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# परमात्मा और जीवात्मा दोनों अविनाशी हैं | परमात्मा की सामर्थ्य असीम है | जीवात्मा की सामर्थ्य मर्यादित और अल्प है | जीवात्मा अल्पज्ञान होने से बार बार जन्म लेता है | अपने किये कर्मों से वह उन्नत भी होता है और पतित भी | उन्नत अवस्था की सीमा ब्रह्म प्राप्ति या मोक्ष है |
 
# परमात्मा और जीवात्मा दोनों अविनाशी हैं | परमात्मा की सामर्थ्य असीम है | जीवात्मा की सामर्थ्य मर्यादित और अल्प है | जीवात्मा अल्पज्ञान होने से बार बार जन्म लेता है | अपने किये कर्मों से वह उन्नत भी होता है और पतित भी | उन्नत अवस्था की सीमा ब्रह्म प्राप्ति या मोक्ष है |
 
# प्राणियों का शरीर अष्टधा प्रकृति से बना है | प्राणियों में जीवात्मा के कारण चेतना और चेतना के कारण के कारण गति होती है | जीवात्मा के या चेतना के अभाव में जीवन समाप्त हो जाएगा |
 
# प्राणियों का शरीर अष्टधा प्रकृति से बना है | प्राणियों में जीवात्मा के कारण चेतना और चेतना के कारण के कारण गति होती है | जीवात्मा के या चेतना के अभाव में जीवन समाप्त हो जाएगा |
# मानव का स्तर मनुष्य जीवन में उसके गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार होता है | परिवार में जाति में या राष्ट्र में सभी स्तर पर मूल्यांकन इन्हीं के आधारपर होता है |
 
# व्यवहार में यह सिद्धांत है कि जैसा व्यवहार हम अपने लिए औरों से चाहते हैं वैसा ही व्यवहार हम उनसे करें |
 
# धैर्य, क्षमा, दया, मन पर नियंत्रण, चोरी न करना, शरीर और व्यवहार की शुद्धता, इन्दियोंपर नियंत्रण, बुद्धि का प्रयोग, ज्ञान का संचय, सत्य (मन, वचन और कर्म से) व्यवहार और क्रोध न करना ऐसा दस लक्षणों वाला धर्म माना जाता है|
 
# प्रत्येक व्यक्ति के लिए बुद्धि, तर्क और प्रकृति के नियमों की बात ही माननीय है| यही श्रेष्ठ व्यवहार है|
 
इस देश में कभी ये लोग वेदमत के माने जाते थे | पीछे इनका नाम हिन्दू हुआ | वर्तमान  में यह नाम हिन्दू है | इस जनसमूह में बाहर से भी लोग आये | लेकिन यहाँ के आचार विचार स्वीकार कर वे हिन्दू बन गए |
 
 
भारतीय सोच में बुद्धि को बहुत महत्त्व दिया गया है| उपर्युक्त सभी मान्यताएँ बुद्धि के प्रयोग से सिद्ध की जा सकती है|
 

Revision as of 14:42, 25 July 2018

Hindu and Bharatiya (हिन्दू एवं भारतीय)

हिंदुत्व से अभिप्राय है हिन्दुस्तान देश के रहनेवाले लोगों के विचार, व्यवहार और व्यवस्थाएं | सामान्यत: आदिकाल से इन तीनों बातों का समावेश हिंदुत्व में होता है| वर्तमान में इन तीनों की स्थिति वह नहीं रही जो ३००० वर्ष पूर्व थी | वर्तमान के बहुसंख्य भारतीय इतिहासकार यह समझते हैं कि हिन्दू भी हिन्दुस्तान के मूल निवासी नहीं हैं | उनके अनुसार यहाँ के मूल निवासी तो भील, गौंड, नाग आदि जाति के लोग हैं | वे कहते हैं कि आर्यों के आने से पहले इस देश का नाम क्या था पता नहीं | जब विदेशियों ने यहाँ बसे हुए आर्यों पर आक्रमण शुरू किये तब उन्होंने इस देश को हिन्दुस्तान नाम दिया |

आज भारत में जो लोग बसते हैं वे एक जाति के नहीं हैं | वे यह भी कहते हैं कि उत्तर में आर्य और दक्षिण में द्रविड़ जातियां रहतीं हैं | हमारा इतिहास अंग्रेजों से बहुत पुराना है | फिर भी हमारे तथाकथित विद्वान हमारे इतिहास के अज्ञान के कारण इस का खंडन और हिन्दू ही इस देश के आदि काल से निवासी रहे हैं इस बात का मंडन नहीं कर पाते हैं| यह विपरीत शिक्षा के कारण निर्माण हुए हीनता बोध, अज्ञान और अन्धानुकरण की प्रवृत्ति के कारण ही है | वस्तुस्थिति यह है कि आज का हिन्दू इस देश में जबसे मानव पैदा हुआ है तब से याने लाखों वर्षों से रहता आया है | हिन्दू जाति से तात्पर्य एक जैसे रंगरूप या नस्ल के लोगों से नहीं वरन् जिन का आचार-विचार एक होता है उनसे है | लाखों वर्ष पूर्व यहाँ रहनेवाले लोगों की जो मान्याताएँ थीं, मोटे तौर पर वही मान्यताएँ आज भी हैं|

हिन्दूओं की मान्यताएँ

प्रसिद्ध विद्वान श्री गुरूदत्त अपनी ‘हिंदुत्व की यात्रा’ पुस्तक में नौ मान्यताएँ बताते हैं | यह इस प्रकार हैं:

  1. एक परमात्मा है जो इस जगत् का निर्माण करनेवाला है ओर करोड़ों वर्षों से इसे चला रहा है |
  2. मनुष्य में एक तत्व है जीवात्मा | जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है | इसके कर्म करने की सामर्थ्य पर सीमा है | वह जीवात्मा की अल्प शक्ति और अल्प ज्ञान के कारण है | फिर भी इस सीमा में वह कर्म करने को वह स्वतन्त्र है |
  3. कर्म का फल इस जीवात्मा के हाथ में नहीं है | वह उसे प्रकृति के नियमों के अनुसार ही मिलता है |
  4. परमात्मा और जीवात्मा दोनों अविनाशी हैं | परमात्मा की सामर्थ्य असीम है | जीवात्मा की सामर्थ्य मर्यादित और अल्प है | जीवात्मा अल्पज्ञान होने से बार बार जन्म लेता है | अपने किये कर्मों से वह उन्नत भी होता है और पतित भी | उन्नत अवस्था की सीमा ब्रह्म प्राप्ति या मोक्ष है |
  5. प्राणियों का शरीर अष्टधा प्रकृति से बना है | प्राणियों में जीवात्मा के कारण चेतना और चेतना के कारण के कारण गति होती है | जीवात्मा के या चेतना के अभाव में जीवन समाप्त हो जाएगा |