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| == रचनाकार॥ Author == | | == रचनाकार॥ Author == |
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| + | प्राचीन भारतीय परम्परा में प्राय: आचार्यों ने अपनी अहंता बुद्धि को सदा ही पृष्ठ में रखा है। यही कारण है बहुत सारे शास्त्रीय ग्रन्थों में प्रणेताओं का परिचय नहीं मिलता है। यद्यपि महात्मा लगध ने स्वयं का कोई परिचय नहीं दिया है तथापि ऋक्ज्योतिष के द्वितीय श्लोक में उनका कुछ परिचय प्राप्त होता है- |
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| + | प्रणम्य शिरसा ज्ञानम् अभिवाद्य सरस्वतीम्। कालज्ञानं प्रवक्ष्यामि लगधस्य महात्मनः॥(ऋक्ज्योतिषम्, श्लोक 2) |
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| + | अर्थात् सरस्वती देवी का अभिवादन करके और सिर झुकाकर प्रणाम करते हुये महात्मा लगध के (द्वारा उपस्थापित) काल-ज्ञान को कहूंगा। |
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| + | लगध आचार्य के सन्दर्भ में यह ज्ञात होता है कि उन्होंने वेदांगज्योतिष की रचना की थी, जिसका रचनाकाल अनुमानतः ईसा पूर्व १४०० ई० प्राप्त होता है। रचनाकाल के संबंध में शंकर बालकृष्ण दीक्षित जी के भारतीय ज्योतिषशास्त्रा चा प्राचीन आणी अर्वाचीन इतिहास' नामक मराठी भाषा में लिखे गये इतिहास का अवलोकन करने पर ग्रन्थानुसार विभिन्न इतिहासकारों में मत भिन्नता भी देखने को मिलती है, जो कि नीचे दी गई सारणी का अवलोकन करने पर स्पष्ट हो जाती है - |
| + | {| class="wikitable" |
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| + | !इतिहासकार |
| + | !निर्धारितकाल |
| + | |- |
| + | |कोल ब्रुक |
| + | |ईसा पूर्व १४१० |
| + | |- |
| + | |प्रो०ह्विटनी |
| + | |ईसा प् |
| + | |- |
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| + | |} |
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| + | लगध मुनि सम्बन्धी एक मात्र परिचयात्मक इस श्लोक से यह पता चलता है कि यद्यपि महात्मा लगध ज्योतिष शास्त्र के आचार्य रहे हैं तथापि वेदाङ्ग-ज्योतिष के रचयिता वह स्वयं नहीं अपितु उनका कोई शिष्य है। तथा सम्भवतः लगध के ही प्रतिपादित सूत्रों का संकलन ऋक्ज्योतिष, याजुष ज्योतिष एवं अथर्व ज्योतिष इत्यादि नाम से उनके शिष्यों ने किया। इसके अतिरिक्त लगध मुनि के विषय में अन्य कोई प्रामाणिक सूचना नहीं मिलती है क्यूंकि संस्कृत वाङ्मय में इस नाम के किसी आचार्य का अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता है। पाश्चात्य विद्वान ‘लगध' को ‘लगड़’ या ‘लाट’ कहते हैं, जिससे उनका समय पांचवी शताब्दी के आस-पास आता है जो कि सर्वथा निराधार है। इसका कारण ग्रन्थोक्त उत्तरायण-बिन्दु की स्थिति है जो खगोलीय गणना के आधार पर लगध का काल १४००-१५०० ईसा पूर्व निश्चित करता है। |
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| == वेदाङ्गज्योतिष की परिभाषा॥ Definition of Vedanga Jyotisha == | | == वेदाङ्गज्योतिष की परिभाषा॥ Definition of Vedanga Jyotisha == |
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| # '''मास॥''' '''month-''' ऋतु से ठीक छोटा कालमान मास है। पञ्च वर्षीय युग के प्रारम्भ में माघ मास तथा समाप्ति पर पौष मास का निर्देश वेदाङ्गज्योतिष में किया गया है। मासों की संख्या बारह है- माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष तथा पौष। | | # '''मास॥''' '''month-''' ऋतु से ठीक छोटा कालमान मास है। पञ्च वर्षीय युग के प्रारम्भ में माघ मास तथा समाप्ति पर पौष मास का निर्देश वेदाङ्गज्योतिष में किया गया है। मासों की संख्या बारह है- माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष तथा पौष। |
| # '''पक्ष ॥ Paksha-''' एक मास में दो पक्ष होते हैं। शुक्लपक्ष एवं कृष्ण पक्ष। प्रत्येक पक्ष पन्द्रह दिनों(तिथियों) का होता है। | | # '''पक्ष ॥ Paksha-''' एक मास में दो पक्ष होते हैं। शुक्लपक्ष एवं कृष्ण पक्ष। प्रत्येक पक्ष पन्द्रह दिनों(तिथियों) का होता है। |
