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इतना विचार कर लक्ष्मीजी इस भेद की जानने के लिए दक्षिण दिशा की और देखने लगी। उस दिशा में उन्हें पीली सरसों का खेत दिखाई दिया। उसे देखकर लक्ष्मीजी की आंखें ललचायीं। उन्होंने वहां जाकर अपना शृंगार किया। आगे चलकर उन्हें गन्ने का खेत दिखाई दिया वहां से गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। जब भगवान विष्णु वहां से लौटे तो लक्ष्मीजी को वहां देखकर क्रोध करने लगे। उनके हाथ में गन्ना देखकर कहने लगे कि तुमने खेत के गन्ने तोड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है इसके बदले तुम्हें इस गरीब किसान की बारह वर्ष तक सेवा करनी होगी। यह सुनकर लक्ष्मीजी घबराई परन्तु जो बात भगवान के मुख से निकल गयी वही उनको करनी थी। तब भगवान लक्ष्मीजी को छोड़कर क्षीर सागर में चले गये।
 
इतना विचार कर लक्ष्मीजी इस भेद की जानने के लिए दक्षिण दिशा की और देखने लगी। उस दिशा में उन्हें पीली सरसों का खेत दिखाई दिया। उसे देखकर लक्ष्मीजी की आंखें ललचायीं। उन्होंने वहां जाकर अपना शृंगार किया। आगे चलकर उन्हें गन्ने का खेत दिखाई दिया वहां से गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। जब भगवान विष्णु वहां से लौटे तो लक्ष्मीजी को वहां देखकर क्रोध करने लगे। उनके हाथ में गन्ना देखकर कहने लगे कि तुमने खेत के गन्ने तोड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है इसके बदले तुम्हें इस गरीब किसान की बारह वर्ष तक सेवा करनी होगी। यह सुनकर लक्ष्मीजी घबराई परन्तु जो बात भगवान के मुख से निकल गयी वही उनको करनी थी। तब भगवान लक्ष्मीजी को छोड़कर क्षीर सागर में चले गये।
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लक्ष्मीजी भगवान की आज्ञा मानकर उस किसान के घर चली गयी और उस किसान की नौकरानी बनकर उसकी सेवा करती रही जिस दिन लक्ष्मीजी किसान के घर में पहुंची किसान का घर उसी दिन से धन-धान्य से पूर्ण हो गया जब बारह वर्ष बीत गये लक्ष्मीजी जाने लगी। किन्तु किसान ने उन्हें जाने से रोक लिया। जब विष्णु भगवान ने देखा कि लक्ष्मीजी नहीं आई तो वह किसान के घर गये और लक्ष्मीजी से चलने के लिए कहने लगे, परन्तु किसान ने लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान विष्णु बोले, अच्छा तुम अपने परिवार सहित गंगा स्नान के लिए जाओ और गंगाजी में इन चार कौड़ियों को छोड़ देना। जब तक तुम वापिस नहीं आयेंगे, जब तक हम नहीं जायेंगे। किसी ने ऐसा ही किया। जैसे ही किसान नेकौड़ियां पानी में छोड़ी तभी चार हाथ पानी से निकलकर उन कौड़ियों को ले गये।
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लक्ष्मीजी भगवान की आज्ञा मानकर उस किसान के घर चली गयी और उस किसान की नौकरानी बनकर उसकी सेवा करती रही जिस दिन लक्ष्मीजी किसान के घर में पहुंची किसान का घर उसी दिन से धन-धान्य से पूर्ण हो गया जब बारह वर्ष बीत गये लक्ष्मीजी जाने लगी। किन्तु किसान ने उन्हें जाने से रोक लिया। जब विष्णु भगवान ने देखा कि लक्ष्मीजी नहीं आई तो वह किसान के घर गये और लक्ष्मीजी से चलने के लिए कहने लगे, परन्तु किसान ने लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान विष्णु बोले, अच्छा तुम अपने परिवार सहित गंगा स्नान के लिए जाओ और गंगाजी में इन चार कौड़ियों को छोड़ देना। जब तक तुम वापिस नहीं आयेंगे, जब तक हम नहीं जायेंगे। किसी ने ऐसा ही किया। जैसे ही किसान नेकौड़ियां पानी में छोड़ी तभी चार हाथ पानी से निकलकर उन कौड़ियों को ले गये।जब किसान ने ऐसा देखा तो वह गंगाजी से बोला-हे गंगा मय्या। तेरे अन्दर से ये चार हाथ किसके निकले? तब गंगाजी कहने लगी, हे किसान! ये चारों हाथ मेरे ही थे। तू जो ये कौड़ियां मुझे भेंट के लिए लाया है किसने दी हैं? तब किसान बोला-मेरे घर दो प्राणी आये हैं उन्होंने ही ये कौड़ियां दी हैं। तब गंगाजी बोली, तेरे घर जो औरत रहती है वह लक्ष्मीजी हैं और जो आदमी आया है वह विष्णु भगवान हैं। तू लक्ष्मी को मत जाने देना नहीं तो तू पहले की ही भांति गरीब हो जायेगा।
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यह सुनकर वह वापस अपने घर आया। घर आकर भगवान से आकर कहने लगा -मैं इनको घर से जाने नहीं दूंगा। तब भगवान बोले-यह तो इनका दोष था जिसका मैने इनको दण्ड दिया था। इनके दण्ड के बारह वर्ष पूरे हो गये इसलिए अब तो इन्हें जाना ही होगा। तब किसान बोला, मैं इन्हें नहीं जाने दूंगा। भगवान हँसकर कहने लगे, हे किसान! लक्ष्मीजी बड़ी चंचल हैं। ये आज नहीं तो कल तेरे घर से अवश्य ही चली जायेंगी। तुम तो क्या अच्छे-अच्छे लक्ष्मीजी को नहीं रोक पाये। इस पर किसान कहने लगा, मैं इन्हें नहीं जाने दूंगा। तब लक्ष्मीजी बोलीं-हे किसान! यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो सुनो कल तेरस है। अत: कल तुम घर को लीप-पोतकर साफ-सुथरा रखना। रात्रि को घी का दीपक जलाकर रखना। तब मैं तुम्हारे घर में आऊंगी। उस समय तुम मेरी पूजा करना, परन्तु तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। किसान ने कहा, अच्छा मैं ऐसा ही करूंगा। इतना कहकर लक्ष्मीजी दशों दिशाओं में फैल गयीं और भगवान देखते ही रह गये।
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दूसरे दिन किसान ने लक्ष्मीजी के बताये अनुसार ही कार्य किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसके बाद वह हर साल पूजा करता रहा। उसको देखकर और व्यक्ति भी पूजा करने लगे हैं यहां। हे लक्ष्मीजी! जैसे तुम उस गरीब किसान के आई वैसे सबके आना! हमारे भी आना।
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=== रूप चतुर्दशी ===
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यह चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चौदस को आती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण रूप-सौंदर्य को देते हैं। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। रूप चतुर्दशी की कथा-एक समय भारतवर्ष में हिरण्यगर्भ नाम के नगर में एक योगिराज रहते थे। उन्होंने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। अत: उन्होंने समाधि लगायी। उनके शरीर में कीड़े पड़ गये। बालों में छोटे-छोटे कीड़े लग गये। आंखों में, भौंहों में और माथे पर जुये जम गयौं, इससे योगिराज बहुत दुःखी हुए। इतने में वहां नारदजी घूमते-घूमते वीणा और खरसाल बजाते हुए आ गये। तब योगिराज बोले- भगवन भगवान के चिन्तन में लोन होना चाहता था परन्तु मेरी यह दशा हो गयी।"
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