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== कुशा का प्रयोग ==
 
== कुशा का प्रयोग ==
भारत में हिन्दू लोग इसे निम्न लिखित विषयों मे प्रयोग कर्ते है
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भारत में सनातन धर्मी लोग इसे निम्न लिखित विषयों मे प्रयोग कर्ते हैं-
 
* देव-पूजा(नित्य,नैमित्तिक,काम्य आदि)  
 
* देव-पूजा(नित्य,नैमित्तिक,काम्य आदि)  
 
* तर्पण - श्राद्ध (एकोद्दिष्ट,पार्वणिक,काम्य(त्रिपिण्डी श्राद्ध,नारायण बली )आदि)  
 
* तर्पण - श्राद्ध (एकोद्दिष्ट,पार्वणिक,काम्य(त्रिपिण्डी श्राद्ध,नारायण बली )आदि)  
* दशविध स्नान 
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* आसन
* असन
   
* यज्ञ या हवन  
 
* यज्ञ या हवन  
 
* ग्रहशांति पूजन  
 
* ग्रहशांति पूजन  
    
=== देव-पूजा ===
 
=== देव-पूजा ===
संध्योपासन,नित्य पूजन,गणेश गौरी कलश विष्णु आदि देव पूजन में दोनों  हाथों की अनामिका उंगली में कुश की बनी हुइ पवित्री धारण करनी चाहिये।
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संध्योपासन,नित्य पूजन,गणेश गौरी कलश विष्णु आदि देव पूजन में दोनों  हाथों की अनामिका उंगली में कुश की बनी हुई पवित्री धारण करनी चाहिये एवं संकल्प आदि विविध पूजन संबन्धी कार्यों में कुश की आवश्यकता पड़ती है।
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जपहोमहरा ह्य ते श्रसुरा दैत्यरूपिणः
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जपहोमहरा ह्य ते श्रसुरा दैत्यरूपिणः ।पवित्रकृतहस्तस्य विद्रवन्ति दिशो दश ।।
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पवित्रकृतहस्तस्य विद्रवन्ति दिशो दश ।।
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यथा वज्रं सुरेन्द्रस्य यथा चकं हरेस्तथा।त्रिशूलं च त्रिनेत्रस्य ब्राह्मणस्य पवित्रकम् ।।( हारीतः)
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यथा वज्रं सुरेन्द्रस्य यथा चकं हरेस्तथा।
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'''अनु''' '''-''' जप और होमके फलको हरण करनेवाले दैत्यरूपी असुर हाथमें पवित्र धारण किये हुए ब्राह्मण को देखकर दशों दिशाओं  में भाग जाते हैं। जैसे इन्द्रका वज्र, विष्णुका चक्र और शिवका त्रिशूल शस्त्र कहा गया है, वैसे ही ब्राह्मण का रक्षक शस्त्र पवित्र कहा गया है।
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त्रिशूलं च त्रिनेत्रस्य ब्राह्मणस्य पवित्रकम् ।।( हारीतः)
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कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया ॥
 
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'जप और होमके फलको हरण करनेवाले दैत्यरूपी असुर
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हाथमें पवित्र धारण किये हुए ब्राह्मण को देखकर दशों दिशाओं में
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भाग जाते हैं। जैसे इन्द्रका वज्र, विष्णुका चक्र और शिवका
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'''अनु-''' कुशके बिना जो पूजा होती है, वह निष्फल कही गई है
 
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त्रिशूल शस्त्र कहा गया है, वैसे ही ब्राह्मण का रक्षक शस्त्र पवित्र
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कहा गया है।
      
कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है।
 
कुश की अंगूठी बनाकर अनामिका उंगली में पहनने का विधान है, ताकि हाथ द्वारा संचित आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए, क्योंकि अनामिका के मूल में सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है।
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कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया ॥
 
कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया ॥
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'कुशके बिना जो पूजा होती है, वह निष्फल कही गई है ।
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कुशके बिना जो पूजा होती है, वह निष्फल कही गई है ।
    
उदकेन विना पूजा विना दर्भेण या क्रिया ॥ श्राज्येन च विना होमः फलं दास्यन्ति नैव ते।( यज्ञ-मीमांसा)
 
