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इनमें नामकरण , निष्क्रमण ,अन्नप्रासन , मुंडन और कान छिदवाने के साथ-साथ विद्यारंभ आदि निम्नलिखित संस्कार का समावेश है।
 
इनमें नामकरण , निष्क्रमण ,अन्नप्रासन , मुंडन और कान छिदवाने के साथ-साथ विद्यारंभ आदि निम्नलिखित संस्कार का समावेश है।
  
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सामाजिक विकास की प्रक्रिया में ' नाम ' की अवधारणा का उदय कब हुआ ठीक से नहीं पता। शुरुआती दिनों में लोग एक-दूसरे को बुलाने के लिए ' अ ', ' हे ', ' हां ', ' आह ' जैसे अर्थहीन शब्दों का प्रयोग करते होंगे । मानव और भाषा के विकास के दौरान, किसी एक चीज के लिए, किसी वस्तु के लिए शब्द तय किए गए   और वह सामाजिक और समाज मान्य हो गया। अगली कालखंड में संबोधन की आवश्यकता महसूस हुई , और इसे एक ' नाम ' देने का प्रस्ताव हुआ । बिलकुल शुरूआत में तो व्यक्तिगत समूह के नेता या प्रमुख के लिए केवल अक्षर या  शब्द का प्रयोग किया गया था। समय के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए नाम व्यवस्था की गयी हो । जैसे-जैसे भाषा विकसित होती गई, वैसे-वैसे नामों की विविधता अर्थपूर्ण हो गयी । पारिवारिक जीवन में संबोधन के लिए अनिवार्य रूप से शिशु/बच्चे के पैदा होते ही नामकरण संस्कार में उनका नामकरण हो गया ।
  
सामाजिक विकास की प्रक्रिया में ' नाम ' की अवधारणा का उदय कब हुआ ठीक से नहीं पता। शुरुआती दिनों में लोग एक-दूसरे को बुलाने के लिए ' अ ', ' हे ', ' हां ', ' आह ' जैसे अर्थहीन शब्दों का प्रयोग करते होंगे । मानव और भाषा के विकास के दौरान, किसी एक चीज के लिए, किसी वस्तु के लिए शब्द तय किए गए   और वह सामाजिक और समाज मान्य हो गया। अगली कालखंड में संबोधन की आवश्यकता महसूस हुई , और इसे एक ' नाम ' देने का प्रस्ताव हुआ । बिलकुल शुरूआत में तो व्यक्तिगत समूह के नेता या प्रमुख के लिए केवल अक्षर या  शब्द का प्रयोग किया गया था। समय के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए नाम व्यवस्था की गयी हो ।
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=== प्राचीन रूप: ===
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संतों और विद्वानों ने बच्चे के नामकरण के लिए अलग-अलग समय निर्धारित किया है। जन्म के बाद  दसवें दिन , बारहवें , सोलहवें , एक महीने या एक साल यह अलग समय है। गोमिल गुह्यसूक्त में जन्म की ग्यारहवीं दिन या सौवें दिन या एक वर्ष के बाद नामकरण संस्कार करने का आग्रह किया गया है।
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बालक या बालिका के नामकरण को लेकर शास्त्रों में भी अलग-अलग बाते पाए जाते हैं। अश्वलायन गुह्यसूक्त में व्यक्ति के लिए प्रतिष्ठा या प्रसिद्धि के लिए दो शाब्दिक नाम रखो ऐसा कहा गया है । ब्रह्मवर्चस्व कार्य के लिए व्यक्ति के पास चार अक्षर का नाम होना चाहिए। लड़की के नाम के बारे में मनु कहते हैं, ' लड़की के नाम का उच्चारण सुखद है , सीधी , सुनने में मृदु , ( अक्रूर) सुंदर , मांगलिक लंबी और आशीर्वादयुक्त होना चाहिए।
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नदियों , नक्षत्रों , पहाड़ों , पक्षियों , पेड़ों , सांपों आदि पर आधारित नाम रखा जाता था। भारत में, नामकरण जाति या पंथ पर आधारित नहीं रखा जाता था।
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नामकरण संस्कार के समय माता स्नान करती है और शिशु/बच्चा नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर बच्चे को पिता की गोद में बिठाया जाता है। पिता बच्चे को संबोधित करते और कहते , " बालक , तुम अपने कुलदेवता के भक्त हो। आपका जन्म एक निश्चित महीने में हुआ है। तो तेरा सांसारिक नाम आज से ' अमुक ' है ।वहा उपस्थित ब्राह्मण ' नाम प्रतिष्ठित हो , प्रतिष्ठित किया जाए , प्रतिष्ठित किया जाए ' ऐसे त्रिवार सामूहिक जयकारे लगाते हैं और आशीर्वाद दिया जाता है। साथ ही ' तुम वेद हो ' वे ऐसे ऋचाओं और मंत्रों का पाठ करते हैं। सभी ब्राह्मण और उपस्थित समूह  बच्चे को दीर्घायु , बुद्धिमान और यशस्वी  होने का आशीर्वाद देते हैं। उसके बाद प्रसाद और भोजनादिका का आयोजन किया जाता है और संस्कार स्थापित किए जाते हैं।

