Difference between revisions of "Vedon me agni (urja) sanrakshan(वेदों में अग्नि ( उर्जा ) संरक्षण)"

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search
(नया लेख बनाया)
 
(नया लेख बनाया)
Line 140: Line 140:
 
=== नाभिकीय ऊर्जा के खतरे ===
 
=== नाभिकीय ऊर्जा के खतरे ===
 
नाभिकीय रियेक्टर द्वारा नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न करते समय नाभिकीय विकिरण भी नियुक्त होते हैं जो मानव शरीर को बेध सकते हैं और कोशिकाओं को इतनी हानि पहुंचा सकते हैं, जिसकी चिकित्सा कर पाना संभव नहीं। इन भयंकर व घातक नाभिकीय विकिरणों के क्षरण से बचाव के लिए नाभिकीय रियेक्टरों को काफी मोटे विकिरण अवशोक्षी पदार्थों जैसे सीसा, के आवरण से ढका जाता है। परन्तु यदि रियेक्टकर की संरचना में कोई थोड़ी सी भी त्रुटि रह जाए अथवा किसी पूर्णतः सुरक्षित रियेक्टर के साथ कोई प्राकृतिक अनहोनी घटना घट जाए तो परिणामस्वरूप इस प्रकार के अत्यंत हानिकर विकिरण पर्यावरण में नियुक्त हो सकते हैं, जिसके कारण उस क्षेत्र के चारों और रहने वाले जीव जन्तुओं के लिए स्थायी खतरे की समस्या हो जाती है।
 
