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4.  सन 642 तक इस्लामी सत्ता उपगणस्थान (वर्तमान अफगानिस्तान) को पादाक्रांत कर हिंदुकुश तक आ पहुँची। महाभारत का गांधार ही वर्तमान अफगानिस्तान है। काबुल, जाबुल, कंदाहार, गजनी आदि इस्लामी सत्ता ने जीत लिये। गजनी के हिन्दू शासकों ने अवरोध अवश्य किया फिर भी भारत की भूमि आक्रांत हुई। बडी संख्या में हिंदुओं का धर्मांतर होता रहा। विरोध करनेवालों का कत्ले-आम भी होता रहा। हिंदुओं की आबादी कम होती गई और इस कारण हिंदू प्रतिरोध भी नष्ट होता गया। भारत की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों विस्तार की दृष्टि से निष्क्रीय रहे। भारत की भूमि घट गई।  
 
4.  सन 642 तक इस्लामी सत्ता उपगणस्थान (वर्तमान अफगानिस्तान) को पादाक्रांत कर हिंदुकुश तक आ पहुँची। महाभारत का गांधार ही वर्तमान अफगानिस्तान है। काबुल, जाबुल, कंदाहार, गजनी आदि इस्लामी सत्ता ने जीत लिये। गजनी के हिन्दू शासकों ने अवरोध अवश्य किया फिर भी भारत की भूमि आक्रांत हुई। बडी संख्या में हिंदुओं का धर्मांतर होता रहा। विरोध करनेवालों का कत्ले-आम भी होता रहा। हिंदुओं की आबादी कम होती गई और इस कारण हिंदू प्रतिरोध भी नष्ट होता गया। भारत की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों विस्तार की दृष्टि से निष्क्रीय रहे। भारत की भूमि घट गई।  
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5. सिंध के पतन के इतिहास में यद्यपि बाप्पा रावल ने ईरान तक प्रत्याक्रमण किया<ref>मुस्लिम आक्रमण का हिंदू प्रतिरोध, डॉ शरद हेबाळकर, पृष्ठ 14-15 </ref> () लेकिन इस का प्रभाव इस्लामी सत्ता पर अधिक समय तक नहीं रहा। सन 743 तक मुस्लिम सेनाएँ गुजरात, मालवा तक भारत के अंदर घुस गर्इं थीं। बडे पैमाने पर हिंदुओं के कत्ले-आम और धर्मांतर होते रहे। ‘देवल स्मृति’ का निर्माण हुआ। धर्मांतरित लोगों को परावर्तित कर फिर से हिंदू बनाने का प्रावधान इस स्मृति में किया गया था। इस के आधार पर परावर्तन के कुछ क्षीण दौर भी चले होंगे। लेकिन यह दौर जो मूलत: हिंदू थे केवल उनके परावर्तन के लिये थे और बहुत ही कम संख्या में हुए । मूलत: मुस्लिम आक्रांताओं को हिंदू बनाकर हिंदू संस्कृति के विस्तार की दृष्टि से कोई विचार नहीं हुआ।   
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5. सिंध के पतन के इतिहास में यद्यपि बाप्पा रावल ने ईरान तक प्रत्याक्रमण किया<ref>मुस्लिम आक्रमण का हिंदू प्रतिरोध, डॉ शरद हेबाळकर, पृष्ठ 14-15 </ref> लेकिन इस का प्रभाव इस्लामी सत्ता पर अधिक समय तक नहीं रहा। सन 743 तक मुस्लिम सेनाएँ गुजरात, मालवा तक भारत के अंदर घुस गई थीं। बडे पैमाने पर हिंदुओं के कत्ले-आम और धर्मांतर होते रहे। ‘देवल स्मृति’ का निर्माण हुआ। धर्मांतरित लोगों को परावर्तित कर फिर से हिंदू बनाने का प्रावधान इस स्मृति में किया गया था। इस के आधार पर परावर्तन के कुछ क्षीण दौर भी चले होंगे। लेकिन यह दौर जो मूलत: हिंदू थे केवल उनके परावर्तन के लिये थे और बहुत ही कम संख्या में हुए । मूलत: मुस्लिम आक्रांताओं को हिंदू बनाकर हिंदू संस्कृति के विस्तार की दृष्टि से कोई विचार नहीं हुआ।   
