− | नैमिषारण्य तीर्थ में स्थित श्री सूतजी से शौनिक ऋषि पूछते हैं - " हे ऋषि! कृपा करके अषाढ़ मास का महात्म्य तथा सब कृत्य कहिये | | + | नैमिषारण्य तीर्थ में स्थित श्री सूतजी से शौनिक ऋषि पूछते हैं-"हे ऋषि! कृपा करके आषाढ़ मास का माहात्म्य तथा सब कृत्य कहिये।" सूतजी कहने लगे- "ऋषियों! अब मैं आषाढ़ मास का माहात्म्य कहता हूँ। आप एकचित्त होकर सुनिये! यह मास वर्षाकाल का आरम्भ करता है। जिससे अन्नादि की वृद्धि होती है और सब मनुष्यों को बल मिलता है। अतः इस मास में यज्ञादि करने चाहिएं। जिससे संसार में अन्नादि उत्पन्न होकर मनुष्यों को बलवान होकर इस संसार के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन करें।" सूतजी कहने लगे-“हे ऋषियों! सब प्रकार के कलेशों तथा विघ्नों को हरने वाले श्री गणेशजी का व्रत आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को करना चाहिए। इस दिन शौच और स्नानादि से निवृत होकर प्रथम संकल्प करना चाहिए। इस दिन को मैं आज श्री गणेशजी की प्रसन्नता के लिए और सब प्रकार के विघ्नों के नाश के लिए बारह महीनों के व्रत एवं त्यौहार |