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हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह यह पहला महिना होता है । हिन्दुओं का नयावर्ष इसी माह से आरंभ होता है और चैत्र माह पुरे ब्रहमांड का प्रथम दिन मन जाता है जिसे संवत्सर भी कहते है ।वेदों और पुराणों के मान्यतानुसार चैत्र महीने की शुक्ल प्रतिपदा से सृष्टि के निर्माण का आरंभ भगवान ब्रह्मा जी ने किया था और सतयुग का आरंभ भी इसी महीने से मन जाता है । भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार के रूप मत्स्यावतार रूप  में अवतरित इसी माह की पर्तिपदा के दिन माना जाता है ऐसा अपने पौराणिक कथाओं में अंकित है जहाँ प्रलय के बिच से मनु को सुरक्षित स्थान पर पहुचाया था और नए युग का आरम्भ हुआ ।   
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[[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] [[Panchanga (पञ्चाङ्गम्)|पंचांग]] के अनुसार चैत्र माह यह पहला महिना होता है । हिन्दुओं का नयावर्ष इसी माह से आरंभ होता है और चैत्र माह पुरे ब्रहमांड का प्रथम दिन मन जाता है जिसे संवत्सर भी कहते है ।[[Vedas (वेदाः)|वेदों]] और [[Puranas (पुराणानि)|पुराणों]] के मान्यतानुसार चैत्र महीने की शुक्ल प्रतिपदा से सृष्टि के निर्माण का आरंभ भगवान ब्रह्मा जी ने किया था और सतयुग का आरंभ भी इसी महीने से मन जाता है । भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार के रूप मत्स्यावतार रूप  में अवतरित इसी माह की पर्तिपदा के दिन माना जाता है ऐसा अपने पौराणिक कथाओं में अंकित है जहाँ प्रलय के बिच से मनु को सुरक्षित स्थान पर पहुचाया था और नए युग का आरम्भ हुआ ।   
    
=== चैत्र नवरात्र ===
 
=== चैत्र नवरात्र ===
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=== रामनवमी ===
 
