पुण्यभूमि भारत - पञ्च सरोवर

From Dharmawiki
Revision as of 15:55, 26 March 2021 by Adiagr (talk | contribs) (नया लेख बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

पॉच सरोवर

जिस प्रकार भारत के चार कोनों पर चार धाम (उत्तरी सीमा पर बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरीतथा पश्चिम में द्वारिका स्थापित कर देश की एकता को सुदृढ़ किया गया। उसी प्रकार मनीषियों ने पंच सरोवरों की मान्यता देकर समस्त भारतवासियों को प्रान्त व जातिभेद से ऊपर उठकर भारत को एक राष्ट्र के रूप में सुदूढ़ करने की प्रेरणा दी। सभी हिन्दू इनके प्रतिश्रद्धाभाव रखते हैं। ये पॉच सरोवर निम्नलिखित हैं)

१. विन्दु सरोवर

२. नारायण सरोवर

३. पम्पा सरोवर

४. पुष्कर झील

५, मान सरोवर

विन्दु सरोवर

विन्दु सरोवर दो हैं : 1. भुवनेश्वर के मुख्य बाजार में स्थित 2. विन्दु सरोवर सिद्धपुर। देश की एकात्मता की दृष्टि सेपूर्व दिशा स्थित भुवनेश्वर का विन्दुसरोवर अधिक महत्वपूर्ण है। यह एक सुविस्तृत सरोवर है। सरोवर के मध्य एकविशाल मन्दिरहै। इसमेंभगवान् नारायण,शिव-पार्वती, गणेश की सुन्दर प्रतिमाएँ हैं। सरोवर केचारों ओर बहुत सेमन्दिरबने हैं। इस सरोवर में समस्त तीथों का जल लाकर डाला हुआ है,अतः यह परम पवित्र माना जाता हैं। भारतवर्ष में पितृश्राद्ध के लिए गया प्रसिद्ध है तो मातृश्राद्ध के लिए सिद्धपुर स्थित विन्दुसरोवर की मान्यता है। इसे मातृगया भी कहा जाता है। प्राचीन नाम श्रीस्थल है। पवित्र सरस्वती से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर दूरएक सरोवरहै। लगभग 12 मीटर लम्बा व 12मीटरचौड़ा यह सरोवर कर्दम ऋषि, कपिल मुनि, समुद्र-मन्थन औरभगवान परशुराम की कथाओं से सम्बद्ध है। सरोवर के पास गोविन्द माधव मन्दिर विद्यमान है। तीर्थयात्री सरोवरमें स्नान कर मातृ-श्राद्ध करते हैं। दक्षिणी छोरपर बने मन्दिर में महर्षि कर्दम, देवहूति और महर्षि कपिल की मूर्तियाँ हैं। इसके अतिरिक्त राधा-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण, सिद्धेश्वरमहादेव के मन्दिर,ज्ञानवापी(बावली) तथा वल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक यहाँ विद्यमान है।

नारायणसरोवर

कच्छ के रनों का यह अति प्राचीन तीर्थ क्षेत्र है। यहाँ स्वच्छ जल का एक पवित्र तालाब है।इसका निर्माण नारायण भगवान् ने गांगोत्री से पवित्रजल लाकर किया।स्वयं नाराण यहाँपर कुछ काल रहे। सरोवर के पास आदि नारायण, गोवर्द्धननाथ और टीकम जी के सुन्दर मन्दिर बने हैं। श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक भी नारायण सरोवर के पास है। नारायणसरोवर से लगभग 3 कि.मी. दूर कोटेश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर है।कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक मेला लगता है। तीर्थ-यात्रियों की सुविधा के लिए यहाँ कई धर्मशालाएँ बनी हुई हैं।

