्व वह व्यवस्था आरम्भ हुई इसलिये उसका श्रेय तो उनका ही माना जाना चाहिये । हमें ब्रिटीशों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये । आप उल्टी बात कर रहे हैं।
    
'''शिक्षक''' : यही तो बडे खेद की बात है कि वर्तमान भारत का उच्च शिक्षित, अधिकारी व्यक्ति सत्य इतिहास से परिचित भी नहीं है। मेरे कथन के प्रमाण मैं दे सकता हूँ। मुझे ज्ञात था कि इन की आवश्यकता पडेगी इसलिये मैं कुछ सामग्री साथ लेकर आया हूँ। यहाँ छोडकर जाऊँगा। आपको मेरे कथन के प्रमाण मिल जायेंगे। परन्तु इससे भी अधिक खेद की बात यह है कि हमारे प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों में हम वही पढ़ा रहे हैं जो ब्रिटीश हमें पढा रहे थे । हमारे विश्वविद्यालय ज्ञान की दृष्टि से धार्मिक नहीं हैं। विगत दस पीढियों से यही पश्चिमी ज्ञान हम दे रहे हैं। प्रथम पाँच पीढियाँ तो स्वाधीनता पूर्व थीं, हम उसमें कुछ नहीं कर सकते थे, परन्तु स्वाधीनता के बाद भी तो हम वही पढा रहे हैं। यह परिवर्तन कौन करेगा ऐसा आपको लगता है ? शिक्षक या सरकार ?
 
'''शिक्षक''' : यही तो बडे खेद की बात है कि वर्तमान भारत का उच्च शिक्षित, अधिकारी व्यक्ति सत्य इतिहास से परिचित भी नहीं है। मेरे कथन के प्रमाण मैं दे सकता हूँ। मुझे ज्ञात था कि इन की आवश्यकता पडेगी इसलिये मैं कुछ सामग्री साथ लेकर आया हूँ। यहाँ छोडकर जाऊँगा। आपको मेरे कथन के प्रमाण मिल जायेंगे। परन्तु इससे भी अधिक खेद की बात यह है कि हमारे प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों में हम वही पढ़ा रहे हैं जो ब्रिटीश हमें पढा रहे थे । हमारे विश्वविद्यालय ज्ञान की दृष्टि से धार्मिक नहीं हैं। विगत दस पीढियों से यही पश्चिमी ज्ञान हम दे रहे हैं। प्रथम पाँच पीढियाँ तो स्वाधीनता पूर्व थीं, हम उसमें कुछ नहीं कर सकते थे, परन्तु स्वाधीनता के बाद भी तो हम वही पढा रहे हैं। यह परिवर्तन कौन करेगा ऐसा आपको लगता है ? शिक्षक या सरकार ?
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'''शिक्षक''' : आपके प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। परन्तु जाते जाते एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय का प्रारम्भ कर देता हूँ। हम सब कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारम्भ करने का मानस बनाया है। आपकी सहायता की उसमें बहुत आवश्यकता रहेगी।
 
'''शिक्षक''' : आपके प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। परन्तु जाते जाते एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय का प्रारम्भ कर देता हूँ। हम सब कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारम्भ करने का मानस बनाया है। आपकी सहायता की उसमें बहुत आवश्यकता रहेगी।
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'''प्रशासक''' : यह कौनसी नई बात है ? आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सुरू करना कोई खेल थोडे ही हैं ? कितना धन चाहिये और कितना परिश्रम ? फिर संसद में कानून भी पारित करना होगा। कितनी प्रशासकीय आवश्यकतायें पूरी करना होगी। फिर भी आप नहीं कर सकते हैं ऐसा तो नहीं है। सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण कीजिये और शुरू कीजिये । मेरी और से मैं हर प्रकार से सहायता करूँगा। परन्तु सरकार से शिक्षा की मुक्ति और यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय दोनों अलग विषय हैं । दोनों की चर्चा एकदूसरे से स्वतन्त्र रूप से करनी होंगी। पहला विषय कठिन है, दूसरा तो सरल है।
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'''प्रशासक''' : यह कौनसी नई बात है ? आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सुरू करना कोई खेल थोडे ही हैं ? कितना धन चाहिये और कितना परिश्रम ? फिर संसद में कानून भी पारित करना होगा। कितनी प्रशासकीय आवश्यकतायें पूरी करना होगी। फिर भी आप नहीं कर सकते हैं ऐसा तो नहीं है। सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण कीजिये और आरम्भ कीजिये । मेरी और से मैं हर प्रकार से सहायता करूँगा। परन्तु सरकार से शिक्षा की मुक्ति और यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय दोनों अलग विषय हैं । दोनों की चर्चा एकदूसरे से स्वतन्त्र रूप से करनी होंगी। पहला विषय कठिन है, दूसरा तो सरल है।
    
'''शिक्षक''' : दोनों विषय एकदूसरे से सम्बन्धित ही हैं, यह मैं जब उसकी कल्पना आपके समक्ष स्पष्ट करूँगा तब आपके ध्यान में आयेगा। अभी तो मैं आगामी बैठक निश्चित करके आपको सूचित करूंगा। तब तक के लिये आज्ञा दीजिये।  
 
'''शिक्षक''' : दोनों विषय एकदूसरे से सम्बन्धित ही हैं, यह मैं जब उसकी कल्पना आपके समक्ष स्पष्ट करूँगा तब आपके ध्यान में आयेगा। अभी तो मैं आगामी बैठक निश्चित करके आपको सूचित करूंगा। तब तक के लिये आज्ञा दीजिये।  

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