नाभिकीय रियेक्टर द्वारा नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न करते समय नाभिकीय विकिरण भी नियुक्त होते हैं जो मानव शरीर को बेध सकते हैं और कोशिकाओं को इतनी हानि पहुंचा सकते हैं, जिसकी चिकित्सा कर पाना संभव नहीं। इन भयंकर व घातक नाभिकीय विकिरणों के क्षरण से बचाव के लिए नाभिकीय रियेक्टरों को काफी मोटे विकिरण अवशोक्षी पदार्थों जैसे सीसा, के आवरण से ढका जाता है। परन्तु यदि रियेक्टकर की संरचना में कोई थोड़ी सी भी त्रुटि रह जाए अथवा किसी पूर्णतः सुरक्षित रियेक्टर के साथ कोई प्राकृतिक अनहोनी घटना घट जाए तो परिणामस्वरूप इस प्रकार के अत्यंत हानिकर विकिरण पर्यावरण में नियुक्त हो सकते हैं, जिसके कारण उस क्षेत्र के चारों और रहने वाले जीव जन्तुओं के लिए स्थायी खतरे की समस्या हो जाती है।
 +
 +
== वेदों में अग्नि (ऊर्जा) का महत्त्व और संरक्षण ==
 +
वैदिक चिंतन में अग्नि (ऊर्जा) को वेश्वानर कहा गया हे। वेश्वानर का तात्पर्य है-विश्व को कार्य में संलग्न रखने वाली शक्ति। इस वैश्वानर अग्नि (ऊर्जा) को सृष्टि के निर्माण में मुख्य कारक माना गया है। इस वैश्वानर अग्नि के संरक्षक के मध्यनजर ऋग्वेद को ऋषि मधुछन्दा कहते है-<blockquote>'''“ अग्निमीले पुरोहितम्‌"'''
 +
 +
'''(ऋग्वेद 1.11)'''</blockquote>अर्थात्‌ में अग्नि को चाहता हूँ। उसकी उपासना करता हूँ अग्नि के महत्व को प्रतिपादित करते हुए ऋग्वेद में कश्यप ऋषि कहते है-<blockquote>'''“ अग्निर्जागार तमृचः कामयन्तेऽग्निर्जागार तमु सामानि पान्ति।'''
 +
 +
'''अग्निर्जागार तमयं सोग आह तवाहमस्मि सायं न्योमाः।”'''
 +
 +
'''(ऋग्वेद 5.44.15)'''</blockquote>अर्थात्‌ अग्नि को जाग्रत रखने वाले को ऋचाएं चाहती है, उसे सामवेद का ज्ञान होता है। विद्या तथा सुख प्राप्त होते हैं। सोम उसे बंन्धुवत मानता हे। यहां पर ऋग्वेद ऋषि अग्नि (ऊर्जा) के सदुपयोग और संरक्षण की तरफ इंगित कर रहे है। जाग्रत रखने का तात्पर्य है यथावत तथा निरन्तर बढ़ाते हुए रखना। हमारे वैदिक चिंतन में अग्नि को तीन रूपों में माना गया हे-
 +
 +
* पार्थिव अग्नि
 +
 +
* अंतरिक्ष अग्नि
 +
 +
* द्योस्थानीय अग्नि
 +
 +
पृथ्वी पर जो अग्नि है उसे पार्थिव अग्नि कहा गया है। स्थानीय विद्युत अग्नि को अन्तरिक्ष तथा सौर अग्नि को द्यौस्थानीय अग्नि माना गया हे। इस तरह यह वैश्वानर अग्नि सर्वत्र व्याप्त है। संपूर्ण चराचर जगत इसी अग्नि से देदीप्यमान है।
 +
 +
अग्नि के महत्व को प्रतिपादित करते हुए ऋग्वेद का ऋषि अन्तरिक्ष अग्नि से प्रार्थथा करता है कि वह अन्तरिक्ष के उपद्रवों से हमारी रक्षा करे-<blockquote>'''“सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात्‌-'''
 +
 +
'''-अग्निर्नः पार्थिवेश्यः। ”'''
 +
 +
'''(ऋग्वेद 7.62.5)'''</blockquote>चित्र 10.1 सूर्य
 +
 +
 +
अर्थात्‌ सूर्य आकाशीय उपद्रवों से, वायु अंतरिक्ष के उपद्रवों से तथा अग्नि पृथ्वी के उपद्रवों से हमारी रक्षा करे। द्योस्थानीय अग्नि से अथर्ववेद का ऋषि रक्षा करने की प्रार्थना करता हे-
 +
 +
<blockquote>'''“सूर्य चक्षुषा मा पाहि"'''
 +
 +
'''( अथर्ववेद 2.16.3)'''</blockquote>अर्थात्‌ हे सूर्य! आप मुझ पर दुष्टिपात रखते हुए मेरी रक्षा कीजिए। आगे कहा गया है कि हे सूर्य अपनी जीवन शक्ति से हमें प्रदीप्त कीजिए-<blockquote>'''“सूर्यः यजेऽर्चिस्तेन तं प्रत्यर्च"'''
 +
 +
'''( अथर्ववेद 2.21.3)'''</blockquote>वेदों में अग्नि (ऊर्जा) को नष्ट करने तथा हानि पहुँचाने के लिए दण्ड का विधान किया गया है। अथर्ववेद में प्रार्थना की गई हे कि हे अग्नि! जो आपको हानि पहुँचाये उसे आप तपाओ और पीड़ित करो-<blockquote>'''“ अग्ने यते तपस्त्रेन तं प्रतितप”*'''
 +
 +
'''( अथर्ववेद 2.19.1)'''</blockquote>सौर ऊर्जा के महत्व को इंगित करते हुए ऋग्वेद के काण्व ऋषि कहते हे कि सूर्य से निरन्तर ऊर्जा मिलती रहती है-<blockquote>'''“ विद्युद्दस्ता अभिद्यणः”'''
 +
 +
'''(ऋग्वेद 8.7.5)'''</blockquote>अर्थात्‌ सूर्य को किरणें निखुत रूपी हाथों से निरन्तर सर्वत्र व्याप्त होती रहती है।
 +
 +
चित्र 10.2 सौर ऊर्जा
 +
 +
 +
इस सूर्य की ऊर्जा (सौर ऊर्जा) का वर्तमान में बहुत महत्व है अतः हमें सौर ऊर्जा की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से हमें सदुपयोग में लेना चाहिए।
 +
 +
ऋग्वेद के गृत्समद ऋषि कहते है कि निपुत सूर्य की किरणों से उत्पन्न होती है जो तत्काल जला डालने की शक्ति रखती है।<blockquote>'''“ त्वमग्ने युभिस्त्वमायुशुक्षणि”'''
 +
 +
'''(ऋग्वेद 2.1.1)'''</blockquote>वैदिक चिंतन में सौर ऊर्जा का महत्व इंगित कर दिया गया था जिसकी तरफ आज हमारा ध्यान जा रहा है। आज सौर ऊर्जा से बिजली (विद्युत) बनाये जाने का प्रयत्न किया जा रहा है।
 +
 +
 +
चित्र 10.3 सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन
 +
 +
ऋग्वेद में कहा गया है कि सूर्य को सोम बलवान बनाता है। सोम से ही यह पृथ्वी भी बलवान होती हे-<blockquote>'''“ सोमेनादिलो बलिनः सोमेन पृथिवी यही”'''
 +
 +
'''(ऋग्वेद 10.85.2)'''</blockquote>सोम का तात्पर्य प्रसङ्कानुसार कहीं पर चन्द्रमा, कहीं पर सोमलता तो सूर्य के संदर्भ में गैस (हाइड्रोजन, हीलियम) से है। पूर्वोत्तर ऋचा में कहा गया है कि सोम सूर्य को बलवान बनाता है। यहां पर सोम का तात्पर्य हाइड्रोजन हीलियम गैस से ग्रहण किया जा सकता है क्योंकि सूर्य से सोम ही ऊर्जा का संचार करती है। यजुर्वेद में कहा गया है कि जल के रस का रस सूर्य में स्थापित हे- <blockquote>'''“ अपां रसम्‌ उद्वयमं सन्त समाहितम्‌'''
 +
 +
'''अपां रसस्य यो रमः।”'''
 +
 +
'''(यजुर्वेद 9.3)'''</blockquote>यहां पर देखें तो जल का सूर्य है ( )। हाइड्रोजन तथा आक्सीजन की समुचित संयोजन क्रिया। उपरोक्त ऋचा की दृष्टि से देखें तो जल का रस हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन का रस हीलियम की ओर संकेत मात्र करते हैं। अथर्ववेद में कहा गया है कि जल में अग्नि और सोम दोनों तत्व मिल हुए हे-<blockquote>'''“ अग्नि षोमो बिभ्रति आप रतताः”'''
 +
 +
'''( अथर्ववेद 3.13.5)'''</blockquote>अग्नि का तात्पर्य यहां पर आक्सीजन हे तो सोम का तात्पर्य हाइड्रोजन हे। इस तरह दोनों का संयोजन अथर्ववेद में इंगित माना जा सकता हे।
 +
 +
यजुर्वेद में सूर्य की ऊर्जा का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा गया हे कि हे सूर्य तुम्हारी दी हुई ऊर्जा तथा उस ऊर्जा से उत्पन्न अन्नादि कर्मो की सिद्धि करने वाला है अतः आप हमें श्रेष्ठ कर्म में संयुक्त करें।

