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" बहन अपनी भाभियों से बोली-"चलो अर्घ्य दे लें।" भाभियां बोलीं-"तुम्हारा चाँद उगा होगा। हमारा तो रात को उगेगा।" बहन ने अकेले ही अर्घ्य दे दिया और खाना खाने लगी। पहले ग्रास में बाल निकला, दूसरे में किकर, तीसरे में ससुराल से पति की बीमारी का संदेश आ गया। मां ने लड़की को विदा करते हुए कहा-"मार्ग में जो बड़ा मिले उसके पांव छूकर सुहाग का आशीष ले लेना। पल्ले में गांठ लगा लेना और उसे कुछ रुपये देना।" मार्ग में उसे जो भी मिला उसने यही आशीष दिया-“तुम सात भाइयों की बहन हो। तुम्हारे भाई सुखी रहें। तुम उनका सुख देखो।" किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दिया। जब वह ससुराल पहुंची तो दरवाजे पर खड़ी ननद के पांव छुए और उसने आशीष दिया-"सुहागिन रहो, सपूती हो।" तो उसने पल्ले में गांठ बांधकर ननंद को सोने का सिक्का दिया। जब भीतर गयी. तो सास बोली-"तेरा पति धरती पर पड़ा है।" उसके पास जाकर उसकी सेवा करने लगी। सास दासी के हाथ बची-कुची रोटी भेज देती। इस तरह बीतते-बीतते मंगसिर की चौथ आई तो चौध माता बोली-“करवा ले, करवा ले, भाइयों को प्यारी करवा ले।" लेकिन जब उसे चौथ माता नहीं दिखीं तो वह बोली-“मां आपने ही मुझे उजाड़ा है आप ही मेरा उद्धार करोगी।" चौथ माता बोलीं-“पौष की चौथ आयेगी वही तुम्हारा उद्धार करेगी। तुम उससे सब कहना वह तुम्हारा सुहाग देगी। इसी प्रकार पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ और सावन, भादों की चौथ माता आकर यह कहकर चली गयी कि आगे आने वाली से लेना। असौज की चौथ आयी तो उसने बताया कि-कार्तिक की चौथ तुम पर नाराज है, उसी ने तुम्हारा सुहाग लिया है नहीं वापस कर सकती है, वह आये तो उसके पांव पकड़कर विनती करना।" यह कहकर वह भी चली गयी जब कार्तिक की चौथ माता आई तो वह क्रोध में बोलीं- भाइयों की प्यारी करवा ले, दिन में चाँद उगनी करवा ले, व्रत खंडन करने वाली करवा ले, भूखी करवा ले।" यह सुनकर चौथ माता को देखकर उसके पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगी।
 
" बहन अपनी भाभियों से बोली-"चलो अर्घ्य दे लें।" भाभियां बोलीं-"तुम्हारा चाँद उगा होगा। हमारा तो रात को उगेगा।" बहन ने अकेले ही अर्घ्य दे दिया और खाना खाने लगी। पहले ग्रास में बाल निकला, दूसरे में किकर, तीसरे में ससुराल से पति की बीमारी का संदेश आ गया। मां ने लड़की को विदा करते हुए कहा-"मार्ग में जो बड़ा मिले उसके पांव छूकर सुहाग का आशीष ले लेना। पल्ले में गांठ लगा लेना और उसे कुछ रुपये देना।" मार्ग में उसे जो भी मिला उसने यही आशीष दिया-“तुम सात भाइयों की बहन हो। तुम्हारे भाई सुखी रहें। तुम उनका सुख देखो।" किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दिया। जब वह ससुराल पहुंची तो दरवाजे पर खड़ी ननद के पांव छुए और उसने आशीष दिया-"सुहागिन रहो, सपूती हो।" तो उसने पल्ले में गांठ बांधकर ननंद को सोने का सिक्का दिया। जब भीतर गयी. तो सास बोली-"तेरा पति धरती पर पड़ा है।" उसके पास जाकर उसकी सेवा करने लगी। सास दासी के हाथ बची-कुची रोटी भेज देती। इस तरह बीतते-बीतते मंगसिर की चौथ आई तो चौध माता बोली-“करवा ले, करवा ले, भाइयों को प्यारी करवा ले।" लेकिन जब उसे चौथ माता नहीं दिखीं तो वह बोली-“मां आपने ही मुझे उजाड़ा है आप ही मेरा उद्धार करोगी।" चौथ माता बोलीं-“पौष की चौथ आयेगी वही तुम्हारा उद्धार करेगी। तुम उससे सब कहना वह तुम्हारा सुहाग देगी। इसी प्रकार पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ और सावन, भादों की चौथ माता आकर यह कहकर चली गयी कि आगे आने वाली से लेना। असौज की चौथ आयी तो उसने बताया कि-कार्तिक की चौथ तुम पर नाराज है, उसी ने तुम्हारा सुहाग लिया है नहीं वापस कर सकती है, वह आये तो उसके पांव पकड़कर विनती करना।" यह कहकर वह भी चली गयी जब कार्तिक की चौथ माता आई तो वह क्रोध में बोलीं- भाइयों की प्यारी करवा ले, दिन में चाँद उगनी करवा ले, व्रत खंडन करने वाली करवा ले, भूखी करवा ले।" यह सुनकर चौथ माता को देखकर उसके पैर पकड़कर गिड़गिड़ाने लगी।
