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=== धन संक्राति ===
 
=== धन संक्राति ===
इस माह में जो मनुष्य नित्य नियम करके नित्य स्नान करके श्री शिवजी का पूजन करते हैं और शिवजी के बीज मंत्र “ॐ नमः शिवाय" का जप करते हैं, वह सब कष्टों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त हो जाते हैं। कथा- प्राचीन समय की बात है कि एक ब्राह्मण का पुत्र जिसका नाम वासुदेव था, बुरी संगति में फंस कर अत्यन्त दुराचारी हो गया और नित्य ही, पाप के कर्म करने लगा। वह वन में जाता और वहां यात्रियों को लूटकर उनकी हत्या कर देता, स्त्रियों का अपहरण करता और उनके साथ बलात्कार कर मंदिरापान करता और मांस आदि खाकर सारी-सारी रात वनों में रहता, प्रात: समय होते ही घर में चला आता और सज्जनों की तरह सब कार्य करता था।
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इस माह में जो मनुष्य नित्य नियम करके नित्य स्नान करके श्री शिवजी का पूजन करते हैं और शिवजी के बीज मंत्र “ॐ नमः शिवाय" का जप करते हैं, वह सब कष्टों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त हो जाते हैं। कथा- प्राचीन समय की बात है कि एक ब्राह्मण का पुत्र जिसका नाम वासुदेव था, बुरी संगति में फंस कर अत्यन्त दुराचारी हो गया और नित्य ही, पाप के कर्म करने लगा। वह वन में जाता और वहां यात्रियों को लूटकर उनकी हत्या कर देता, स्त्रियों का अपहरण करता और उनके साथ बलात्कार कर मंदिरापान करता और मांस आदि खाकर सारी-सारी रात वनों में रहता, प्रात: समय होते ही घर में चला आता और सज्जनों की तरह सब कार्य करता था। संसार के सभी अवगुण, असत्य भाषण, मंदिरापान, चोरी करना, स्त्रियों के साथ बलात्कार करना यह सब पाप उस दुराचारी में हो गये। इन सब पापों के फलस्वरूप उसके कोढ़ निकल आया, उसके शरीर के सब अंग गलने लगे और वह महा दुःखी हो गया। तब घरवालों ने भी उसे बाहर निकाल दिया और जो कुछ धन उसके पास था वह भी सब नाश हो गया। तब वह भिक्षावृत्ति करके अपना निर्वाह करने लगा।
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ऐसी दशा में उसने नदी किनारे पर जाकर एक वृक्ष के नीचे अपनी कुटिया बना लो। वहां पर उसे जो कोई भिक्षा में दे जाता उसी से वह अपना उदर पूर्ण करने लगा, इसी प्रकार उसे वहां पर रहते हुए कुछ काल व्यतीत हो गया। वह नित्यपति नदी से जल लाता और कुटी के पास पड़ी हुई एक शिला पर रख देता इस प्रकार कुछ जल उसके हाथ से उस शिला पर गिर जाता। इस प्रकार एक समय पौष का मास आ गया और वह इसी प्रकार कार्य करता रहा, उसी प्रकार पौष मास की पूर्णमासो आई तो उसने उस दिन भी उसी प्रकार जल डाला, परन्तु स्नान करके और जल लाने के कारण शोत से उसके प्राण निकल गये। उसी समय यमराज के उसके सूक्ष्म शरीर को पाश में बांधकर ले जाने लगे कि सहसा आकाश से एक सुन्दर विमान उतरा और उसमें से शिवदूतों ने उतरकर यमदूतों से " आकर कहा-“यह नरक में नहीं जा सकता, इसने पुण्य का एक बहुत बड़ा कार्य किया है ।
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यमदूत कहने लगे-"इसने तो सारी आयु पर्यन्त बड़े-बड़े पाप के कार्य किये है, कोई धर्म का कार्य किया ही नहीं, अत: यह नरक में ही जाने योग्य है।" शिव दूत कहने लगे-"इसने पौष मास में शिवजी पर जल चढ़ाया है। यह शिला जो तुम देख रहे हो, शिवलिंग है, जो कि बहुत दिनों से यहां पर विराजमान है. इस भेद को कोई नहीं जानता था उसी कारण इसकी पूजा नहीं होती थी, इस ब्राह्मण ने पौष मास में इस पर जल चढ़ाने से चाहे वह अज्ञानवश ही हो, इसको यमपुरो जाने से रोक दिया, अब यह शिवलोक को प्राप्त होगा।"
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=== सुफला एकादशी व्रत ===
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यह व्रत पौष कृष्ण पक्ष एकादशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान अच्युत को पूजा का विशेष विधान है। इस व्रत को धारण करने वाले को चाहिये कि प्रातः स्नान करके भगवान की आरटी करें और भोग लगायें। ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन अथवा दान देना चाहिये। रात्रि में जागरण करते हुए कीर्तन पाठ करना अत्यन्त फलदायी होता है, इस व्रत को करने से सम्पूर्ण कार्यों में अवश्य ही सफलता मिलती है, अतएव इसका नाम सुफला एकादशी है ।
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