Revision as of 08:53, 29 December 2022

अग्नि (ऊर्जा) भी पञ्चमहाभूतों में एक महाभूत है। पूरे ब्रह्मण्ड में ऊर्जा के रूप में अग्नि ताप ही व्याप्त है। क्या आपने कभी महसूस किया है कि यदि आप किसी दिन खाना ना खायें तो कैसा लगता है? थके-थके से, कोई भी कार्य न करने की इच्छा, ऐसा ही तो लगता होगा। यदि गाड़ी में डीजल या पेट्रोल न डालें तो क्या वह चल सकती हे? नहीं। क्योंकि जब तक इंजन को ईधन नहीं मिलेगा, वह चल नहीं सकता। खाना भी हमारे लिए एक ईधन का कार्य करता है, जिससे हमें ताकत मिलती है। चाहे वह खाना हो या ईधन, ये सभी हमें अथवा इंजन आदि को ऐसी क्षमता प्रदान करते हैं, जिससे कार्य किया जा सकता है। किसी भी वस्तु के कार्य करने कली क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।

खेत में हल चलाने के लिए बैलों को, खेलने के लिए बच्चों को तथा कार चलाने के लिए इंजन को ऊर्जा की आवश्यकता होती हे। बहुत से ऐसे ही उदाहरण हैं, जिनमें देखने पर लगेगा कि कोई भी कार्य नहीं हो रहा हे, परन्तु उनमें भी ऊर्जा का उपयोग हो रहा होता है, जैसे कि जलते हुए बल्ब में या बहते हुए जल में, परन्तु इनमें भी ऊर्जा है।

ऊर्जा हमारे दैनिक जीवन की एक ऐसी आवश्यकता बन गई है कि इसके बिना लगता है कि सब कुछ रुक ही जाएगा। ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं तथा ऊर्जा भिन्न-भिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।

थकान तथा ऊर्जा

जैसा कि आपने पढ़ा “बिना ऊर्जा के कोई भी कार्य संभव नहीं है'। आपने भी अनेकों बार ऐसी बात कही होगी, जिसका अर्थ भी वही है जो कि ऊपर बताया गया है। उदाहरण के लिए-लम्बी दूरी तक दौड़ने के बाद आपने कहा होगा कि मैं थक गया, अब नहीं दौड़ सकता'। इसी प्रकार, आपने घण्टों तक खेलने के बाद जब खेलना बन्द किया होगा तो कहा होगा कि, “अब, में ज्यादा नहीं खेल सकता, मैं थकान महसूस कर रहा हूँ"। यह थकान क्या होती है? आपको कैसे पता चलता हे कि आप थक गये हैं? जब आप बहुत अधिक कार्य करते हैं अथवा बहुत अधिक समय तक कार्य करते रहते हैं तो आपको थकान क्यों होने लगती हे?

थकान का मतलब है वह अवस्था जिसके बाद आप और अधिक कार्य करने की स्थिति में न हों। इसका मतलब है आपकी सम्पूर्ण ऊर्जा कार्य करने में व्यय हो चुकी है। अतः थकान आपकी शारीरिक ऊर्जा के ऊपर निर्भर करती है। कमजोर आदमी थोड़ा सा ही कठिन कार्य करने के बाद थकान महसूस करता है। एक शक्तिशाली आदमी तो भारी वजन को काफी दूर तक ले जा सकता है, परन्तु एक कमजोर आदमी उतने ही वजन को मुश्किल से आधी ही दूरी तक ले जा सकेगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि कमजोर आदमी में वजन को अधिक दूर तक ले जाने की क्षमता नहीं हे।

चित्र 9.1 (क) हाकी खेलने में ऊर्जा का व्यय होना, (ख) काम करते हुए


उपरोक्त उदाहरण की व्याख्या के लिए हम प्रायः दो शब्द प्रयोग करते हैं-कार्य और ऊर्जा। हम कहेंगे कि वजन ले जाना एक कार्य है तथा किए गए कार्य की मात्रा उसके शरीर की ताकत अथवा ऊर्जा पर निर्भर करेगी तथा जब इसके शरीर की सम्पूर्ण ऊर्जा व्यय हो जाती है तो वह थकान महसूस करता है। इस तरह हम, ऊर्जा को कार्य करने की क्षमता के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। इसका मतलब है कि ऊर्जा व कार्य में परस्पर घनिष्ट संबंध हैं।

ऊर्जा का मात्रक

यदि एक न्यूटन बल लगाने से किसी वस्तु को एक मीटर दूरी तक विस्थापित किया जाता है तो ऐसा करने में जितनी ऊर्जा खर्च होती है वह एक जूल ऊर्जा होती है। अतः ऊर्जा का मात्रक जूल होता है।

ऊर्जा के रूप

ऊर्जा के अनेक रूप होते हैं। और एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे प्रकार की ऊर्जा में परिवर्तित भी की जा सकती हे। ऊर्जा के विभिन्न रूप निम्न प्रकार के हैं:

यांत्रिक ऊर्जा

किसी वस्तु में उसकी अवस्था अथवा गति के कारण मौजूद ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं, जैसे कि चाबी भरी हुई घड़ी की कुंडली में यांत्रिक ऊर्जा होती है। इसी तरह बहते हुए पानी में या चलती हुई कार में भी यांत्रिक ऊर्जा होती है |

रासायनिक ऊर्जा

जैसा कि आप जानते हैं, सभी पदार्थ अणुओं से मिलकर बने होते हैं। जब अलग-अलग पदार्थो के अणु आपस में मिलते हैं तो यौगिक बनते हैं। इन अणुओं और यौगिकों में कुछ ऊर्जा छिपी होती है। जब कोई रासायनिक परिवर्तन होता हे तो यह छिपी हुई ऊर्जा, जिसे रासायनिक ऊर्जा कहते हें, कई रूपों में उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए माचिस की तीली को जलाने से पहले इसमें रासायनिक ऊर्जा होती है, परन्तु जलने के बाद यह ऊष्णीय तथा प्रकाश ऊर्जा में बदल जाती हे।

