Form of an Ideal Society (आदर्श समाज का स्वरूप)
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This article relies largely or entirely upon a single source.January 2019) ( |
- समाज में धर्म के जानकार और मार्गदर्शकों का प्रमाण भिन्न स्वभाव विशिष्टताओं के लोगोंं में लगभग २ % से अधिक का होगा। प्रतिशत कम होने पर भी इनकी समाज में प्रतिष्ठा होगी। इनकी संख्या बढ़ने का वातावरण होगा।
- स्वभाव के अनुसार काम का समीकरण २० % लोगोंं में दिखाई देगा। इनकी संख्या बढ़ने का वातावरण होगा।
- २० % जनसंख्या संयुक्त परिवारों के सदस्यों की होगी। यह संख्या बढ़ने का वातावरण होगा।
- ६०-६५ % उद्योग कौटुम्बिक उद्योग होंगे। यह संख्या बढ़ने का वातावरण होगा।
- देश के हर विद्यालय में धार्मिक शिक्षा ही प्रतिष्ठित होगी। नि:शुल्क होगी। शिक्षकाधिष्ठित होगी। शासन की भूमिका सहायक, समर्थक और संरक्षक की होगी। शिक्षा का माध्यम धार्मिक भाषाएँ होंगी। १०-१२ % लोग संस्कृत में धाराप्रवाह संभाषण करने की सामर्थ्य रखने वाले होंगे। ५-७ % शास्त्रों के अच्छे जानकर होंगे। यह प्रमाण बढ़ने का वातावरण होगा।
- २० % माताएँ ‘माता प्रथमो गुरू:’ के अनुसार व्यवहार कर रही होंगी। यह संख्या बढ़ने का वातावरण रहेगा। २०% पिता भी पिता द्वितियो गुरु: की भूमिका का निर्वहन करा रहे होंगे। ऐसे पिताओं की भी संख्या बढ़ने का वातावरण होगा।
- धार्मिक दृष्टि से स्वाध्याय करनेवाले लोगोंं की संख्या कुल आबादी के २० % होगी। यह प्रमाण बढ़ने का वातावरण होगा।
- ग्रामाधारित, गोआधारित और कौटुम्बिक उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था का प्रमाण ३०-४० % होगा।
- सामाजिक संबंधों में कौटुम्बिक भावना का प्रमाण ४० % होगा। यह प्रमाण बढ़ने का वातावरण होगा।
- मालिकों का समाज होगा। ८०-८५ % लोग मालिक होंगे। नौकर बनना हीनता का लक्षण माना जाएगा।
- २० % लोगोंं में दान की, अर्पण/समर्पण की मानसिकता होगी। यह प्रमाण बढ़ने का वातावरण होगा।
- परिवारों के साथ ही सुधारित आश्रम व्यवस्था को समाज का समर्थन, स्वीकृति और सहायता मिलेगी।
- व्यापारी वर्ग के प्रामाणिक और दानी व्यवहार से लोगोंं की व्यापारियों के बारे में सोच बदलेगी। व्यापारियों के व्यवहार में लाभ और शुभ का सन्तुलन बनेगा। इसमें शुभ को प्रधानता होगी।
- सामान्य मनुष्य जो धर्म का जानकार नहीं होता उस में इस की समझ होना और उसने धर्म के अनुसार चलनेवालों का अनुसरण करना। ऐसा करने वालों की संख्या लक्षणीय होगी।
- जीवन की गति इष्ट गति होने की दिशा प्राप्त करेगी।
- तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में धार्मिक तन्त्रज्ञान विकास और उपयोग नीति का स्वीकार विश्व के सभी देश करेंगे। सुख और साधन में अन्तर समझने वाला समाज विश्वभर में वृद्धि पाएगा। भारत की पहल से विश्व के सभी देश संहारक शस्त्रास्त्रों को नष्ट करेंगे।
- भारत माता विश्वगुरु के स्थानपर विराजमान होगी। भारत परम वैभव को प्राप्त होगा।
References
- जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४५, लेखक - दिलीप केलकर
अन्य स्रोत: