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=== अहोई अष्टमी ===
 
=== अहोई अष्टमी ===
यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है, इस दिन पुत्रों की माता पूरे दिन व्रत करती हैं। इस दिन सायंकाल तारे निकलने के पश्चात् दीवार पर अहोई बनाकर उसको पूजा करें। व्रत रखने वाली माताएं कहानी सुनें, कहानी सुनते समय एक पत्ते पर
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यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है, इस दिन पुत्रों की माता पूरे दिन व्रत करती हैं। इस दिन सायंकाल तारे निकलने के पश्चात् दीवार पर अहोई बनाकर उसको पूजा करें। व्रत रखने वाली माताएं कहानी सुनें, कहानी सुनते समय एक पत्ते पर जल से भरा लौटा रखें। एक चाँदी की अहोई बनवायें और दो चाँदी के मोती एक डोरे में डलवायें जिस तरह हार में पेंडिल लगा होता है। उसकी जगह चाँदी की अहोई लगवाएं और डोरे, चांदी के मोती डलवा दें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध-भात से पूजा करें। जल के लौटे पर एक सतिया काढ़कर एक कटोरे में सीरी और रुपये का बायना निकालकर और हाथ में सात दाने गेहूं को लेकर कहानी सुनें। फिर अहोई को गले में पहन लें। जो बायना निकाला था उसे सासुजी को पांव छूकर अष्टमी के पश्चात् किसी अच्छे दिन अहोई गले में से उतारकर, जितने बेटे होवें उतनी बार और जितने बेटों का विवाह हुआ हो, उतनी बार दो चाँदी के दाने डालती जायें। जब अहोई उतारें उसको गुड़ से भोग लगाकर तथा जल के छीटें देकर रख दें। चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें।
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इस दिन ब्राह्मणों को दान में पेठा अवश्य देना चाहिए। यह व्रत छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, अहोई देवी के चित्र के साथ-साथ बच्चे के चित्र भी बनवायें एवं उनकी पूजा करें। अहोई व्रत कथा-प्राचीन काल की बात है भारतवर्ष के दतिया नामक नगर में चन्द्रभान नाम का साहूकार रहता था। उसकी पत्नी चन्द्रिका गुणवान व पतिव्रता थी। उसके कोई भी सन्तान जीवित नहीं रहती थी। वे दोनों दुःखी होकर सोचा करते थे-हमारी मृत्यु के पश्चात् इस वैभव का कौन स्वामी होगा? एक दिन वे निश्चय करके घर-धन छोड़कर जंगल में निवास करने चले गये।
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जब दोनों चलते-चलते थक जाते तब बैठ जाते फिर चलने लगे। इसी तरह वे बद्रिकाश्रम के निकट एक शील कुण्ड के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर दोनों ने अन्न-जल त्याग दिया। जब उन्हें भूखे-प्यासे सात दिन हो गये तो वहां आकाशवाणी हुई कि तुम लोग अपने प्राण मत त्यागो। यह दु:ख तुम्हें पूर्व जन्म के कारण मिला है। अतएव हे साहूकार! अब तुम अपनी पत्नी से अहोई अष्टमी के दिन जो कार्तिक कृष्ण पक्ष को आती है व्रत रखवाना। इस व्रत के प्रभाव से अहोई से अपने पुत्रों की दीर्घायु मांगना। व्रत के दिन रात्रि को राधाकुण्ड में स्नान करवाना। कार्तिक पक्ष की अष्टमी आने पर चंद्रिका में बड़ी श्रद्धा से अहोई देवी का व्रत धारण किया एवं रात्रि को साहूकार राधा कुण्ड में स्नान करने गया। साहूकार जब स्नान करके घर वापस आ रहा था तो मार्ग में अहोई देवी ने उसे दर्शन दिया एवं बोली-"साहूकार!
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मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं, तुम मुझसे कुछ भी वर मांग लो।" साहूकार अहोई देवी के दर्शन कर, बहुत प्रसन्न हुआ और कहा, मां! मेरे बच्चे कम उम्र में ही देवलोक को चले जाते हैं। इसलिए मां उनकी दीर्घायु होने का आशीर्वाद दीजिये। अहोई देवी बोलीं, ऐसा ही होगा। इतना कहकर देवी अन्तध्यान हो गयीं।
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