ध्वनि ऊर्जा

ध्वनि, ऊर्जा का एक और रूप है। यह देख पाना मुश्किल होगा कि ध्वनि से किसी वस्तु में गति हो सकती है, परन्तु आप यह तो जानते हैं कि जब ध्वनि तरंगें हमारे कान के पर्दे पर कम्पन्न पैदा करती हैं तभी हम सुन पाते हैं। जब तेज ध्वनि के साथ कोई बड़ा धमाका होता हे तो आपने देखा होगा कि घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ खड्खडाने लगती हैं। चूंकि ध्वनि से खिड़की और दरवाजे खड़खडा सकते हैं, इसलिए यह भी ऊर्जा का एक रूप हे।

ऊष्णीय ऊर्जा

क्या आपने कभी घर पर चाय बनाई है अथवा आपने अपनी माँ अथवा बड़ी बहन को कभी चाय बनाते देखा हे? जब स्टील के बर्तन में पानी उबलने लगता है तो आपने देखा होगा कि इसके ऊपर रखा ढक्कन भाप के कारण ऊपर की तरफ उठने लगता है। सामान्य ताप पर पानी ढक्कन को ऊपर नहीं उठा सकता परन्तु जब इसको उबलने तक गर्म करते हैं तो यह गर्म वाष्प यानी भाप बन जाता है और अब इसमें ऊष्मीय ऊर्जा होती है तथा यह ढक्‍्कन को उठा सकता है। अतः ऊष्मा ऊर्जा का एक रूप है।

प्रकाशीय ऊर्जा

चूंकि प्रकाश, ऊर्जा का कमजोर रूप है इसलिए यह भारी वस्तुओं में गति नहीं पैदा कर पाता। हालांकि, यह फोयेग्राफिक फिल्म को प्रभावित कर सकता हे। यह हल्के धूल के कणों में विस्थापन उत्पन्न कर सकता है। बल्ब या ट्यूब लाइट से निकलने वाला उजाला, प्रकाशीय ऊर्जा ही तो है। चोर-घंटी एक ऐसा य॒त्र है, जो कि प्रकाशीय ऊर्जा पर कार्य करता हे। प्रकाश ऊर्जा एक प्रकाशिक सैल (फोटो सैल) पर आपतित होती हे तथा घंटी बजने लगती है। जब कोई चोर घर में घुसता है तो यह फोटो सेल पर आयतित प्रकाश को रोक लेता है और घंटी बजने लगती हे।

विद्युत ऊर्जा

जैसा कि आप सभी जानते हैं, विद्युत ऊर्जा हमारे दैनिक जीवन में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली ऊर्जा का एक रूप है।

चित्र 9.3 विद्युत ऊर्जा के उपयोग (क) बल्ब (ख) पंखा (ग) कम्पयूटर

हम बल्ब का स्विच चालू करते हैं तथा बल्ब में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण प्रकाश उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार पंखा चलाने, ट्यूब वैल चलाने, वातानुकूलन, फ्रिज, मिक्सी तथा अनेकों अन्य घरेलू उपकरणों में विद्युत ऊर्जा का उपयोग किया जाता है।

चुम्बकीय ऊर्जा

आप सभी जानते हैं कि चुम्बक लोहे की छीलन या आलपिनों को अपनी तरफ खींच (आकर्षित) सकती है। अनेक कारखानों में कुडे-करकट के ढेर से लोहे को अलग करने के लिए क्रेनें मिलेंगी। इनमें बहुत बडे विद्युत-चुम्बकों का उपयोग किया जाता है।


चित्र 9.4 चुम्बकीय ऊर्जा

ऊर्जा रूपांतरण

विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं का एक दूसरे में रूपांतरण किया जा सकता है, उदाहरण के लिए ताप बिजली घर में कोयले की रासायनिक ऊर्जा का पहले गर्म भाप की ऊष्णीय ऊर्जा में रूपांतरण होता हे, उसके बाद वह टरबाईन की यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है। जनित्र द्वारा इस ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण हो जाता है, जो विद्युत तारों में प्रवाहित होकर विभिन्न ; स्थानों-घरों, फैक्टरियों आदि में पहुंचती है, जहां यह पुनः ऊष्मा, प्रकाश, ध्वनि अथवा यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती हेै।

ऊर्जा के स्रोत्र

वह हर वस्तु, जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती ऊर्जा का स्रोत कहलाती है। वेसे, ऊर्जा के कई प्रकार के स्रोत होते हैं, जिनमें से प्रमुख स्रोत नीचे दिए गए हैं।

ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत

अभी तक कोयला, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस तथा डीजल ऊर्जा के प्रमुख स्रोत रहे हैं। ये ऊर्जा स्रोत सीमित मात्रा में हैं और समाप्त होने योग्य हैं। इनका उपयोग बार-बार नहीं किया जा सकता। अतः इन्हें अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहा जाता है। यदि हम अपनी वर्तमान ऊर्जा की आवश्यकता तथा भविष्य में होने वाले तीव्र विकास की ओर देखें, तो ऐसा अनुमान है कि हमारे तेल तथा प्राकृतिक गैस के भण्डार आगामी कुछ वर्षो में समाप्त हो जाएंगे। कोयले के भण्डार भी अधिक नहीं चल पाएंगे। अतः हमें अपने ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोतों का न्यायसंगत उपयोग करना चाहिए और यथासंभव ऊर्जा के दुरुपयोग से बचना चाहिए।

अवशेष (जीवाश्मी) ईधन

ऊर्जा के स्रोत कई रूपों में पाए जाते हैं। अवशेष ईधन सबसे अधिक प्रचिलित स्रोत हैं, जैसे कि कोयला, लकडी, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल तथा प्राकृतिक गैस।

