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→‎गोवत्स द्वादशी का व्रत: लेख संपादित किया
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यह त्यौहार कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। इस दिन गायों और बछड़ो की पूजा की जाती है। व्रत रखने वाला इस दिन प्रातः स्नान कर गाय और बछड़ों का पूजन करे। फिर उनको आटे का गोला बनाकर खिलाये। इस दिन गाय का दूध, गेहूं की बनी वस्तुएं और भैंस, बकरी का दूध और कटे फल नहीं खायें। इसके बाद गोवत्स द्वादशी की कहानी सुनें। फिर ब्राह्मणों को फल दान दें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। गोवत्स द्वादशी की कथा-बहुत समय पूर्व की बात है। भारतवर्ष में एक स्वर्णपुष्ट नाम का एक बहुत रमणिक नगर था। वहां देवरावी नाम का राजा राज्य करता था। राजा बहुत धर्मात्मा, दानी और गोमाता का सेवक था। उसके यहां एक गाय, बछड़ा और मैंसें रहती थीं। उस राजा के दो रानियां थीं। एक का नाम सीता और एक का नाम गीता था। सीता भैंस से प्यार करती थी और उसे अपनी सखी की तरह मानती थी जबकि गीता गाय और बछड़े से प्रेम करती थी। वह गाय को सहेली और बछड़े को अपने बच्चे के समान प्रेम करती थी।
 
यह त्यौहार कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। इस दिन गायों और बछड़ो की पूजा की जाती है। व्रत रखने वाला इस दिन प्रातः स्नान कर गाय और बछड़ों का पूजन करे। फिर उनको आटे का गोला बनाकर खिलाये। इस दिन गाय का दूध, गेहूं की बनी वस्तुएं और भैंस, बकरी का दूध और कटे फल नहीं खायें। इसके बाद गोवत्स द्वादशी की कहानी सुनें। फिर ब्राह्मणों को फल दान दें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। गोवत्स द्वादशी की कथा-बहुत समय पूर्व की बात है। भारतवर्ष में एक स्वर्णपुष्ट नाम का एक बहुत रमणिक नगर था। वहां देवरावी नाम का राजा राज्य करता था। राजा बहुत धर्मात्मा, दानी और गोमाता का सेवक था। उसके यहां एक गाय, बछड़ा और मैंसें रहती थीं। उस राजा के दो रानियां थीं। एक का नाम सीता और एक का नाम गीता था। सीता भैंस से प्यार करती थी और उसे अपनी सखी की तरह मानती थी जबकि गीता गाय और बछड़े से प्रेम करती थी। वह गाय को सहेली और बछड़े को अपने बच्चे के समान प्रेम करती थी।
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एक दिन मैंस सीता से बोली-“हे रानी! गाय का बछड़ा होने से मुझे द्वेष है। सीता ने कहा अगर ऐसी बात है तो मैं सब काम ठीक कर लूंगी। सीता ने उसी दिन गाय के बछड़े को उठाकर गेहूं के ढेर में दवा दिया। इस बात का किसी को पता न चला। जब राजा खाना खाने गया तो उसके महल में मांस की वर्षा होने लगी। चारों ओर महल में मांस और रक्त दिखाई देने लगा। जो खाना रखा था वह पखाना बन गया। यह देख राजा बहुत चिन्ता में पड़ गया कि यह सब क्या है? उसी समय आकाशवाणी हुई कि राजन, तेरी स्त्री सीता ने गाय के बछड़े को काटकर गेहूं की ढेरी में दबा दिया है। इसी कारण यह सब हुआ है। इतना सुनकर राजा गुस्से से कांपने लगा। तभी दुबारा स्वर गूंजा कि हे राजन! कल गोवत्स द्वादशी है। अत: भैंस को राहर से बाहर निकालकर तुम व्रत रखकर गाय के बछड़े को मन में विचारकर उसकी पूजा करना। गाय, भैंस का दूध और फल नहीं खाना। साथ ही गेहूं की कोई वस्तु भी न खाना। तब तेरा सब पाप दूर हो जायेगा और बछड़ा भी जीवित हो जायेगा । जब गाय शाम को आयी तो वह भी बछड़े के बिना वेचैन हुई। दूसरे दिन राजा ने आकाशवाणी के अनुसार ही कार्य किया। पूजा करते समय जैसे ही बछड़े को मन याद किया वैसे ही बछड़ा गेहूं के ढेर से निकल आया। यह देखकर राजा बहुत
