Difference between revisions of "Solah samskar ( सोलह संस्कार )"

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== '''हिन्दू संस्कार विज्ञानं अनुसार''' ==
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'''भारतीय संस्कृति में संस्कारों का विशेष महत्व है | संस्कार हमारे जीवन का आधार है | संस्कार का अर्थ होता है शुद्ध करना, साफ़ करना, चमकाना और भीतरी रूप को प्रकाशित करना | हमारी दिनचर्या की भांति हमारी जीवनचर्या भी नियमित है | जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत के मानव जीवन का गंभीर अध्ययन करके हमारे ऋषि मुनियों ने पूर्ण विकास के लिए ऐसा विकास जिसमे शरीर, मन, आत्मा  तीनो की उन्नति हो, जिन्सुनाहरे नियमो की रचना की है उन्हें हम अपने जीवनचर्या के नियम कहते है | हमारे संस्कार भी इसी जीवनचर्या के प्रमुख अंग है |''' 
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== '''संस्कार विज्ञानं अनुसार''' ==
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जब सोना खनन किया जाता है। उस समय यह मिट्टी का एक रूप होता है।उस मिट्टी में अलग-अलग संस्कार किए जाते हैं, फिर सु- वर्ण (अच्छे चरित्र) हो जाता है। अधिकाधिक संस्कारों के बाद ही वे मनमोहक आभूषण बनते हैं आपके सामने आ रहा है। संस्कारो के कारण ही मनुष्यता प्राप्त होती है | संस्कारो के कारण दृश्य और अदृश्य मल्लो की सफाई होती है | माता और पिता द्वारा उनके विर्य्गत दोषों के कारण नवजात बालक में शारीरिक – मानसिक विकार उत्पन्न हो सकते है | उसे दूर करने के लिए संस्कारों की आवश्यकता होती है | <blockquote>गार्भेझैमैर्जातकर्म-चौडभौंजीनिबधनैः
 
जब सोना खनन किया जाता है। उस समय यह मिट्टी का एक रूप होता है।उस मिट्टी में अलग-अलग संस्कार किए जाते हैं, फिर सु- वर्ण (अच्छे चरित्र) हो जाता है। अधिकाधिक संस्कारों के बाद ही वे मनमोहक आभूषण बनते हैं आपके सामने आ रहा है। संस्कारो के कारण ही मनुष्यता प्राप्त होती है | संस्कारो के कारण दृश्य और अदृश्य मल्लो की सफाई होती है | माता और पिता द्वारा उनके विर्य्गत दोषों के कारण नवजात बालक में शारीरिक – मानसिक विकार उत्पन्न हो सकते है | उसे दूर करने के लिए संस्कारों की आवश्यकता होती है | <blockquote>गार्भेझैमैर्जातकर्म-चौडभौंजीनिबधनैः
  

Revision as of 14:14, 11 March 2022

भारतीय संस्कृति में संस्कारों का विशेष महत्व है | संस्कार हमारे जीवन का आधार है | संस्कार का अर्थ होता है शुद्ध करना, साफ़ करना, चमकाना और भीतरी रूप को प्रकाशित करना | हमारी दिनचर्या की भांति हमारी जीवनचर्या भी नियमित है | जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत के मानव जीवन का गंभीर अध्ययन करके हमारे ऋषि मुनियों ने पूर्ण विकास के लिए ऐसा विकास जिसमे शरीर, मन, आत्मा तीनो की उन्नति हो, जिन्सुनाहरे नियमो की रचना की है उन्हें हम अपने जीवनचर्या के नियम कहते है | हमारे संस्कार भी इसी जीवनचर्या के प्रमुख अंग है |

संस्कार विज्ञानं अनुसार

जब सोना खनन किया जाता है। उस समय यह मिट्टी का एक रूप होता है।उस मिट्टी में अलग-अलग संस्कार किए जाते हैं, फिर सु- वर्ण (अच्छे चरित्र) हो जाता है। अधिकाधिक संस्कारों के बाद ही वे मनमोहक आभूषण बनते हैं आपके सामने आ रहा है। संस्कारो के कारण ही मनुष्यता प्राप्त होती है | संस्कारो के कारण दृश्य और अदृश्य मल्लो की सफाई होती है | माता और पिता द्वारा उनके विर्य्गत दोषों के कारण नवजात बालक में शारीरिक – मानसिक विकार उत्पन्न हो सकते है | उसे दूर करने के लिए संस्कारों की आवश्यकता होती है |

गार्भेझैमैर्जातकर्म-चौडभौंजीनिबधनैः

बैजिक गार्भिक चैनो द्विजानाममृज्यते।।(२/२७)

वैदिकेः कर्मभिः पुण्यै निषेकादि द्विजन्मनाम

कार्यः शरीर संस्कारः पावनः प्रेत्य चेह च (२/२६)

मनु अनुसार शारीरिक संस्कार इहलोक और परलोक के लिए पवित्रता पूर्ण और बीजरोपण और गर्भ्गत दोषों को हरण करनेवाला होता है | ऐसा माना जाता है की कुल १६ संस्कार हिन्दू धर्मं में है , स्थूल रूप में इसे ३ विभाग में बांटा गया है |

दोषमार्जन

हिनागपूरक

अधिशयाधायक

गर्भधारण,जातकर्म, अन्नप्राशन यह दोषमार्जन तो चूड़ाकर्म, उपनयनादी संस्कार यह हिनान्गपुरक है | गृहस्थआश्रम, सन्याशाश्रम आदि संस्कार करने से अतिशयाधान हो कर सत्य, शिवं – सुन्दरम स्वरुप मनुष्य प्राप्त हो सकता है| शारीर मन आत्मा संस्कृत होकर संस्कार की किरण मानव जीवन प्रकाशित हो सकता है | संस्कार यह धर्मरूप चावल के उपर की त्वचा है, इसी के कारण चावल की पोषण व् वृद्धि होती है |   

विज्ञानं के आधार पर १६ संस्कारो को ४ भागो में विभाजित किया गया है |

जिस प्रकार सृष्टि के सृजन से विसर्जन तक की रचना है उसी प्रकार संस्कार की भी रचना  है | सृष्टि रचना में सभी सजीव निर्जीव चल विचल सभी सृजन से विसर्जन के चक्र द्वारा नियमो से चलते है | यही संस्कार मनुष्य जीवन में भी सृजन से विसर्जन तक का चक्र चलता है कुल १६ संस्कारो को चार भागो में विभाजित किया गया है |

१ . सृजन

२ . संवर्धन

३ . समुत्कर्षण

४ . विसर्जन

सृजन

क) गर्भधारण

ख) पुंसवन

ग)  सिमंतोंन्नयन

घ)  जातकर्म

संवर्धन

क) नामकरण

ख) निष्क्रमण

ग)  अन्नप्राशन

घ)  चूड़ाकर्म

ङ) विद्ध्यारंभ

समुत्कर्षण

क) उपनयन

ख) वेदारम्भ

ग)  केशांत

घ)  समावर्तन

ङ) विवाह

विसर्जन

क) अंत्यसंस्कार

ख) श्राद्धकर्म