Paush month festival (पौष मास के अंतर्गत व्रत व त्यौहार)

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प्राचीन समय की बात है कि एक दिन देवऋषि नारदजी, भ्रमण करते हुए, धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर की सभा में आये। राजा युधिष्ठिर कहने लगे, "महात्मन आप भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों की वार्ता जानने वाले हैं। कृपा करके यह बताइये कि अब पौष मास आने वाला है इस मास में स्नान, दान, व्रत आदि करने से मनुष्य को क्या फल मिलता है? किस-किस देवता की पूजा की जाती है और क्या फल मिलता है? कृपया विस्तारपूर्वक कहिये।" नारदजी कहने लगे-'हे राजा युधिष्ठिर! अब सबसे प्रथम स्नान करने की विधि कहता हूं! इस मास में स्नान करने वाले को चाहिये कि प्रातः समय ब्रह्ममुहूर्त में उठकर शौच, स्नानादि से निवृत होकर नित्य नियम करके षोडशोपचार विधि से भगवान का पूजन करें। स्नान करने वाले को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए असत्य नहीं बोलना चाहिये। अच्छे सदाचारी पुरुषों की संगति करें दुष्टों की संगति ना करें। जो मनुष्य बर्तन का त्याग करके केले के पत्र या कमल के पत्र में भोज करता है वह परम ज्ञान को प्राप्त होकर जीवन-मरण से मुक्त हो जाता है।

शैय्या को छोड़कर जो भूमि पर सोता है उसके लिए मोक्ष का द्वार खुल जाता है, जो मनुष्य पोष मास में हजामत नहीं बनवाता वह अगले जन्म में राजा के घर जन्म लेता है। हे राजन! पौष मास में भगवान विष्णु और शिव खेतों का ही पूजन होता है। जो मनुष्य इस मास में स्नान करके नित्य नियम पश्चात् भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनकी विधि कहते हैं! सबसे प्रथम पुरुष सूक्त की सोलह ऋषियों में से पहली चर्चा सहल शीर्ष आदि से भगवान का आवाहन करके सोलह मंत्रों से षोडशोपचार विधि से भगवान का पूजन करें और भगवान से प्रार्थना करें कि भगवान, मेरे सब पापों का नाश करिये और मुझ दीन पर कृपा करिये जिससे मैं मोक्ष पद को प्राप्त हो जाऊं।

गणेश चतुर्थी

पौष मास की चतुर्थी को श्री गणेशजी को प्रसन्न करने के लिये गणेश चतुर्थी का व्रत करें, जिसको चौथ का व्रत कहा जाता है। सारा दिन निराहर रह, रात्रि को चन्द्रमा के उदय होने पर चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन किया जाता है तथा कथा भी सुनी जाती है। इस व्रत के करने से सब प्रकार के विघ्नों का नाश हो जाता है। और आरोग्यता प्राप्त हो जाती है। धन-धान्य की वृद्धि होती है। जो स्त्रियां इस व्रत को करती हैं, उनका सौभाग्य अटल रहता है तथा अच्छी संतान उत्पन्न होती है।

धन संक्राति

इस माह में जो मनुष्य नित्य नियम करके नित्य स्नान करके श्री शिवजी का पूजन करते हैं और शिवजी के बीज मंत्र “ॐ नमः शिवाय" का जप करते हैं, वह सब कष्टों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त हो जाते हैं। कथा- प्राचीन समय की बात है कि एक ब्राह्मण का पुत्र जिसका नाम वासुदेव था, बुरी संगति में फंस कर अत्यन्त दुराचारी हो गया और नित्य ही, पाप के कर्म करने लगा। वह वन में जाता और वहां यात्रियों को लूटकर उनकी हत्या कर देता, स्त्रियों का अपहरण करता और उनके साथ बलात्कार कर मंदिरापान करता और मांस आदि खाकर सारी-सारी रात वनों में रहता, प्रात: समय होते ही घर में चला आता और सज्जनों की तरह सब कार्य करता था।