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एक दिन मैंस सीता से बोली-“हे रानी! गाय का बछड़ा होने से मुझे द्वेष है। सीता ने कहा अगर ऐसी बात है तो मैं सब काम ठीक कर लूंगी। सीता ने उसी दिन गाय के बछड़े को उठाकर गेहूं के ढेर में दवा दिया। इस बात का किसी को पता न चला। जब राजा खाना खाने गया तो उसके महल में मांस की वर्षा होने लगी। चारों ओर महल में मांस और रक्त दिखाई देने लगा। जो खाना रखा था वह पखाना बन गया। यह देख राजा बहुत चिन्ता में पड़ गया कि यह सब क्या है? उसी समय आकाशवाणी हुई कि राजन, तेरी स्त्री सीता ने गाय के बछड़े को काटकर गेहूं की ढेरी में दबा दिया है। इसी कारण यह सब हुआ है। इतना सुनकर राजा गुस्से से कांपने लगा। तभी दुबारा स्वर गूंजा कि हे राजन! कल गोवत्स द्वादशी है। अत: भैंस को राहर से बाहर निकालकर तुम व्रत रखकर गाय के बछड़े को मन में विचारकर उसकी पूजा करना। गाय, भैंस का दूध और फल नहीं खाना। साथ ही गेहूं की कोई वस्तु भी न खाना। तब तेरा सब पाप दूर हो जायेगा और बछड़ा भी जीवित हो जायेगा । जब गाय शाम को आयी तो वह भी बछड़े के बिना वेचैन हुई। दूसरे दिन राजा ने आकाशवाणी के अनुसार ही कार्य किया। पूजा करते समय जैसे ही बछड़े को मन याद किया वैसे ही बछड़ा गेहूं के ढेर से निकल आया। यह देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और गोवत्स द्वादशी का व्रत करने को पूरे राज्य में घोषणा करवा दी।
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=== धनतेरस ===
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धनतेरस कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन घर में लक्ष्मी का वास मानते हैं। इस दिन को धन्वन्तरी वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। अत: वह धनतेरस को “धनवन्तरी जयन्ती" भी कहते हैं। यह दिन दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है, इस दिन बाजार से नया बर्तन खरीदकर घर में लाना शुभ माना जाता है।
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धनतेरस की कथा-
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एक दिन भगवान विष्णु लक्ष्मीजी के साथ मृत्युलोक में घूम रहे थे। एक जगह भगवान विष्णु कुछ सोचकर लक्ष्मीजी से बोले-मैं एक जगह जा रहा हूं। तुम यहीं पर बैठ जाओ लेकिन दक्षिण दिशा की ओर मत देखना। इतना कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की ओर ही चले गये। जब लक्ष्मीजी ने भगवान विष्णु को दक्षिण दिशा की ओर जाते देखा तो सोचा कि भगवान ने मुझे तो दक्षिण दिशा की ओर देखने से भी मना कर दिया और स्वयं उसी ओर जा रहे हैं जरूर उसमें कोई भेद है।
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इतना विचार कर लक्ष्मीजी इस भेद की जानने के लिए दक्षिण दिशा की और देखने लगी। उस दिशा में उन्हें पीली सरसों का खेत दिखाई दिया। उसे देखकर लक्ष्मीजी की आंखें ललचायीं। उन्होंने वहां जाकर अपना शृंगार किया। आगे चलकर उन्हें गन्ने का खेत दिखाई दिया वहां से गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। जब भगवान विष्णु वहां से लौटे तो लक्ष्मीजी को वहां देखकर क्रोध करने लगे। उनके हाथ में गन्ना देखकर कहने लगे कि तुमने खेत के गन्ने तोड़कर बहुत बड़ा अपराध किया है इसके बदले तुम्हें इस गरीब किसान की बारह वर्ष तक सेवा करनी होगी। यह सुनकर लक्ष्मीजी घबराई परन्तु जो बात भगवान के मुख से निकल गयी वही उनको करनी थी। तब भगवान लक्ष्मीजी को छोड़कर क्षीर सागर में चले गये।
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लक्ष्मीजी भगवान की आज्ञा मानकर उस किसान के घर चली गयी और उस किसान की नौकरानी बनकर उसकी सेवा करती रही जिस दिन लक्ष्मीजी किसान के घर में पहुंची किसान का घर उसी दिन से धन-धान्य से पूर्ण हो गया जब बारह वर्ष बीत गये लक्ष्मीजी जाने लगी। किन्तु किसान ने उन्हें जाने से रोक लिया। जब विष्णु भगवान ने देखा कि लक्ष्मीजी नहीं आई तो वह किसान के घर गये और लक्ष्मीजी से चलने के लिए कहने लगे, परन्तु किसान ने लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया। तब भगवान विष्णु बोले, अच्छा तुम अपने परिवार सहित गंगा स्नान के लिए जाओ और गंगाजी में इन चार कौड़ियों को छोड़ देना। जब तक तुम वापिस नहीं आयेंगे, जब तक हम नहीं जायेंगे। किसी ने ऐसा ही किया। जैसे ही किसान नेकौड़ियां पानी में छोड़ी तभी चार हाथ पानी से निकलकर उन कौड़ियों को ले गये।
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