Difference between revisions of "Importance of Trees in Jyotisha (ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों का महत्व)"

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Revision as of 16:54, 5 October 2023

वृक्ष प्रकृति के श्रृंगार हैं। भारतभूमि प्रकृति एवं जीवन के प्रति सद्भाव एवं श्रद्धा पर केन्द्रित मानव जीवन का मुख्य केन्द्रबिन्दु रही है। हमारी संस्कृतिमें स्थित स्नेह एवं श्रद्धा ने मानवमात्र में प्रकृति के साथ सहभागिता एवं अंतरंगता का भाव सजा रखा है। हमारे शास्त्रों में मनुष्य की वृक्षों के साथ अंतरंगता एवं वनों पर निर्भरता का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। हमारे मनीषियों ने अपनी गहरी सूझ-बूझ तथा अनुभव के आधार पर मानव जीवन, खगोल पिण्डों तथा पेड-पौधों के बीच के परस्पर संबन्धों का वर्णन किया है। ज्योतिषशास्त्र के संहिता स्कन्ध के अन्तर्गत वृक्षों का रोपण, वृक्ष रोपण के लिये सुष्ठु भूमि का चयन, किस वृक्ष को कब और किस स्थान पर रोपित करें, उनमें उत्पन्न होने वाले रोगों का आयुर्वेदिक निदान अत्यन्त आवश्यक बिन्दु है।

परिचय

पर्यावरण को हरा-भरा और प्रदूषण मुक्त बनाये रखने में वृक्षों का महत्वपूर्ण योगदान है। ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों को देवताओं और ग्रहों के निमित्त लगाकर उनसे शुभफल प्राप्त किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। शास्त्रों में एक वृक्ष सौ पुत्रों से भी बढकर बताया है क्योंकि वृक्ष जीवन पर्यन्त अपने पालक को समान एवं निःस्वार्थ भाव से लाभ पहुँचाता रहता है। बृहत्-संहिता में वृक्षों के लगाने के बारे में बताते हुए कहते हैं-

प्रान्तच्छायाविनिर्मुक्ता न मनोज्ञा जलाशयाः। यस्मादतो जलप्रान्तेष्वारामान् विनिवेशयेत्॥

यदि वापी, कूप, तालाब आदि जलाशयों के प्रान्त वृक्षों के छाया से रहित हो तो सुन्दर नहीं लगते हैं अर्थात् जलाशयों के किनारों पर बहुत सारे वृक्ष लगाने चाहिये।

शुभ मुहूर्त में वृक्षारोपण

ग्रह शान्ति एवं वृक्ष

ग्रहशान्ति के यज्ञीय कार्यों में सही पहचान के अभाव में अधिकतर लोगों को सही वनस्पति नहीं प्राप्त हो पाती, इसलिये नवग्रह वृक्षों को धार्मिक स्थलों के पास रोपित करना चाहिये जिससे यज्ञ कार्य के लिये लोगों को शुद्ध सामग्री मिल सके।

अर्चन-पूजन के लिये इन वृक्ष वनस्पतियों के सम्पर्क में आने पर भी ग्रहों के कुप्रभावों की शान्ति होती है अतः ग्रह शान्ति से वृक्षों का संबंध होने से वृक्षारोपण का महत्व और बढ जाता है। वृक्ष हमारी अनेक आवश्यकताओं के साथ अनेक रुपों में लाभप्रद हैं-

वश्यमाकर्षणं चैव श्रीपदं च विशेषतः, बिल्वपत्रैस्तु हवनं शत्रोर्विजयदं तथा।समिधः शान्ति कार्येषु पालाशखदिरादिकाः, करवीरार्कजाः क्रौर्ये कण्टकिन्यश्च विग्रहे॥(शि०पुरा० ३२/५५)

अर्थात् -बिल्वपत्र से हवन करने पर वश्य, आकर्षण, श्री एवं विजय की प्राप्ति होती है। शान्ति के कार्य में पलाश की लकडी की समिधा का उपयोग करना चाहिये। क्रूर कार्यों में करवीर एवं अर्क(मन्दार) की समिधा तथा विग्रह के लिये कण्टकारि की समिधा का उपयोग

हवन समिधा एवं वृक्ष

यज्ञ द्वारा ग्रह शान्ति के उपाय में हर ग्रह के लिये अलग-अलग विशिष्ट वनस्पति की समिधा(हवन काष्ठ) प्रयोग की जाती है, जैसा कि निम्न श्लोक में वर्णित है-

अर्कःपलाशःखदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पलः। औडमबरः शमी दूर्वा कुशश्च समिधः क्रमात् ॥(गरुड पुराण)

