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=== ३. एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति<ref>ऋग्वेद 1.164.46 (इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्। एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥)</ref> / विविधता में एकता ===
 
=== ३. एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति<ref>ऋग्वेद 1.164.46 (इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्। एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहु:॥)</ref> / विविधता में एकता ===
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सत्य एक ही है । किन्तु हर व्यक्ति को मिले ज्ञानेंद्रियों की, मन, बुध्दि और चित्त की क्षमताएं भिन्न है । इन साधनों के आधार पर ही कोई मनुष्य सत्य जानने का प्रयास करता है । ये सब बातें हरेक व्यक्ति की भिन्न होने के कारण उस के सत्य का आकलन भिन्न होना स्वाभाविक है ।<blockquote>सत्य एक अनुभूति भिन्न है सत्य यही तू जान </blockquote><blockquote>इंद्रिय, मन, बुध्दि भिन्न है भिन्न सत्य अनुमान</blockquote>एक प्रयोग से इसे हम समझने का प्रयास करेंगे । खुले आसमान में सितारें देखने के लिये दूरबीन लगाएं । दूरबीन के अगले कांच पर बीच में एक छोटा छेद वाला कागज चिपका दें । अब आकाश का एक छोटा हिस्सा ही दिखाई देगा । अब इस छोटे हिस्से में कितने तारे दिखाई देते है गिनती करें। संख्या लिख लें। अब एक अधू दृष्टि के मनुष्य को दूरबीन में से देखने दें । तारे गिनने दें । फिर संख्या लिख लें । अब तारों की संख्या कम हो गई होगी । अब एक अंधे को देखने दें । अब संख्या शून्य होगी । अब सोचिये तीनों मे से सत्य संख्या कौन सी है । तीनों संख्याओं के भिन्न होनेपर भी, तीनों ही अपने अपने हिसाब से सत्य का ही कथन कर रहे है ।  
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सत्य एक ही है । किन्तु हर व्यक्ति को मिले ज्ञानेंद्रियों की, मन, बुध्दि और चित्त की क्षमताएं भिन्न है । इन साधनों के आधार पर ही कोई मनुष्य सत्य जानने का प्रयास करता है । ये सब बातें हरेक व्यक्ति की भिन्न होने के कारण उस के सत्य का आकलन भिन्न होना स्वाभाविक है {{Citation needed}}।<blockquote>सत्य एक अनुभूति भिन्न है सत्य यही तू जान </blockquote><blockquote>इंद्रिय, मन, बुध्दि भिन्न है भिन्न सत्य अनुमान</blockquote>एक प्रयोग से इसे हम समझने का प्रयास करेंगे । खुले आसमान में सितारें देखने के लिये दूरबीन लगाएं । दूरबीन के अगले कांच पर बीच में एक छोटा छेद वाला कागज चिपका दें । अब आकाश का एक छोटा हिस्सा ही दिखाई देगा । अब इस छोटे हिस्से में कितने तारे दिखाई देते है गिनती करें। संख्या लिख लें। अब एक अधू दृष्टि के मनुष्य को दूरबीन में से देखने दें । तारे गिनने दें । फिर संख्या लिख लें । अब तारों की संख्या कम हो गई होगी । अब एक अंधे को देखने दें । अब संख्या शून्य होगी । अब सोचिये तीनों मे से सत्य संख्या कौन सी है । तीनों संख्याओं के भिन्न होनेपर भी, तीनों ही अपने अपने हिसाब से सत्य का ही कथन कर रहे है ।  
    
भारतीय मनीषियों की यही विशेषता रही है कि जो स्वाभाविक है, प्रकृति से सुसंगत है उसी को उन्होंने तत्व के रूप में सब के सामने रखा है। और एक उदाहरण देखें । न्यूटन के काल में यदि किसी ने आइंस्टीन के सिध्दांत प्रस्तुत किये होते तो क्या होता ? गणित और उपकरणों का विकास उन दिनों कम हुआ था । इसलिये आइंस्टीन के सिध्दांतों को अमान्य करदिया जाता । किन्तु आइंस्टीन के सिध्दांत न्यूटन के काल में भी उतने ही सत्य थे जितने आइंस्टीन के काल में ।
 
भारतीय मनीषियों की यही विशेषता रही है कि जो स्वाभाविक है, प्रकृति से सुसंगत है उसी को उन्होंने तत्व के रूप में सब के सामने रखा है। और एक उदाहरण देखें । न्यूटन के काल में यदि किसी ने आइंस्टीन के सिध्दांत प्रस्तुत किये होते तो क्या होता ? गणित और उपकरणों का विकास उन दिनों कम हुआ था । इसलिये आइंस्टीन के सिध्दांतों को अमान्य करदिया जाता । किन्तु आइंस्टीन के सिध्दांत न्यूटन के काल में भी उतने ही सत्य थे जितने आइंस्टीन के काल में ।
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