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जो धर्मांतरित हो गये हैं उन्हें हिन्दू बनाना तो दूर ही रहा, मूलत: जो अहिंदू हैं उन्हें हिंदू बनाने की कल्पना भी हमारे मन में नहीं आती थी। हिंदू धर्मांतरित होते रहे। मरते कटते रहे। हमारी धर्मसत्ता और राजसत्ता निष्क्रीय रही। 1947 को स्वाधीनता प्राप्ति तक अफगानिस्तान, सिंध, आधा पंजाब, आधा कश्मीर, आधा बंगाल यानी भारत का एक बडा हिस्सा मुस्लिम बहुल हो गया। राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहा। इस इलाके में हिंदू अल्पसंख्य हुए, हिंदू असंगठित हुए, हिंदू दुर्बल हुए। परिणामस्वरूप यह हिस्सा भारत के भूगोल का हिस्सा नहीं रहा। इस भूमि पर रहनेवालों का धर्म और राज्य दोनों हिंदू नहीं रहे। भारत की धर्मसत्ता और भारत की राजसत्ता देखती रही।  
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जो धर्मांतरित हो गये हैं उन्हें हिन्दू बनाना तो दूर ही रहा, मूलत: जो अहिंदू हैं उन्हें हिंदू बनाने की कल्पना भी हमारे मन में नहीं आती थी। हिंदू धर्मांतरित होते रहे। मरते कटते रहे। हमारी धर्मसत्ता और राजसत्ता निष्क्रीय रही। 1947 को स्वाधीनता प्राप्ति तक अफगानिस्तान, सिंध, आधा पंजाब, आधा कश्मीर, आधा बंगाल यानी भारत का एक बडा हिस्सा मुस्लिम बहुल हो गया। राष्ट्र का हिस्सा नहीं रहा। इस इलाके में हिंदू अल्पसंख्य हुए, हिंदू असंगठित हुए, हिंदू दुर्बल हुए। परिणामस्वरूप यह हिस्सा भारत के भूगोल का हिस्सा नहीं रहा। इस भूमि पर रहनेवालों का धर्म और राज्य दोनों हिंदू नहीं रहे। भारत की धर्मसत्ता और भारत की राजसत्ता देखती रही।  
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6. स्वाधीनता के उपरांत भी इस्लाम के साथ ही ईसाई विस्तारवाद की ओर हमारी राजसत्ता और धर्मसत्ता अनदेखी करती रहीं। शुतुर्मुर्ग की नीति अपनाती रहीं। संविधान में धर्मांतरण को मूलभूत अधिकारों में डाल दिया गया। इस संविधान के प्रावधान का लाभ लेकर देश में ईसाई मिशनरी राष्ट्रीयता में सेंध लगाते रहे। किसी भी आस्था में परिवर्तन के बगैर छल, कपट, धन और गुंडागर्दी के सहारे हिंदूओं का धर्मांतरण करते रहे। नियोगी कमिशन की अनुशंसाओं के तत्थ्य नकारे नहीं जा सकते थे। फिर भी संविधान में सुधार करने के स्थानपर संविधान का बहाना बनाकर आनेवाली सभी सरकारें इस समस्या की ओर अनदेखी करती रहीं। धर्मसत्ता भी अपनी आत्मघाती मानप्रतिष्ठा में मशगुल रही। सबसे बडा चिंता का विषय यह है कि राष्ट्र की धर्मसत्ता और राजसत्ता में तालमेल के बताए उपर्युक्त तीन अपवाद छोडकर लगभग १२०० वर्षों में सामान्यत: कभी भी धर्मसत्ता और राज्यसत्ता का कोई तालमेल ही नहीं रहा।  
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6. स्वाधीनता के उपरांत भी धर्मान्तरण जनित विस्तारवाद की ओर हमारी राजसत्ता और धर्मसत्ता अनदेखी करती रहीं। शुतुर्मुर्ग की नीति अपनाती रहीं। संविधान में धर्मांतरण को मूलभूत अधिकारों में डाल दिया गया। इस संविधान के प्रावधान का लाभ लेकर देश में धर्म परिवर्तन करने वाले राष्ट्रीयता में सेंध लगाते रहे। किसी भी आस्था में परिवर्तन के बगैर छल, कपट, धन और गुंडागर्दी के सहारे हिंदूओं का धर्मांतरण करते रहे। नियोगी कमिशन की अनुशंसाओं के तथ्य नकारे नहीं जा सकते थे। फिर भी संविधान में सुधार करने के स्थानपर संविधान का बहाना बनाकर आनेवाली सभी सरकारें इस समस्या की ओर अनदेखी करती रहीं। धर्मसत्ता भी अपनी आत्मघाती मानप्रतिष्ठा में व्यस्त रही। सबसे बडा चिंता का विषय यह है कि राष्ट्र की धर्मसत्ता और राजसत्ता में तालमेल के बताए उपर्युक्त तीन अपवाद छोडकर लगभग १२०० वर्षों में सामान्यत: कभी भी धर्मसत्ता और राज्यसत्ता का कोई तालमेल ही नहीं रहा।  
    
== अंग्रेजी शासन का भारत राष्ट्र की संस्कृति पर परिणाम ==
 
== अंग्रेजी शासन का भारत राष्ट्र की संस्कृति पर परिणाम ==

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