उदकेन विना पूजा विना दर्भेण या क्रिया ॥ श्राज्येन च विना होमः फलं दास्यन्ति नैव ते।( यज्ञ-मीमांसा)
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'कुशके  जलके बिना जो पूजा है, कुशके बिना जो यज्ञादि क्रिया है और घृतके बिना जो होम है, वह कदापि फलप्रद नहीं होता।'
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'''अनु'''- जलके बिना जो पूजा है, कुशके बिना जो यज्ञादि क्रिया है और घृतके बिना जो होम है, वह कदापि फलप्रद नहीं होता।
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=== '''तर्पण - श्राद्ध''' ===
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श्राद्धक लिये ये बड़े ही दुर्लभ श्राद्धमें कुश तथा कृष्ण तिलकी महिमा कुश तथा काला तिल-ये दोनों भगवान् विष्णुके शरीरसे प्रादुर्भूत हुए हैं। अत: ये श्राद्धकी रक्षा करनेमें सर्वसमर्थ हैं-ऐसा देवगण कहते हैं। समूलाग्र हरित (जड़से अन्ततक हरे) तथा गोकर्णमात्र परिमाणके कुश श्राद्धमें उत्तम कहे गये हैं। विष्णोदेहसमुद्भूताः कुशाः कृष्णास्तिलास्तथा । श्राद्धस्य रक्षणायालमेतत् प्राहुर्दिवौकसः॥ (मत्स्यपुराण २२।८९)
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चितौ दर्भाः पथिदर्भा ये दर्भा यज्ञभूमिषु । स्तरणासनपिण्डेषु षट् कुशान् परिवर्जयेत् ॥ हता मूत्रपुरीषाभ्यां तेषां त्यागो विधीयते॥ (श्राद्धसंग्रह, श्राद्धविवेक, श्राद्धकल्पलता
    
=== ग्रहशांति पूजन ===
 
=== ग्रहशांति पूजन ===
केतु शांति विधानों में कुशा की मुद्रिका और कुशा की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं। रात्रि में जल में भिगो कर रखी कुशा के जल का प्रयोग कलश स्थापना में सभी पूजा में देवताओं के अभिषेक, प्राण प्रतिष्ठा, प्रायश्चित कर्म, दशविध स्नान आदि में किया जाता है।
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केतु शांति विधानों में कुशा की मुद्रिका और कुशा की आहूतियां विशेष रूप से दी जाती हैं। रात्रि में जल में भिगो कर रखी कुशा के जल का प्रयोग कलश स्थापन में सभी पूजा में देवताओं के अभिषेक, प्राण प्रतिष्ठा, प्रायश्चित कर्म आदि में किया जाता है।
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केतु को अध्यात्म और मोक्ष का कारक माना गया है। देव पूजा में प्रयुक्त कुशा का पुन: उपयोग किया जा सकता है, परन्तु पितृ एवं प्रेत कर्म में प्रयुक्त कुशा अपवित्र हो जाती है। देव पूजन, यज्ञ, हवन, यज्ञोपवीत, ग्रहशांति पूजन कार्यो में रुद्र कलश एवं वरुण कलश में जल भर कर सर्वप्रथम कुशा डालते हैं।
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केतु को अध्यात्म और मोक्ष का कारक माना गया है। देव पूजा में प्रयुक्त कुशा का पुन: उपयोग किया जा सकता है, परन्तु पितृ एवं प्रेत कर्म में प्रयुक्त कुशा अपवित्र हो जाती है। यज्ञ, हवन, यज्ञोपवीत, ग्रहशांति पूजन कार्यो में रुद्र कलश एवं वरुण कलश में जल भर कर सर्वप्रथम कुशा डालते हैं।
    
कलश में कुशा डालने का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि कलश में भरा हुआ जल लंबे समय तक जीवाणु से मुक्त रहता है। पूजा समय में यजमान अनामिका अंगुली में कुशा की नागमुद्रिका बना कर पहनते हैं।   
 
कलश में कुशा डालने का वैज्ञानिक पक्ष यह है कि कलश में भरा हुआ जल लंबे समय तक जीवाणु से मुक्त रहता है। पूजा समय में यजमान अनामिका अंगुली में कुशा की नागमुद्रिका बना कर पहनते हैं।   
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कहलाता है और वह इहलोकमें फलप्रद नहीं होता
 
कहलाता है और वह इहलोकमें फलप्रद नहीं होता
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यज्ञादिमें कुशकण्डिका आवश्यक है
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'एष एव विधिर्यत्र क्वचिद्धोमः । ( पा० गृ० सू० १।१।२७) इस
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सूत्रसे कुशकण्डिकाविधि ( अग्निमुख
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गाह्य, स्मार्त्त, तान्त्रिक
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और लौकिक हवन-कर्म में सर्वत्र आवश्यक है।
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'उपयमनप्रभृत्यौपासनस्य परिचरणम् ।' ( पा० गृ० सू० १।६।१ )
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सभी शान्तिक, पौष्टिक तथा
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प्रायश्चित्तादि कर्मोमें कुशकण्डिका करनी ही चाहिये
    