अर्थात् अर्क, पलाश, खदिर, अपामार्ग, पीपल, गूलर, शमी, दूब और कुश क्रमशः नवग्रहों की समिधायें हैं।

दान हेतु वृक्ष

नक्षत्र वन

नक्षत्र वृक्षों का वर्णन नारदसंहिता, शारदातिलक, विद्यार्णवतन्त्र, नारदपुराण, मन्त्रमहार्णव और राजनिघण्टु आदि ग्रन्थों में विस्तार से किया गया है। बृहत्सुश्रुत व नारायणार्नव नामक ग्रन्थों में भी नक्षत्र वृक्षों का विस्तार से वर्णन किये जाने का संकेत राजनिघण्टु में प्राप्त होता है।

ज्योतिषीय महत्व

नारद पुराण के अनुसार- जिस नक्षत्र में शनि विद्यमान हो उस समय उस नक्षत्र संबंधी वृक्ष का यत्नपूर्वक स्थापन, संवर्धन एवं पूजन करना चाहिये।

नारद संहिता के अनुसार- सुख शान्ति के लिये अपने जन्म नक्षत्र सबंधी वृक्ष की पूजा करनी चाहिये।

नक्षत्र वन
क्रम सं० नक्षत्र वृक्ष का हिन्दी नाम वृक्ष का वैज्ञानिक नाम
1 अश्विनी आंवला Emblica officinalis
2 भरणी यमक(युग्म वृक्ष) Ficus spp.
3 कृत्तिका उदुम्बर(गूलर) Ficus glomerata
4 रोहिणी जम्बु(जामुन) Syzygium cumini
5 मृगशिरा खदिर(खैर) Acacia catechu
6 आर्द्रा कृष्णप्लक्ष(पाकड) Ficus infectoria
7 पुनर्वसु वंश(बांस) Dendrocalamus/Bambusa spp
8 पुष्य पिप्पल(पीपल) Ficus religiosa
9 आश्लेषा नाग(नागकेसर) Mesua ferrea
10 मघा वट(बरगद) Ficus bengalensis
11 पूर्वाफाल्गुनी पलाश Butea monosperma
12 उत्तराफाल्गुनी अक्ष(रुद्राक्ष) Elaeocarpus gantirus
13 हस्त अरिष्ट(रीठा) Sapindus mukorrossi
14 चित्रा श्रीवृक्ष(बेल) Aegle marmelos
15 स्वाती अर्जुन Terminelia arjuna
16 विशाखा विकंकत Flacourtia indica
17 अनुराधा बकुल(मॉल श्री) Mimusops elengi
18 ज्येष्ठा विष्टि(चीड) Pinus roxburghii
19 मूल सर्ज्ज(साल) Shorea robusta
20 पूर्वाषाढा वंजुल(अशोक) Saraca indica
21 उत्तराषाढा पनस(कटहल) Artocarpus heterophyllus
22 श्रवण अर्क(अकवन) Calotropis procera
23 धनिष्ठा शमी Prosopis spicigera
24 शतभिषा कदम्ब Anthocephlus cadamba
25 पूर्वाभाद्रपदा आम Magnifera indica
26 उत्तराभाद्रपदा पिचुमन्द(नीम) Azadirachta indica
27 रेवती मधु(महुआ) Madhuca indica

नवग्रह और वृक्ष

पृथ्वी से आकाश की ओर देखने पर आसमान में स्थिर दिखने वाले पिण्डों/छायाओं को, नक्षत्र और स्थिति बदलते रहने वाले पिण्डों/छायाओं को ग्रह कहते हैं। ग्रह का अर्थ है पकडना। सम्भवतः अन्तरिक्ष से आने वाले प्रवाहों को पृथ्वी पर पहुँचने से पहले ये पिण्ड और छायायें उन्हैं टी०वी० के अन्टीना की तरह आकर्षित कर पकड लेती हैं और पृथ्वी के जीवधारियों के जीवन को प्रभावित करती हैं।

नवग्रह वन
क्रम सं० ग्रह नाम वृक्ष का हिन्दी नाम वृक्ष का वैज्ञानिक नाम
1 सूर्य श्वेत अर्क(सफेद मदार) Calotropis
2 चन्द्रमा पलाश(ढाक) Butea monosperma
3 मंगल खदिर(खैर) Acacia catechu
4 बुध अपामार्ग(चिचिडा) Achyranthus Aspera
5 बृहस्पति अश्वत्थ(पीपल) Ficus Religiosa
6 शुक्र उदुम्बर(गूलर) Ficus Racemosa
7 शनि शमी(छ्योकर) Prosopis Cenneraria
8 राहु दूर्बा(दूब) Cynodon Dactylon
9 केतु कुशा(दर्भ) Imperata cylindrica

