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हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह यह पहला महिना होता है । हिन्दुओं का नयावर्ष इसी माह से आरंभ होता है और चैत्र माह पुरे ब्रहमांड का प्रथम दिन मन जाता है जिसे संवत्सर भी कहते है ।वेदों और पुराणों के मान्यतानुसार चैत्र महीने की शुक्ल प्रतिपदा से सृष्टि के निर्माण का आरंभ भगवान ब्रह्मा जी ने किया था और सतयुग का आरंभ भी इसी महीने से मन जाता है । भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार के रूप मत्स्यावतार रूप  में अवतरित इसी माह की पर्तिपदा के दिन माना जाता है ऐसा अपने पौराणिक कथाओं में अंकित है जहाँ प्रलय के बिच से मनु को सुरक्षित स्थान पर पहुचाया था और नए युग का आरम्भ हुआ ।   
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[[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] [[Panchanga (पञ्चाङ्गम्)|पंचांग]] के अनुसार चैत्र माह यह पहला महिना होता है । हिन्दुओं का नयावर्ष इसी माह से आरंभ होता है और चैत्र माह पुरे ब्रहमांड का प्रथम दिन मन जाता है जिसे संवत्सर भी कहते है ।[[Vedas (वेदाः)|वेदों]] और [[Puranas (पुराणानि)|पुराणों]] के मान्यतानुसार चैत्र महीने की शुक्ल प्रतिपदा से सृष्टि के निर्माण का आरंभ भगवान ब्रह्मा जी ने किया था और सतयुग का आरंभ भी इसी महीने से मन जाता है । भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार के रूप मत्स्यावतार रूप  में अवतरित इसी माह की पर्तिपदा के दिन माना जाता है ऐसा अपने पौराणिक कथाओं में अंकित है जहाँ प्रलय के बिच से मनु को सुरक्षित स्थान पर पहुचाया था और नए युग का आरम्भ हुआ ।   
    
=== चैत्र नवरात्र ===
 
=== चैत्र नवरात्र ===
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=== गणगौर व्रत ===
 
=== गणगौर व्रत ===
 
यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीय को मनाया जाता है । इसी दिन सुहागन स्त्रियाँ व्रत रखती है । कहा जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती तथा सभी स्त्रियों को सौभाग्य का वर दिया था । पूजन के समय रेणुका की गौरी बनाकर उसपर चूड़ी , माहवार , सिंदूर चढ़ाने का नियम है । चन्दन , अक्षत ,धुप , दीप , नैवेद्य से पूजन करना , सुहागन के सिंगार का सामान चढ़ाना और भोग लगाने का नियम है । यह व्रत रखने वाली स्त्रियों को गौर पर चढ़े सिंदूर को अपनी मांग में लगाना चाहिए । व्रत कथा-एक बार चैत्र शुक्ल की तृतीया को शंकरजी नारद व पार्वती सहित पृथ्वी का भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंचे। गांव के लोगों को जब पता लगा तो वहां की निर्धन घर की स्त्रियों ने जैसे वे बैठी थीं, वैसे ही थाल में हल्दी, चावल, अक्षत, जल लेकर शिव-पार्वती की पूजा कर पार्वतीजी से हरिद्रा (हल्दी) का छींटा लगवाकर मातेश्वरी गौरी से आशीर्वाद व मंगल कामना प्राप्त की। दूसरी तरफ गांव की सम्पन्न परिवार की स्त्रियां सोलह सिंगार से पूर्ण हो, छत्तीस प्रकार के भोजन लेकर देर से आईं। शिवजी तब पार्वतीजी से बोले-“हे पार्वती तुमने सारा सुहाग प्रसाद तो पहले ही बांट दिया अब इनको क्या दोगी?" पार्वतीजी बोलीं-"आप उनकी बात छोड़ें उन्हें ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया है इसलिए उनका सुहाग अक्षुष्ण रहेगा। इन लोगों को मैं अपनी अंगुली चीरकर रक्त सुहाग रस दूंगी जो मेरे समान ही सौभाग्यशालिनी बन जायेंगी। उन्हें आशीर्वाद दें। पति से आज्ञा ले पार्वतीजी ने स्नान कर बालु का महादेव बनाकर पूजन किया तथा प्रसाद खा अपने मस्तक पर टीका लगाया। तब महादेव ने पार्वतीजी को आशीर्वाद दिया कि "आज के दिन जो भी स्त्री मेरा पूजन तथा तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति दीर्घायु होगा औरअन्त में मोक्ष को प्राप्त होगा। शिवजीजी यह कहकर अन्तर्ध्यान हो गये।
 
यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीय को मनाया जाता है । इसी दिन सुहागन स्त्रियाँ व्रत रखती है । कहा जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती तथा सभी स्त्रियों को सौभाग्य का वर दिया था । पूजन के समय रेणुका की गौरी बनाकर उसपर चूड़ी , माहवार , सिंदूर चढ़ाने का नियम है । चन्दन , अक्षत ,धुप , दीप , नैवेद्य से पूजन करना , सुहागन के सिंगार का सामान चढ़ाना और भोग लगाने का नियम है । यह व्रत रखने वाली स्त्रियों को गौर पर चढ़े सिंदूर को अपनी मांग में लगाना चाहिए । व्रत कथा-एक बार चैत्र शुक्ल की तृतीया को शंकरजी नारद व पार्वती सहित पृथ्वी का भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंचे। गांव के लोगों को जब पता लगा तो वहां की निर्धन घर की स्त्रियों ने जैसे वे बैठी थीं, वैसे ही थाल में हल्दी, चावल, अक्षत, जल लेकर शिव-पार्वती की पूजा कर पार्वतीजी से हरिद्रा (हल्दी) का छींटा लगवाकर मातेश्वरी गौरी से आशीर्वाद व मंगल कामना प्राप्त की। दूसरी तरफ गांव की सम्पन्न परिवार की स्त्रियां सोलह सिंगार से पूर्ण हो, छत्तीस प्रकार के भोजन लेकर देर से आईं। शिवजी तब पार्वतीजी से बोले-“हे पार्वती तुमने सारा सुहाग प्रसाद तो पहले ही बांट दिया अब इनको क्या दोगी?" पार्वतीजी बोलीं-"आप उनकी बात छोड़ें उन्हें ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया है इसलिए उनका सुहाग अक्षुष्ण रहेगा। इन लोगों को मैं अपनी अंगुली चीरकर रक्त सुहाग रस दूंगी जो मेरे समान ही सौभाग्यशालिनी बन जायेंगी। उन्हें आशीर्वाद दें। पति से आज्ञा ले पार्वतीजी ने स्नान कर बालु का महादेव बनाकर पूजन किया तथा प्रसाद खा अपने मस्तक पर टीका लगाया। तब महादेव ने पार्वतीजी को आशीर्वाद दिया कि "आज के दिन जो भी स्त्री मेरा पूजन तथा तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति दीर्घायु होगा औरअन्त में मोक्ष को प्राप्त होगा। शिवजीजी यह कहकर अन्तर्ध्यान हो गये।
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=== चैत्र शुक्ल दोज (बालेन्द्र व्रत) ===
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यह व्रत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष दोज को रखा जाता है। इस दिन साल के प्रारम्भ में सबसे पहले दिन चन्द्रमा के दर्शन होते हैं। इस दिन चन्द्रमा छोटे होते हैं; इसलिए इन्हें बालेन्द्र कहते हैं। इस दिन ब्रह्माजी की पूजा करें तथा उनकी प्रतिमा के समक्ष बैठकर हवन करें। जिसमें छवि, अन्न मिष्ठान आदि की आहुति दें। साथ ही रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्य दें। इस दिन दही, घी का भोजन करें। यह व्रत समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है तथा यह व्रत मृत्यु के पश्चात् मोक्ष प्रदान करता है। इस व्रत के प्रभाव से सुख-समृद्धि व धन में वृद्धि होती है।
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=== मत्स्यावतार जयन्ती ===
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यह व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है। इस दिन भगवान मत्स्यावतार का जन्म माना जाता है, इसलिए इस दिन मत्स्यावतार की पूजा करनी चाहिए। यदि मत्स्यावतार की मूर्ति हो तो उसको स्नान कराके पूजन करें। भोग लगाकर फूल, धूप, दीप, चन्दन आदि से आरती उतारें। इस दिन चावलों का भोग लगाकर उसी को बांट देवें, कथा सुनें और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें। इस प्रकार व्रत व पूजन करने से मनुष्य की रक्षा भगवान करते हैं। जिस प्रकार भगवान की सृष्टि की अन्तिम.अंकुरों की रक्षा की थी, उसी प्रकार निश्च्छल भाव से पूजन करने वाले भक्तों की भी रक्षा भगवान करते हैं।
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=== कुमार व्रत ===
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यह व्रत चैत्र मास शुक्ल पक्ष की षष्ठमी को रखा जाता है। इस दिन भगवान शिवजी के बड़े पुत्र कार्तिकेयजी की पूजा करनी चाहिए। भगवान कार्तिकेय की मूर्ति को शुद्ध जल से स्नान कराने के पश्चात् वस्त्राभूषणों से सुशोभित कर फलों का भोग लगाकर धूप, दीप आदि से आरती उतारें। फलों के भोग को भक्तजनों में बांटकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें। कुमार व्रत रखने वालों में भगवान ऊंचे विचार पैदा करते हैं, धन व पुत्रादि देते हैं; अन्ततः मोक्ष प्रदान करते हैं।