पेड़-पौधों के जमीन में दब जाने के हजारों वर्ष बाद कोयला बन जाता हेै। कोयले की खानों के रूप में पाये जाने वाले कोयले का सीमित भण्डार है। एक ऐसा समय भी आयेगा जबकि सम्पूर्ण कोयला इस्तेमाल कर लिया जायेगा और हमें ऊर्जा के अन्य स्रोतों को खोजना पडेगा। कोयले में रासायनिक ऊर्जा होती है। जब कोयला जलता हे तो यह रासायनिक ऊर्जा ऊष्मा में परिवर्तित हो जाती है। ताप विद्युत ग्रहों में विद्युत उत्पन्न करने के लिए भी कोयले को उपयोग किया जाता है। पेड़ों से प्राप्त लकड़ी को भी कोयले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जब लकड़ी जलती हे तो रासायनिक ऊर्जा ऊष्मा तथा प्रकाश में परिवर्तित हो जाती हे। इस स्रोत के लिए पेड़ों की कटाई करनी होती हे। इसलिए प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिए प्रतिदिन बहुत बड़ी संख्या में पेड लगाने की आवश्यकता होती हे।

इसके अलावा पेट्रोल और डीजल का उपयोग कार, स्कूटर, ट्रक, हवाई जहाज तथा अन्य वाहनों में किया जाता है। केरोसिन (मिट्टी का तेल) का उपयोग प्रकाश प्राप्त करने के लिए लैम्पों में तथा ऊष्मीय ऊर्जा के लिए स्टोव में किया जाता है। प्राकृतिक गैस का उपयोग खाना पकाने के गैस स्टोव में किया जाता हेै। पैट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल तथा प्राझृतिक गैस पेट्रोलियम से प्राप्त किए जाते हैं जो कि पृथ्वी के अंदर बहुत अधिक गहराई में पाया जाता है। यह हजारों वर्ष तक समुद्री पेड-पौधों तथा प्राणियों के जमीन में दब जाने के फलस्वरूप बनता हे। इनमें रासायनिक ऊर्जा होती है, जो कि जलने पर ऊष्मीय तथा प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। परंतु पैट्रोलियम का एक सीमित भण्डार है और इसके एक बार खत्म हो जाने पर नए सिरे से पैट्रोलियम बनने के लिए हजारों वर्ष लगेंगे।

ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत

जल, वायु, सूर्य का प्रकाश तथा बायोमास आदि ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत कहलाते हैं। इसका कारण यह है कि इन्हें बार-बार उपयोग में लाया जा सकता है। साथ ही ये पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, निशुल्क हैं और पर्यावरण को प्रदूषित भी नहीं करते। अतः ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं कि इनमें उपलब्ध होने वाली ऊर्जा का अधिकाधिक उपयोग किया जाए। ऊर्जा के प्रमुख नवीकरणीय स्रोतों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है।

भोजन ऊर्जा

सभी प्राणियों को ऊर्जा उनके द्वारा खाए गये भोजन से मिलती हे। मनुष्य सहित सभी प्राणियों के लिए पेड़-पौधे (वनस्पतियों) भोजन के प्रमुख स्रोत हें। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण की विधि द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं तथा पौधों में भोजन रासायनिक ऊर्जा के रूप में निहित रहता है।

सौर ऊर्जा

सूर्य हमें अरबों वर्षों से निर्बाध रूप में ऊष्मा व प्रकाश प्रदार करता रहा है और आशा की जाती है कि यह आगामी अरबों वर्षो तक उसी प्रकार हमें ऊर्जा प्रदान करता रहेगा। सभी पौधे अपनी ऊर्जा सूर्य से प्राप्त करते हैं और जंतु अपनी ऊर्जा मुख्यतः पौधों से प्राप्त करते हैं। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जन्तुओं की ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है। यहां तक कि मक्खन, दूध व अण्डों में संचित ऊर्जा भी सूर्य से आती है। ऐसा हम क्यों कहते हैं? वास्तव में सभी सजीवों के लिए ऊर्जा का अंतिम स्रोत सूर्य ही है। सौर ऊर्जा के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हे।

पवन ऊर्जा

आपने फिरकी को घूमते हुए देखा होगा। इसे पवन-चक्र कहते हैं। क्या होता है जब आप किसी फिरकी की पंखुडियों पर फूंक मारते हैं? यह घूमने लगती है। अतः पवन, ऊर्जा प्रदान करती है। पवन ऊर्जा निशुल्क मिलती हे। स्वच्छ होती है और पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती तथा विश्वसनीय होती है।


चित्र 9.6 पवन चक्की


हमारे देश के बहुत से क्षेत्रों में जहां वर्ष के अधिकांश दिनों में तेज हवाएं चलती हैं, वहाँ कुओं से पानी निकालने तथा विद्युत उत्पन्न करने के लिए पवन-चक्रों का उपयोग किया जाता है। पवन चक्रों को घुमाने में पवन-ऊर्जा का उपयोग होता हे।

जल से प्राप्त ऊर्जा

बहती वायु (पवन) की ही भांति बहता जल भी ऊर्जा का स्रोत होता है। यह भी निशुल्क होता है व पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करता। बहते जल की ऊर्जा का उपयोग लकडी के बड़े-बड़े भारी लढट्ठों व पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में होता है। जल विद्युत संयंत्रों (पन बिजली घरो) में बहते जल की ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने में होता है। बहता हुआ जल किसी टरबाइन के पहिए को घुमाता है, जो विद्युत उत्पन्न करने में सहायक होता है।

बायोमास से ऊर्जा

बायोमास से तात्पर्य है सजीव वस्तुओं के मृत भाग व अपशिष्ट पदार्थ। इसमें कझूडा-करकट, औद्योगिक अपशिष्ट, फसलों के अपशिष्ट व मल सम्मिलित है

