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→‎कृष्ण अष्टमी-काल अष्टमी: लेख सम्पादित किया
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बोला-"भगवान आप ही इस गर्भ को किसी प्रकार समझाकर प्रसव बनाइये, तब भगवान की विभूतियां गर्भ को समझाने लगीं कि-"हे महामने भोटी कुमार! हम ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य कभी तुमसे दूर नहीं होंगे।" अधर्म बोला-"मैं कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगा।" इतना कहने पर बालक बाहर निकल आया और रोने लगा।
 
बोला-"भगवान आप ही इस गर्भ को किसी प्रकार समझाकर प्रसव बनाइये, तब भगवान की विभूतियां गर्भ को समझाने लगीं कि-"हे महामने भोटी कुमार! हम ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य कभी तुमसे दूर नहीं होंगे।" अधर्म बोला-"मैं कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगा।" इतना कहने पर बालक बाहर निकल आया और रोने लगा।
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तब विभूतियों ने कहा-“हे भोटी! तुम्हारा पुत्र अब भी कालमार्ग से डरता है, अत: इसका नाम काल भीति करके प्रसिद्ध होगा।" इस प्रकार वरदान देकर वह विभूतियां शिवजी के पास चली गयीं। इस बालक का जन्म आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को हुआ था। इसीलिए इस अष्टमी को काल अष्टमी कहते हैं। इस काल भीति ने बड़ा होने पर एक बिल्व वृक्ष के.
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तब विभूतियों ने कहा-“हे भोटी! तुम्हारा पुत्र अब भी कालमार्ग से डरता है, अत: इसका नाम काल भीति करके प्रसिद्ध होगा।" इस प्रकार वरदान देकर वह विभूतियां शिवजी के पास चली गयीं। इस बालक का जन्म आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को हुआ था। इसीलिए इस अष्टमी को काल अष्टमी कहते हैं। इस काल भीति ने बड़ा होने पर एक बिल्व वृक्ष के.अग्र भाग के सहारे खड़े होकर जप करने लगा फिर जल की एक एक बूंद लेकर जप करता रहा, फिर एक मनुष्य जल का घड़ा लेकर आया परन्तु काल भीति ने ग्रहण नहीं किया |
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आगंतुक ने कहा कि घड़ा मिटटी का बना हुआ है इसलिए अत्यंत शुद्ध है यदि आप यह कहें कि मेरे संसर्ग से अशुद्ध हो गया, तो मै भी पृथ्वी पर रहता हूँ तुम भी इसी पृथ्वी पर रहते हो, इस प्रकार के विचार करना मूर्खो की सी बातें  करनी हैं। परन्तु काल भीति ने कहा कि-"जब तक आपके वर्ण का पता मुझे नहीं लग जाएगा मैं आपका जल नहीं पीऊंगा।" इस प्रकार काल भीति का दृढ़ निश्चय देखकर, वह पुरुष सहसा अन्तर्ध्यान हो गया और काल भीति चकित होकर चारों तरफ देखता रहा कि वह पुरुष कहां गायब हो गया? सहसा उसी बिल्व वृक्ष के नीचे पृथ्वी में से एक शिवलिंग उत्पन्न हुआ, जो सब दिशाओं को प्रकाशित कर रहा था। तब काल भीति को प्रसन्न होकर स्तुति करने से श्री महादेव ने उस लिंग में से निकलकर प्रत्यक्ष दर्शन दिये और अपने तेज से त्रिलोकों को प्रकाशित कर दिया। काल भीति से कहा-"ब्राह्मण! इस महातीर्थ में रहकर तुमने मेरी आराधना की है इससे मैं अतिशय प्रसन्न हूं। मैं तुम्हारी भावना देखने मनुष्य रूप में यहां आया था। तुमने जो मेरी स्तुति की है वह वैदिक मंत्रों के रहस्यों से भरी हुई हैं। अत: तुम मुझसे मन-इच्छित वर मांगो।" काल भीति कहने लगा कि भगवान! यदि आप प्रसन्न हैं, तो सदैव यहां पर ही निवास करिये। यहां पर जो कोई भी दान-पुण्य करेगा उसका फल अक्षय होगा। भगवान शंकर कहने लगे कि जहां लिंग वहां पर सदैव निवास करता हूं। आकाश में तारका भय लिंग, पाताल में हाठकेश्वर लिंग तथा भूमण्डल में स्वयम् हलिंग यह तीनों ही शुभ होते हैं। इनका पूजन अक्षय फल को देने वाला होता है। जो इस काल अष्टमी के दिन इस शिवलिंग पर जल चढ़ायेगा वह शिव स्वरूप ही हो जायेगा। वत्स! तुम नन्दी के साथ मेरे दूसरे द्वारपाल हो। हे वत्स! कालमार्ग पर विजय प्राप्त करने के कारण तुम्हारा नाम महाकाल के नाम से इस संसार में प्रसिद्ध होगा।
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=== देवशयनी एकादशी ===
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सूतजी कहते हैं-आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी देवशयनी एकादशी कहलाती है। और उस एकादशी से चतुर्मास का संकल्प कर प्रथम भगवान विष्णुजी को श्वेत वस्त्र पहना और श्वेत वर्ण की शय्या पर भगवान विष्णु को शयन करायें। इसके बाद वेदपाठी ब्राह्मणों से दूध, दही, घृत, शहद और शर्करा से पंचामृत स्नान करायें फिर गधादि सब चीजों से भगवान की पूजा करें और प्रार्थना करें कि "हे देवेश! हे उनार्दन! हे लक्ष्मीकांत! आपको शमन करा रहा हूं। आपके सन्मुख होकर मैं चतुर्मास व्रत का नियम ग्रहण करता हूं। आप मेरे समस्त मनोरथ पूर्ण कीजिये।" "व्रत करने से जो फल मिलता है अब वह तुमसे मैं कहता हूं- चतुर्मास का व्रत आरम्भ करके उसे किसी भी प्रकार खण्डित न करें। जो अनुष्य पूर्ण वर्ष इस व्रत को करते हैं, उसका तेज सूर्य के समान हो जाता है।" “जो मनुष्य चर्तुमास में भगवान विष्णु की षोडशोपचार विधि से पूजा करते महाप्रलय तक बैकुण्ठ का वास करते हैं।" "जो नित्यप्रति भगवान के मन्दिर में आकर सफाई करते हैं या जल छिड़कते
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