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=== रामनवमी ===
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चैत्र शुक्ल नवमी को इस दिन भगवान राम ने प्रादुर्भाव होकर बहुत- -से राक्षसों को मारकर इस पृथ्वी का भार उतारा और अपने भक्तों की रक्षा की। इनके चरित्र को ऋषि [[Valmiki Rshi (वाल्मीकि ऋषिः)|बाल्मीकि]] ने [[Ramayana (रामायणम्)|रामायण]] में तथा सन्त तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इन दिनों रामचरितमानस और रामायण का पाठ करने से मनुष्य संसार के जन्म-मरण के बंधनों से छूटकर [[मोक्ष पुरुषार्थ और शिक्षा|मोक्ष]] पद को प्राप्त हो जाता है। पूरे भारतवर्ष के [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]]-परिवारों में [[श्रीराम: - महापुरुषकीर्तन श्रंखला|श्रीराम]] का यह जन्म-महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन के व्रत दशमी को करने का विधान है। पूजन के बाद यथाशक्ति सुपात्र ब्राह्मणों को दान करना चाहिए ।यह व्रत वास्तव में श्री हनुमानजी की भक्ति, लक्षमण जी की निष्ठा एवं जटायु के त्याग का स्मरण करता है ।
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'''व्रत कथा :-'''जब पृथ्वी पर अत्याचार अधिक होने लगे और पृथ्वी इन अत्याचारों को सहन ना कर सकी, तब वह गाय के रूप में देवताओं - मुनिओं के साथ  ब्रह्माजी के समक्ष पहुंची। ब्रह्माजी ने जब पृथ्वी का दुःख सुना तो वे पृथ्वी व देवगणों सहित क्षीर सागर के तट पर पहुंचकर विष्णगुजी का गुणगान करने लगे। अपने भक्तों की करुण पुकार को सुनकर भगवान विष्णु पूर्व दिशा से अपने तेज को चमकाते. हुए प्रकट हुए। भगवान विष्णु को सभी देवताओं और मुनियों ने दण्डवत् प्रणाम किया, तब भगवान विष्णु ने उनका दुःख पछा तो ब्रह्माजी कहने लगे कि आप तो अन्तर्यामी हो, सबके घट-घट को जानने वाले हो, आपसे कोई बात छिपी नहीं है। हे भगवान! पृथ्वी रावण आदि राक्षसों के अत्याचार से बहुत दु:खी है। वह इस दु:ख को सह नहीं सकती। आप दयामयी हैं। आपसे प्रार्थना है कि पृथ्वी का भी कष्ट दूर करें। तब विष्णु भगवान बोले, इस समय पृथ्वी पर राजा दशरथ (जो पहले जन्म में कश्यपजी थे, उनकी तपर्या से प्रसन्न होकर मैने उनका पुत्र हीना स्वीकार कर लिया था। मैं अयोध्या के राजा के यहां पुत्र रूप में चार अंशों में माता कौशल्या सुमित्रा व केकैयी के गर्भ से जन्म लूंगा, तब अपना कार्य सिद्ध करूंगा। इन्हीं भगवान विष्णु ने चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी के दिन राम के रूप में अयोध्या में राजा दशरथ के यहां जन्म लिया। उन्हीं की थाद में आज तक रामनवमी का पर्वमनाया जाता है और जब तक सृष्टि रहेगी यह पर्व मनाया जाता रहेगा।
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=== कामदा एकादशी ===
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चैत्र मास में शुक्ल पक्ष को आने वाली एकादशी कामदा एकादशी के नाम से जानी जाती है, इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार की बात है कि नागलोक में पुण्डरिक नामक एक राजा राज्य करता था। उसके दरबार में किन्नरों एवं गंधवों का गायन होता रहता था। एक दिन गन्दर्भ ललित दरबार में गाना गा रहा था, अचानक गाते हुए उसे अपनी पत्नी की याद आने से उसकी स्वर लहरी व ताल विकृत होने लगी। उसकी इस त्रुटी को इसके शत्रु कर्कट ने ताड़ लिया और राजा को बता दिया। राजा पुण्डरिक को अत्यन्त क्रोध आया और उसे राक्षस होने का अभिशाप दे दिया। राक्षस योनि में ललित अपनी पत्नी के संग इधर-उधर भटकता रहता। एक दिन उसकी पत्नी ने विन्ध्य पर्वत पर जाकंर ऋृष्यमक ऋषि से अपने पति के उद्धार हतु विधि पूछी। ऋषि ने ललित को एकाटशी का व्रत करने की सलाह दी। ललत ने सच्ची लगन और आस्था से व्रत किया। बत के प्रभाव से व शापमुक्त हो गन्वव स्वरूप को प्राप्त हुआ।
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[[Category:Education Series]]
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==References==
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<references />
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[[Category:हिंदी भाषा के लेख]]
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[[Category:Festivals]]

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