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==== बछवारस की कथा- ====
 
==== बछवारस की कथा- ====
 
एक राजा के सात बेटे और एक पोता था। एक दिन राजा ने सोचा, कुआं बनवाया जाए। उसने कुआं बनवाया लेकिन उसमें पानी नहीं आया। तब राजा ने पण्डितों से कुएं में पानी न आने का कारण पूछा। तब ब्राह्मणों ने कहा-महाराज! अगर आप यज्ञ करायें और अपने पोते की बलि दें तो पानी आयेगा। राजा ने ऐसा ही करने की आज्ञा दे दी। यज्ञ की तैयारियां हुई और बच्चे की बलि दी गयी। बच्चे की बलि देते ही पानी बरसने लगा, कुआं पानी से भर गया। राजा ने जब यह समाचार सुना तो वह अपनी रानी सहित कुआं पूजने गया। घर में साग-सब्जी न होने के कारण गाय के बछड़े को काटकर बना दिया। जब राजा और रानी पूजा करके वापस आये तब राजा ने कहा-गाय का बछड़ा कहां है? तब नौकरानी ने कहा, उसे तो मैंने काटकर साग बना दिया। तब राजा बोला, पापिन तूने यह क्या किया! राजा ने उस मांस की हांडी को जमीन में गाड़ दिया और सोचने लगा कि गाय को किस प्रकार समझाऊंगा ? गाय शाम को जब वापस आयी तो वह गड़े स्थान पर सींग से खोदने लगी, हांड़ी से सींग लगते ही उसमे से गाय का बछड़ा व राजा का पोता बाहर निकला | तभी इसी दिन का नाम बछावारस पड़ गया तथा गाय और बछड़ो की पूजा होती है |
 
एक राजा के सात बेटे और एक पोता था। एक दिन राजा ने सोचा, कुआं बनवाया जाए। उसने कुआं बनवाया लेकिन उसमें पानी नहीं आया। तब राजा ने पण्डितों से कुएं में पानी न आने का कारण पूछा। तब ब्राह्मणों ने कहा-महाराज! अगर आप यज्ञ करायें और अपने पोते की बलि दें तो पानी आयेगा। राजा ने ऐसा ही करने की आज्ञा दे दी। यज्ञ की तैयारियां हुई और बच्चे की बलि दी गयी। बच्चे की बलि देते ही पानी बरसने लगा, कुआं पानी से भर गया। राजा ने जब यह समाचार सुना तो वह अपनी रानी सहित कुआं पूजने गया। घर में साग-सब्जी न होने के कारण गाय के बछड़े को काटकर बना दिया। जब राजा और रानी पूजा करके वापस आये तब राजा ने कहा-गाय का बछड़ा कहां है? तब नौकरानी ने कहा, उसे तो मैंने काटकर साग बना दिया। तब राजा बोला, पापिन तूने यह क्या किया! राजा ने उस मांस की हांडी को जमीन में गाड़ दिया और सोचने लगा कि गाय को किस प्रकार समझाऊंगा ? गाय शाम को जब वापस आयी तो वह गड़े स्थान पर सींग से खोदने लगी, हांड़ी से सींग लगते ही उसमे से गाय का बछड़ा व राजा का पोता बाहर निकला | तभी इसी दिन का नाम बछावारस पड़ गया तथा गाय और बछड़ो की पूजा होती है |
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=== हरितालिका व्रत ===
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भादपद कृष्ण तीज को हरितालिका व्रत किया जाता है। इसमें भगवान शंकर-पार्वती को मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती है और एकाहार रहते करते हुए कथा श्रवण की जाती है।
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==== कथा- ====
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एक बार हिमालय राजा ने अपनी पुत्री पार्वतीजी का विवाह विष्णु भगवान से कर देने का निश्चय किया और इसके लिए उन्हें राजी भी कर लिया, परन्तु पार्वती यह नहीं चाहती थी क्योंकि उनकी इच्छा शिवजी से विवाह करने की थी, इसलिए वे बड़ी दुखित हुई और इसका भेद जब अपनी सखी को बताया तो वह पार्वतीजी को लेकर ऐसो कन्दरा में छुप गयीं, जहां किसी को उनका पता लगाना पार्वती को घर में न देखकर राजा को बड़ी चिन्ता हुई और अपने दूतों को उनका पता लगाने के लिए इधर-उधर भेजा और स्वयं भी उनकी खोज में निकल पड़े। इधर पार्वतीजी ने उस दिन से भगवान शंकर की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनका पूजन आरम्भ कर दिया। इस पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर पार्वतीजी के पास पहुंचकर कहने लगे-"मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं अतएव मनइच्छा वर मांगो।" इस पर पार्वतीजी ने हाथ जोड़कर कहा कि “प्रभु! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी धर्मपत्नी बनाकर कृपा कीजिए।" भगवान शंकर ने कहा-"ऐसा ही होगा।" इसी समय उन्हें खोजते हुए पर्वतराज भी वहां आ पहुचे और पार्वतीजी को सखी के साथ वहां देखकर पूछने लगे-“यहां आकर तुम्हारा छुपने का क्या कारण असम्भव था।
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पिता की बात सुनकर लजाते पार्वतीजी ने सारी बात खोलकर उनको दी। पुत्री की बातें सुनकर महाराजा हिमालय ने उनका विवाह शिव के साथ करना स्वीकार कर लिया। तदोपरान्त पार्वती अपनी सखी के संग पिता के साथ चल दी। जिस दिन पार्वतीजी का सखी द्वारा हरण किया गया था, उसी दिन पार्वतीजी ने भगवान शंकर का व्रत किया। उस दिन भाद्रपद शुक्ल तीज थी, इसलिए इसे हरितालिका व्रत कहते हैं। इस व्रत को करने से कुंवारियों को मनचाहा पति मिल जाता है तथा सुहागिन के स्वामी की आयु लम्बी होती है।
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=== गणेश चतुर्थी ===
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भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को गणेश-पूजन महोत्सव होता है और लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। भोग से पूर्ण विधिवत् गणेशजी का पूजन होता है। इसी दिन डण्डा चौथ मनाते हैं। गणेश पूजन होता है और गुल्ली-डण्डा बजाकर लोगों से
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