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यह व्यवस्था बौद्ध काल में भी चलती आई थी। बौद्ध साहित्य में भी इस के प्रमाण मिलते है।  
 
यह व्यवस्था बौद्ध काल में भी चलती आई थी। बौद्ध साहित्य में भी इस के प्रमाण मिलते है।  
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कहा है[''citation needed'']<blockquote>न जच्चा वसलो होति, न जच्चा होति ब्राह्मणो ।</blockquote><blockquote>कम्मणा वसलो होति, कम्मणा होति ब्राह्मणा ॥</blockquote>अर्थ है जन्म से कोई वैश्य या ब्राह्मण नहीं होता। वह होता है उस के कर्मों से। इस में यह समझना ठीक होगा कि यहाँ ' जन्म से ' का अर्थ ( किसी विशिष्ट वर्ण जैसे ) ब्राह्मण वर्ण के पिता से या ब्राह्मण कुल में केवल जन्म लेने से वह ब्राह्मण नहीं होता, इस बात से है। किंतु स्वभाव, गुण लक्षण तो हर बच्चा अपने जन्म से ही लेकर आता है। इस बात को अमान्य नहीं किया है। अर्थात् ब्राह्मण कुल में क्षत्रिय या वैश्य या शूद्र वर्ण या स्वभाव और गुण लक्षणों वाला बच्चा जन्म ले सकता है।  
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कहा है{{Citation needed}}<blockquote>न जच्चा वसलो होति, न जच्चा होति ब्राह्मणो ।</blockquote><blockquote>कम्मणा वसलो होति, कम्मणा होति ब्राह्मणा ॥</blockquote>अर्थ है जन्म से कोई वैश्य या ब्राह्मण नहीं होता। वह होता है उस के कर्मों से। इस में यह समझना ठीक होगा कि यहाँ ' जन्म से ' का अर्थ ( किसी विशिष्ट वर्ण जैसे ) ब्राह्मण वर्ण के पिता से या ब्राह्मण कुल में केवल जन्म लेने से वह ब्राह्मण नहीं होता, इस बात से है। किंतु स्वभाव, गुण लक्षण तो हर बच्चा अपने जन्म से ही लेकर आता है। इस बात को अमान्य नहीं किया है। अर्थात् ब्राह्मण कुल में क्षत्रिय या वैश्य या शूद्र वर्ण या स्वभाव और गुण लक्षणों वाला बच्चा जन्म ले सकता है।  
    
यह तो हुआ जो जन्म (कुल) से मिले वर्ण के अनुसार कर्म नहीं करता है उस की अवस्था का वर्णन। किंतु कुछ ऐसे भी लोग थे जो आनुवांशिकता के कारण किसी वर्ण के माने गये थे। किंतु अपने गुण कर्मों से उन्हों ने अपने वास्तविक स्वभाव के अनुसार वर्ण को प्राप्त किया। यह लचीलापन व्यवस्था में रखा गया था।<blockquote>शनकैस्तु क्रियालोपादिमा: क्षत्रियजातय: ।</blockquote><blockquote>वृशलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च ॥ ( मनुस्मृति १०-४३)</blockquote>आनुवांशिकता का महत्व ध्यान में रखकर दीर्घकालीन विशेष प्रयासों के बाद वर्ण परिवर्तन को मान्यता मिलती थी। मन में आने मात्र से वर्ण परिवर्तन नहीं किया जा सकता। विश्वामित्र को ब्राह्मण वर्ण की प्राप्ति के लिये २४ वर्ष की साधना करनी पडी थी।
 
यह तो हुआ जो जन्म (कुल) से मिले वर्ण के अनुसार कर्म नहीं करता है उस की अवस्था का वर्णन। किंतु कुछ ऐसे भी लोग थे जो आनुवांशिकता के कारण किसी वर्ण के माने गये थे। किंतु अपने गुण कर्मों से उन्हों ने अपने वास्तविक स्वभाव के अनुसार वर्ण को प्राप्त किया। यह लचीलापन व्यवस्था में रखा गया था।<blockquote>शनकैस्तु क्रियालोपादिमा: क्षत्रियजातय: ।</blockquote><blockquote>वृशलत्वं गता लोके ब्राह्मणादर्शनेन च ॥ ( मनुस्मृति १०-४३)</blockquote>आनुवांशिकता का महत्व ध्यान में रखकर दीर्घकालीन विशेष प्रयासों के बाद वर्ण परिवर्तन को मान्यता मिलती थी। मन में आने मात्र से वर्ण परिवर्तन नहीं किया जा सकता। विश्वामित्र को ब्राह्मण वर्ण की प्राप्ति के लिये २४ वर्ष की साधना करनी पडी थी।
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