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त्रिगुणात्मक प्रकृति के द्वारा निर्मित समस्त जगत् एवं ग्रह सत्व, रज एवं तमोमय है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन ग्रहों में सत्व गुण आधिक्य वशात्  अमृतमय किरणें, रजोगुण आधिक्य वशात् उभयगुण मिश्रित किरणें एवं तमोगुण आधिक्य वशात् विषमय-किरणें   
 
त्रिगुणात्मक प्रकृति के द्वारा निर्मित समस्त जगत् एवं ग्रह सत्व, रज एवं तमोमय है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन ग्रहों में सत्व गुण आधिक्य वशात्  अमृतमय किरणें, रजोगुण आधिक्य वशात् उभयगुण मिश्रित किरणें एवं तमोगुण आधिक्य वशात् विषमय-किरणें   
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== ग्रहण ==
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== ग्रहण॥ Eclipse ==
ग्रहण खगोलीयपिण्डों के भ्रमण वश आकाशमें उत्पन्न होने वाली एक अद्भुत घटना है। इससे अश्रुतपूर्व, अद्भुत ज्योतिष्क-ज्ञान और ग्रह उपग्रहोंकी गतिविधि  एवं स्वरूपका परिस्फुट परिचय प्राप्त हुआ है। ग्रहोंकी यह घटना भारतीय मनीषियोंको अत्यन्त प्राचीनकालसे अभिज्ञात रही है और इसपर धार्मिक तथा वैज्ञानिक विवेचन धार्मिक ग्रन्थों और ज्योतिष-ग्रन्थोंमें होता चला आया है। महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण-ज्ञानके उपज्ञ (प्रथम ज्ञाता) आचार्य थे। ऋग्वेदीय प्रकाशकालसे ग्रहणके ऊपर अध्ययन, मनन और स्थापन होते चले आये हैं। गणितके बलपर ग्रहणका पूर्ण पर्यवेक्षण प्रायः पर्यवसित हो चुका है, जिसमें वैज्ञानिकोंका योगदान(दूरीकरण) कर सूर्यका समुद्धार किया।<blockquote>यत् त्वा सूर्य स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः। अक्षेत्रविद्यथा मुग्धो भुवनान्यदीधयुः ॥
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ग्रहण खगोलीयपिण्डों के भ्रमण वश आकाशमें उत्पन्न होने वाली एक अद्भुत घटना है। इससे अश्रुतपूर्व, अद्भुत ज्योतिष्क-ज्ञान और ग्रह उपग्रहोंकी गतिविधि  एवं स्वरूपका परिस्फुट परिचय प्राप्त हुआ है। ग्रहोंकी यह घटना भारतीय मनीषियोंको अत्यन्त प्राचीनकालसे अभिज्ञात रही है और इसपर धार्मिक तथा वैज्ञानिक विवेचन धार्मिक ग्रन्थों और ज्योतिष-ग्रन्थोंमें होता चला आया है। महर्षि अत्रिमुनि ग्रहण-ज्ञानके उपज्ञ (प्रथम ज्ञाता) आचार्य थे। ऋग्वेदीय प्रकाशकालसे ग्रहणके ऊपर अध्ययन, मनन और स्थापन होते चले आये हैं। गणितके बलपर ग्रहणका पूर्ण पर्यवेक्षण प्रायः पर्यवसित हो चुका है, जिसमें वैज्ञानिकोंका योगदान भी महत्वपूर्ण है।
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== परिचय ॥ Introduction ==
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सूर्यः सोमो महीपुत्रः सोमपुत्रो बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरो राहुः केतुश्चेति ग्रहाः स्मृताः॥
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सूर्य, चन्द्र, महीपुत्र(मंगल), सोमपुत्र(बुध), बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रह कहे जाते हैं। भा
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व्युत्पत्तिः|| Etymology
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ग्रहयुद्ध
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ग्रहण का धार्मिक महत्व॥
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ग्रहण कालकी अवधि
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एक मासमें दो ग्रहण
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ग्रहण की स्थितियाँ
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पात वा राहु केतु विचार<blockquote>यत् त्वा सूर्य स्वर्भानुस्तमसाविध्यदासुरः। अक्षेत्रविद्यथा मुग्धो भुवनान्यदीधयुः ॥
    
स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्। सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण गूळ्हं ब्रह्मणाविन्ददत्रिः ॥(ऋक्० ५/४०/५-६) </blockquote>अगले एक मन्त्रमें यह आता है कि 'इन्द्रने अत्रिकी सहायतासे ही राहुकी मायासे सूर्यकी रक्षा की थी।' इसी प्रकार ग्रहणके निरसनमें समर्थ महर्षि अत्रिके तप:सन्धानसे समुद्भूत अलौकिक प्रभावोंका वर्णन वेदके अनेक मन्त्रोंमें प्राप्त होता है। किंतु महर्षि अत्रि किस अद्भुत सामर्थ्यसे इस अलौकिक कार्यमें दक्ष माने गये, इस विषयमें दो मत हैं-प्रथम परम्परा-प्राप्त यह मत कि वे इस कार्यमें तपस्याके प्रभावसे समर्थ हुए और दूसरा यह कि वे कोई नया यन्त्र बनाकर उसकी सहायतासे ग्रहणसे उन्मुक्त हुए सूर्यको दिखलानेमें समर्थ हुए। यही कारण है कि महर्षि अत्रि ही भारतीयों ग्रहणके प्रथम आचार्य (उपज्ञ) माने गये।  
 
स्वर्भानोरध यदिन्द्र माया अवो दिवो वर्तमाना अवाहन्। सूर्यं तमसापव्रतेन तुरीयेण गूळ्हं ब्रह्मणाविन्ददत्रिः ॥(ऋक्० ५/४०/५-६) </blockquote>अगले एक मन्त्रमें यह आता है कि 'इन्द्रने अत्रिकी सहायतासे ही राहुकी मायासे सूर्यकी रक्षा की थी।' इसी प्रकार ग्रहणके निरसनमें समर्थ महर्षि अत्रिके तप:सन्धानसे समुद्भूत अलौकिक प्रभावोंका वर्णन वेदके अनेक मन्त्रोंमें प्राप्त होता है। किंतु महर्षि अत्रि किस अद्भुत सामर्थ्यसे इस अलौकिक कार्यमें दक्ष माने गये, इस विषयमें दो मत हैं-प्रथम परम्परा-प्राप्त यह मत कि वे इस कार्यमें तपस्याके प्रभावसे समर्थ हुए और दूसरा यह कि वे कोई नया यन्त्र बनाकर उसकी सहायतासे ग्रहणसे उन्मुक्त हुए सूर्यको दिखलानेमें समर्थ हुए। यही कारण है कि महर्षि अत्रि ही भारतीयों ग्रहणके प्रथम आचार्य (उपज्ञ) माने गये।  
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