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[[File:Jatakarma Article.jpg|thumb|348x348px|'''<big>Jatkarm Sanskar</big>''']]
 
<blockquote>'''कन्या सुपुत्रयोस्तुल्यं वात्सल्यं च भवेत्सटा।'''
 
<blockquote>'''कन्या सुपुत्रयोस्तुल्यं वात्सल्यं च भवेत्सटा।'''
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<blockquote>कुछ शास्त्रों में प्रसूति से पहले इस संस्कार को करने की प्रथा है , हालांकि कई विद्वान इसे जन्म के दौरान या बाद में किए जाने वाले संस्कार मानते हैं। बच्चे के जन्म से पहले एक समतल और साफ जगह का निर्माण किया जाता है। उस पर एक या दो कमरे अस्थायी रूप से रहने के लिए बनाते हैं. इसे प्रसूति गृह कहते है |
 
<blockquote>कुछ शास्त्रों में प्रसूति से पहले इस संस्कार को करने की प्रथा है , हालांकि कई विद्वान इसे जन्म के दौरान या बाद में किए जाने वाले संस्कार मानते हैं। बच्चे के जन्म से पहले एक समतल और साफ जगह का निर्माण किया जाता है। उस पर एक या दो कमरे अस्थायी रूप से रहने के लिए बनाते हैं. इसे प्रसूति गृह कहते है |
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गर्भवती महिलाओं को वास्तविक देखभाल से पहले यहां रखते है। उसके पास अनुभवी, हंसमुख और भरोसेमंद महिलाओं को रखा जाता है। प्रसव के दौरान उपयोग आने वाले उपकरण , बर्तन , पानी गर्म करने के लिए, औषधियुक्त धुप निर्माण के लिए यहाँ अग्नि प्रज्वलित राखी जाती है। यह  ' सुतिकाग्नि! परन्तु वह ' अशुद्ध ' अर्थात प्रामाणिक या यज्ञअग्नी से अधिक अशुद्ध माना जाता है बच्चे के जन्म के बाद सुतक समाप्त हो जाता है, तो वे इसे नष्ट कर देते हैं।</blockquote>
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गर्भवती महिलाओं को वास्तविक देखभाल से पहले यहां रखते है। उसके पास अनुभवी, हंसमुख और भरोसेमंद महिलाओं को रखा जाता है। प्रसव के दौरान उपयोग आने वाले उपकरण , बर्तन , पानी गर्म करने के लिए, औषधियुक्त धुप निर्माण के लिए यहाँ अग्नि प्रज्वलित राखी जाती है। यह  ' सुतिकाग्नि! परन्तु वह ' अशुद्ध ' अर्थात प्रामाणिक या यज्ञअग्नी से अधिक अशुद्ध माना जाता है बच्चे के जन्म के बाद सुतक समाप्त हो जाता है, तो वे इसे नष्ट कर देते हैं।
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बच्चे के जन्म के बाद जब पिता पहली बार उसे देखता है , तब वही कपड़े पहने वह स्नान करता है , बड़ों का आशीर्वाद लेता है और नांदीश्राद्ध करते है , इस समय शास्त्रों के अनुसार निम्नलिखित क्रियाएं की जाती हैं। यज्ञ सुतिकाग्नी प्रज्वलित होने के बाद उसमे से निरंतर धुँआ निकलता रहे इसलिए अनाज के छिलके और भूसा डालते है । उसके बाद पिता बच्चे को सोने की अंगूठी या दूसरे सोने की वस्तुओ के स्पर्श से शहद और घी का स्वाद चखाते हैं।
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मेघाजनन :
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इस बारे में अलग-अलग मत हैं। अश्वलायन और शंखयान में शिशु दाहिने कान में मंत्रोच्चारण करते है । इसे मेधाजनन कहा जाता है , लेकिन शंखयान के अनुसार गोविल ने दही और घी खाने की सलाह दी है। भारत में प्राचीन काल से ही बौद्धिक विकास को प्राथमिकता दी गई है बौद्धिक विकास को बढ़ाने के प्रतीक के रूप में कान में मंत्र जप अधिक महत्व होता है। यह कान से मस्तिष्क तक जाने वाली तरंगों के माध्यम से बुद्धि के गठन का प्रतीक है।
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स्तनपान:
