पुण्यभूमि भारत - मध्य भारत

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मध्य भारत

भुवनेश्वर

यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर है। श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर खदेड़ दिया।

कटक

उत्कल का प्राचीन प्रशासनिक केंद्र | यह महानदी के तट पर विद्यमान है | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में ही हुआ था | नगर में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान है | महानदी के तट पर घवलेश्वर महादेव नाम का प्राचीन मंदिर है |

याजपुर (जाजातिपुर)

यह प्राचीन नगरहै। ब्रह्माजी ने यहाँ यज्ञ किया था,अत: इसका नाम यज्ञपुर या योजपुर हुआ। यज्ञ से विरजादेवी का प्राकट्य हुआ जो आज विरजा देवी के मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। याजपुर को नाभिगया के नाम से भी जाना जाता है। वैतरणी नदी याजपुर के समीप बहती है। नदी के तट पर सुन्दर घाट व मन्दिर बने हैं। भगवान् विष्णु, सप्त मातृका, त्रिलोचन शिव नामक प्रमुख मन्दिरहैं। घाट से थोड़ी दूरी पर प्राचीन गरुड़ स्तम्भ व विरजा देवी का मन्दिर है। यह प्रमुख शक्तिपीठ है। भगवती सती का नाथि प्रदेश यहाँ गिरा था, अत: इसे नाभिपीठ भी कहा जाता है।

सम्भलपुर

सम्भलपुर महानदी के किनारे स्थित अति प्राचीन नगर है। ग्रीक विद्वान टालेमी ने (दूसरी शताब्दी) इसका वर्णन मानद' के तट पर स्थित 'सम्बलक' के रूप में किया है। यहीं पर परिमल गिरेि नामक बौद्ध विश्वविद्यालय था। वज़यान नामक बौद्ध सम्प्रदाय के प्रवर्तक इन्द्रभूति का जन्म-स्थान भी यही है। सम्बलेश्वरी या सामालयी यहाँ प्रधान पूज्य देवी हैं जो महानदी के तट पर स्थित सामलयी गुडी नामक मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। होमा, मानेश्वर पास ही स्थित पवित्र तीर्थ हैं।

कोणार्क

कोणार्क को प्राचीन पद्मक्षेत्र कहा जाता है।भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने यहाँ सूर्योपासना कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पायी। साम्ब ने यहाँ पर सूर्य-मूर्ति की स्थापना की थी (यह मूर्ति अब पुरी संग्रहालय में सुरक्षित है)। वर्तमान में बना रथाकार सूर्य मन्दिर १३ वीं शताब्दी का है। इसकी कला उत्कृष्ट कोटि की है। विधर्मी आक्रमणकारियों ने इसे कई बार और लूटा,परन्तु पूरी तरह सफल नहीं हो पाये। मन्दिर का शिखर व पहिए टूटे हुए हैं। सूर्य-मन्दिर के पृष्ठभाग में सूर्य पत्नी संज्ञा का मन्दिर है। यह भी भग्नावस्था में हैं।

चिल्काझील

उड़ीसा (उत्कल) जहाँ आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध है,वाही प्राकृतिक सुषमा में भी बेजोड़ है | चिल्का झील इसका उदहारण है | यह मीठे व खारे पानी की एशिया की विशालतम झील है। चिल्का झील पुरी (जगन्नाथपुरी) के एकदम दक्षिण में स्थित है।शीत ऋतुमें यहाँ पक्षी विविध प्रकार के पक्षियों का अभ्यारण्य बना होता है। साइबेरिया तक से पक्षी जाड़ों में यहां ठहरते हैं। झील का क्षेत्रफल ११०० वर्ग कि.मी. है।

बालनगिरि

पठारी व पर्वतीय संरचना वाला यह क्षेत्र दक्षिणी कोसल के नाम से जाना जाता था। इसका वर्णन रामायणकाल में दक्षिणी कोसल के नाम से हुआ है। बौद्धकाल मेंइसका वैभव शिखर पर था। सहजयान नामक बौद्ध विचारधारा का विकास यहीं पर हुआ। सोनपुर बालनगिर के पास स्थित मन्दिर नगर के रूप में जाना जाता है।

राउरकेला

राउरकेला उड़ीसा का सबसे बड़ा नगर व औद्योगिक केन्द्र है। यह राज्य की सामाजिक व औद्योगिक गतिविधियों का नाभिक है। सार्वजनिक क्षेत्र के प्रथम तीन कारखानों में से एक १९५५ में इस नगर में स्थापित किया गया, तभी से इसकी निरन्तर प्रगति हो रही है।

छतरपुर

चिल्का झील के दक्षिण में स्थित छतरपुर प्रमुख तटीय नगर है |

फूलवनी

पूर्वी उड़ीसा का प्रमुख सांस्कृतिक नगर है |

अमरकंटक

अमरकंटक मैकाल या मिकुल पर्वत का उच्च शिखर हैं | नर्मदा (रेवा ) का उद्गम स्थान अमरकंटक पर स्थित एक कुण्ड है, इस कुण्ड का नाम कोटितीर्थ है | समुद्रतल से अमरकंटक लगभग १००० मीटर ऊँचा है | अमरकंटक शिखर पर अमरनाथ महादेव, नर्मदा देवी, नर्मदेश्वर व अमरकंटकेश्वर के मंदिर बने है | यहाँ पर कई शैव व् वैष्णव मंदिर तथा पवित्र सरोवर व् कुण्ड है | केशव नारायण तथा मत्स्येन्द्रनाथ के मंदिर प्रमुख है | मार्कंडेय आश्रम, भृगुकमण्डल, कपिलधारा आदि ऋषियों के प्रसिद्ध स्थान अमरकंटक के आसपास ही है | कालिदास द्वारा रचित 'मेघदूत ' में इसे आम्रकुट नाम दिया गया है | शोणभद्र और महानदी के उद्गम स्थान अमरकंटक के पूर्वी भाग में है | महात्मा कबीर ने अमरकंटक के पास काफी समय तक निवास कर जनचेतना जगायी |

जबलपुर

नर्मदा-नदी पर स्थित मध्यप्रदेश का प्रख्यात नगर| प्राचीन काल में नर्मदा के तट पर यहीं जाबालि ऋषि का आश्रम था। इस कारण यहाँ की बस्ती का नाम जाबालि पत्तनम् या जाबालिपुर पड़ा। यहाँ एक सुन्दर सरोवर और अनेक पुरातन व नवीन मन्दिर हैं।महारानी दुर्गावती ने भी इसे अपनी राजधानी बनाया था। सत्यवादी महाराजा हरिश्चन्द्र ने नर्मदा-तट पर मुकुट क्षेत्र में तपस्या की थी। भूगु ऋषि की तपस्थली भेड़ाघाट (संगमरमर का प्राकृतिक स्थल)जबलपुर के समीप ही है। देवराज इन्द्र ने यहीं पास में नर्मदा-तट पर तपस्या की थी। यहाँ पर इन्द्रेश्वर शिव का प्राचीन मन्दिर बना है।

References