Difference between revisions of "Punsavan ( पुंसवन )"

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संगीत , प्रवचन और कथा व्याख्यान का भी प्रभाव पड़ता है ,इसलिए जब पति और परिवार उसे उपहार देते हैं, तो सबसे अच्छी पुस्तक या संगीत की कैसेट दी जानी चाहिए और उसे अपनी दिनचर्या में भी इसका प्रयोग करना चाहिए | भावी मां जो पढ़ती या सुनती है उसका उचित उपयोग , अन्य सदस्यों को उसके साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए , और उस चर्चा में अनावश्यक वाद विवाद और मत भिन्नता जैसी बाते ना करे इसका ध्यान दिया जाना चाहिए |</blockquote>
 
संगीत , प्रवचन और कथा व्याख्यान का भी प्रभाव पड़ता है ,इसलिए जब पति और परिवार उसे उपहार देते हैं, तो सबसे अच्छी पुस्तक या संगीत की कैसेट दी जानी चाहिए और उसे अपनी दिनचर्या में भी इसका प्रयोग करना चाहिए | भावी मां जो पढ़ती या सुनती है उसका उचित उपयोग , अन्य सदस्यों को उसके साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए , और उस चर्चा में अनावश्यक वाद विवाद और मत भिन्नता जैसी बाते ना करे इसका ध्यान दिया जाना चाहिए |</blockquote>
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[[Category:Samskaras]]

Revision as of 16:35, 15 April 2022

शोक रक्तिविमोक्षं च साहसं कुक्कुटासनम् ।

व्यावायंच दिवास्वापं रात्री जागरणं त्यजेत् ।।

अतिरूक्षंतु नाश्नीयात् अत्यत्यम्लम् अतिभोजनम् ।

अत्युष्णम् अतिशीतं च गुर्वाहार विवर्जयेत् ।।

गर्भ रक्षा सदा कार्या नित्यं शौच निषेवणात् ।

प्रशस्त्र मन्त्र लिखनाच्छस्त साल्यानुलेपनात् ।।

गर्भधारण की पुष्टि के बाद पुंसवन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार का उद्देश्य गर्भवती मां को एक रूपवान और तेजवान संतान पैदा करने की आंतरिक प्रेरणा प्रदान हो यह करना है। गर्भावस्था के बाद मां की भूमिका अहम है। पति और अन्य परिवार एक सामाजिक भूमिका निभाते हैं , परंतु वास्तव में भ्रूण की रक्षा और पोषण माँ को हि करना होता है। अपने अपने तरीके से पारिवारिक भूमिकाएँ महत्वपूर्ण हैं। सभी एक साथ मिलकर माँ का शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना है।

प्राचीन रूप

' पुंसवन ' संस्कार का शाब्दिक अर्थ और व्याख्या शुद्धरूप से शास्त्र है , वह ऐसे बच्चे अर्थात पुंसा अर्थात पुरुषत्व प्राप्ति करने का संस्कार! और उसके के लिए कार्य ! पूर्व कल में, पुरुष शिकार करते थे , युद्ध करते थे , संरक्षण और भरणपोषण  जैसी महत्वपूर्ण भूमिका को पूर्ण करते थे ।उसके  बाद का बदलते समय में पुरुष तर्पण और श्राद्धादि कर्म करने लगे उसके कारण पुत्र प्राप्ति समाज का विशेष महत्व होता जा रहा था। गर्भधारण के बाद शुभ संकल्प से  सुयोग संतान प्राप्ति से पुत्रप्राप्ति जुड़ने लगी ।इसलिए पूजा और प्रार्थना आदि कर्मकांडो का विकास हुआ। दवाइयों और मंत्रोंका भी  प्रयोग इसी कारण से प्रारंभ हुआ। पुंसवन संस्कार गर्भाधान के बाद दूसरे या तीसरे महीने में किया जाता है। गर्भवती माता को स्नान कर सुन्दर आभूषण तथा नये वस्त्र धारण कर संस्कार के लिए तैयार होना चाहिए | सुश्रुत ने पुत्रप्राप्ती के लिए सुलक्षणा , वटवृक्ष , सहदेवी या विश्वदेवी वृक्ष की जड़ों को पिसकर इसके रस की तीन या चार बूंदें नाक में डालने की सलाह दी जाती है। गर्भवती महिलाओं को जूस नहीं थूकना इसका ध्यान रखने को कहा। ताकि जूस का असर हो।

