Festival in Bhadrapada month (भाद्रपद मास के अंतर्गत व्रत व त्यौहार)

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इस मास में स्नान करने तथा व्रतों को करने से जन्म-जन्मान्तर के पाप नाश हो जाते हैं। इसके सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है- एक समय नारदजी सब लोकों में घूमते-घूमते ऋषि अम्बरीष के घर पर आये। अम्बरीष ने नारदजी का अत्यन्त भाव से सत्कार करके पाध, अर्ध आदि से उनका पूजन किया और कहने लगे कि-"महाराज! मैं धन्य हूं जो आपने मुझको दर्शन दियो इस समय मनुष्य कलियुग के प्रताप से बुहत-से पापकर्मों में लगे हुए हैं और बड़े-बड़े यज्ञ, तप असाध्य हो गये हैं। पाप करने से अति दुःखों को प्राप्त हो रहे हैं। अत: यदि कोई आप मुझको ऐसा सूक्ष्म-सा सरल उपाय बतायें जो समस्त पापों का नाश करने वाला हो। आपको अति कृपा होगी। जारदजी कहने लगे-“हे राजा अम्बरीष! मैं तुमको मासों में अति उत्तम मास भाद्रपद का माहात्म्य सुनाता हूं जो मेरे पिता ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर भगवान विष्णुजी ने सुनाया था। उत्तम, नध्यम अथवा अवधम किसी भी प्रकार का मनुष्य क्यों न हो इस उत्तम मास के व्रत करने तथा माहात्म्य सुनने से अति पवित्र होकर, कहता हूँ।

बैकुण्ठ लोक को प्राप्त हो जाता है। इसके सम्बन्ध में मैं तुमको एक प्राचीन कथा प्राचीन समय में माहिष्मतिपुर में शंबल नाम वाला एक कृष्णक्षत्री था। वह कृष्ण होने के कारण अपने धर्म को छोड़कर वैश्यों का कर्म किया करता था। देवयोग से उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी पत्नी सदैव अपने पति की सेवा किया करती थी। उसका नाम सुमति था। वह सदैव ब्राह्मणों की निन्दा किया करता था। एक समय भाद्रपद मास के आने पर नगर के बहुत-से स्त्री-पुरुष भाद्रपद के स्तान आदि हेतु तैयार हुए। शंबल की स्त्री सुमति ने भी भाद्रपद स्नान करने का निश्चय किया। शंबल को उसने बहुत समझाया तब कहीं वह स्नान करने को तैयार हुआ, परन्तु दूसरे दिन ही उसको तीव्र ज्वर हो गया। नित्य ही स्नान के समय उसे ज्वर हो जाता और वह स्नान नहीं कर सका। ज्वर के कारण वह अति दुर्बल हो गया और शीत आने पर उसकी मृत्यु हो गयी और वह यमपुरी पहुंच गया और वह अनेक प्रकार की नरक की यातनाएं भोगकर कुत्ते की योनि में पड़ा। इस योनि में भूख और प्यास से अति दु:खी होकर अति दुर्बल हो गया। कुछ काल व्यतीत होने पर वह वृद्ध हो गया, जिससे उसके सभी अंग शिथिल हो गये। एक दिन उसको मांस का एक पिंड मिल गया। किसी पूर्व जन्म के प्रताप से उस समय भाद्रपद मास और शुक्ल पक्ष थी। अकस्मात् वह मांस-पिण्ड उसके मुख से छूटकर जल में गिर गया। वह भी व्याकुल होकर उस मांस पिण्ड के पीछे जल में कूद गया और मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसी समय भगवान के पार्षद दिव्य विमान लेकर आये और उसको बैकुण्ठ चलने को कहा। उसने कहा-“मैंने तो किसी भी जन्म में कोई पुण्य कर्म नहीं किया, फिर बैकुण्ठ कैसा?" पार्षदों ने कहा-"तुमने अन्जाने में ही भाद्रपद मास में ही भाद्रपद मास में स्नान करके अपने प्राण गंवाये हैं। पुण्य के प्रताप से तुमको बैकुण्ठ प्राप्त हो रहा है।" अम्बरीष कहने लगे-"जब अज्ञात स्नान का फल इस प्रकार का होता है, तो जब श्रद्धा से स्नान तथा दान किया जायेगा तो कितना पुण्य होगा!"

बूढ़ी तीज

यह भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनायी जाती है। इस दिन व्रत रखकर गायों का पूजन करें तथा सात गायों के लिए सात आटे की लोई बनायें और उनको गुड़, घी आदि सहित गायों को खिला दें, फिर स्वयं भोजन करें। इस दिन बहुओं के शृंगार का सामान व साड़ी (सिंधारा) दिया जाता है और बहुए चीनी और रुपयों का बायना निकालकर अपनी सासु मां को पैर छूकर देती हैं।

कजरी तीज

यह भी भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनायी जाती है। यह खास तौर से बनारस के आस-पास मनायी जाती है। नाव में बैठकर कजरी बाम के गीत गाये जाते हैं। कजरी गीत गाने व सुनने वालों का मन मस्त हो जाता है।

गणेश चतुर्थी

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत चैत्र की चतुर्थी की तरह करते हुए कथा सुननी चाहिए। इसको बहुला चतुर्थी भी कहते हैं।

गूगा पंचमी

यह त्यौहार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष को पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम एक कटोरी में दूध लेकर सर्पो को पिलाना चाहिए; अर्थात् सांपों के बिलों में डाल देना चाहिए फिर घर आकर दीवार को गेरू से पोतकर दूध में कोयला धिसकर चौकोर घर जैसा बनाकर उसमें पांच सर्प बनायें और उनको जल, कच्चा दूध, रोली, चावल, बाजरे का आटा, घी और चीनी मिलाकर चढ़ायें साथ में दक्षिणा भी चढ़ायें। तत्पश्चात् नागपंचमी की कहानी सुनें। भीगे हुए मोठ-बाजरे का बायना निकालकर अपनी सासु मां को पैर छूकर दें। इस व्रत के प्रभाव से स्त्री सौभाग्यवती होती है। पति की विपत्तियों से रक्षा होती है तथा सभी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं।

चाना-छठ

यह व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। यह व्रत केवल कुंवारी कन्याओं को करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाली कुंवारियां निराहार रहकर पूजन करती हैं। एक पट्टे पर जल से भरे लोटे पर रोली से एक स्वास्तिक (सतिया) बनायें और लोटे की किनारी पर रोली से सात बिन्दी लगायें। एक गिलास गेहूं से भरकर उस पर दक्षिणा रखें। फिर हाथ में सात-सात दाने गेहूं के लेकर कहानी सुनें। कहानी सुनने के पश्चात् लोटे में भरे जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और गेहूं और दक्षिणा को ब्राह्मणी को दे दें। जिस समय कहानी सुनते हैं उस समय एक कलश जल का भरकर रख लेते हैं और बाद में उसी जल से भोजन तैयार करें। चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें |

चाना छठ की कहानी

एक नगर में एक सहकर और उसकी पत्नी रहते थे |