Line 72: |
Line 72: |
| | | |
| ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः । तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥५- १६॥ | | ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः । तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥५- १६॥ |
| + | |
| + | jñānena tu tad ajñānaṁ yeṣāṁ nāśitam ātmanaḥ teṣām āditya-vaj jñānaṁ prakāśayati tat param ॥ 5- 16 ॥ |
| | | |
| तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः । गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः ॥५- १७॥ | | तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः । गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः ॥५- १७॥ |
| + | |
| + | tad-buddhayas tad-ātmānas tan-niṣṭhās tat-parāyaṇāḥ gacchanty apunar-āvṛttiṁ jñāna-nirdhūta-kalmaṣāḥ ॥ 5- 17 ॥ |
| | | |
| विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥५- १८॥ | | विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥५- १८॥ |
| + | |
| + | vidyā-vinaya-sampanne brāhmaṇe gavi hastini śuni caiva śva-pāke ca paṇḍitāḥ sama-darśinaḥ ॥ 5- 18 ॥ |
| | | |
| इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः । निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥५- १९॥ | | इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः । निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥५- १९॥ |
| + | |
| + | ihaiva tair jitaḥ sargo yeṣāṁ sāmye sthitaṁ manaḥ nirdoṣaṁ hi samaṁ brahma tasmād brahmaṇi te sthitāḥ ॥ 5- 19 ॥ |
| | | |
| न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् । स्थिरबुद्धिरसंमूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थितः ॥५- २०॥ | | न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् । स्थिरबुद्धिरसंमूढो ब्रह्मविद्ब्रह्मणि स्थितः ॥५- २०॥ |
| + | |
| + | na prahṛṣyet priyaṁ prāpya nodvijet prāpya cāpriyam sthira-buddhir asammūḍho brahma-vid brahmaṇi sthitaḥ ॥ 5- 20 ॥ |
| | | |
| बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत् सुखम् । स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥५- २१॥ | | बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत् सुखम् । स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥५- २१॥ |
| + | |
| + | bāhya-sparśeṣv asaktātmā vindaty ātmani yat sukham sa brahma-yoga-yuktātmā sukham akṣayam aśnute ॥ 5- 21 ॥ |
| | | |
| ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते । आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥५- २२॥ | | ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते । आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥५- २२॥ |
| + | |
| + | ye hi saṁsparśa-jā bhogā duḥkha-yonaya eva te ādy-antavantaḥ kaunteya na teṣu ramate budhaḥ ॥ 5- 22 ॥ |
| | | |
| शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् । कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥५- २३॥ | | शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् । कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥५- २३॥ |
| + | |
| + | śaknotīhaiva yaḥ soḍhuṁ prāk śarīra-vimokṣaṇāt kāma-krodhodbhavaṁ vegaṁ sa yuktaḥ sa sukhī naraḥ ॥ 5- 23 ॥ |
| | | |
| योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः । स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥५- २४॥ | | योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः । स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥५- २४॥ |
| + | |
| + | yo ’ntaḥ-sukho ’ntar-ārāmas tathāntar-jyotir eva yaḥ sa yogī brahma-nirvāṇaṁ brahma-bhūto ’dhigacchati ॥ 5- 24 ॥ |
| | | |
| लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः । छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥५- २५॥ | | लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः । छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥५- २५॥ |
| + | |
| + | labhante brahma-nirvāṇam ṛṣayaḥ kṣīṇa-kalmaṣāḥ chinna-dvaidhā yatātmānaḥ sarva-bhūta-hite ratāḥ ॥ 5- 25 ॥ |
| | | |
| कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् । अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥५- २६॥ | | कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् । अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥५- २६॥ |
| + | |
| + | kāma-krodha-vimuktānāṁ yatīnāṁ yata-cetasām abhito brahma-nirvāṇaṁ vartate viditātmanām ॥ 5- 26 ॥ |
| | | |
| स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः । प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥५- २७॥ | | स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः । प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥५- २७॥ |
| + | |
| + | sparśān kṛtvā bahir bāhyāṁś cakṣuś caivāntare bhruvoḥ prāṇāpānau samau kṛtvā nāsābhyantara-cāriṇau ॥ 5- 27 ॥ |
| | | |
| यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः । विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥५- २८॥ | | यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः । विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥५- २८॥ |
| + | |
| + | yatendriya-mano-buddhir munir mokṣa-parāyaṇaḥ vigatecchā-bhaya-krodho yaḥ sadā mukta eva saḥ ॥ 5- 28 ॥ |
| | | |
| भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् । सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥५- २९॥ | | भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् । सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥५- २९॥ |
| + | |
| + | bhoktāraṁ yajña-tapasāṁ sarva-loka-maheśvaram suhṛdaṁ sarva-bhūtānāṁ jñātvā māṁ śāntim ṛcchati ॥ 5- 29 ॥ |
| | | |
| ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मसंन्यासयोगो नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥ | | ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मसंन्यासयोगो नाम पञ्चमोऽध्यायः ॥ ५ ॥ |