आक(मदार)- ढाक(पलास)-खदिर(खैर)-अपामार्ग(चिचिडा)-पिप्पल(पीपल)-औडम्बर(गूलर)-शमी(छ्योकर)-दूर्वा(दूब)-कुशा(दर्भ)।

वृक्षों के उत्पादक ग्रह

स्थूलान् जनयति त्वर्को दुर्भगान् सूर्यपुत्रकः। क्षीरोपेतांस्तथा चन्द्रः कटुकाद्यान् धरासुतः॥सफलानफलाञ्जीवबुधौ, पुष्पतरून् कविः। नीरसान् सूर्यपुत्रश्च एवं ज्ञेयाः खगा द्विज॥(परा०हो०)[1]

अर्थ- सूर्य मोटे वृक्षों को, शनि कुत्सित या अभद्र वृक्षों को, चन्द्रमा दुग्धपूर्ण वृक्षों को, मंगल कटु(मिरचा आदि) वनस्पतियों को, गुरु सफल, बुध निष्फल(फल रहित) वृक्षों को, शुक्र फूल के वृक्षों को उत्पन्न करते हैं।

राशि एवं वृक्ष

राशि वृक्ष
क्रम सं० राशि का नाम वृक्ष का हिन्दी नाम वृक्ष का वैज्ञानिक नाम
1 मेष(Arise) रक्तचंदन Peterocarpus santalinus
2 वृष(Taurus) धतवन् Alstonia scholaris
3 मिथुन(Gemini) कटहल Artocarpus heterophyllus
4 कर्क(Cancer) पलास Butea manosperma
5 सिंह(Leo) वादल Stereospermum chelenoides
6 कन्या(Virgo) आम Mangifera indica
7 तुला(Libra) मॉलश्री Mimusops elengi
8 वृश्चिक(Scorpio) खैर Acacia catechu
9 धनु(Sagittarius) पीपल Ficus religiosa
10 मकर(Capricornus) कालाशीसम Dalbergia latifolia
11 कुम्भ(Aquarius) शमी Prosopis spicigera
12 मीन(Pisces) बरगद Ficus bengalensis

औषधि वन

प्रायः नक्षत्र, ग्रह या राशि वन तो यहाँ-वहाँ प्रयत्न करने पर उपलब्ध हो जाते हैं किन्तु औषधि वन नहीं देखे जाते हैं। वर्तमान समय में सामान्य जनमानस को औषधि संबंधि जानकारी नहीं रहने के कारण अपने आस-पास उपलब्ध जडी-बूटियों के संबर्द्धन की भावना भी नहीं हो पाती है। जन मानस को औषधीय पौधों के संबंध में अपेक्षित जानकारी उपलब्ध कराने तथा उनकी पहचान के उद्देश्य से औषधिवन की स्थापना करनी चाहिये। इन्हैं वृक्ष प्रकृति के अनुरूप स्थलीय एवं जलीय भागों में विभक्त कर लगाना चाहिये। वृक्ष स्थापना के अनन्तर पौधे का नाम, वानस्पतिक नाम एवं किन-किन बीमारियों में उनका उपयोग होता है, ये उद्धरित होने से यहां से जानकारी प्राप्त कर अधिकाधिक लोग इसका लाभ उठा पायेंगे। वर्तमान के अतिवैज्ञानिक युग में भी अतिगम्भीर बीमारियों के उपचार हेतु औषधि युक्त पौधों की प्रासंगिकता एलोपैथी की तुलना में कुछ कम नहीं हैं। यदि आवश्यकता है तो सिर्फ एक जानकार व्यक्ति की जिन्हैं इन पौधों के द्वारा होने वाअले उपचार की अच्छी जानकारी हो।

वास्तु शास्त्र में वृक्षों का महत्व

वास्तु शास्त्र के अनुसार प्रतिकूल वृक्षों को यदि ग्रह अनुकूलता हेतु अज्ञानतावश लगा देते हैं तो उन वृक्षों के द्वारा उत्पन्न होने वाला नकारात्मक प्रभाव

पर्यावरणीय महत्व

प्रत्येक वृक्ष के अपने अलग-अलग सूक्ष्म पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं।किन्तु अकेले में ये एकांगी व अधूरे होते हैं। सभी नक्षत्र वन, नवग्रह वन या राशि वनों के वृक्षों को एक साथ लगाने से इनके सूक्ष्म प्रभावों में संतुलन स्थापित रहता है, जो कि हर किसी के लिये लाभकारी होता है। अतः पर्यावरण में कल्याणकारी सन्तुलन स्थापित करने के लिये समस्त ग्रह, राशि एवं नक्षत्र संबन्धित वृक्षों को एक साथ स्थापित करना चाहिये।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व

