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2.  अरबस्तान में इस्लामी सत्ता का सन 632 में उदय हुआ। लेकिन हमारे राष्ट्र की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों इससे बेखबर रहे। परिणाम स्वरूप विपरीत संस्कृति वाली यह सत्ता भौगोलिक दृष्टि से भारत राष्ट्र की भूमि पर विस्तार पाती गई।  
 
2.  अरबस्तान में इस्लामी सत्ता का सन 632 में उदय हुआ। लेकिन हमारे राष्ट्र की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों इससे बेखबर रहे। परिणाम स्वरूप विपरीत संस्कृति वाली यह सत्ता भौगोलिक दृष्टि से भारत राष्ट्र की भूमि पर विस्तार पाती गई।  
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3. ईरान के अग्निपूजक पारसी लोग इस्लाम के आक्रमण से ध्वस्त होकर इसवी सन 637 से 641 के बीच भारत में शरण लेने आए। फिर भी हमारे राष्ट्र की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों इससे बेखबर रहे।  
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3. ईरान के अग्निपूजक पारसी लोग इस्लाम के आक्रमण से ध्वस्त होकर इसवी सन 637 से 641 के मध्य भारत में शरण लेने आए। फिर भी हमारे राष्ट्र की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों इससे बेखबर रहे।  
    
4.  सन 642 तक इस्लामी सत्ता उपगणस्थान (वर्तमान अफगानिस्तान) को पादाक्रांत कर हिंदुकुश तक आ पहुँची। महाभारत का गांधार ही वर्तमान अफगानिस्तान है। काबुल, जाबुल, कंदाहार, गजनी आदि इस्लामी सत्ता ने जीत लिये। गजनी के हिन्दू शासकों ने अवरोध अवश्य किया फिर भी भारत की भूमि आक्रांत हुई। बडी संख्या में हिंदुओं का धर्मांतर होता रहा। विरोध करनेवालों का कत्ले-आम भी होता रहा। हिंदुओं की आबादी कम होती गई और इस कारण हिंदू प्रतिरोध भी नष्ट होता गया। भारत की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों विस्तार की दृष्टि से निष्क्रीय रहे। भारत की भूमि घट गई।  
 
4.  सन 642 तक इस्लामी सत्ता उपगणस्थान (वर्तमान अफगानिस्तान) को पादाक्रांत कर हिंदुकुश तक आ पहुँची। महाभारत का गांधार ही वर्तमान अफगानिस्तान है। काबुल, जाबुल, कंदाहार, गजनी आदि इस्लामी सत्ता ने जीत लिये। गजनी के हिन्दू शासकों ने अवरोध अवश्य किया फिर भी भारत की भूमि आक्रांत हुई। बडी संख्या में हिंदुओं का धर्मांतर होता रहा। विरोध करनेवालों का कत्ले-आम भी होता रहा। हिंदुओं की आबादी कम होती गई और इस कारण हिंदू प्रतिरोध भी नष्ट होता गया। भारत की धर्मसत्ता और राजसत्ता दोनों विस्तार की दृष्टि से निष्क्रीय रहे। भारत की भूमि घट गई।  

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