मानसरोवर

सम्पूर्ण हिमालय पार कर तिब्बत (त्रिविष्टप) के शीतल पठार में स्थित मानसरोवरआदिकाल से मानव को आमंत्रित करता आ रहा है। युगों से लोग इसे पवित्र तथा शान्तिदायक क्षेत्र मानकर कलास-मानसरोवर की यात्रा करते आ रहे हैं। यहाँ पर दो सरोवर हैं। एक को राक्षसताल कहते हैं, राक्षसराज रावण ने यहाँ खड़े होकर भगवान् शांकर की आराधना की थी। दूसरा सरोवर मानसरोवर है, इस सरोवर का जल अत्यन्त स्वच्छ व नीलाभ है। मानसरोवर का आकारअण्डाकारहै, यहाँ पहुँच करतीर्थयात्री अमित सन्तोष व शान्ति का अनुभव करता है। मानसरोवर में हंस मिलते हैं। मानसरोवर का जल अधिक शीतल नहींहै, इसमें आनन्दपूर्वक स्नान किया जा सकता है। यद्यपि मानसरोवर से प्रत्यक्ष रूप से कोई झरना या नदी नहीं निकलती किन्तु पर्याप्त ऊंचाई पर होने के कारण सरयू और पुष्टि करतेहैं। मानसरोवर से लगभग 32 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में कैलास पर्वत है। कैलास पर्वत भगवान् शिव का स्थान है। कुछ लोग तो केंलास को शिवस्वरूप मानते हैं। पास में ही गौरीकुण्डहै। मानसरोवर कीमहत्ता शक्तिपीठ के रूप में मान्य हैं। सती की दाहिनी हथेली यहाँ गिरी थी। तभी से यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में पूजित है।

पुष्कर

महाभारत के वन पर्व में ऋषि पुलस्त्य भीष्मजी के सामने अनेक तीर्थों का वर्णन करते हुए पुष्कर को सबसे अधिक पवित्र बताते हैं।पुष्करतीर्थों के गुरु हैं। वाल्मीकि-रामायण में भी पुष्कर की महिमा गायी गयी है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी यहाँ निरन्तर वास करते हैं। ब्रह्माजी ने पुष्कर की स्थापना की। यहाँ एक पवित्र सरोवर है जिसमें स्नान करने से मानव शान्ति प्राप्त करता है। सरोवर के पास ब्रह्मा जी का विशाल व भव्य मन्दिर है। श्री बद्री नारायण मन्दिर, वाराह मन्दिर, कपालेश्वर महादेव, श्री रंग मन्दिर आदि यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। पुष्कर में पुष्कर सरोवर के अतिरिक्त सरस्वती नदी में स्नान करना पुण्यकारक माना जाता है। ब्रह्मा जी का मन्दिर व वाराहजी का मन्दिर मुस्लिम धर्मान्धता के कारण औरंगजेब के काल में तोड़ दिये गये थे। ब्रह्माजी का वर्तमान मन्दिर सन 1809 में बनाया गया और वाराह मन्दिर सन 1727 में बना। पुष्कर को मन्दिरों की नगरी कहा जा सकता है। यहाँ लगभग चार सौ मन्दिर हैं।

सर्वतीर्थयू राजेन्द्र तीर्थ त्रैलोक्यविश्रुतम्।

पुष्करं नाम विख्यात महाभाग: समविशेत्।

पम्पा सरोवर

दक्षिण दिशा में स्थित है।भगवान् श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण के साथ इस सरोवर के तीर परविश्राम किया था। वाल्मीकि-रामायण में पम्पासार का सुन्दर वर्णन किया गया है।तुगंभद्रा नदी के दक्षिण में यह सरोवरस्थित है। किष्किन्धा, ऋष्यमूक पर्वत, स्फटिक-शिला पम्पा सरोवर के समीप फेंले रामायणकालीन ऐतिहासिक स्थान हैं। पम्पा सरोवर के पास पहाड़ी पर छोटे-छोटे जीर्ण मन्दिर हैं। एक मन्दिर में लक्ष्मीनारायण की ब्रह्मपुत्र का उद्गम-स्थान वास्तव में यही सरोवर है, अनेक विद्वान इसकी युगल मूर्ति है। पास में शबरी गुफा भी स्थित है।