हम बायोमास का उपयोग ऊर्जा स्रोत के रूप में दो ढंगों से कर सकते है-

  • ऊष्मा व भाप उत्पन्न करने में शुष्क बायोमास को सीधे ही जलाकर।
  • वायु की अनुपस्थिति में बायोमास के अपघटन द्वारा बायो गैस बनाकर। द्रव पैट्रोलियम गैस की भांति इस गैस का उपयोग खाना बनाने एवं प्रकाश करने में किया जा सकता है।

बायोमास संयंत्र में बायोमास के शेष बचे भाग का उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता है।


हमारे देश तथा समस्त विश्व में तेल की खोज के वृहत कार्यक्रम चलाने पर भी पिछले वर्षो में बहुत थोड़ी संख्या में बड़े तेल क्षेत्रों का पता चल पाया हे। इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में हमारी तेल तथा गैस की मांग निश्चित रूप से उपलब्ध आपूर्ति से अधिक हो जाएगी। इस प्रकार की स्थिति को ऊर्जा संकट कहते हैं। ऊर्जा संकट के समय ऊर्जा की अधिक मांग व सीमित आपूर्ति होती है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि जीवाश्मी ईधन सीमित मात्रा में हैं, अतः ऊर्जा स्रोतों का संरक्षण करने के लिए हमें इनका यथासंभव कम उपयोग करना चाहिए। हम सभी को ऊर्जा बचाने क लिए गंभीरतापूर्वक प्रसाय करने चाहिए। इसके लिए हम अपने घर से ही प्रारंभ कर सकते है।

  • जब आवश्यकता न हो, तो हम बल्बों को बुझा सकते हैं तथा पंखों व अन्य विद्युत साधनों के स्विच 'बंद' कर सकते हैं।
  • पानी कौ टोटियों को खुला न छोडें क्योंकि पानी पहुंचाने में भी ऊर्जा व्यय होती है।
  • दाल, चावल आदि पकाते समय बर्तन को ढक्कर रखें तथा इन्हें पकाने के लिए आवश्यकता से अधिक पानी का उपयोग न करें।
  • दालों को आग पर चढाने से पूर्व थोड़ी देर तक पानी में भिगो लें।

ये कुछ ऐसी आदते हैं, जिन्हें अपनाकर हम बहुत सी ऊर्जा की बचत कर सकते हैं। घर से बाहर, यदि हमें कहीं थोड़ी दूर ही जाना है, तो पैदल चलकर जा सकते हैं अथवा साईकिल द्वारा जा सकते हैं और वाहन द्वारा न जाकर ऊर्जा की बचत कर सकते हैं। ईधन बचाने के लिए आप निजी वाहन का उपयोग न कर सार्वजनिक वाहनों द्वारा यात्रा कर सकते हैं।

ऊर्जा बचाने का एक और उपाय यह भी हे कि हम अधिक दक्षता वाली प्रयुक्तियों का उपयोग करें। उदाहरण के लिए बल्ब की अपेक्षा उसी शक्ति दर वाली प्रतिदीप्ति नलिकाएं (ट्यूब लाइट) कहीं अधिक प्रकाश देती हैं। अच्छे चूल्हों/स्टोवों में ईधन अधिक दक्षतापूर्वक जलता है और वे ऊर्जा के प्रति एकांक परिणाम के लिए अपेक्षाकृत अधिक ऊष्मा देते हैं। ऊर्जा के अधिक दक्ष वाहनों का उपयोग किया जाना चाहिए तथा उनके इंजनों की उचित देखभाल की जानी चाहिए।

ऊर्जा संरक्षण

हम हर क्षण ऊर्जा का उपयोग करते हैं। हम भोजन खाते हैं और भोजन में संचित ऊर्जा का उपयोग अपने कार्य करने और शरीर का ताप बनाए रखने में करते हैं। जब कार्य होता है, तो ऊर्जा एक रूप से दूसरी रूप में रूपांतरित होती है। प्रत्येक भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक परिवर्तन की अवधि में ऊर्जा एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित होती है। परन्तु इन सभी ऊर्जा-रूपांतरणों के समय ऊर्जा का कुल परिमाण अपरिवर्तित रहता है। ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है, और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है। इसका केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, और निकाय की सभी ऊर्जाओं का कुल योग नियत रहता है।

परमाणु से उर्जा

जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है कि रासायनिक ऊर्जा किसी ऐसे रासायनिक रूपांतरण के प्रकार से संबंधित होती है, जिसमें अभिकर्मकों का प्रत्येक परमाणु अपने पहचान बनाए रखता हे तथा उसके व्यवहार व प्रकृति में कोई परिवर्तन नहीं होता। परन्तु कुछ ऐसे ऊर्जा रूपांतरण प्रक्रम भी होते हैं, जिनमें कुछ परमाणुओं के नाभिक आअपरिवर्तित नहीं रहते। इस प्रकार के ऊर्जा-रूपांतरण प्रक्रमों में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है। चूंकि इन प्रक्रमों में परमाणुओं के नाभिक भाग लेते हैं, अतः प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है।

नाभिकीय ऊर्जा

किसी परमाणु के नाभिक में संचित ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती हे। परमाणु के नाभिक में संचित इस ऊर्जा को किसी भारी नाभिक जेसे युरेनियम की अपेक्षा दो हल्के नाभिकों में तोड़कर (विखण्डित करके) मुक्त कराया जा सकता है।

किसी परमाणु के नाभिक का लगभग दो बराबर द्रव्यमान वाले खण्डों में इस प्रकार टूटना, जिसमें ऊर्जा मुक्‍त होती है, नाभिकोय विखण्डन (NuUc]९ar Fission) कहलाता है।

