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==== '''व्रत कथा-''' ====
 
==== '''व्रत कथा-''' ====
एक समय विषादाग्रस्त देवता लोग भगवान शंकर के पास गये। उस समय भगवान शिव के सन्मुख स्वामी कार्तिकेय और गणेशजी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा-तुममें से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे? तब कार्तिकेय ने अपने को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य और सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया इस बात पर शिवजी ने गणेशजी की इच्छा जाननी चाही। तब गणेशजी ने विनम्र भाव से कहा-"पिताजी आपकी अनुमति हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं। बड़ा देवता बनाये या न बनाये, इसकी
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एक समय विषादाग्रस्त देवता लोग भगवान शंकर के पास गये। उस समय भगवान शिव के सन्मुख स्वामी कार्तिकेय और गणेशजी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा-तुममें से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे? तब कार्तिकेय ने अपने को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य और सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया इस बात पर शिवजी ने गणेशजी की इच्छा जाननी चाही। तब गणेशजी ने विनम्र भाव से कहा-"पिताजी आपकी अनुमति हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं। बड़ा देवता बनाये या न बनाये, इसकी मुझे चेष्टा नहीं है।" यह सुनकर हँसते हए शिव ने दोनों पुत्रों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा और यह शर्त रखी “जो सबसे पहले पथ्वी की परिक्रमा करके आ जायेगा वही वीर और सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जायेगा।" यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिये। गणेशजी समझा-चूहे के बल पर सम्पूर्ण परिक्रमा करना कठिन है इसलिये उन्होंने एक युक्ति सोची। ये सात बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गये। मार्ग में कार्तिक को पूरे पृथ्वी मंडल में उनके आगे चूहे के पग दिखाई नहीं दिये। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई-कार्तिकेय गणेशजी पर कीचड़ उछालने लगे और अपने को सम्पूर्ण-मण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेशजी ने शिवजी से कहा-“माता-पिता में ही सम्पूर्ण तीर्थ निहित है। इसलिए मैंने आपकी सात परिक्रमाएं की हैं। गणेशजी की इस बात को सुनकर सम्पूर्ण देवगणों और कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकरजी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेशजी की बढ़ाई की और आशीर्वाद दिया-"त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी। तब गणेश ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया। यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने यह बताया-"चौथ के दिन चन्द्रमा तुम्हारे सिर का सेहरा बनकर सम्पूर्ण संसार को शीतलता प्रदान करेगा जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन और देगा उसका त्रिविध ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा एवं ऐश्वर्य सोभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षातिरेक में प्रणाम कर अन्तर्ध्यान हो गया।
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=== षटतिला एकादशी ===
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यह उत्तम व्रत माघ मास कृष्णा एकादशी को किया जाता है। इस दिन तिल के उबटन को लगाना, तिल की मालिश करना, तिलों का हवन करना, तिल मिश्रित जल पीना, तिलों के बने पदार्थ को खाना, तिलों का दान देना आदि छ: प्रकार से तिलों का प्रयोग किया जाता है। पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराना चाहिये। दिन में हरि कीर्तन कर रात्रि में भगवान की मूर्ति के सामने ही सोना चाहिये।
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==== व्रत कथा- ====
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प्राचीन काल में वाराणसी में एक अहीर रहता था। दीनता से काहिल वह बेचारा कभी-कभी भूखा ही बच्चों सहित आकाश के तारे गिनता रहता था। उसका पेट भरने का साधन जंगल को लकड़ियां काटकर बेचना था। उनके ना बिकने पर उसे भूखा ही रहना पड़ता था। एक दिन उसने किसी साहूकार के यहां व्रतोत्सव की तैयारी देखकर पूछा-"यह क्या हो रहा है?" सेठ ने उसे बताया-"घटतिला नामक इस व्रत को करने से घोर पाप, रोग, हत्या आदि भव-बंधनों से छुटकारा तथा धन, पुत्र की प्राप्ति होती है।" यह सुनकर अहीर
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