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उ-ब्रह्मा पुत्र नारदजी से रजा अम्बरीष ने प्रश्न किया कि आप वैशाख महीने की विशेषताओं के बारे में बताएं । नारदजी ने राजा अम्बरीष के प्रश्नों का विस्तृत रूप से उत्तर देते हुए बताया , हे राजन ! पूर्व काल में इक्ष्वाकु वंश में एक शूरवीर, धर्मात्मा, दानी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाला राजा हुआ करता था । वह धर्मात्मा व दानी था फिरभी वह कभी जल दान नहीं करता था । जल दान न करने के कारण वह तीन जन्म तक चातक की योनी में रहा, उसके बाद एक जन्म में गिद्ध का और सात जन्मो में कुत्ते की योनी भोगी ।  उसके पश्चात् मिथिलापुरी के राजा शूतकीर्षि के महल में छिपकली योनि में उत्पन्न हुआ। वह राजा के महल की चौखट पर बैठकर कीड़ों को खाता रहता था। इस प्रकार उसे सत्तासी वर्ष बीत गये। एक बार श्रुतदेव ऋषि के राजमंडल में आने पर राजा  ने उनका बड़ा सत्कार किया, मधुपर्क आदि से उनका पूजन करके उनके चरण धोकर अपने माथे पर जल लगाया, इस जल की एक बूंद उस छिपकली पर भी पड़ी। जल की बूंद पड़ते ही छिपकली पवित्र हो गयी और उसको अनेक जन्मों का ज्ञान हो गया। वह पुकार के बोली, ब्राह्मण देवता, मेरी रक्षा करो। ऐसे आश्चर्ययुक्त वचन सुनकर ऋषि कहने लगे कि तुम कौन हो और तुम इतना विलाप क्यों कर रहे हो?  
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ब्रह्मा पुत्र नारदजी से राजा अम्बरीष ने प्रश्न किया कि आप वैशाख महीने की विशेषताओं के बारे में बताएं । नारदजी ने राजा अम्बरीष के प्रश्नों का विस्तृत रूप से उत्तर देते हुए बताया , हे राजन ! पूर्व काल में इक्ष्वाकु वंश में एक शूरवीर, धर्मात्मा, दानी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाला राजा हुआ करता था । वह धर्मात्मा व दानी था फिरभी वह कभी जल दान नहीं करता था । जल दान न करने के कारण वह तीन जन्म तक चातक की योनी में रहा, उसके बाद एक जन्म में गिद्ध का और सात जन्मो में कुत्ते की योनी भोगी ।  उसके पश्चात् मिथिलापुरी के राजा शूतकीर्षि के महल में छिपकली योनि में उत्पन्न हुआ। वह राजा के महल की चौखट पर बैठकर कीड़ों को खाता रहता था। इस प्रकार उसे सत्तासी वर्ष बीत गये। एक बार श्रुतदेव ऋषि के राजमंडल में आने पर राजा  ने उनका बड़ा सत्कार किया, मधुपर्क आदि से उनका पूजन करके उनके चरण धोकर अपने माथे पर जल लगाया, इस जल की एक बूंद उस छिपकली पर भी पड़ी। जल की बूंद पड़ते ही छिपकली पवित्र हो गयी और उसको अनेक जन्मों का ज्ञान हो गया। वह पुकार के बोली, ब्राह्मण देवता, मेरी रक्षा करो। ऐसे आश्चर्ययुक्त वचन सुनकर ऋषि कहने लगे कि तुम कौन हो और तुम इतना विलाप क्यों कर रहे हो?  
    
तुम अपना दुःख मुझसे कहो, मैं तुम्हारा उद्धार करूंगा। छिपकली के सारे दुःखों को सुनकर ऋषि बोले-  
 
तुम अपना दुःख मुझसे कहो, मैं तुम्हारा उद्धार करूंगा। छिपकली के सारे दुःखों को सुनकर ऋषि बोले-  
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==== व्रत कथा (द्वितीय)- ====
 
==== व्रत कथा (द्वितीय)- ====
 
जब राजा युधिष्ठिर का अश्वमेघ यज्ञ हो रहा था, तभी एक नेवला वहां लोट लगाने लगा। कुछ लोगों ने देखा उस नेवले का आधा शरीर स्वर्ण का बना हुआ है। युधिष्ठिर ने इसका कारण पुरोहित से पूछा तो उन्होंने नेवले से ही पूछने की सलाह दी। राजा ने नेवले से पूछा तो नेवला कहने लगा--"तुम्हारा यज्ञ अक्षय-तीज के दिन दिये गये गेहूं के दाने के बराबर भी नहीं है।"  तब युधिष्ठिर के पूछने पर नेवला बोला-"मुगल नाम का एक ब्राह्मण खेतों से दाने बीनकर अपना पोषण किया करता था। वह सत्यवादी था। एक दिन भगवान ने उसकी परीक्षा लेनी चाही। वे अक्षय-तीज के दिन उसके पास आये और अन्न-- जल मांगा! ब्राह्मण ने अपना और अपनी स्त्री का भाग  उठाकर दे दिया। देते समय कुछ दाने पृथ्वी पर गिर गये। मैं वहां लेट रहा था, तब लेटते ही मेरी काया स्वर्ण की हो गई। तब से मैं पूरे शरीर को स्वर्णमयी करने के लिए यज्ञों में घूम रहा हूं परन्तु आखातीज के दाने के बराबर कोई यज्ञ फलदायक नहीं मिला, जिससे मेरी सम्पूर्ण स्वर्ण काया हो जाएगी।" यह सुनकर युधिष्ठिर लज्जित हुए और आखातीज का उसी दिन से नियमपूर्वक व्रत करने लगे |
 
जब राजा युधिष्ठिर का अश्वमेघ यज्ञ हो रहा था, तभी एक नेवला वहां लोट लगाने लगा। कुछ लोगों ने देखा उस नेवले का आधा शरीर स्वर्ण का बना हुआ है। युधिष्ठिर ने इसका कारण पुरोहित से पूछा तो उन्होंने नेवले से ही पूछने की सलाह दी। राजा ने नेवले से पूछा तो नेवला कहने लगा--"तुम्हारा यज्ञ अक्षय-तीज के दिन दिये गये गेहूं के दाने के बराबर भी नहीं है।"  तब युधिष्ठिर के पूछने पर नेवला बोला-"मुगल नाम का एक ब्राह्मण खेतों से दाने बीनकर अपना पोषण किया करता था। वह सत्यवादी था। एक दिन भगवान ने उसकी परीक्षा लेनी चाही। वे अक्षय-तीज के दिन उसके पास आये और अन्न-- जल मांगा! ब्राह्मण ने अपना और अपनी स्त्री का भाग  उठाकर दे दिया। देते समय कुछ दाने पृथ्वी पर गिर गये। मैं वहां लेट रहा था, तब लेटते ही मेरी काया स्वर्ण की हो गई। तब से मैं पूरे शरीर को स्वर्णमयी करने के लिए यज्ञों में घूम रहा हूं परन्तु आखातीज के दाने के बराबर कोई यज्ञ फलदायक नहीं मिला, जिससे मेरी सम्पूर्ण स्वर्ण काया हो जाएगी।" यह सुनकर युधिष्ठिर लज्जित हुए और आखातीज का उसी दिन से नियमपूर्वक व्रत करने लगे |
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