=== कुशा आसन का महत्त्व : ===
 
=== कुशा आसन का महत्त्व : ===
कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं। नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। (देवी भागवत 19/32) अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता।
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कौशेयं कम्बलं चैव अजिनं पट्टमेव च । दारुजं तालपत्रं वा आसनं परिकल्पयेत्॥(याज्ञवल्क्य) (धर्मप्रश्न)
 
कौशेयं कम्बलं चैव अजिनं पट्टमेव च । दारुजं तालपत्रं वा आसनं परिकल्पयेत्॥(याज्ञवल्क्य) (धर्मप्रश्न)
    
कुश, कम्बल, मृगचर्म, व्याघ्रचर्म और रेशमका आसन जपादिके लिये विहित है ।
 
कुश, कम्बल, मृगचर्म, व्याघ्रचर्म और रेशमका आसन जपादिके लिये विहित है ।
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उल्लेखनीय है कि वेद ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।
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कहा जाता है कि कुश के बने आसन पर बैठकर मंत्र जप करने से सभी मंत्र सिद्ध होते हैं।
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नास्य केशान् प्रवपन्ति, नोरसि ताडमानते। (देवी भागवत 19/32)
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अर्थात कुश धारण करने से सिर के बाल नहीं झडते और छाती में आघात यानी दिल का दौरा नहीं होता।
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उल्लेखनीय है कि शास्त्रों में कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।
    
इसपर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है। कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है।
 
इसपर बैठकर साधना करने से आरोग्य, लक्ष्मी प्राप्ति, यश और तेज की वृद्घि होती है। साधक की एकाग्रता भंग नहीं होती। कुशा की पवित्री उन लोगों को जरूर धारण करनी चाहिए, जिनकी राशि पर ग्रहण पड़ रहा है। कुशा मूल की माला से जाप करने से अंगुलियों के एक्यूप्रेशर बिंदु दबते रहते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार ठीक रहता है।
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पूजा-अर्चना आदि धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। यह एक प्रकार की घास है, जिसे अत्यधिक पावन मान कर पूजा में इसका प्रयोग किया जाता है।
 
पूजा-अर्चना आदि धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। यह एक प्रकार की घास है, जिसे अत्यधिक पावन मान कर पूजा में इसका प्रयोग किया जाता है।
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== कुशोत्पाटिनी या कुशाग्रहणीअमावस्या ! ==
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== कुशोत्पाटिनी अमावस्या का महत्व ==
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* कुशोत्पाटिनी अमावस्या
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* कुशके भेद
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* कौन सा कुश उखाड़ेंं
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* कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व
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'''कुशोत्पाटिनी अमावस्या'''
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भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शास्त्रों में कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है।इस दिन उखाड़ा गया कुश एक वर्ष तक चलता है; खास बात ये है कि कुश उखाडऩे से एक दिन पहले बड़े ही आदर के साथ उसे अपने घर लाने का निमंत्रण दिया जाता है। हाथ जोड़कर प्रार्थना की जाती है।मंत्र का जाप करते हुए कुश को उखाडऩा है उसे अपने साथ घर लाना है और एक साल तक घर पर रखने से आपको शुभ फल प्राप्त होंगे।
 
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शास्त्रों में कुशाग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है।इस दिन उखाड़ा गया कुश एक वर्ष तक चलता है; खास बात ये है कि कुश उखाडऩे से एक दिन पहले बड़े ही आदर के साथ उसे अपने घर लाने का निमंत्रण दिया जाता है। हाथ जोड़कर प्रार्थना की जाती है।मंत्र का जाप करते हुए कुश को उखाडऩा है उसे अपने साथ घर लाना है और एक साल तक घर पर रखने से आपको शुभ फल प्राप्त होंगे।
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अत: प्रत्येक गृहस्थ को इस दिन कुश का संचय करना चाहिये
 
अत: प्रत्येक गृहस्थ को इस दिन कुश का संचय करना चाहिये
   −
== कौन सा कुश उखाड़ेंं ==
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'''कुशके भेद'''
कुश उखाडऩे से पूर्व यह ध्यान रखें कि जो कुश आप उखाड़ रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो। ऐसा कुश ना उखाड़ें जो गन्दे स्थान पर हो, जो जला हुआ हो, जो मार्ग में हो या जिसका अग्रभाग कटा हो, इस प्रकार का कुश ग्रहण करने योग्य नहीं होता है।
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== कुशके भेद ==
   
