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→‎निराकरण की नीति: लेख सम्पादित किया
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== निराकरण की नीति ==
 
== निराकरण की नीति ==
समस्याएँ इतनी अधिक और पेचिदा हैं कि इनका निराकरण अब संभव नहीं है, ऐसा कई विद्वान मानते हैं। हमने जो करणीय और अकरणीय विवेक को समझा है उसके अनुसार कोई भी बात असंभव नहीं होती। ऊपरी तौरपर असंभव लगनेपर भी उसे संभव चरणों में बाँटकर संपन्न किया जा सकता है।
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समस्याएँ इतनी अधिक और पेचिदा हैं कि इनका निराकरण अब संभव नहीं है, ऐसा कई विद्वान मानते हैं। हमने जो करणीय और अकरणीय विवेक को समझा है उसके अनुसार कोई भी बात असंभव नहीं होती। ऊपरी तौर पर असंभव लगने पर भी उसे संभव चरणों में बाँटकर संपन्न किया जा सकता है।
इस के लिये नीति के तौरपर हमारा व्यवहार निम्न प्रकार का होना चागिये।
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- सबसे पहले तो यह हमेशा ध्यान में रखना कि यह पूरे समाज जीवन के प्रतिमान के परिवर्तन का विषय है। इसे परिवर्तन के लिये कई पीढियों का समय लग सकता है। भारत वर्ष के दीर्घ इतिहास में समाज ने कई बार उत्थान और पतन के दौर अनुभव किये हैं। बारबार भारतीय समाज ने उत्थान किया है।  
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इस के लिये नीति के तौर पर हमारा व्यवहार निम्न प्रकार का होना चाहिए:
- परिवर्तन की प्रक्रिया को संभाव्य चरणों में बाँटना।
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* सबसे पहले तो यह हमेशा ध्यान में रखना कि यह पूरे समाज जीवन के प्रतिमान के परिवर्तन का विषय है। इसे परिवर्तन के लिये कई पीढियों का समय लग सकता है। भारत वर्ष के दीर्घ इतिहास में समाज ने कई बार उत्थान और पतन के दौर अनुभव किये हैं। बार बार भारतीय समाज ने उत्थान किया है।
- उसमें आज जो हो सकता है उसे कर डालना।
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* परिवर्तन की प्रक्रिया को संभाव्य चरणों में बाँटना।
- आज जिसे करना कठिन लगता है उसके लिये परिस्थितियाँ बनाते जाना। परिस्थितियाँ बनते ही उसे   करना।  
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* उसमें आज जो हो सकता है उसे कर डालना।
- प्रारंभ में जबतक परिवर्तन की प्रक्रिया ने गति नहीं पकडी है, यथासंभव कोई विरोध मोल नहीं लेना।  
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* आज जिसे करना कठिन लगता है उसके लिये परिस्थितियाँ बनाते जाना। परिस्थितियाँ बनते ही उसे करना।
- इसी प्रकार से एक एक चरण को संभव बनाते हुए आगे बढ़ाते जाना।
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* प्रारंभ में जबतक परिवर्तन की प्रक्रिया ने गति नहीं पकडी है, यथासंभव कोई विरोध मोल नहीं लेना।
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* इसी प्रकार से एक एक चरण को संभव बनाते हुए आगे बढ़ाते जाना।
    
== समस्या मूलों का निराकरण ==
 
== समस्या मूलों का निराकरण ==
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== समस्या मूल नष्ट करने हेतु धर्म के जानकारों के मार्गदर्शन में शिक्षा की व्याप्ति ==
 
== समस्या मूल नष्ट करने हेतु धर्म के जानकारों के मार्गदर्शन में शिक्षा की व्याप्ति ==
१. जीवनदृष्टि की शिक्षा : जीवनदृष्टि की शिक्षा मुख्यत: कामनाओं और कामनाओं की पूर्ति के प्रयास, धन, साधन और संसाधनों को धर्म के दायरे में रखने की शिक्षा ही है। पुरूषार्थ चतुष्टय की या त्रिवर्ग की शिक्षा ही है।
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# जीवनदृष्टि की शिक्षा : जीवनदृष्टि की शिक्षा मुख्यत: कामनाओं और कामनाओं की पूर्ति के प्रयास, धन, साधन और संसाधनों को धर्म के दायरे में रखने की शिक्षा ही है। पुरूषार्थ चतुष्टय की या त्रिवर्ग की शिक्षा ही है।
२. व्यवस्थाएँ : जीवनदृष्टि के अनुसार व्यवहार हो सके इस हेतु से ही व्यवस्थाओं का निर्माण किया जाता है। व्यवस्थाओं के निर्माण में और उनके क्रियान्वयन में भी जीवनदृष्टि ओतप्रोत रहे इसका ध्यान रखना होगा।
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# व्यवस्थाएँ : जीवनदृष्टि के अनुसार व्यवहार हो सके इस हेतु से ही व्यवस्थाओं का निर्माण किया जाता है। व्यवस्थाओं के निर्माण में और उनके क्रियान्वयन में भी जीवनदृष्टि ओतप्रोत रहे इसका ध्यान रखना होगा।
२.१ धर्म व्यवस्था   २.२ शिक्षा व्यवस्था २.३ शासन व्यवस्था   २.४ समृद्धि व्यवस्था
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## धर्म व्यवस्था
३. संगठन : समाज संगठन और समाज की व्यवस्थाएँ एक दूसरे को पूरक पोषक होती हैं। लेकिन धर्म व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था और शासन व्यवस्था के अभाव में संगठन निर्माण करना अत्यंत कठिन हो जाता है। वास्तव में ये दोनों अन्योन्याश्रित होते हैं। समाज संगठन की जानकारी के लिये कृपया अध्याय १२ देखें।
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## शिक्षा व्यवस्था
३.१ कुटुम्ब ३.२ स्वभाव समायोजन ३.३ आश्रम ३.४ कौशल विधा ३.५ ग्राम ३.६ राष्ट्र
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## शासन व्यवस्था
४. विज्ञान और तन्त्रज्ञान : कृपया अध्याय ३९ देखें।  
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## समृद्धि व्यवस्था
४.१ विकास और उपयोग नीति ४.२ सार्वत्रिकीकरण
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# संगठन : समाज संगठन और समाज की व्यवस्थाएँ एक दूसरे को पूरक पोषक होती हैं। लेकिन धर्म व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था और शासन व्यवस्था के अभाव में संगठन निर्माण करना अत्यंत कठिन हो जाता है। वास्तव में ये दोनों अन्योन्याश्रित होते हैं। समाज संगठन की जानकारी के लिये कृपया [[Society (समाज)|यह]] लेख देखें।
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## कुटुम्ब
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## स्वभाव समायोजन
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## आश्रम
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## कौशल विधा
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## ग्राम
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## राष्ट्र
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# विज्ञान और तन्त्रज्ञान: कृपया [[Bharat's Science and Technology (भारतीय विज्ञान तन्त्रज्ञान दृष्टि)|यह]] लेख देखें।  
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## विकास और उपयोग नीति
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## सार्वत्रिकीकरण
    
