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# कर्म का फल इस जीवात्मा के हाथ में नहीं है । वह उसे प्रकृति के नियमों के अनुसार ही मिलता है ।
 
# कर्म का फल इस जीवात्मा के हाथ में नहीं है । वह उसे प्रकृति के नियमों के अनुसार ही मिलता है ।
 
# परमात्मा और जीवात्मा दोनों अविनाशी हैं । परमात्मा की सामर्थ्य असीम है । जीवात्मा की सामर्थ्य मर्यादित और अल्प है । जीवात्मा अल्पज्ञान होने से बार बार जन्म लेता है । अपने किये कर्मों से वह उन्नत भी होता है और पतित भी । उन्नत अवस्था की सीमा ब्रह्म प्राप्ति या मोक्ष है ।
 
# परमात्मा और जीवात्मा दोनों अविनाशी हैं । परमात्मा की सामर्थ्य असीम है । जीवात्मा की सामर्थ्य मर्यादित और अल्प है । जीवात्मा अल्पज्ञान होने से बार बार जन्म लेता है । अपने किये कर्मों से वह उन्नत भी होता है और पतित भी । उन्नत अवस्था की सीमा ब्रह्म प्राप्ति या मोक्ष है ।
# प्राणियों का शरीर अष्टधा प्रकृति से बना है । प्राणियों में जीवात्मा के कारण चेतना और चेतना के कारण के कारण गति होती है । जीवात्मा के या चेतना के अभाव में जीवन समाप्त हो जाएगा ।
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# प्राणियों का शरीर अष्टधा प्रकृति से बना है । प्राणियों में जीवात्मा के कारण चेतना और चेतना के कारण गति होती है । जीवात्मा के या चेतना के अभाव में जीवन समाप्त हो जाएगा ।
# मानव का स्तर मनुष्य जीवन में उसके गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार होता है । परिवार में जाति में या राष्ट्र में सभी स्तर पर मूल्यांकन इन्हीं के आधारपर होता है ।
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# मानव का स्तर मनुष्य जीवन में उसके गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार होता है । परिवार में जाति में या राष्ट्र में सभी स्तर पर मूल्यांकन इन्हीं के आधार पर होता है ।
 
# व्यवहार में यह सिद्धांत है कि जैसा व्यवहार हम अपने लिए औरों से चाहते हैं वैसा ही व्यवहार हम उनसे करें ।
 
# व्यवहार में यह सिद्धांत है कि जैसा व्यवहार हम अपने लिए औरों से चाहते हैं वैसा ही व्यवहार हम उनसे करें ।
# धैर्य, क्षमा, दया, मन पर नियंत्रण, चोरी न करना, शरीर और व्यवहार की शुद्धता, इन्दियोंपर नियंत्रण, बुद्धि का प्रयोग, ज्ञान का संचय, सत्य (मन, वचन और कर्म से) व्यवहार और क्रोध न करना ऐसा दस लक्षणों वाला धर्म माना जाता है।
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# धैर्य, क्षमा, दया, मन पर नियंत्रण, चोरी न करना, शरीर और व्यवहार की शुद्धता, इन्दियों पर नियंत्रण, बुद्धि का प्रयोग, ज्ञान का संचय, सत्य (मन, वचन और कर्म से) व्यवहार और क्रोध न करना ऐसा दस लक्षणों वाला धर्म माना जाता है।
 
# प्रत्येक व्यक्ति के लिए बुद्धि, तर्क और प्रकृति के नियमों की बात ही माननीय है। यही श्रेष्ठ व्यवहार है।  
 
# प्रत्येक व्यक्ति के लिए बुद्धि, तर्क और प्रकृति के नियमों की बात ही माननीय है। यही श्रेष्ठ व्यवहार है।  
 
इस देश में कभी ये लोग वेदमत के माने जाते थे । पीछे इनका नाम हिन्दू हुआ । वर्तमान  में यह नाम हिन्दू है । इस जनसमूह में बाहर से भी लोग आये । लेकिन यहाँ के आचार विचार स्वीकार कर वे हिन्दू बन गए ।
 
इस देश में कभी ये लोग वेदमत के माने जाते थे । पीछे इनका नाम हिन्दू हुआ । वर्तमान  में यह नाम हिन्दू है । इस जनसमूह में बाहर से भी लोग आये । लेकिन यहाँ के आचार विचार स्वीकार कर वे हिन्दू बन गए ।

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