शास्त्रों में सात प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है-
 
शास्त्रों में सात प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है-
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'कुश, काश, दूर्वा, जौका पत्ता, धानका पत्ता, बल्वज और कमल--ये सात प्रकारके कुश कहे गये हैं।'
 
'कुश, काश, दूर्वा, जौका पत्ता, धानका पत्ता, बल्वज और कमल--ये सात प्रकारके कुश कहे गये हैं।'
   −
यानि कुश, काश , दूर्वा, जौ पत्र इत्यादि कोई भी कुश आज उखाड़ी जा सकती है और उसका घर में संचय किया जा सकता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि हरी पत्तेदार कुश जो कहीं से भी कटी हुई ना हो , एक विशेष बात और जान लीजिए कुश का स्वामी केतु है लिहाज़ा कुश को अगर आप अपने घर में रखेंगे तो केतु के बुरे फलों से बच सकते हैं।
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यानि कुश, काश , दूर्वा, जौ पत्र इत्यादि कोई भी कुश आज उखाड़ी जा सकती है और उसका घर में संचय किया जा सकता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि हरी पत्तेदार कुश जो कहीं से भी कटी हुई ना हो , एक विशेष बात और जान लीजिए कुश का स्वामी केतु है लिहाज़ा कुश को अगर आप अपने घर में रखेंगे तो केतु के बुरे फलों से बच सकते हैं।ज्योतिष शास्त्र के नज़रिए से कुश को विशेष वनस्पति का दर्जा दिया गया है।
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ज्योतिष शास्त्र के नज़रिए से कुश को विशेष वनस्पति का दर्जा दिया गया है। इसका इस्तेमाल ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीज़ों में रखने के लिए होता है, कुश की पवित्री उंगली में पहनते हैं तो वहीं कुश के आसन भी बनाए जाते हैं।
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'''कौन सा कुश उखाड़ेंं'''
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कुश उखाडऩे से पूर्व यह ध्यान रखें कि जो कुश आप उखाड़ रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो। ऐसा कुश ना उखाड़ें जो गन्दे स्थान पर हो, जो जला हुआ हो, जो मार्ग में हो या जिसका अग्रभाग कटा हो, इस प्रकार का कुश ग्रहण करने योग्य नहीं होता है।
    
कौन सा कुश उखाड़ेंं
 
कौन सा कुश उखाड़ेंं
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कुश उखाडऩे से पूर्व यह ध्यान रखें कि जो कुश आप उखाड़ रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो। ऐसा कुश ना उखाड़ें जो गन्दे स्थान पर हो, जो जला हुआ हो, जो मार्ग में हो या जिसका अग्रभाग कटा हो, इस प्रकार का कुश ग्रहण करने योग्य नहीं होता है।
 
