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सुधार जारि
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==प्रस्तावना==
 
==प्रस्तावना==
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गंधर्व वेद चार उपवेदों में से एक उपवेद है। अन्य तीन उपवेद हैं - आयुर्वेद , शिल्पवेद और धनुर्वेद। गन्धर्ववेद के अन्तर्गत भारतीय संगीत , शास्त्रीय संगीत , राग , सुर , गायन तथा वाद्य यन्त्र आते हैं।
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सामवेद का एक उपवेद, जो संगीत-शास्त्र कहलाता है। भारतीय संगीत और नाट्य परंपरा के मूल प्रमाण गांधर्ववेद में मिलते हैं। संगीत का विशिष्ट स्वरूप बहुत पहले ही सामने आ गया था और उसमें गुरु-शिष्य संबंध के साधनात्मक रूप में इस शास्त्र का पठन-पाठन और अभ्यास किया जाता था। इस शास्त्र को नादात्मक ब्रह्म की आराधना के रूप में स्वीकारा गया। भरताचार्य ने इस दिशा में सशक्त पहल की थी और नाट्यशास्त्र के आरंभ में ही इस संबंध में अपनी अवधारणा को प्रतिपादित कर दिया था। इस उपवेद में संगीतविद्या, गायन विद्या और संगीत चिकित्सा का वर्णन प्राप्त होता है। भारतवर्षका एक उपद्वीप जो हिमालय पर माना जाता है। यहांके लोग गान-विद्या विशारद होते थे।  
 
सामवेद का एक उपवेद, जो संगीत-शास्त्र कहलाता है। भारतीय संगीत और नाट्य परंपरा के मूल प्रमाण गांधर्ववेद में मिलते हैं। संगीत का विशिष्ट स्वरूप बहुत पहले ही सामने आ गया था और उसमें गुरु-शिष्य संबंध के साधनात्मक रूप में इस शास्त्र का पठन-पाठन और अभ्यास किया जाता था। इस शास्त्र को नादात्मक ब्रह्म की आराधना के रूप में स्वीकारा गया। भरताचार्य ने इस दिशा में सशक्त पहल की थी और नाट्यशास्त्र के आरंभ में ही इस संबंध में अपनी अवधारणा को प्रतिपादित कर दिया था। इस उपवेद में संगीतविद्या, गायन विद्या और संगीत चिकित्सा का वर्णन प्राप्त होता है। भारतवर्षका एक उपद्वीप जो हिमालय पर माना जाता है। यहांके लोग गान-विद्या विशारद होते थे।  
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==संगीत चिकित्सा==
 
==संगीत चिकित्सा==
मानव-स्वास्थ्य के लिये संगीत सर्वश्रेष्ठ औषधि है। गाना सुनने से या केवल गुनगुनाने से ही निराशा दूर हो जाती है। हृदय में प्रेम उत्पन्न होता है। संगीत आराधना, मानव का सर्वप्रथम कर्तव्य रूप में ईश्वर की वंदना है। यह कार्य प्रार्थना द्वारा होता है। संगीत ही प्राणों में प्रेम तथा तन्मयता उत्पन्न करता है। संगीत-बोध होने के लिये श्रोता को संगीतज्ञ होना आवश्यक नहीं क्योंकि संगीत समझने की नहीं, परन्तु अनुभव करने की वस्तु है। शब्द समझा जाता है, स्वर अनुभव किया जाता है। अनुभव से उत्पन्न आनंद और लय से लहरें, रक्त और प्राण के माध्यम से मनोमयकोष तक पहुँचती हैं।
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मानव-स्वास्थ्य के लिये संगीत सर्वश्रेष्ठ औषधि है। गाना सुनने से या केवल गुनगुनाने से ही निराशा दूर हो जाती है। हृदय में प्रेम उत्पन्न होता है। संगीत आराधना, मानव का सर्वप्रथम कर्तव्य रूप में ईश्वर की वंदना है। यह कार्य प्रार्थना द्वारा होता है। संगीत ही प्राणों में प्रेम तथा तन्मयता उत्पन्न करता है। संगीत-बोध होने के लिये श्रोता को संगीतज्ञ होना आवश्यक नहीं क्योंकि संगीत समझने की नहीं, परन्तु अनुभव करने की वस्तु है। शब्द समझा जाता है, स्वर अनुभव किया जाता है। अनुभव से उत्पन्न आनंद और लय से लहरें, रक्त और प्राण के माध्यम से मनोमयकोष तक पहुँचती हैं। अतः मनुष्य की शारीरिक पीडा को कम करने में संगीत अत्यन्त लाभकारी होता है। संगीत चिकित्सा प्रमुखतः निम्न रोगियों के लिये अधिक उपयोगी मानी गई है -
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# मानसिक रोगी
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# अपंग व्यक्ति (दिव्यांग)
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# मस्तिष्क के चोट के रोगी
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# जीर्ण व्याधियों से ग्रसित रोगी
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# अनिद्रा, क्रोध आदि भी संगीत से दूर होते हैं
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सांगीतिक ध्वनियों के माध्यम से जो ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं, उसका प्रभाव मनुष्य के सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर पडता है। अतः संगीत चिकित्सा का रोगियों पर प्रभावशाली परिणाम होता है। संगीत चिकित्सा के प्रति संगीतज्ञ, चिकित्सक एवं वैज्ञानिक अभी आश्वस्त हैं।<ref>चन्द्र भूषण एवं प्रो० शारदा वेलंकर, संगीत चिकित्सा, सन् २०१६-१७, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय [https://bhu.ac.in/Images/files/p62_1_2.pdf पत्रिका - प्रज्ञा], अंक - ६२ , भाग १ -२ (पृ० ८८)।</ref>
    
'''स्वस्थ मन से शरीर का पोषण'''
 
'''स्वस्थ मन से शरीर का पोषण'''
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