वर्तमान रूप

पुंसवन संस्कार में पुंसा शब्द का अर्थ है पुमान अर्थात पुरुषार्थ है ।याह एक गुणवाचक शब्द है । पुरुषत्व शब्द से  धैर्य , वीरता , शक्ति , विद्वता , धर्मपरायणता , मानवता आदि के गुण का प्रत्यय होता है । यह सद्गुण पुरुष के साथ-साथ स्त्री में भी होना चाहिए | इस भाव संस्कार मी निहित है । पुरुषत्व शब्द का विलोम शब्द ' नपुंसक ' है, जिसका अर्थ है ऐसा व्यक्ति जिसमें उपरोक्त गुणों का अभाव हो । क्षमा , धैर्य , वीरता , विद्वता , धर्मपरायणता आदि पुरुषों और महिलाओं दोनों में समान रूप से हो सकता हैं। आजकल तो पराक्रम , विध्याभ्यास , धनार्जन आदि क्षेत्रो में समानता पाई जाती है। अत:  पुंसवन संस्कार का अर्थ ऐसा किया जाना चाहिए कि एक गर्भवती महिला को एक पौरुषयुक्त  बेटे या बेटी को जन्म देना चाहिए। उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है  कि संतान  बुद्धिमान , वीर , धैर्यवान , धर्मपरायण , स्वस्थ और सुंदर हो । गर्भावस्था के बाद दूसरे या तीसरे महीने के शुभ दिन पर यह संस्कार किया जा सकता है , मां मन से सर्वश्रेष्ठ गुणवत्तापूर्ण संतान होने का संकल्प करती है। संकल्प की अपनी शक्ति होती है , मां बनने वाली स्त्री उस संकल्प की पूर्ति के लिए भगवान का ध्यान करती है। वे जितना अधिक शुभ और मंगल विचार करेगी उतना ही उनकी मनोधारना बनती जाएगी | पूजा होने के बाद स्त्री सभी बुजुर्ग वरिष्ठ को नमस्कार कर आशीर्वाद प्राप्त कराती है | सभी पित्रुनिहित लोग श्रेष्ठ स्वस्थ और अरोग्य्पूर्ण संतान की इच्छा मन में धारण करते है |  दूर रहनेवाले रिश्तेदारों को भी फोन पर और उनके द्वारा इस संस्कार की जानकारी  दी जाती है और आशीर्वाद , शुभकामनाएं , सद्भावना एक प्रकार से स्त्री से माता यह एक नई सामाजिक और पारिवारिक अभिव्यक्ति की शुरुआत का प्रतीक है हाँ , एक खुशी है , जिससे हर कोई जो गर्भवती महिला की संगति में आता है उसके साथ व्यवहार करते समय, उसे आवश्यक सावधानी बरतने का निर्देश देता है ,

इस संस्कार के बाद गर्भवती अपने मन और विचार को जगाये रखना है | परिवार में वेद , उपनिषद , गीता , रामायण और अन्य टेलीविजन पर धार्मिक साहित्य को पढ़ना शुरू करना | टेलीविजन पर पारिवारिक अंतर्कलह , साज़िश , अनैतिकता और सनसनीखेज दृश्यों पर आधारित श्रृंखला से स्वयं को दूर रखना चाहिए क्योंकि इस दौरान यह सब देखने या सुनाने से एक गर्भवती महिला को गर्भ को प्रभावित करती है। इसलिए इस काल में महापुरुषों का चरित्र और उत्तम कोटि का साहित्य पढ़ें। यदि आप विज्ञान और दार्शनिक ग्रंथों में रुचि रखते हैं , इस विषय पर साहित्य पढ़ें , बच्चे के लिए प्रसव पूर्व तैयारी सिर्फ टोपी , स्वेटर आदि ही नहीं, बल्कि एक बच्चे में कौन से गुण होने चाहिए? इसकी योजना अधिक महत्वपूर्ण है।

संगीत , प्रवचन और कथा व्याख्यान का भी प्रभाव पड़ता है ,इसलिए जब पति और परिवार उसे उपहार देते हैं, तो सबसे अच्छी पुस्तक या संगीत की कैसेट दी जानी चाहिए और उसे अपनी दिनचर्या में भी इसका प्रयोग करना चाहिए | भावी मां जो पढ़ती या सुनती है उसका उचित उपयोग , अन्य सदस्यों को उसके साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए , और उस चर्चा में अनावश्यक वाद विवाद और मत भिन्नता जैसी बाते ना करे इसका ध्यान दिया जाना चाहिए |