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=== जया एकादशी ===
 
=== जया एकादशी ===
यह उत्तम व्रत माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को शुद्ध अन्त:करण से करना चाहिये। इस दिन किसी भी प्रकार के दुर्गुण को स्वप्न में भी चित्त में स्थान नहीं देना चाहिये। प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर
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यह उत्तम व्रत माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को शुद्ध अन्त:करण से करना चाहिये। इस दिन किसी भी प्रकार के दुर्गुण को स्वप्न में भी चित्त में स्थान नहीं देना चाहिये। प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवा। केशव (वीका) की पुष्प, जल, अक्षत, शैली विशिष्ट सुगन्धित पदार्थों से पूजा करके आरती उतारनी चाहिये। भगवान की भी लगाकर प्रसाद को भक्त स्वयं ग्रहण करें।
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==== व्रत कथा- ====
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एक बार की बात है कि इन्द्र की सभा में एक गर्व गीत गा रहा था। लेकिन उसका मन अपनी नवयौवना सुन्दरी में आसक्न था। अतएव स्वर लय भंग हो रहा था। यह लीला इन्द्र को बहुत बुरी खटकी। इस पर उन्होंने श्रोधित होकर उसे श्राप दिया- "हे दुष्ट गन्धर्व तू जिसकी याद में मस्त है, यह राक्षसी ही जायेगी।" यह श्राप सुनकर वह बहुत घबड़ाया और देवराज इन्द्र से क्षमायाचना करने लगा। इन्द्र के कुछ न बोलने पर वह घर चला आया। उसने घर आकर देखा तो उसकी पत्नी वास्तव में पिशाचिनी रूप में मिली। उसने श्राप निवत्ति के लिये यल किए, लेकिन सब व्यर्थ। अन्त में वह हार कर बैठ गया। अकस्मात् एक रोज उसका साक्षात्कार देवर्षि नारद से हो गया। दुःख का कारण पूछने पर उसने आपबीती सुना दी। यह सुनकर नारद ने माघ शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का व्रत तथा भगवत कीर्तन करने को कहा। गंधर्व के नारर के कथारानुसार जया एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से उसकी पत्नी अत्यन्त रूपवाली सौन्दर्यशाली हो गयी।
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=== संक्रान्ति (मकर संक्रान्ति) ===
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जब माघ मास में सूर्य मकर राशि पर आये, तब उस दिन तथा उस समय की संक्रान्ति प्रवेश काल और संक्रान्ति वाहते हैं। अंग्रेजी तारीख के हिसाब से यह हमेशा 14 जनवरी को मनायी जाती है। इस दिन गंगा या यमुना में स्नान करें। ब्राह्मण तथा देवर्षि नारद के भिखारियों को यथाश्रद्धा दान दें। संक्रान्ति के 1-2 दिन पहले बायना निकालने के लिये सफेद तिल, काले तिल, चून और मूंग की दाल के लडडू बनायें। काले तिल के लड्डूओं पर दक्षिणा रखकर संक्रान्ति के दिन ब्राह्मणों को दे दें। संक्रान्ति के एक दिन पहले अपने हाथों में मेहंदी लगायें और संक्रान्ति के दिन गंगास्नान करें। बायना काढने के लिये जितने चाहे उतने सफेद तिल के और दाल के लड्डू लें और उन पर रुपये रखकर तथा हाथ फेरकर अपनी सासुजी को पांव छूकर दे दें। गरीबों और ब्राह्मणों के लिये खिचड़ी दान करें। इसके अलावा श्रद्धानुसार जो भी वस्तु चाहे चौदह वस्तु लेकर उन पर हाथ फेर दें। इन चौदह वस्तुओं को चाहे तो ब्राह्मणों को दे दें। चाहे तो अपने रिश्तेदारों नन्द, जेठानी, दौरानी आदि को भेज दें। जैसा भी उचित समझे। जितनी चीजों का बायना निकालना हो तो उतनी चीजों और रुपये लड़कियों को वायना काढ़कर उनकी ससुराल भेज दें। संक्रान्ति के 360 नेग होते हैं। इन्हें किसी वृद्ध स्त्री से पूछकर कर लें। जिस लड़की की शादी इसी साल हुई हो उस लड़की को उसी साल घाट-पाट सी बना 2 कोठी मुददी 3 चूड़ियां मुट्ठी का नियम करें। दूसरे वर्ष उस लड़की से उजमन करायें और उसकी ससुराल लड्डू, रुपये भेज दें। लड़की विवाह की साल संक्रान्ति के दिन लड़की की ससुराल सब तरह के लड्डू, साड़ी, सोने की चूड़ी आदि भेजकर उस लड़की से उजमन करायें। लड़की सब सामान का बायना काढ़कर अपनी सासुजी को पैर छूकर दें। बायने में रुपये भी रखें। संक्रान्ति के दिन विवाहित लड़की व्रत करें। व्रतों का सामान पीहर वाले लड़की की ससुराल भेजे ।