जब कोई स्वतंत्र न्यूट्रान किसी युरेनियम नाभिक से सही चाल से टकराता है, तो वह उसमें अवशोषित हो जाता है। न्यूट्रान का अवशोषण करने के पश्चात्‌ यूरेनियम नाभिक अत्यन्त अस्थायी हो जाता है और छोटे परमाणु के नाभिक में टुट जाता है तथा इस प्रक्रिया में अत्यधिक परिमाण की ऊर्जा मुक्‍त होती है। इस प्रक्रिया में कुछ न्यूट्रान भी मुक्त होते हैं। ये न्यूट्रान अन्य यूरेनियम नाभिकों को विखण्डित करते हैं। यह क्रम चलने से तेजी से ऊर्जा मुक्‍त होती है और इसे श्रृंखला अभिक्रिया ((hain 7९ation) कहते हैं। इस अभिक्रिया में अत्यधिक उच्च परिमाण में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिसको कई तरह से उपयोग में लाया जाता है।

विद्युत धारा उत्पन्न करने के लिए विखण्डन अभिक्रिया में निकले न्यूट्रान कैडमियम की बनी नियंत्रित छड़ों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया नाभिकीय रिएक्टरों में नियंत्रित व नियमित रूप से उत्पन्न की जाती हैं। नाभिकीय रिएक्टरों में इकट्ठी ऊर्जा का उपयोग पानी को गर्म करके भाप बनाने में होता है और यह भाप जनित्र को चलाती है, जिससे विद्युत उत्पन्न होती है। हमारे देश को नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में सूदृढ करने और आगे ले जाने में होमी जहाँगीर भाभा और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे महान वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा हाथ है। हमारे देश में नाभिकीय रिएकटरों का उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए नरौरा, तारापुर, कल्पक्कम व कोटा में किया जा रहा है।

नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग

नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग निम्नलिखित हैं :

  • नाभिकीय रियेक्टर में उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग पानी को गर्म करके भाप बनाने में होता है जो टरबाइन को घुमाती हे जिसके कारण विद्युत जनित्र कार्य करने लगता है और विद्युत उत्पन्न होती हे।
  • आजकल नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग पनडुब्बियों व जलयानों को चलाने में किया जा रहा है। नाभिकीय ऊर्जा से चलने वाले जलयान व पनडुब्बियां अत्यधिक दूरी तक दूसरी बार ईधन भराए बिना चलाई जा सकती हेै।
  • बमों (परमाणु बम व हाइड्रोजन बम) को नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग देश की रक्षा में किया जाता हे।
  • नाभिकीय ऊर्जा द्वारा रेडियों समस्थानिक बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग कृषि, अनुसंधान व अस्पतालों में होता है।

नाभिकीय ऊर्जा के खतरे

नाभिकीय रियेक्टर द्वारा नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न करते समय नाभिकीय विकिरण भी नियुक्त होते हैं जो मानव शरीर को बेध सकते हैं और कोशिकाओं को इतनी हानि पहुंचा सकते हैं, जिसकी चिकित्सा कर पाना संभव नहीं। इन भयंकर व घातक नाभिकीय विकिरणों के क्षरण से बचाव के लिए नाभिकीय रियेक्टरों को काफी मोटे विकिरण अवशोक्षी पदार्थों जैसे सीसा, के आवरण से ढका जाता है। परन्तु यदि रियेक्टकर की संरचना में कोई थोड़ी सी भी त्रुटि रह जाए अथवा किसी पूर्णतः सुरक्षित रियेक्टर के साथ कोई प्राकृतिक अनहोनी घटना घट जाए तो परिणामस्वरूप इस प्रकार के अत्यंत हानिकर विकिरण पर्यावरण में नियुक्त हो सकते हैं, जिसके कारण उस क्षेत्र के चारों और रहने वाले जीव जन्तुओं के लिए स्थायी खतरे की समस्या हो जाती है।

वेदों में अग्नि (ऊर्जा) का महत्त्व और संरक्षण

वैदिक चिंतन में अग्नि (ऊर्जा) को वेश्वानर कहा गया हे। वेश्वानर का तात्पर्य है-विश्व को कार्य में संलग्न रखने वाली शक्ति। इस वैश्वानर अग्नि (ऊर्जा) को सृष्टि के निर्माण में मुख्य कारक माना गया है। इस वैश्वानर अग्नि के संरक्षक के मध्यनजर ऋग्वेद को ऋषि मधुछन्दा कहते है-

“ अग्निमीले पुरोहितम्‌" (ऋग्वेद 1.11)

अर्थात्‌ में अग्नि को चाहता हूँ। उसकी उपासना करता हूँ अग्नि के महत्व को प्रतिपादित करते हुए ऋग्वेद में कश्यप ऋषि कहते है-

“ अग्निर्जागार तमृचः कामयन्तेऽग्निर्जागार तमु सामानि पान्ति।

अग्निर्जागार तमयं सोग आह तवाहमस्मि सायं न्योमाः।”

(ऋग्वेद 5.44.15)

अर्थात्‌ अग्नि को जाग्रत रखने वाले को ऋचाएं चाहती है, उसे सामवेद का ज्ञान होता है। विद्या तथा सुख प्राप्त होते हैं। सोम उसे बंन्धुवत मानता हे। यहां पर ऋग्वेद ऋषि अग्नि (ऊर्जा) के सदुपयोग और संरक्षण की तरफ इंगित कर रहे है। जाग्रत रखने का तात्पर्य है यथावत तथा निरन्तर बढ़ाते हुए रखना। हमारे वैदिक चिंतन में अग्नि को तीन रूपों में माना गया हे-

