Difference between revisions of "Festival in month of shrawana (श्रावण मास के अंतर्गत व्रत व त्यौहार)"

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Revision as of 15:53, 13 October 2021

एक बार सनत् कुमार जी शिवजी से श्रावण मास का माहात्म्य पूछने लगे, तब शिवजी बोले-“हे सनत् कुमार! हमें सब मासों में श्रेष्ठ श्रावण मास अत्यन्त प्रिय है। इस मास में एक समय भोजन करना चाहिए। जिस कामना से जो इस मास का व्रत करता है, उसकी कामना अवश्य पूरी हो जाती है। इस मास में रविवार को सूर्य का व्रत, सोमवार को मेरी पूजा और एक समय भोजन, मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत, बुधवार के दिन बुध का, बृहस्पति के दिन बृहस्पति का, शुक्रवार के दिन 'जीवन्तिका देवी' तथा हनुमान और नरसिंह देव का व्रत शनिवार का होता है। तिथियों के व्रत इस प्रकार हैं-शुक्ल पक्ष की दूज को आडम्बर व्रत होता है, तीज को गौरी का व्रत होता है, चतुर्थी को दुर्गा गणपति का-इसी व्रत का दूसरा नाम विनायकी चतुर्थी भी है। पंचमी को नागपंचमी का अथवा यह तिथि मनु के बदलने की भी है। षष्ठी के दिन सुपादन व्रत होता है। इस मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को नक्त व्रत का विधान कहा है। दशमी को आशा देवी का, एकादशी को हरि भगवान का पवित्रारोहण, द्वादशी के दिन हरि भगवान का श्रीधर नाम से पूजन होता है तथा पूर्णमासी के दिन उत्सर्जन, उपाकर्म, समादीप तथा रक्षाबंधन होता श्रावण कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्ट व्रत, पंचमी भानद, श्रावण कृष्ण अष्टमी को जन्माष्टमी व्रत और अमावस्या को पिठोरा व्रत-इन सब तिथियों में अलग-अलग देवताओं की पूजा होती है।

एकम को अग्नि की, दूज को ब्रह्मा की, तीज को गौरी की, चौथ को गणपतिकी, पंचमी को सर्प की, षष्ठी को स्कंध की, सप्तमी को सूर्य की, अष्ठमी को शिव की, नवमी को दुर्गा की, दशपी को यम की, एकादशी को विश्वदेव की, द्वादशी को हरि भगवान की, त्रयोदशी को कामदेव की, चतुर्दशी को शिव की, पूर्णमासी को चन्द्रमा की तथा अमावस्या को पितरों की। इसी मास में जब सूर्य की संक्रान्ति से बारह और चालीस घड़ी बीत जायें तब अगस्त्य ऋषि का उदय होता है, अगस्त्य ऋषि के लिए सात दिन पहले से ही अर्घ्य देना चाहिए। भगवान शिव कहते हैं-"सनत् कुमार, मैंने श्रावण मास के व्रतों का संक्षेप में तुमसे वर्णन किया। विस्तारपूर्वक वर्णन करें, सौ वर्षों में भी नहीं किया जा सकता।" सनत् कुमार जी कहने लगे-"स्वामिन! आपने व्रतों का विवरण संक्षेप में किया है। अब जरा विस्तारपूर्वक मुझको सुनाइये।" शिवजी कहते हैं- "हे योगेश! जो एक समय भोजन करता है उसे बारह मास के वक्त भोजन का फल प्राप्त होता है, दिनास्त के पश्चात् तीन घंटे तक संध्या कहलाती है। इसमें भोजन, मैथुन, निद्रा और स्वाध्याय यह कर्म नहीं करने चाहिएं। जब संन्यासी सन्ध्या के समय भोजन और गृहस्थ जिस समय तारे दिखने लग जायें उस समय भोजन करें। संन्यासी को रात्रि का भोजन निषिद्ध कहा गया है परन्तु दिन के अष्टम प्रहर को ही ठीक कहा गया है। बुद्धिमान पुरुष पहले व्रत का संकल्प करें फिर व्रत आरम्भ करें। अब एक लक्ष्य की पूजा-विधि कहते हैं। लक्ष्मी की इच्छा रखनेवाला बिल्व पत्र से, शान्ति चाहनेवाला दुर्गा के अंकुरों से, आयु चाहनेवाला चम्पा के पुष्पों से, विद्या की इच्छा रखनेवाला मल्लिका के फूलों से, पुत्र की इच्छा के लिए कटेली के पुष्पों से, बुरे स्वप्नों के नाश के लिए उत्तम धान्य से-इस प्रकार जिस-जिस इच्छा से पूजा करें, वही इच्छा पूर्ण हो जाती है। वेदी बनाकर ब्रह्मादिक देवताओं का पूजन करें।