=== रामनवमी ===
चैत्र शुक्ल नवमी को इस दिन भगवान राम ने प्रादुर्भाव होकर बहुत- -से राक्षसों को मारकर इस पृथ्वी का भार उतारा और अपने भक्तों की रक्षा की। इनके चरित्र को ऋषि बाल्मीकि ने रामायण में तथा सन्त तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इन दिनों रामचरितमानस और रामायण का पाठ करने से मनुष्य संसार के जन्म-मरण के बंधनों से छूटकर मोक्ष पद को प्राप्त हो जाता है। पूरे भारतवर्ष के हिन्दू-परिवारों में श्रीराम का यह जन्म-महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन के व्रत दशमी को करने का विधान है। पूजन के बाद यथाशक्ति सुपात्र ब्राह्मणों को दान करना चाहिए ।यह व्रत वास्तव में श्री हनुमानजी की भक्ति, लक्षमण जी की निष्ठा एवं जटायु के त्याग का स्मरण करता है ।
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चैत्र शुक्ल नवमी को इस दिन भगवान राम ने प्रादुर्भाव होकर बहुत- -से राक्षसों को मारकर इस पृथ्वी का भार उतारा और अपने भक्तों की रक्षा की। इनके चरित्र को ऋषि [[Valmiki Rshi (वाल्मीकि ऋषिः)|बाल्मीकि]] ने [[Ramayana (रामायणम्)|रामायण]] में तथा सन्त तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इन दिनों रामचरितमानस और रामायण का पाठ करने से मनुष्य संसार के जन्म-मरण के बंधनों से छूटकर [[मोक्ष पुरुषार्थ और शिक्षा|मोक्ष]] पद को प्राप्त हो जाता है। पूरे भारतवर्ष के [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]]-परिवारों में [[श्रीराम: - महापुरुषकीर्तन श्रंखला|श्रीराम]] का यह जन्म-महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन के व्रत दशमी को करने का विधान है। पूजन के बाद यथाशक्ति सुपात्र ब्राह्मणों को दान करना चाहिए ।यह व्रत वास्तव में श्री हनुमानजी की भक्ति, लक्षमण जी की निष्ठा एवं जटायु के त्याग का स्मरण करता है ।
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'''व्रत कथा :-'''जब पृथ्वी पर अत्याचार अधिक होने लगे और पृथ्वी इन अत्याचारों को सहन ना कर सकी, तब वह गाय के रूप में देवताओं - मुनिओं के साथ  ब्रह्माजी के समक्ष पहुंची। ब्रह्माजी ने जब पृथ्वी का दुःख सुना तो वे पृथ्वी व देवगणों सहित क्षीर सागर के तट पर पहुंचकर विष्णगुजी का गुणगान करने लगे। अपने भक्तों की करुण पुकार को सुनकर भगवान विष्णु पूर्व दिशा से अपने तेज को चमकाते. हुए प्रकट हुए। भगवान विष्णु को सभी देवताओं और मुनियों ने दण्डवत् प्रणाम किया, तब भगवान विष्णु ने उनका दुःख पछा तो ब्रह्माजी कहने लगे कि आप तो अन्तर्यामी हो, सबके घट-घट को जानने वाले हो, आपसे कोई बात छिपी नहीं है। हे भगवान! पृथ्वी रावण आदि राक्षसों के अत्याचार से बहुत दु:खी है। वह इस दु:ख को सह नहीं सकती। आप दयामयी हैं। आपसे प्रार्थना है कि पृथ्वी का भी कष्ट दूर करें। तब विष्णु भगवान बोले, इस समय पृथ्वी पर राजा दशरथ (जो पहले जन्म में कश्यपजी थे, उनकी तपर्या से प्रसन्न होकर मैने उनका पुत्र हीना स्वीकार कर लिया था। मैं अयोध्या के राजा के यहां पुत्र रूप में चार अंशों में माता कौशल्या सुमित्रा व केकैयी के गर्भ से जन्म लूंगा, तब अपना कार्य सिद्ध करूंगा। इन्हीं भगवान विष्णु ने चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी के दिन राम के रूप में अयोध्या में राजा दशरथ के यहां जन्म लिया। उन्हीं की थाद में आज तक रामनवमी का पर्वमनाया जाता है और जब तक सृष्टि रहेगी यह पर्व मनाया जाता रहेगा।
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=== कामदा एकादशी ===
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चैत्र मास में शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी कामदा एकादशी के नाम से जानी जाती है, इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार की बात है कि नागलोक में पुण्डरिक नामक एक राजा राज्य करता था। उसके दरबार में किन्नरों एवं गंधवों का गायन होता रहता था। एक दिन गन्दर्भ ललित दरबार में गाना गा रहा था, अचानक गाते हुए उसे अपनी पत्नी की याद आने से उसकी स्वर लहरी व ताल विकृत होने लगी। उसकी इस त्रुटी को इसके शत्रु कर्कट ने ताड़ लिया और राजा को बता दिया। राजा पुण्डरिक को अत्यन्त क्रोध आया और उसे राक्षस होने का अभिशाप दे दिया। राक्षस योनि में ललित अपनी पत्नी के संग इधर-उधर भटकता रहता। एक दिन उसकी पत्नी ने विन्ध्य पर्वत पर जाकंर ऋृष्यमक ऋषि से अपने पति के उद्धार हतु विधि पूछी। ऋषि ने ललित को एकाटशी का व्रत करने की सलाह दी। ललत ने सच्ची लगन और आस्था से व्रत किया। बत के प्रभाव से व शापमुक्त हो गन्वव स्वरूप को प्राप्त हुआ।
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[[Category:Education Series]]
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==References==
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[[Category:हिंदी भाषा के लेख]]
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[[Category:Festivals]]

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