Revision as of 13:35, 21 April 2022

नामकरण

नाम धेयं ततोयश्चापि महापुरुष कर्मणाम्।

विशादन प्रेरकंच भावेतत्वगुण बोधकम।

इनमें नामकरण , निष्क्रमण ,अन्नप्रासन , मुंडन और कान छिदवाने के साथ-साथ विद्यारंभ आदि निम्नलिखित संस्कार का समावेश है।

नामकरण:

सामाजिक विकास की प्रक्रिया में ' नाम ' की अवधारणा का उदय कब हुआ ठीक से नहीं पता। शुरुआती दिनों में लोग एक-दूसरे को बुलाने के लिए ' अ ', ' हे ', ' हां ', ' आह ' जैसे अर्थहीन शब्दों का प्रयोग करते होंगे । मानव और भाषा के विकास के दौरान, किसी एक चीज के लिए, किसी वस्तु के लिए शब्द तय किए गए   और वह सामाजिक और समाज मान्य हो गया। अगली कालखंड में संबोधन की आवश्यकता महसूस हुई , और इसे एक ' नाम ' देने का प्रस्ताव हुआ । बिलकुल शुरूआत में तो व्यक्तिगत समूह के नेता या प्रमुख के लिए केवल अक्षर या  शब्द का प्रयोग किया गया था। समय के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए नाम व्यवस्था की गयी हो । जैसे-जैसे भाषा विकसित होती गई, वैसे-वैसे नामों की विविधता अर्थपूर्ण हो गयी । पारिवारिक जीवन में संबोधन के लिए अनिवार्य रूप से शिशु/बच्चे के पैदा होते ही नामकरण संस्कार में उनका नामकरण हो गया ।

प्राचीन रूप:

संतों और विद्वानों ने बच्चे के नामकरण के लिए अलग-अलग समय निर्धारित किया है। जन्म के बाद  दसवें दिन , बारहवें , सोलहवें , एक महीने या एक साल यह अलग समय है। गोमिल गुह्यसूक्त में जन्म की ग्यारहवीं दिन या सौवें दिन या एक वर्ष के बाद नामकरण संस्कार करने का आग्रह किया गया है।

बालक या बालिका के नामकरण को लेकर शास्त्रों में भी अलग-अलग बाते पाए जाते हैं। अश्वलायन गुह्यसूक्त में व्यक्ति के लिए प्रतिष्ठा या प्रसिद्धि के लिए दो शाब्दिक नाम रखो ऐसा कहा गया है । ब्रह्मवर्चस्व कार्य के लिए व्यक्ति के पास चार अक्षर का नाम होना चाहिए। लड़की के नाम के बारे में मनु कहते हैं, ' लड़की के नाम का उच्चारण सुखद है , सीधी , सुनने में मृदु , ( अक्रूर) सुंदर , मांगलिक लंबी और आशीर्वादयुक्त होना चाहिए।

नदियों , नक्षत्रों , पहाड़ों , पक्षियों , पेड़ों , सांपों आदि पर आधारित नाम रखा जाता था। भारत में, नामकरण जाति या पंथ पर आधारित नहीं रखा जाता था।

नामकरण संस्कार के समय माता स्नान करती है और शिशु/बच्चा नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर बच्चे को पिता की गोद में बिठाया जाता है। पिता बच्चे को संबोधित करते और कहते , " बालक , तुम अपने कुलदेवता के भक्त हो। आपका जन्म एक निश्चित महीने में हुआ है। तो तेरा सांसारिक नाम आज से ' अमुक ' है ।वहा उपस्थित ब्राह्मण ' नाम प्रतिष्ठित हो , प्रतिष्ठित किया जाए , प्रतिष्ठित किया जाए ' ऐसे त्रिवार सामूहिक जयकारे लगाते हैं और आशीर्वाद दिया जाता है। साथ ही ' तुम वेद हो ' वे ऐसे ऋचाओं और मंत्रों का पाठ करते हैं। सभी ब्राह्मण और उपस्थित समूह  बच्चे को दीर्घायु , बुद्धिमान और यशस्वी  होने का आशीर्वाद देते हैं। उसके बाद प्रसाद और भोजनादिका का आयोजन किया जाता है और संस्कार स्थापित किए जाते हैं।