भारतीय संस्कृति में वृक्षों एवं वनों को धार्मिक रूप से अत्यन्त महत्व प्रदान किया गया है। भगवान् शिव स्वयं बिल्व वृक्ष के उपासक हैं। यह वृक्ष भगवान् शिव का प्रिय वृक्ष एवं इसके पत्रों से शिव का पूजन करने का विधान है।

पूर्वैस्तिलयवैश्चाथ कमलैः पूजयेच्छिवम् । बिल्वपत्रैर्विशेषेण पूजयेत्परमेश्वरम् ॥

वृक्षों से लाभ

वृक्ष पूजा

पादप शब्द का अर्थ वृक्ष होता है। इस वृक्ष की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। सैन्धव पुरास्थलों से प्राप्त पुरावशेषों ने इस अवधारणा की पुष्टि की है। एक मुद्रा पर देवता वृक्ष की शाखाओं के मध्य खडा प्रदर्शित किया गया है।[2]

भारतीय परम्परा में जड और चेतन सब की पूजा की जाती है यास्क ने अपने निरुक्त में बताया है कि वस्तुओं की प्रकृति की विभिन्नता के कारण और उसकी सर्वव्यापकता के कारण ऋषिगण इसकी स्तुति करते हैं। वे एक दूसरे से जन्म पाते हैं इसलिये एक की आत्मा दूसरे में संक्रान्त होती रहती है। इसलिये एक का देवत्व दूसरे में अनायास चला जाता है। इसलिये भारतीय परम्पराओं में पहाड, नदी, वृक्ष आदि की आस्थापूर्वक पूजा की जाती है।

वृक्षायुर्वेद

वृक्षारोपण का महत्व

वृक्षों का महत्व एवं आवश्यकता की धारणा को बनाये रखने के लिये शास्त्रों में वर्णन होता है। अग्निपुराण के अनुसार-

वापीकूपतडागानि देवतायतनानि च। अन्नप्रदानमारामाः पूर्त धर्मं च मुक्तिदम् ॥

अर्थात् - उपवन लगाना या लगवाना पूर्तधर्म है जो कि मोक्ष प्रदान करने वाला है।

अतीतानागातान् सर्वान्पितृवंशांस्तु तारयेत्। कान्तारे वृक्षरोपी यस्तस्माद् वृक्षांस्तु रोपयेत॥

अर्थात् -जो व्यक्ति वन में वृक्षों को लगाता है वह व्यतीत हुये तथा भविष्य में पितृ वंश का उद्धार कर लेता है। अतः वृक्षारोपण रूपी पुण्य कार्य अवश्य करना चाहिये।

शिवपुराण में वृक्षों के महत्व को स्पष्ट करते हुये कहा गया है कि वृक्ष मनुष्य के धर्मपुत्र होते हैं-

पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान् । इह लोके परे चैव पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः॥

प्रदूषण रोधक वृक्ष और औषधियाँ

सारांश

ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों के रोपण, उन वृक्षों के रोग एवं निदान, वृक्षों को किस क्रम से लगाना चाहिये तथा वृक्षों को गृह के कौन-कौन से भाग (दिशा) में लगाना शुभ एवं अशुभ होता है। इस विषय पर ज्योतिषशास्त्र के संहिताचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में बहुत ही सुन्दर रूप में प्रतिपादित किया है। ग्रन्थों में वर्णन प्राप्त होता है कि अश्वत्थ, एक नीम, एक न्यग्रोध या बरगद, दस चिन्चिनीक या इमली के वृक्ष लगाने से और कैथ, बिल्व व आँवला के तीन तीन तथा आम का पांच वृक्ष लगाने से मनुष्य कभी नरक को प्राप्त नहीं होता है। इस संसार में केवल वृक्ष ही इहलौकिक और पारलौकिक आनन्द की अनुभूति करा सकते हैं। वृक्ष इस संसार को नाना प्रकार के कष्टों, आपदाओं से बचाते हैं इसीलिये इन्हैं इस संसार का मूलरक्षक भी कहा जाता है। यदि वृक्षों की उचित रूप से देखभाल की जाए तो वे अपनी छाया, पुष्प और फलों के माध्यम से हमारे लिये धर्म, अर्थ और मोक्ष की साधना में अत्यन्त ही सहायक होते हैं।

सन्दर्भ

  1. श्रीदेवचन्द्र झा, बृहत्पराशर-होराशास्त्रम् , सुधा व्याख्या,सन् २०२० वाराणसीः चौखम्बा प्रकाशन श्लो० ४०/४१ (पृ० १४)।
  2. Vandana Mishra, prachin bharat men vraksh pooja, 2018, Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith, -chapter-1, page- 18।