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नामजप करने के बाद मां को बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए।
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देशाभिमंत्रण :
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इस विधि में जहाँ पर प्रसव हुआ उस स्थान के कृतज्ञता स्वरुप वहा , कुछ मंत्रौच्चारण के साथ पूजा करके प्रणाम करते है।
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नामकरण:
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आपस्तंग गुह्यसूत्र में जन्म के समय नक्षत्र के अनुसार शिशु का गुप्त नाम रखा जाता है। यह नाम तो माता-पिता ही जानते हैं - पिता वे बच्चे के कान में उच्चारण करते हैं , " तुम वेद हो।"
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पंच-ब्राह्मण स्थान:
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ये क्रियाएं पिता या आमंत्रित ब्राह्मण द्वारा की जाती हैं। प्राण यह जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। बच्चे की उम्र लंबी होनी चाहिए अत : उसके शरीर में पंचप्राण का उचित परिसंचरण आवश्यक है इस  भावों को मन में रखकर चारों दिशाओं में एक ब्राह्मण खड़ा होता है , एक ब्राह्मण दक्षिण की ओर देखते हैं और प्रतिश्वास लेते हैं , दूसरे पश्चिम की ओर देखते निश्वास , तीसरी को उत्तर की ओर देखते हुए बहिश्वास और चौथा पूर्व की ओर देखते हुए उच्छ्वास शब्दों का प्रयोग करते हुए श्वास लेंते और छोड़ेंते है । स्वयं ब्राह्मण नहीं तो पिता बच्चे के चारों ओर घूमकर इस अनुष्ठान को करता है।
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इस संस्कार के समाप्ति के बाद , दान और दक्षिणा जितना संभव हो उतना सोना देते हैं , वे भूमि , गाय , घोड़े , छतरियां , बकरी , माली , आसन दान करते हैं।
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वर्तमान प्रारूप:
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आजकल इस संस्कार में शास्त्रोंविधि के साथ-साथ लोकाचार को भी समाविष्ट किया गया है। कुछ स्थानों पर केवल लोकाचार को ही देखी जाती हैं। आजकल बच्चो की प्रसूति वार्ड में या किसी अस्पताल में होती है वहा यह संस्कार करना संभव नहीं है। तो डिलीवरी के बाद छठे या दसवें दिन जब बालनतिन घर आता है तो वह यह संस्कार करना चाहिए । इस समय प्रसव के बाद पहली बार बच्चे और मां को नहलाया जाता है। बच्चे को नीम के पानी से नहला कर सुटक को समाप्त किया जाता है | देव पूजा और हवन किया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं। इस विधि में मां बच्चे के नाखून काटती है। प्रकृति और चूंकि जड़ में चैतन्य की पूजा भारतीय संस्कृति का मूल होने के कारन जन्म स्थान की कृतज्ञता की भावना के साथ उस स्थान को प्रणाम करते हैं।
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बच्चे के जन्म के समय:
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उस समय की खगोलीय दशाओं को संगृहीत करने के लिए इस समय सही बुद्धिमान आचार्य द्वारा  जन्मकुंडली – जन्मपत्रिका तैयार किया जाता है। कुछ लोग बच्चे का नाम कुंडली राशिनुसार अक्षर पर रखा जाता है।
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भारत में ज्योतिष को एक विकसित विज्ञान के रूप में मान्यता प्राप्त है। परनिंदा , उचित अध्ययन की कमी , स्वार्थ केंद्री भावनाओं के कारन कई भ्रांतियों को जन्म दिया है । .</blockquote>
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