Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 124: Line 124:  
# प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य उनकी नवीकरण की संभावना और गति के आधारपर तय हो। अनवीकरणीय पदार्थों का उपभोग यथासंभव कम करते चलें।  
 
# प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य उनकी नवीकरण की संभावना और गति के आधारपर तय हो। अनवीकरणीय पदार्थों का उपभोग यथासंभव कम करते चलें।  
 
# सुयोग्य व्यवस्था के द्वारा ज्ञान, विज्ञान और तन्त्रज्ञान सुपात्र को ही मिले ऐसी सुनिश्चिती की जाए।  
 
# सुयोग्य व्यवस्था के द्वारा ज्ञान, विज्ञान और तन्त्रज्ञान सुपात्र को ही मिले ऐसी सुनिश्चिती की जाए।  
# स्वदेशी के स्तर – घर में बना, गली में बना या पड़ोस की गली में बना, गाँव या पड़ोसी गाँव में बना, शहर में बना, तहसील में बना, जनपद में बना, प्रान्त में बना, देश में बना, पड़ोसी देश में बना हो और अंत में विश्व के किसी भी देश में बना हुआ स्वदेशी ही है। स्वदेशो भुवनत्रयम्।
+
# स्वदेशी के स्तर – घर में बना, गली में बना या पड़ोस की गली में बना, गाँव या पड़ोसी गाँव में बना, शहर में बना, तहसील में बना, जनपद में बना, प्रान्त में बना, देश में बना, पड़ोसी देश में बना हो और अंत में विश्व के किसी भी देश में बना हुआ स्वदेशी ही है। स्वदेशो भुवनत्रयम् {{Citation needed}} ।
 
# मनुष्य की क्षमताओं को कुंठित करनेवाले, बेरोजगारी निर्माण करनेवाले तथा पर्यावरण के लिए, सामाजिकता के लिए अहितकारी तन्त्रज्ञान वर्जित हों।  
 
# मनुष्य की क्षमताओं को कुंठित करनेवाले, बेरोजगारी निर्माण करनेवाले तथा पर्यावरण के लिए, सामाजिकता के लिए अहितकारी तन्त्रज्ञान वर्जित हों।  
 
# जीवनशैली प्रकृति सुसंगत हो। न्यूनतम प्रक्रिया से बने पदार्थ अधिक प्रकृति सुसंगत होते हैं।  
 
# जीवनशैली प्रकृति सुसंगत हो। न्यूनतम प्रक्रिया से बने पदार्थ अधिक प्रकृति सुसंगत होते हैं।  
 
# गाँवों का तालाबीकरण हो। यही चराचर की प्यास बुझाने का मार्ग है।  
 
# गाँवों का तालाबीकरण हो। यही चराचर की प्यास बुझाने का मार्ग है।  
# सुखस्य मूलम् धर्म:। धर्मस्य मूलम् अर्थ:। अर्थस्य मूलम राज्यं।राज्यस्य मूलम् इन्द्रीयजय। इन्द्रीयाजयास्य मूलम् विनयम्। विनयस्य मूलम् वृद्धोपसेवा। वृद्धसेवायां विज्ञानम्। विज्ञानेनात्मानम् सम्पादयेत्। संपादितात्मा जितात्मा भवति।
+
# सुखस्य मूलम् धर्म:। धर्मस्य मूलम् अर्थ:। अर्थस्य मूलम राज्यं।राज्यस्य मूलम् इन्द्रीयजय। इन्द्रीयाजयास्य मूलम् विनयम्। विनयस्य मूलम् वृद्धोपसेवा। वृद्धसेवायां विज्ञानम्। विज्ञानेनात्मानम् सम्पादयेत्। संपादितात्मा जितात्मा भवति{{Citation needed}} ।
 
# विज्ञापनबाजी वर्जित हो।  
 
# विज्ञापनबाजी वर्जित हो।  
 
# वैश्विक स्थितियों को ध्यान में रखकर हमें सामरिक दृष्टि से सबसे बलवान बनना आवश्यक है। ऐसा समर्थ बनकर अपने श्रेष्ठ व्यवहार का उदाहरण विश्व के सामने उपस्थित करना होगा।  
 
# वैश्विक स्थितियों को ध्यान में रखकर हमें सामरिक दृष्टि से सबसे बलवान बनना आवश्यक है। ऐसा समर्थ बनकर अपने श्रेष्ठ व्यवहार का उदाहरण विश्व के सामने उपस्थित करना होगा।  
# वर्तमान प्रदूषण निवारण की दृष्टि अधूरी है। केवल जल, हवा और भूमि के प्रदूषण की बात होती है। वास्तव में इन के साथ ही जब तक पंचमहाभूतों में से शेष बचे हुए तेज और आकाश इन महाभूतों के प्रदूषण का भी विचार आवश्यक है। वास्तव में प्रदूषित मन और बुद्धि ही समूचे प्रदूषण की जड़ हैं।  
+
# वर्तमान प्रदूषण निवारण की दृष्टि अधूरी है। केवल जल, हवा और भूमि के प्रदूषण की बात होती है। वास्तव में इन के साथ ही जब तक पंचमहाभूतों में से शेष बचे हुए तेज और आकाश इन महाभूतों के प्रदूषण का भी विचार आवश्यक है। वास्तव में प्रदूषित मन और बुद्धि ही समूचे प्रदूषण की जड़ हैं।
    
== अभिशासन (Governance) ==
 
== अभिशासन (Governance) ==
890

edits

Navigation menu