− | # '''तिथि॥ Tithi-''' शास्त्रों में दो प्रकार की तिथियॉं प्रचलित हैं। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि तथा चन्द्रगति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते हैं। | + | # '''[[Tithi (तिथि)|तिथि॥ Tithi]]-''' शास्त्रों में दो प्रकार की तिथियॉं प्रचलित हैं। सौर तिथि एवं चान्द्र तिथि। सूर्य की गति के अनुसार मान्य तिथि को सौर तिथि तथा चन्द्रगति के अनुसार मान्य तिथि को चान्द्र तिथि कहते हैं। |
| # '''वार॥ Day-''' वार शब्द का अर्थ है अवसर अर्थात् नियमानुसार प्राप्त समय होता है। तदनुसार वार शब्द का प्रकृत अर्थ यह होता है कि जो अहोरात्र (सूर्योदय से सूर्योदय होने ) पर्यन्त जिसकी स्थिति होती है उसे वार कहते हैं। | | # '''वार॥ Day-''' वार शब्द का अर्थ है अवसर अर्थात् नियमानुसार प्राप्त समय होता है। तदनुसार वार शब्द का प्रकृत अर्थ यह होता है कि जो अहोरात्र (सूर्योदय से सूर्योदय होने ) पर्यन्त जिसकी स्थिति होती है उसे वार कहते हैं। |
| # '''करण Karana-''' (तिथ्यर्धं करणः) तिथि के अर्ध भाग को करण कहा गया है। | | # '''करण Karana-''' (तिथ्यर्धं करणः) तिथि के अर्ध भाग को करण कहा गया है। |
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| == वेदाङ्गज्योतिष का काल निर्धारण॥ Time Determination of Vedang Jyotish == | | == वेदाङ्गज्योतिष का काल निर्धारण॥ Time Determination of Vedang Jyotish == |
− | वेदाङ्ग होने के कारण निश्चित रूप से वेदाङ्गज्योतिषका ग्रन्थ बहुत प्राचीन प्रतीत होता है। इस सन्दर्भ में अनेक प्रमाण इनसे सम्बन्धित ग्रन्थों में ऋक् ज्योतिष, याजुष् ज्योतिष तथा आथर्वण ज्योतिष में प्राप्त होते हैं।<ref>सुनयना भारती, वेदाङ्गज्योतिष का समीक्षात्मक अध्ययन,सन् २०१२, दिल्ली विश्वविद्यालय, अध्याय ०३, (पृ०१००-१०५)।</ref> | + | वेदांगज्योतिष काल (ईसापूर्व १४वीं शताब्दी) के भारतीय खगोलशास्त्र एवं ज्योतिष के सन्दर्भ में, तथा सम्बन्ध में, जब हम ऐतिहासिक साक्ष्यों का बारीकी से अवलोकन करते हैं, तब हमें ज्ञात होता है कि उस काल में महात्मा लगध आचार्य ने इन शास्त्रों के खगोलीय और ज्यौतिषीय तथ्यों का संकलन ऋग्वेद एवं यजुर्वेद में आए हुए खगोलज्यौतिषीय ऋचाओं को आगम मानकर किया था। |
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| + | वेदाङ्ग होने के कारण निश्चित रूप से वेदाङ्गज्योतिषका ग्रन्थ बहुत प्राचीन प्रतीत होता है। इस सन्दर्भ में अनेक प्रमाण इनसे सम्बन्धित ग्रन्थों में ऋक् ज्योतिष, याजुष् ज्योतिष तथा आथर्वण ज्योतिष में प्राप्त होते हैं।<ref>सुनयना भारती, वेदाङ्गज्योतिष का समीक्षात्मक अध्ययन,सन् २०१२, दिल्ली विश्वविद्यालय, अध्याय ०३, (पृ०१००-१०५)।</ref> |
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| + | ==सारांश== |
| + | भारतीय ज्ञान, विज्ञान, सामाजिक एवं व्यावहारिक ज्ञान तथा तकनीकि ज्ञान का आदि स्रोत वेद हैं। इन्हीं वेदों की ऋचाओं को आधार मानकर आचार्य लगध ने वेदांगज्योतिष शास्त्र का निर्माण ईसापूर्व १४ वीं शताब्दी में किया था। क्योंकि यज्ञ, यागादिकों की प्रवृत्ति वेदों के द्वारा हि होती है और यज्ञादि कृत्य काल के आश्रित हैं, तथा काल का ज्ञान प्राप्त कराने में समर्थ जो वैज्ञानिक विधा है, वह है खगोल एवं ज्योतिष शास्त्र। |
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| + | आचार्य लगध के द्वारा पूर्णांकपरिकर्मचतुष्टय, त्रैराशिक आदि गणित का प्रयोग पंचसंवत्सरात्मक युग के आनयन में किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वेदांगज्योतिष काल में इन गणित विधाओं का संज्ञान था। |
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| + | इस शास्त्र में युगमान, पर्वगणों के मान, अयन मान, ऋतुओं का मान, नक्षत्र, तिथि मान, दिनमान, चान्द्रमासों के मान, सौरमासों के मान, अधिमासों के मान, मुहूर्त आदि लघु काल विभागों के मान इत्यादि का विवरण प्राप्त होता है। यह ग्रन्थ खगोलज्योतिष का मुनि रचित प्रथम आर्ष ग्रन्थ है। |
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− | == उद्धरण॥ References == | + | ==उद्धरण॥ References== |
| <references /> | | <references /> |
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