कुश उखाडऩे से पूर्व यह ध्यान रखें कि जो कुश आप उखाड़ रहे हैं वह उपयोग करने योग्य हो। ऐसा कुश ना उखाड़ें जो गन्दे स्थान पर हो, जो जला हुआ हो, जो मार्ग में हो या जिसका अग्रभाग कटा हो, इस प्रकार का कुश ग्रहण करने योग्य नहीं होता है।
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== संयम, साधना और तप के लिए कुशाग्रहणीअमावस्या  का दिन श्रेष्ठ- ==
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चितौ दर्भाः पथिदर्भा ये दर्भा यज्ञभूमिषु । स्तरणासनपिण्डेषु षट् कुशान् परिवर्जयेत् ॥ हता मूत्रपुरीषाभ्यां तेषां त्यागो विधीयते॥ (श्राद्धसंग्रह, श्राद्धविवेक, श्राद्धकल्पलता)
कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है. इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है। भगवान विष्णु की आराधना की जाती है यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है. जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
     −
== कुशाग्रहणी अमावस्या का विधि-विधान- ==
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'''कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व'''
कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र लेते हैं. प्रत्येक धार्मिक कार्यो के लिए कुशा का इस्तेमाल किया जाता है. शास्त्रों में भी दस तरह की कुशा का वर्णन प्राप्त होता है. जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो, इसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो, पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पितृ दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है. कुशा तोड़ते समय हूं फट मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
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कुश से बनी पवित्री (अंगूठी) पहनकर पूजा /तर्पण के  समय पहनी जाती है जिस भाग्यवान् ने सोने की अंगूठी पहनी हो उसको जरूरत नहीं है।<blockquote>मासि मास्वाहता दस्तित्तन्यास्येव चादृताः । (नित्यकर्म पूजाप्रकाश <ref>पं लालबिहारी मिश्र ,नित्यकर्म पूजाप्रकाश, गीताप्रेस गोरखपुर। (पृ ४१/४२)</ref>)</blockquote>कुश प्रत्येक दिन नई उखाडनी पडती है लेकिन अमावाश्या की तोडी कुशा पूरे महीने काम दे सकती है और भादों(भाद्रपद मास) की अमावश्या के दिन की तोडी कुशा पूरे साल काम आती है। इसलिए लोग इसे तोड के रख लते हैं।
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कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है. इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है।भगवान विष्णु की आराधना की जाती है यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है. जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
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कुशाग्रहणी अमावस्या का विधि-विधान-
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कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र लेते हैं. प्रत्येक धार्मिक कार्यो के लिए कुशा का इस्तेमाल किया जाता है. शास्त्रों में भी सात तरह की कुशा का वर्णन प्राप्त होता है. जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो, इसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो, पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पितृ दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है. कुशा तोड़ते समय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
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कुश से बनी पवित्री (अंगूठी) पूजा /तर्पण के  समय पहनी जाती है जिस भाग्यवान् ने सोने की अंगूठी पहनी हो उसको जरूरत नहीं है।<blockquote>मासि मास्वाहता दस्तित्तन्यास्येव चादृताः । (नित्यकर्म पूजाप्रकाश <ref>पं लालबिहारी मिश्र ,नित्यकर्म पूजाप्रकाश, गीताप्रेस गोरखपुर। (पृ ४१/४२)</ref>)</blockquote>कुश प्रत्येक दिन नई उखाडनी पडती है लेकिन अमावाश्या की तोडी कुशा पूरे महीने काम दे सकती है और भादों(भाद्रपद मास) की अमावश्या के दिन की तोडी कुशा पूरे साल काम आती है। इसलिए लोग इसे तोड के रख लते हैं।
    
अघोर चतुर्दशी के दिन तर्पण कार्य भी किए जाते हैं मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशाकी ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए।
 
अघोर चतुर्दशी के दिन तर्पण कार्य भी किए जाते हैं मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशाकी ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए।
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== कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व- ==
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कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व-  
अमायाश्च पितर:॥ (बृहदवकहड़ा चक्रम्)                          
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अमायाश्च पितर:॥<ref>बृहदवकहड़ा चक्रम् तिथि प्रकरण पृ ़३</ref>                          
    
शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है ।                           
 
शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है ।                           
   −
इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है!
+
इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है। <ref>संक्षिप्त श्री वराहपुराण,गीताप्रेस गोरखपुर पृ ८१</ref>
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प्रकट हुए।
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शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है!
   −
कुश ऊर्जा की कुचालक है। इसलिए इसके आसन पर बैठकर पूजा-वंदना, उपासना या अनुष्ठान करने वाले साधक की शक्ति का क्षय नहीं होता। परिणामस्वरूप कामनाओं की अविलंब पूर्ति होती है।कुश का प्रयोग पूजा करते समय जल छिड़कने, उन्गलि में पवित्री पहनने, विवाह में मंडप छाने तथा अन्य मांगलिक कार्यों में किया जाता है। इस घास के प्रयोग का तात्पर्य मांगलिक कार्य एवं सुख-समृद्धिकारी है, क्योंकि इसका स्पर्श अमृत से हुआ है।
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कुश ऊर्जा की कुचालक है। इसलिए इसके आसन पर बैठकर पूजा-वंदना, उपासना या अनुष्ठान करने वाले साधक की शक्ति का क्षय नहीं होता। परिणामस्वरूप कामनाओं की अविलंब पूर्ति होती है।कुश का प्रयोग पूजा करते समय जल छिड़कने, उन्गलि में पवित्री पहनने, विवाह में मंडप छाने तथा अन्य मांगलिक कार्यों में किया जाता है। इस घास के प्रयोग का तात्पर्य मांगलिक कार्य एवं सुख-समृद्धिकारी है, क्योंकि इसका स्पर्श अमृत से हुआ है। इसका इस्तेमाल ग्रहण के दौरान खाने-पीने की चीज़ों में रखने के लिए होता है, कुश की पवित्री उंगली में पहनते हैं तो वहीं कुश के आसन भी बनाए जाते हैं।संयम, साधना और तप के लिए कुशाग्रहणीअमावस्या  का दिन श्रेष्ठ-
    
== References ==
 
== References ==
 
<references />
 
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