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वह बोली-“हे चौथमाता! मेरा सुहाग आपके हाथ में है आप मुझे सुहागिन करें।" तब माता बोली-“पापिन, हत्यारी मेरे पांव पकड़कर क्यूं बैठ गयी।" तब बहन बोली-“हे मां! मुझसे भूल हो गयी। अब मुझे क्षमा कर दें, अब कोई भूल न होगी। तब माता ने खुश होकर आंखों से काजल, नाखूनों से मेहंदी एवं टीके से रोली लेकर छोटी अंगुली से उसके आदमी पर छींटा दिया। उसका आदमी उठकर बैठ गया। और बोला-"आज मैं बहुत सोया। वह बोली-"क्या सोया पूरे बारह महीने हो गये।" अत: इस प्रकार चौथ माता ने सुहाग लौटाया।" तब उसने कहा-“शीघ्रता से माता का उजमन करो।" जब चौथ की कहानी सुनी, करवा पूजन किया तो प्रसाद खाकर दोनों पति-पत्नी चौपड़ खेलने बैठ गये। नीचे से दासी आई, उसने सासुजी को जाकर बताया। तब से सम्पूर्ण गांवों में यह प्रसिद्ध होती गयी कि-"सब स्त्रियां चौथ का व्रत करें तो सुहाग अटल रहेगा।"
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वह बोली-“हे चौथमाता! मेरा सुहाग आपके हाथ में है आप मुझे सुहागिन करें।" तब माता बोली-“पापिन, हत्यारी मेरे पांव पकड़कर क्यूं बैठ गयी।" तब बहन बोली-“हे मां! मुझसे भूल हो गयी। अब मुझे क्षमा कर दें, अब कोई भूल न होगी। तब माता ने खुश होकर आंखों से काजल, नाखूनों से मेहंदी एवं टीके से रोली लेकर छोटी अंगुली से उसके आदमी पर छींटा दिया। उसका आदमी उठकर बैठ गया। और बोला-"आज मैं बहुत सोया। वह बोली-"क्या सोया पूरे बारह महीने हो गये।" अत: इस प्रकार चौथ माता ने सुहाग लौटाया।" तब उसने कहा-“शीघ्रता से माता का उजमन करो।" जब चौथ की कहानी सुनी, करवा पूजन किया तो प्रसाद खाकर दोनों पति-पत्नी चौपड़ खेलने बैठ गये। नीचे से दासी आई, उसने सासुजी को जाकर बताया। तब से सम्पूर्ण गांवों में यह प्रसिद्ध होती गयी कि-"सब स्त्रियां चौथ का व्रत करें तो सुहाग अटल रहेगा।"जिस तरह साहूकार की पुत्री को सुहाग दिया। उसी तरह सबको सुहाग दे। यही करवा चौथ के व्रत की पुरातन महिमा है।
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श्री गणेशजी की कथा-एक बुढ़िया हमेशा गणेशजी की पूजा किया करती थी। गणेशजी उस बुढ़िया से कहते थे-मां तू जो चाहे सो मांग ले। बुढ़िया कह देती थी- भगवान मुझे मांगना नहीं आता, कैसे और क्या मांगू? तब गणेशजी ने कहा-अपने बेटे-बहू से पूछकर मांग ले। तब बुढ़िया ने बेटे से पूछा कि गणेशजी कहते हैं कि तू कुछ मांग ले। बता क्या मांगू? बेटा बोला-मां धन मांग ले? बहू से पूछा तो बोली-पोते मांग ले। तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की चीज मांग रहे हैं। यह सोचकर बुढ़िया अपनी पड़ोसिन के पास गयी और उससे पूछा। पड़ोसिन बोली बुढ़िया तू तो थोड़े ही दिन जीयेगी। धन और पोतों से क्या लाभ! तू अपनी आंखें मांग ले जिससे तेरा जीवन आराम से कट सके। बुढ़िया ने पड़ोसिन की बात भी नहीं मानी और घर में जाकर विचारने लगी कि ऐसी चीज मांगूगी कि जिससे बेटा-बहू भी खुश हो जायें और मुझे भी आराम हो जाये। अगले दिन गणेशजो आये और बोले, बुढ़िया जो चाहे मांग ले। बुढ़िया बोली-“महाराज! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे नौ करोड़ की माया नीरोगी काया, अमर सुहाग, आंखों की ज्योति, नाति, पोटी और सम्पूर्ण परिवार का सुख और समय पर मोक्ष दे।" तब गणेशजी बोले-"बुढ़िया मां तुने तो हमें ठग लिया।
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खैर तूने जो मांगा है वह तुझे मिलेगा।" इस प्रकार कहकर गणेशजी अन्तध्यान हो गये। बुढ़िया को मांगे अनुसार सब मिल गया। हे गणेशजी! जैसे तुमने बुढ़िया को समस्त सुख दिया वैसे सब को देना। करवा चौथ का उजमन-उजमन करने के लिए एक थाल में तेरह जगह चार-चार पृडी और थोड़ा-थोड़ा सीरा रख लें। उसके ऊपर एक साड़ी-ब्लाउज और अपनी श्रद्धा अनुसार रुपये रख लें। फिर उस थाली के चारों ओर रोली, चावल और जल से हाथ फेरकर अपनी सासु मां को पैर छूकर दे दें। इसके बाद तेरह ब्राह्मणियों को भोजन करायें। उनके रोली की बिन्दी लगाकर यथाशक्ति दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर विदा करें।
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=== अहोई अष्टमी ===
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यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है, इस दिन पुत्रों की माता पूरे दिन व्रत करती हैं। इस दिन सायंकाल तारे निकलने के पश्चात् दीवार पर अहोई बनाकर उसको पूजा करें। व्रत रखने वाली माताएं कहानी सुनें, कहानी सुनते समय एक पत्ते पर
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