  • पार्थिव अग्नि
  • अंतरिक्ष अग्नि
  • द्योस्थानीय अग्नि

पृथ्वी पर जो अग्नि है उसे पार्थिव अग्नि कहा गया है। स्थानीय विद्युत अग्नि को अन्तरिक्ष तथा सौर अग्नि को द्यौस्थानीय अग्नि माना गया हे। इस तरह यह वैश्वानर अग्नि सर्वत्र व्याप्त है। संपूर्ण चराचर जगत इसी अग्नि से देदीप्यमान है।

अग्नि के महत्व को प्रतिपादित करते हुए ऋग्वेद का ऋषि अन्तरिक्ष अग्नि से प्रार्थथा करता है कि वह अन्तरिक्ष के उपद्रवों से हमारी रक्षा करे-

“सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात्‌-

-अग्निर्नः पार्थिवेश्यः। ”

(ऋग्वेद 7.62.5)

चित्र 10.1 सूर्य


अर्थात्‌ सूर्य आकाशीय उपद्रवों से, वायु अंतरिक्ष के उपद्रवों से तथा अग्नि पृथ्वी के उपद्रवों से हमारी रक्षा करे। द्योस्थानीय अग्नि से अथर्ववेद का ऋषि रक्षा करने की प्रार्थना करता हे-

“सूर्य चक्षुषा मा पाहि" ( अथर्ववेद 2.16.3)

अर्थात्‌ हे सूर्य! आप मुझ पर दुष्टिपात रखते हुए मेरी रक्षा कीजिए। आगे कहा गया है कि हे सूर्य अपनी जीवन शक्ति से हमें प्रदीप्त कीजिए-

“सूर्यः यजेऽर्चिस्तेन तं प्रत्यर्च" ( अथर्ववेद 2.21.3)

वेदों में अग्नि (ऊर्जा) को नष्ट करने तथा हानि पहुँचाने के लिए दण्ड का विधान किया गया है। अथर्ववेद में प्रार्थना की गई हे कि हे अग्नि! जो आपको हानि पहुँचाये उसे आप तपाओ और पीड़ित करो-

“ अग्ने यते तपस्त्रेन तं प्रतितप”* ( अथर्ववेद 2.19.1)

सौर ऊर्जा के महत्व को इंगित करते हुए ऋग्वेद के काण्व ऋषि कहते हे कि सूर्य से निरन्तर ऊर्जा मिलती रहती है-

“ विद्युद्दस्ता अभिद्यणः” (ऋग्वेद 8.7.5)

अर्थात्‌ सूर्य को किरणें निखुत रूपी हाथों से निरन्तर सर्वत्र व्याप्त होती रहती है।

चित्र 10.2 सौर ऊर्जा


इस सूर्य की ऊर्जा (सौर ऊर्जा) का वर्तमान में बहुत महत्व है अतः हमें सौर ऊर्जा की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा से हमें सदुपयोग में लेना चाहिए।

ऋग्वेद के गृत्समद ऋषि कहते है कि निपुत सूर्य की किरणों से उत्पन्न होती है जो तत्काल जला डालने की शक्ति रखती है।

“ त्वमग्ने युभिस्त्वमायुशुक्षणि” (ऋग्वेद 2.1.1)

वैदिक चिंतन में सौर ऊर्जा का महत्व इंगित कर दिया गया था जिसकी तरफ आज हमारा ध्यान जा रहा है। आज सौर ऊर्जा से बिजली (विद्युत) बनाये जाने का प्रयत्न किया जा रहा है।


चित्र 10.3 सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन

ऋग्वेद में कहा गया है कि सूर्य को सोम बलवान बनाता है। सोम से ही यह पृथ्वी भी बलवान होती हे-

“ सोमेनादिलो बलिनः सोमेन पृथिवी यही” (ऋग्वेद 10.85.2)

सोम का तात्पर्य प्रसङ्कानुसार कहीं पर चन्द्रमा, कहीं पर सोमलता तो सूर्य के संदर्भ में गैस (हाइड्रोजन, हीलियम) से है। पूर्वोत्तर ऋचा में कहा गया है कि सोम सूर्य को बलवान बनाता है। यहां पर सोम का तात्पर्य हाइड्रोजन हीलियम गैस से ग्रहण किया जा सकता है क्योंकि सूर्य से सोम ही ऊर्जा का संचार करती है। यजुर्वेद में कहा गया है कि जल के रस का रस सूर्य में स्थापित हे-

“ अपां रसम्‌ उद्वयमं सन्त समाहितम्‌

अपां रसस्य यो रमः।”

(यजुर्वेद 9.3)

यहां पर देखें तो जल का सूर्य है ( )। हाइड्रोजन तथा आक्सीजन की समुचित संयोजन क्रिया। उपरोक्त ऋचा की दृष्टि से देखें तो जल का रस हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन का रस हीलियम की ओर संकेत मात्र करते हैं। अथर्ववेद में कहा गया है कि जल में अग्नि और सोम दोनों तत्व मिल हुए हे-

“ अग्नि षोमो बिभ्रति आप रतताः” ( अथर्ववेद 3.13.5)

अग्नि का तात्पर्य यहां पर आक्सीजन हे तो सोम का तात्पर्य हाइड्रोजन हे। इस तरह दोनों का संयोजन अथर्ववेद में इंगित माना जा सकता हे।

यजुर्वेद में सूर्य की ऊर्जा का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा गया हे कि हे सूर्य तुम्हारी दी हुई ऊर्जा तथा उस ऊर्जा से उत्पन्न अन्नादि कर्मो की सिद्धि करने वाला है अतः आप हमें श्रेष्ठ कर्म में संयुक्त करें।