== परिवर्तन की योजना ==
 
== परिवर्तन की योजना ==
    
=== परिवर्तन का स्वरूप ===
 
=== परिवर्तन का स्वरूप ===
वर्तमान स्वार्थपर आधारित जीवन के प्रतिमान के स्थानपर आत्मीयता याने कौटुम्बिक भावनापर आधारित जीवन के प्रतिमान की प्रतिष्ठापना
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वर्तमान स्वार्थ पर आधारित जीवन के प्रतिमान के स्थान पर आत्मीयता याने कौटुम्बिक भावना पर आधारित जीवन के प्रतिमान की प्रतिष्ठापना:
१.१  सर्वे भवन्तु सुखिन:, देशानुकूल और कालानुकूल आदि के संदर्भ में दोनों प्रतिमानों को समझना
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# सर्वे भवन्तु सुखिन:, देशानुकूल और कालानुकूल आदि के संदर्भ में दोनों प्रतिमानों को समझना
१.२ प्रतिमान का परिवर्तन
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# प्रतिमान का परिवर्तन
.२.१ सामाजिक व्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण
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## सामाजिक व्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण
१.२.२ समाज के संगठनों का परिष्कार/पुनरूत्थान या नवनिर्माण
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### समाज के संगठनों का परिष्कार/पुनरूत्थान या नवनिर्माण
१.२.३ तन्त्रज्ञान  का समायोजन / तन्त्रज्ञान  नीति / जीवन की इष्ट गति : वर्तमान में तन्त्रज्ञान  की विकास की गति से जीवन को जो गति प्राप्त हुई है उस के कारण सामान्य मनुष्य घसीटा जा रहा है। पर्यावरण सन्तुलन  और सामाजिकता दाँवपर लग गए हैं। ज्ञान, विज्ञान और तन्त्रज्ञान ये तीनों बातें पात्र व्यक्ति को ही मिलनी चाहिये। बंदर के हाथ में पलिता नहीं दिया जाता। इस लिये किसी भी तन्त्रज्ञान के सार्वत्रिकीकरण से पहले उसके पर्यावरण, समाजजीवन और व्यक्ति जीवनपर होनेवाले परिणाम जानना आवश्यक है। हानिकारक तंत्रज्ञान का तो विकास भी नहीं करना चाहिये। किया तो वह केवल सुपात्र को ही अंतरित हो यह सुनिश्चित करना चाहिये।
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### तन्त्रज्ञान  का समायोजन / तन्त्रज्ञान  नीति / जीवन की इष्ट गति : वर्तमान में तन्त्रज्ञान  की विकास की गति से जीवन को जो गति प्राप्त हुई है उस के कारण सामान्य मनुष्य घसीटा जा रहा है। पर्यावरण सन्तुलन  और सामाजिकता दाँवपर लग गए हैं। ज्ञान, विज्ञान और तन्त्रज्ञान ये तीनों बातें पात्र व्यक्ति को ही मिलनी चाहिये। बंदर के हाथ में पलिता नहीं दिया जाता। इस लिये किसी भी तन्त्रज्ञान के सार्वत्रिकीकरण से पहले उसके पर्यावरण, समाजजीवन और व्यक्ति जीवनपर होनेवाले परिणाम जानना आवश्यक है। हानिकारक तंत्रज्ञान का तो विकास भी नहीं करना चाहिये। किया तो वह केवल सुपात्र को ही अंतरित हो यह सुनिश्चित करना चाहिये। ऐसी स्थिति में जीवन की इष्ट गति की ओर बढानेवाली तन्त्रज्ञान नीति का स्वीकार करना होगा। इष्ट गति के निकषों के लिये अध्याय ३९ में बताई  
ऐसी स्थिति में जीवन की इष्ट गति की ओर बढानेवाली तन्त्रज्ञान नीति का स्वीकार करना होगा। इष्ट गति के निकषों के लिये अध्याय ३९ में बताई कसौटि लगानी होगी।
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### लगानी होगी।
    
=== परिवर्तन की प्रक्रिया ===
 
=== परिवर्तन की प्रक्रिया ===
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