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=== शीतला छठ ===
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यह माघ मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को आती है। इस दिन कुत्ते को दूध और रोली से टीका करके उसको ठंडे-ठंडे पकवान खिलायें। व्रत रखने वाली स्त्रियां ठन्डे पानी में स्नान कर, ठन्डा भोजन करे और अन्य व्यक्तियों को भी ठन्डा भोजन दें। यह व्रत अधिकतर बंगाल में किया जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से आयु बढ़ती है।
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==== शीतला छठ की कथा- ====
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एक गांव में एक सेठ और सेठानी रहते थे। उनके सात पुत्र और सात पुत्री थीं। उसके सभी बच्चों का विवाह हो गया था। एक दिन ठसने गर्म पानी से स्नान कर गर्म ही भोजन किया। ऐसा करने से उसके सभी बच्चों की मृत्यु एक साथ ही हो गई। सेठानी बहुत रोई परन्तु सब व्यर्थ। जब रात्रि में वह सोई थी, तब एक बुढ़िया ने उसे जगाकर कहा-हे सेठानी! कल तूने गर्म पानी से स्नान किया, गर्म भोजन खाया जिस कारण तेरे साथ ये सब हुआ। मैं शीतला माता हूँ यदि कल सुबह तू व्रत रखकर कुत्ते के दही, रोली से टीका लगाकर उसे ठन्डे पकवान खिलायेगी, तो तेरे घर के सभी जीवित हो जायेंगे। सेठानी ने दूसरे दिन ऐसा  ही किया और उसके घर के सभी जीवित हो गये। इसलिए इसे शीतला छठ कहते है ।
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=== मौनी अमावस्या ===
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माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं, इस दिन प्राणी पूरे दिन चुप रहता है। यह व्रत एक दिन, छ: महीने या एक साल जब तक रखना चाहें रख सकते हैं। इस व्रत को धारण करने से मुनि पद की प्राप्ति होती है; अर्थात् अगले जन्म में मुनि कहलाने के अधिकारी हो जाते हैं, अन्त समय में ब्रह्मलोक की भी प्राप्ति होती है। इस दिन युग प्रवर्तक मनुजी का जन्म दिवस है। इसलिए इस दिन उनकी याद में मौन धारण करना चाहिये। इस दिन काले तिल और गुड़ के लड्डू बनाकर उसमें दक्षिणा रखकर तथा एक लाल कपड़े में बांधकर ब्राह्मणों को दानस्वरूप दे दें। काले तिल से शरीर का उबटन करें और गंगाजी या यमुनाजी में स्नान करें।
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=== सूर्य सप्तमी ===
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यह व्रत माघ मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी को होता है। इस दिन भगवान सूर्य देव को गंगाजल से अर्घ्य दें। रोली, लाल चन्दन, चावल, लाल पुष्प, फल, जनेऊ, धूप, दक्षिणा चढ़ायें और दीपक कपूर से आरती उतारें। सूर्य देव की परिक्रमा दें। इसके उपरान्त ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दान देकर विदा करे। बाद में स्वयं भोजन करें। इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
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=== भीमाष्टमी व्रत ===
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यह व्रत माघ मास की शुक्ल अष्टमी को आता है। इस दिन कौरव और पाण्डवों के बाबा भीष्म पितामह की इच्छामृत्यु हुई थी। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण में रहते हैं। भीष्म पितामह के तर्पण के लिये इस दिन व्रत रखकर सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिये। जो इस प्रकार व्रत रखते हैं वे श्रीकृष्ण-लोक को प्राप्त होते हैं।
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=== माघ पूनो ===
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यह व्रत माघ मास की पूर्णिमा को रखा जाता है। यह दिन माघ स्नान का अन्तिम दिन होता है। इस दिन प्रयाग स्नान से नर्क की यातनायें नहीं भुगतनी पड़ती और मनुष्य भवसागर से पार होकर विष्णु-लोक को जाता है।
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