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=== बरूथिनी एकादशी ===
 
=== बरूथिनी एकादशी ===
बरूथिनी एकादशी वैशाख कृष्ण पक्ष में एकादशी के दिन मनाई जाती है। यह व्रत सुख सौभाग्य का प्रतीक है। सुपात्र ब्रह्माण को दान देने, करोड़ों वर्षों तक तपस्या करने और कन्यादान के भी फल से बढ़कर (बरूथिनी एकादशी) का व्रत है। इस व्रत को करने वाले के लिए खासतौर से उस दिन खाना, दातुन करना, परनिन्दा, क्रोध करना और मसल बोलना वर्जित है। इस व्रत में अलोना रहकर तेलयुक्त भोजन नहीं करना चाहिए। इसका माहात्म्य सुनने से सौ गौ की हत्या के पाप से भी मुक्त हो जाते हैं। इस तरह यह अत्यधिक फलदायक व्रत है। व्रत की कथा (प्रथम)-प्राचीन काल की बात है, काशी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसके तीन लड़के थे। उसका सबसे बड़ा बेटा बुरे विचारों वाला पापी
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बरूथिनी एकादशी वैशाख कृष्ण पक्ष में एकादशी के दिन मनाई जाती है। यह व्रत सुख सौभाग्य का प्रतीक है। सुपात्र ब्रह्माण को दान देने, करोड़ों वर्षों तक तपस्या करने और कन्यादान के भी फल से बढ़कर (बरूथिनी एकादशी) का व्रत है। इस व्रत को करने वाले के लिए खासतौर से उस दिन खाना, दातुन करना, परनिन्दा, क्रोध करना और मसल बोलना वर्जित है। इस व्रत में अलोना रहकर तेलयुक्त भोजन नहीं करना चाहिए। इसका माहात्म्य सुनने से सौ गौ की हत्या के पाप से भी मुक्त हो जाते हैं। इस तरह यह अत्यधिक फलदायक व्रत है। व्रत की कथा (प्रथम)-प्राचीन काल की बात है, काशी नगरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसके तीन लड़के थे। उसका सबसे बड़ा बेटा बुरे विचारों वाला पापी पुरुष था। उनका परिवार भिक्षा से चलता था। वह ब्राह्मण प्रातः ही भिक्षा हेतु निकल जाता और सायंकाल के समय घर वापस आता। एक दिन उस ब्राह्मण को बुखार हो गया और उसने अपने तीनों पुत्र भिक्षा हेतु भेज दिये। पिता की आज्ञा से तीनों पुत्र भिक्षा मांगकर सार्यकाल के समय वापस आये। ब्राह्मण ने जब देखा उसके पुत्र भिक्षा लेकर आये हैं तो वह बहुत प्रसन्न हुआ इस प्रकार उनकी गृहस्थी चलती रही। एक दिन बाप ने बेटो से कहा-"बेटा घर पर बैठकर शास्त्रों और वेदों को पढ़ना शुरू कर दो।" पिता की बात सुन बड़ा बेटा वहां से चला गया और दोनों छोटे लड़के शास्त्रों और वेदों का अध्ययन करने लगे। दोनों पुत्र विद्वान बन गये।
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एक दिन बड़ा लड़का भिक्षा मांगने गया। उसने पहला दरवाजा खटखटाया। अन्दर से एक अत्यन्त सुन्दर युवती निकली। युवती को देख उसके मन में प्रेम की भावना जाग्रत हो उठी। वह उस युवती को बातों में फंसाकर अपने घर ले आया। ब्राह्मण ने अपने पुत्र के इस कुकर्म पर क्रुद्ध होकर उसे घर से निकाल दिया। एक बार छोटा लड़का भिक्षा मांगते-मांगते अपने बड़े भाई के घर तक जा पहुंचा। अपने छोटे भाई को देख बड़े भाई ने उसे अपने पास बैठाया और अपने पापों से मुक्त होने का उपाय पूछने लगा। छोटा लड़का बोला-"वैशाख मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को बरूथिनी एकादशी कहते हैं। उसका तुम व्रत रखना और भगवान श्री हरि के बारह अवतार की पूजा करना। रात्रि में उनकी मूर्ति के पास ही सोना। दिन में ब्राह्मणों को भोजन कराना । इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे।"
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अपने छोटे भाई की बात मान बड़े भाई ने बरूथिनी एकादशी का व्रत रख, विधि-विधान से बारह अवतार की पूजा कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लिया। दिन में हरि कीर्तन किया और रात्रि में मन्दिर में ही सो गया। उसने शीघ्र ही स्वप्न में श्री हरि के दर्शन किये तथा अपने समस्त पापों से मुक्त हो गया। प्रात:काल उठकर अपनी पत्नी के समक्ष जाकर सारा वृतान्त कह सुनाया। स्वप्न सुनकर उसकी पत्नी अत्यन्त प्रसन्न हुई। दोनों अपने पिता के पास पहुंचे और प्रणाम किया। पिता अपने पुत्र को क्षमा कर घर के भीतर ले गया। वे सब आनन्द से रहने लगे। बड़े लड़के ने भी शास्त्रों व वेदों का अध्ययन कर विद्वत्ता का ज्ञान प्राप्त किया। हे एकादशी माता!  जिस प्रकार ब्राह्मण के लड़के को पापमुक्त किया वैसे ही सबको करना।
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==== व्रत की कथा (द्वितीय)- ====
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प्राचीन काल में नर्मदा तट पर मानधाता नामक राजा राज्यसुख भोग रहा था। राजकाज करते हुए भी वह अत्यन्त दानशील और तपस्वी था। एक दिन जब वह तपस्या कर रहा था, उसी समय एक जंगली भालू आकर उसका पैर चबाने लगा। थोड़ी देर बाद वह राजा को घसीटकर वन में ले गया। तब राजा ने घबराकर तापस धर्म के अनुकूल हिंसा, क्रोध न करके भगवाणु से प्रार्थना की। भक्तवत्सल भगवान प्रकट हुए और भालू को चक्र से मार डाला। राजा का पैर भालू खा चुका था। इससे वह बहुत शोकाकुल हुआ। विष्णु भगवान वाराह अवतार मूर्ति की पूजा वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर करो, उसके प्रभाव से तुम पुनः सम्पूर्ण अंगों वाले हो जाओगे। भालू ने जो तुम्हें काटा है यह तुम्हारा पूर्व
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